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Sunday, March 29, 2020

अधिगम अंतरण, अधिगम वक्र एवं अधिगम पठार


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अधिगम अंतरण एवं अधिगम पठार



अधिगम अंतरण 



अधिगम एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है जो कुछ हम आज सीखते है उसको भविष्य में कहीं न कहीं प्रयुक्त करते है। प्रारंभ में हम भाषा सीखते है तथा उस भाषा के ज्ञान के आधार पर विभिन्न विषयों का ज्ञान प्राप्त करते हैं।
इस प्रकार एक परिस्थिति में सीखे गए ज्ञान या कौशल का दूसरी परिस्थिति में प्रयोग करना ही अधिगम अंतरण या अधिगम-स्थानांतरण कहलाता है।
उदाहरण- कोई व्यक्ति साईकल चलाने के अनुभव को मोटरसाइकिल चलाने में उपयोग करता है तो यह अधिगम अंतरण है
परिभाषाएं
-हिलगार्ड एवं एटकिन्सन के अनुसार, "अधिगम स्थानान्तरण में एक क्रिया का प्रभाव दूसरी क्रिया पर पड़ता है।
-कॉलसनिक के अनुसार, "अधिगम-अंतरण पहली परिस्थिति से प्राप्त ज्ञान, कौशल, आदत, अभियोग्यता का दूसरी परिस्थिति में प्रयोग करना है।"
-गुथरी एवं पावर्स के अनुसार, “अधिगम-अंतरण से अभिप्राय व्यवहार के विस्तार तथा विनियोग से है।"


 अधिगम अंतरण के प्रकार

 1. सकारात्मक या धनात्मक अधिगम अंतरण: इस प्रकार
के अधिगम अंतरण में एक विषय का ज्ञान दूसरे विषय का ज्ञान प्राप्त में सहायता पहुंचाता है। उदाहणार्थ-जिस व्यक्ति को गणित का ज्ञान है और वह विज्ञान सीखना चाहता है तो उसका गणित का ज्ञान उसे विज्ञान सीखने में मदद करेगा यही सकारात्मक अधिगम-अंतरण है। 
2. नकारात्मक या ऋणात्मक अधिगम अंतरण : जब
पहले प्राप्त किया गया ज्ञान या कौशल नये ज्ञान या कौशल में बाधा उत्पन्न करे तो इस प्रकार के अधिगमअंतरण को नकारात्मक या ऋणात्मक अधिगम अंतरण कहा जाता है। उदाहरणार्थ : उर्दु भाषा का ज्ञान प्राप्त व्यक्ति को हिंदी भाषा का ज्ञान प्राप्त करने में बाधा या अवरोध का सामना करना पड़ता है। यही नकारात्मक अधिगम अंतरण है। 
3. शून्य अधिगम अंतरण: इस प्रकार के अधिगम अंतरण
मे एक विषय का ज्ञान न तो दूसरे विषय में सहायक होता है और न ही बाधा या अवरोध उत्पन्न करता है।
उदाहरणार्थ-चित्रकारी कौशल  सीखने के बाद सिलाई कौशल  सीखना न तो सहायक है नहीं बाध्यकारी।
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थार्नडाईक का संबंधवाद उद्दीपन-अनुक्रिया सिद्धांत S-R Theory

कोहलर का अन्तर्दृष्टि या सूझ का सिद्धांत

सामाजिक अधिगम या बाण्डुरा

स्किनर का क्रियाप्रसूत अनुबंधन सिद्धांत

पावलव का अनुकूलित अनुक्रिया सिद्धांत

ब्रुनर का संरचनात्मक अधिगम

हल का पुनर्बलन सिद्धांत

जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत

 


