यह विधि संस्कृत से आई है। व्याकरण के नियमों को सूत्र के रूप में परिणत कर लिया जाता है।
सूत्र कण्ठस्थ करा दिए जाते हैं, उदाहरणों द्वारा इन सूत्रों को
स्पष्ट कर दिया जाता है।
गुण
पाठ्य-पुस्तक प्रणाली का रूपांतर है।
व्याकरण के नियम सूत्रों के रूप में रटा दिए जाते हैं। फिर उनके उदाहरण देकर उनकी उपयोगिता बता दी जाती है। पाणिनी की अष्टाध्यायी सूत्रों में है। सर्वप्रसिद्ध 'सिद्धांत-कौमुदी' भी सूत्र रूप में पढ़ाई जाती है।
नियम से उदाहरण की ओर जाती है। - जहाँ पाठ्य-पुस्तक प्रणाली में लम्बे-चौड़े नियम याद कराए जाते हैं, वहाँ सूत्र प्रणाली से संक्षिप्त सूत्र याद कराए जाते हैं।
दोष
-सूत्र-प्रणाली सर्वथा दोष-युक्त है। - नीरस व शुष्क से होने अनावश्यक दबाव डालती है।
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