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Thursday, January 30, 2020

दल-शिक्षण विधि

दल-शिक्षण विधि

Team teaching methods
दल शिक्षण Team teaching




 टोली शिक्षण का अर्थ एवं परिभाषा

David Warwick-"टोली शिक्षण व्यवस्था का एक स्वरूप है जिसमें कई शिक्षक अपने स्रोतों, अभिरुचियों तथा दक्षताओं को एकत्रित करते हैं और छात्रों की आवश्यकताओं के अनुसार शिक्षकों की एक टोली द्वारा प्रस्तुत किया जाता है, वे विद्यालय की सुविधाओं का समुचित उपयोग करते हैं।"
आलसन के अनुसार, “दल-शिक्षण अनुदेश परिस्थितियों को उत्पन्न करने की एक प्रविधि है जिसमें दो या दो से अधिक अध्यापक अपने कौशल तथा शिक्षण योजना का छात्रों के एक समूह के शिक्षण में सहयोग करते हैं जिसमें लचीली (Flexible) बोजना प्रयोग में लायी जाती है जो किसी विशिष्ट अनुदेशन की आवश्यकतानुसार बदली भी जा सकती है।" शैयलिन तथा ओल्ड के अनुसार, “ दल-शिक्षण अनुदेशात्मक-संगठन का वह प्रकार है जिसमें शिक्षण प्रदान करने वाले व्यक्तियों को कुछ छात्र सौंप दिए जाते हैं। शिक्षण प्रदान करने वालों की संख्या दो या उससे अधिक होती है जिन्हें शिक्षक का दायित्व सौंपा जाता है जो एक ही छात्र- समूह को सम्पूर्ण विषय-वस्तु या उसके किसी महत्त्वपूर्ण अंग का एक साथ शिक्षण करते हैं।" जे.पी. पुरोहित के अनुसार- "टी टीचिंग या टोली शिक्षण अध्यापन की आधुनिक विधि है। इस विधि के अनुसार दो या दो से अधिक अध्यापक मिलकर नियमित रूप से किसी कक्षा का अध्यापन संबंधी योजना बनाते हैं, उसे क्रियान्वित करते हैं तथा उसका मूल्यांकन करते हैं।" 
दल शिक्षण की विशेषताएँ- दल शिक्षण सहकारिता की भावना पर आधारित है। - बाहर के विषय-विशेषज्ञों की सहायता। - मुख्य-उद्देश्य शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाना है।

दल-शिक्षण के सिद्धांत- 

  • अधिगम का निरीक्षण सिद्धांत-
  • शिक्षक की जिम्मेदारी का सिद्धांत-
  •  तत्पर रखने का सिद्धांत-
  •  छात्रों की संख्या का सिद्धांत-
  •  समस्या समाधान का सिद्धांत-
  •  सामग्री के चयन का सिद्धांत-
  • सामग्री के प्रयोग का सिद्धांत-
  •  विषय-वस्तु के व्यवस्थित क्रम का सिद्धांत-
  •  अनुशासन स्थापना का  सिद्धांत-
  •  शिक्षक- क्षमता का सिद्धांत-
  •  निश्चित समयावधि का सिद्धांत-

दल-शिक्षण की कार्य-प्रणाली 

इसके निम्नलिखित तीन प्रमुख सोपान हैं

1. नियोजन 2. क्रियान्वयन 3. मूल्यांकन
 नियोजन- छात्रों का पूर्वज्ञान ज्ञात किया जाता है, शिक्षण विधियों, सहायक सामग्री, दृश्य-श्रव्य वस्तु का निर्धारण किया जाता है। उन्हें उद्देश्य रूप में लिखते हैं। कौनसी विधियाँ काम में ली जानी चाहिए आदि का निर्धारण किया जाता है। इस प्रकार योजना बनाई जाती है।
 क्रियान्वयन- निर्मित योजना को क्रियान्वित किया जाता हा गति प्रदान की जाती है। क्रियान्वयन में सभी अध्यापकों का सहयोग अपेक्षित होता है। 
 तृतीय सोपान-मूल्यांकन- तृतीय सोपान के अन्तर्गत छात्रा द्वारा अधिक विषय-वस्तु का विश्लेषण के आधार पर मूल्याकन किया जाता है। छात्र ने कितना अधिगम किया, कितना उसे व्यवहार में ढ़ाला आदि।
दल-शिक्षण के लाभ अनुशासनहीनता की समस्या उत्पन्न नहीं होती है।
छात्र तथा शिक्षकों के मध्य अधिक निकट सम्बन्ध स्थापित होता है। संतुलित सामाजिक विकास संभव ।
श्रव्य-दृश्य सामग्री का प्रयोग करना संभव - वाद-विवाद को प्रमुख स्थान, नियोजित शिक्षण संभव है।
छात्रों को विभिन्न विषयों की आधुनिकतम जानकारी प्राप्त होती है।
दल-शिक्षण की सीमाएं
आर्थिक भार अधिक हो जाता है।  समन्वय करने में कठिनाई हो जाती है।
दल के सदस्यों में सहयोग की भावना कम ही पायी जाती है।

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