सर्वाधिक प्राचीन विधि है। यह प्रयोग में सरल, क्रमबद्ध व कम परिश्रम वाली होने के कारण ही व्याख्या को मृत मानने के बावजूद भी इसकी महत्ता कम नहीं हुई है। ज्ञान स्थानान्तरण का उपयुक्त स्रोत है, यह केवल सृजनात्मक विधि है। अध्यापक केन्द्र बिन्दु पर सक्रिय होता है। छात्र निष्क्रिय श्रोता मात्र होते हैं।
व्याख्यान विधि के पद 1. विषय वस्तु व प्रकरण निर्धारित करना 2. अध्यापक द्वारा योजना बनाना
(अ) पूर्व ज्ञान निर्धारण (ब) उद्देश्य निर्धारित करना (स) पाठ्यवस्तु की रूपरेखा
(द) उदाहरणों को स्थान।
3. प्रस्तुतिकरण 4.. सारांश प्रस्तुत 5. मूल्यांकन
गुण
(अ) समय की बचत (ब) श्रम की बचत (स) धन की बचत
जीवनी, आत्मकथा हेतु सर्वोत्तम। सरल, संक्षिप्त एवं तीव्र गति से चलने वाली। तार्किक क्रम सरलता से स्थापित।
दोष
अमनोवैज्ञानिक विधि, छात्र निष्क्रिय, श्रोता इनकी रूचियों, प्रवृत्तियों व योग्यताओं का ध्यान नहीं। प्रयोगात्मक कार्य नहीं। मौलिकता का अभाव। करके सीखने के सिद्धांत की अवहेलना, हिन्दी का वास्तविक उद्देश्य ही समाप्त हो जाता है। प्रजातांत्रिक भावना के विपरीत प्रभुत्ववादी विधि | निम्न कक्षाओं के लिए अनुपयोगी, स्वाध्याय की प्रवृत्ति को कम करना।
व्याख्यान विधि का प्रयोग
नवीन पाठ का प्रारम्भ । सामान्यीकरण करना । जीवनी या ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से परिचित । कठिन व सैद्धान्तिक पाठ्यवस्तु जिसका प्रदर्शन सम्भव नहीं ।
सारांश देना।
व्याख्यान विधि के प्रयोग हेतु सुझाव -
उचित उदाहरणों द्वारा योजना बद्ध कर लेना ।
उच्चारण, स्वर का उतार-चढ़ाव, हाव-भाव, आवाज आदि का ध्यान रखना चाहिए। प्रस्तावना, भूमिका, संक्षिप्तिकरण या सांराश के समय इस विधि का प्रयोग। प्रश्न पूछते रहना चाहिए।
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