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Thursday, January 30, 2020

भाषा-प्रयोगशाला विधि

. भाषा-प्रयोगशाला विधि 


Bhasha prayogshala vidi
Bhasha prayogshala vidi Language Lab methods


                   



कक्षा-अध्यापन का पूरक ही 'भाषा-प्रयोगशाला' है। भाषा रिकॉर्डिंग, अधिक स्वाभाविक वातावरण की सृष्टि करता है।
भाषा-शिक्षण में प्रांरभ में पढ़ने-लिखने के स्थान पर सुननेबोलने पर बल दिया जाता है। भाषा में तीव्रता से गति आती है। सभी पक्षों पर समान बल दिया जाना चाहिए। प्रो. एडविन पैकर के अनुसार “ भाषा-प्रयोगशाला वैद्युतिकीय साजसज्जा से युक्त एक शिक्षण-कक्ष होता है, जिसका
उपयोग भाषाओं में समूह शिक्षण के लिए किया जाता है। भाषा प्रयोगशाला विधि की उपयोगिता
भाषा प्रयोगाशाला में कक्षा में पढ़ाई गई पाठ् सामग्री का अभ्यास कराया जाता है। पाठ्य सामग्री दुहराने के लिए अवसर प्राप्त होता है। अपनी-अपनी गति से विद्यार्थी अभ्यास कर सकता है। शिक्षक व्यक्तिगत ध्यान दे सकता है। तत्काल अशुद्धि ठीक कर शुद्ध उच्चारण सुनने की सुविधा भाषाप्रयोगशाला में अधिक संभव है। 'प्रबलन' प्राप्त होता है और आत्म-विश्वास बढ़ता है। कक्षा में दुहराने में जो समय लगता है, उसकी बचत होती है। भाषा के विभिन्न पक्षों का अध्यापन भाषा-प्रयोगशाला में सरलता से संभव है- शब्दावली,श्रवणाभ्यास तथा श्रुतलेख अनुच्छेद को बोधगम्य कराना, उपवाक्य, वाक्य, ध्वनिभेद उच्चारण अनुकृति, पदबंध,मुक्त भाषण , पठन

 भाषा प्रयोगशाला के प्रकार -

 भाषा प्रयोगशालाएँ कई प्रकार की हो सकती हैं। 

1. तार की दृष्टि से

अ. तार युक्त प्रयोगशाला-विद्यार्थी को निश्चित स्थान पर बैठना होता है। ब. तार मुक्त प्रयोगशाला-समस्त व्यवस्था तार-मुक्त होने के कारण तथा बेटरी-चालित रिसीवर होने के कारण विद्यार्थी बूथ को कहीं भी उठाया व रखा जा सकता है।काफी सरल तथा कम खर्चीली है।

 2. प्रोग्राम की दृष्टि से

प्रोग्राम से तात्पर्य उस पाठ्य सामग्री से है जो शिक्षक प्रसारित करता है। एक साथ एकाधिक प्रोग्राम प्रसारित किए जा सकते हैं। एक से चार तक विद्यार्थी की किनाशीलता की दृष्टि से क्रियाहीन (पैसिव) । प्रयोगशाला (पी. प्रकार)इसमें विद्यार्थी के पास न कोई माइक होता है और न टेपरिकॉर्ड। दूसरी ओर शिक्षक कन्सोल से सिवाय प्रसारण के कुछ नहीं कर सकता है, जिसके फलस्वरूप शिक्षक, विद्यार्थी कोई बातचीत नहीं कर सकता। 
श्रव्य क्रियाशील (ऑडियो एक्टिव) प्रयोग शाला (ए.ए.प्रकार)इस प्रकार की प्रयोगशाला में विद्यार्थी हेंड सेट की सहायता से प्रसारित पाठकों को तो सुन ही सकता है पर साथ ही माइक के माध्यम से दुहराये गए पाठ को स्वयं भी सुन सकता है और अध्यापक के पास तक भी भेज सकता है। विद्यार्थी के पास अपना टेपरिकॉर्डर नहीं होता जिससे वह मास्टर टेप के पाठ को और अपने उच्चारण को टेप कर सके। इसको ही ब्राडकास्ट प्रयोगशाला भी कहा जाता है।
 श्रव्य क्रियाशील-मिलान (ऑडियो एक्टिव कम्पेयर) प्रयोगशाला (ए.ए.सी. प्रकार) विद्यार्थी मास्टर टेप को सुन सकता है, दुहराता है और रिकॉर्ड भी करता है।
यह सबसे अधिक सुविधाजनक है। भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर तथा इसके विभिन्न केन्द्र-मैसूर,भुवनेश्वर, पटियाला; केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा तथा लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी, मसूरी आदि स्थानों पर इस प्रकार की ही प्रयोगशालाएँ हैं। इसको पुस्तकालय (लाइब्रेरी) प्रयोगशाला भी कहते हैं। इसका आधुनिक रूप डायल प्रयोगशाला है । दूरस्थ नियंत्रण (रिमोट कंट्रोल) भी संभव हैं । स्थानानुसार 8,16,32,40 बूथ लगाये जा सकते हैं। शिक्षक को अनेक सुविधाएँ प्राप्त हैं-टेपरिकॉर्डरों से पाठ प्रसारित करना, माइक से प्रसारण, हेंड सेट का उपयोग (सुनने, वार्तालाप करने अथवा शंका समाधान करने के लिए) इस प्रकार पाठ प्रसारित करने में भी सक्षम नहीं वरन् पूरा-पूरा नियंत्रण रख सकता है।
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