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Thursday, January 30, 2020

समवाय विधि

Samvay vidhi
समवाय विधि



समवाय विधि के केन्द्र  एवं क्षेत्र                    

 1.  उद्योग 2. भौतिक वातावरण 3.सामाजिक वतावरवा ये तीनों समवाय के केन्द्र हैं।
समवाय प्रणाली में ज्ञान और कर्म के विभिन्न सम्बन्ध पर जोर दिया जाता है। हरबर्ट ने इस सिद्धांत का प्रतिपादन किया, कि जब तक नए पाठ को पूर्व-ज्ञान के साथ न जोड़ा जाए, तब तक नया पाठ पूर्ण-रूप से हृदयंगम नहीं हो सकता। हरबर्ट का सहसम्बन्ध का सिद्धांत-हबार्ट ने दो प्रकार का सहसम्बन्ध दर्शाया - क्षैतिज सहसम्बन्ध एक विषय का अन्य विषयों के साथ कह सकते हैं। सहसम्बन्ध या लम्बीय सहसम्बन्ध एक ही विषय के विभिन्न अंगों का फ्रोबेल की जीवन केन्द्रित शिक्षा- फ्रोबेल ने पहली बार शिक्षा केन्द्र के धुरै को पाठ्य-विषयों से हटा कर बालक की ओर लगाया। बालक खेल-खेल में ही भाषा सीखें। डिवी का सामंजस्यीकरण का सिद्धांत , फ्रोबेल के केन्द्रीकरण के सिद्धांत में दो सुधार किए।
पाठ्यक्रम ज्ञानात्मक होने के बदले क्रियात्मक या अनुभवात्मक बन गया।
गाँधी जी का समवाय का सिद्धांत- बुनियादी शिक्षा में कर्म और ज्ञान का अटूट सम्बन्ध है।

 समवाय का व्यापक रूप

 - व्यापक रूप में समवाय सिद्धांत में वे सभी मुख्य बातें आ जाती है, जो हार्बर्ट आदि शिक्षा शास्त्रियों ने प्रतिपादित की हैं जैसे : भाषा के विभिन्न अंगों में परस्पर सम्बन्ध गद्य पाठ के साथ शेष अंगों का सम्बन्ध भाषा का अन्य विषयों के साथ सम्बन्ध भाषा का उद्योग, भौतिक वातावरण या सामाजिक वातावरण के साथ समवाय ।

समवाय की आवश्यकताएँ-  

परिष्कृत पाठ्यक्रम हेतु
समय सारिणी का न्यूनबन्धन हेतु कक्षा-अध्यापक की व्यवस्था हेतु उपकरण के उचित प्रयोग हेतु प्रशिक्षित अध्यापकों द्वारा शिक्षण हेतु परीक्षा या जाँच कार्य हेतु
समवाय के उचित अवसर प्रदान करने हेतु ।

समवाय के केन्द्र

औद्योगिक कार्य-कताई, बुनाई, कृषि, लकड़ी का काम, रसोई का काम, सिलाई, रंगाई, धुलाई आदि। भौतिक वातावरण सामाजिक वातावरण गद्य - पाठ जिसको केन्द्र मान कर, उच्चरण, वाचन, शब्दावली, साहित्य परिचय, व्याकरण, मौखिक तथा लिखित रचना की शिक्षा दी जा सकती है। समवाय मुक्त पाठ- भाषा शिक्षण में निम्न पाठ समवाय के बिना पढ़ाने में कोई आपत्ति नहीं ,प्रयोग द्वारा व्याकरण (मिडिल कक्षाओं में) ,साहित्यिक व्याख्या और समीक्षा गद्य-पाठ पर रचना ,नये वातावरण पर रचना।
अनुवाद और सारांश। 

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