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Tuesday, February 11, 2020

समस्या समाधान विधि


Problem slowing method samsya smadhan vidhi
समस्या समाधान विधि



    (Problem Solving Method)


इस विधि के अन्तर्गत शिक्षार्थियों को एक समस्या दी जाती है। जिसका समाधान शिक्षार्थी खोजते है और ज्ञान 
करते है।
इस विधि का प्रयोग माध्यमिक व उच्च स्तरीय कक्षाओं में आलोचनात्मक एवं समीक्षात्मक चिंतन क्षमता का विकास करवाने के लिए किया जाता है । इस विधि के मूल प्रतिपादक सुकरात व सेन्ट थॉमस है। लेकिन इसे आधुनिक एवं वैज्ञानिक स्वरूप प्रदान करने का श्रेय जॉन डी० वी० व किलपैट्रिक, को दिया जाता है।
इस विधि को NCERT द्वारा 1970 में मान्यता प्रदान की गई।

 समस्या समाधान विधि के चरण : 

समस्या समाधान विधि के निम्न चरण हैं।

1. समस्या का चयन। 

समस्या का चयन करना या विद्यार्थियों को समस्या बताना

2. समस्या के कारण। 

समस्या का मूल कारण पता करना या जानना

3. समस्या से संबंधित सूचनाएँ एकत्रित करना। 

समस्या से संबंधित सूगनाओ का लेखा-जोखा रखना

4. समस्या का समाधान 

समस्या का समाधान ढूंढना

5. समाधान का व्यवहारिक प्रयोग 

समस्या समाधान के लिए धरातलीय कार्य करना

जॉन० डी० वी० ने अपनी पुस्तक How We Think पुस्तक में समस्या समाधान विधि के निम्न 11 चरण बताएं है
1. परिस्थिति का निर्माण 
2. समस्या का चयन 
3. समस्या का परिभापिकरण एवं क्षेत्र निर्धारण 
4. परिकल्पना का निर्माण 
5. तथ्यों का संकलन 
6. तथ्यों का विश्लेषण 
7. निष्कर्ष प्राप्त करना 
8. निष्कर्ष एवं कार्य की पुनः जाँच 
9. सिद्धान्त या नियम का निर्माण
10. लेखा तैयार करना 
11. मूल्यांकन्

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गुण:

1. यह मनोवैज्ञानिक विधि है इसमें प्रत्येक विद्यार्थी
योग्यता व क्षमतानुसार समस्या हल करने का अवसर प्राप्त करता है।
2. यह विद्यार्थियों में विभिन्न मानसिक शक्तियों का चिंतन,मनन, तर्क, निर्णय आदि का विकास करती है।
3. यह एक बाल केन्द्रित विधि है। इसमें प्रत्येक विद्यार्थी
सक्रिय रूप से हिस्सा लेता है। 
4. यह विधि विद्यार्थियों को उनके व्यवहारिक जीवन में आने वाली समस्याओं का समाधान करने का प्रशिक्षण
प्रदान करती है। 
5. यह विधि रटने की बजाय करके सीखने पर आधारित है जिससे विद्यार्थियों के उपलब्धि स्तर में वृद्धि होती है। 
6. यह विधि विद्यार्थियों में पूर्वाग्रह को भंग करने व वैज्ञानिक
दृष्टिकोण विकसित करती है।

 दोष: 

1. यह विधि माध्यमिक व उच्च स्तरीय कक्षाओं के लिए ही उपयोगी है।
2.यह विधि केवल मानसिक सक्रियता पर ही बल देती है। व्यक्तित्व के अन्य पक्षों पर ध्यान नही देती है। 
3. यह विधि प्रतिभाशाली विद्यार्थियों के लिए ही अधिक उपयोगी है। 
4. इस विधि में समय बहुत ज्यादा लगाता है। जिससे विद्यार्थी अन्य विषयों को नहीं पढ़ पाते और पिछड़ जाते हैं।
5.विद्यालय स्तर पर विद्यार्थियों द्वारा प्राप्त किये गये समाधान इतने विश्वसनीय व वैध नहीं होते कि उन्हें सार्वजनिक जीवन में अपनाया जा सकें।
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