 1. क्षैतिज अन्तरण : जब किसी एक परिस्थिति में अर्जित ज्ञान, अनुभव अथवा प्रशिक्षण का उपयोग व्यक्ति के द्वारा उसी प्रकार की लगभग समान परिस्थिति में किया जाता है तो इसे अधिगम का क्षैतिज अन्तरण कहते हैं । उदाहरणार्थ   -गणित  केकिसी सूत्रों वाले प्रश्नों को हल करने का अभ्यास उसी तरह के अन्य प्रश्नों को हल करने में प्रयुक्त होता है।
2. उर्ध्व अन्तरण  : जब किसी परिस्थिति में अर्जित ज्ञान, अनुभव अथवा प्रशिक्षण का उपयोग व्यक्ति के द्वारा किसी अन्य भिन्न प्रकार की अथवा उच्च स्तर की परिस्थितियों में किया जाता है तब इसे अधिगम को उर्ध्व अन्तरण कहते हैं। जैसे साइकिल चलाने वाले व्यक्ति द्वारा मोटरसाइकिल चलाना सीखते समय उसके पूर्व अनुभवों का उर्ध्व अन्तरण होता है। 
3. द्विपार्श्विक अन्तरण : मानव शरीर को दो भागों-दांया भाग तथा बायाँ भाग में बाँटा जा सकता है। जब मानव शरीर के एक भाग को दिए गए प्रशिक्षण का अन्तरण दूसरे भाग में हो जाता है तो इसे द्विपार्श्विक अन्तरण कहते हैं। जैसे दांये हाथ से लिखने की योग्यता का लाभ जब व्यक्ति बांये हाथ से लिखना सीखने में करता है तो इसे द्विपार्श्विक अन्तरण कहेंगे। | 
अधिगम अंतरण के सिद्धांत 
1. मानसिक शक्तियों के औपचारिक अनुशासन का सिद्धांत
2. समान तत्त्वों का सिद्धांत
प्रतिपादक -थार्नडाईक
3.द्वितात्विक सिद्धांत
प्रतिपादक-स्पियरमैन
4.सामान्यीकरण का सिद्धांत
प्रतिपादक-एच जड
5.अव्यववादी सिद्धांत
प्रतिपादक- कोहलर,कोफ्का,वर्दीमर
6.मूल्यों के अभिज्ञान का सिद्धांत
प्रतिपादक-विलियम बागले

अधिगम स्थानान्तरण के शिक्षण में उपयोग


शिक्षक को शिक्षण कार्य से पूर्व यह ज्ञात होना चाहिए कि विद्यार्थी पूर्व से ही क्या जानते हैं। ताकि वह उस ज्ञान अधवा कौशल का उपयोग अध्यापन में कर सके और विद्यार्थियों को अधिगम में सहायता मिल सके। 
पाठ्यचर्या निर्माण करते समय सहसंबंध पाठ्यचर्या का निर्माण किया जाना चाहिए अर्थात दो या दो से अधिक विषयों में कुछ विषयवस्तु समान हो ताकि जो भी विषय बाद में पढ़ाया जावे उसके लिए पूर्व के विषय की विषय-वस्तु अभिप्रेरणा का कार्य करे। 
विद्यार्थियों को जो भी नियम एवं सिद्धांत पढ़ाए जाएँ तब उन्हें उनका अलग-अलग क्षेत्र में कैसा उपयोग किया जा सकता है, यह भी बताया जा सकता है जिससे वे सामान्यीकरण के द्वारा स्थानांतरण कर सकें। 
विषयों की उपलब्धियों के मध्य संबंध ज्ञात कर उन्हें पाठ्यचर्या में शामिल किया जा सकता है ताकि विद्यार्थी स्थानांतरण का अधिकतम उपयोग कर सकें।
विषय वस्तु में पूर्व ज्ञान का उपयोग कर नवीन प्रकरण अच्छी तरह समझाया जा सकता है।




अधिगम वक्र एवं अधिगम पठार



अधिगम वक्र का अर्थ 
व्यक्ति की सीखने की गति हर समय एक समान नहीं होती। सीखने की गति में हर समय अंतर पाया जाता है। कभी यह गति तेजी से होती है और कभी मंदगति से। इस प्रकार सीखने की गति को एक ग्राफ पेपर पर अंकित किया जाय तो एक रेखा बन जाती है उसे अधिगम वक्र कहते हैं।
गेट्स तथा अन्य -"अधिगम का वक्र सीखने की क्रिया से होने वाली गति और प्रगति को व्यक्त करता है।" 
चार्ल्स स्किनर -"अधिगम का वक्र किसी दी हुई क्रिया में उन्नति या अवनति का ब्यौरा है।"

अधिगम वक्र


1. सरल रेखीय वक्र 
2. उन्नतोदर वक्र 
3. नतोदर वक्र 
4. मिश्रित वक्र 
1.सरल रेखीय वक्र:सीखने की क्रिया सदैव एक समान नहीं होती है। इसमें प्रगति सदैव नहीं रहती। अतः सीखने में

2.उन्नतोदर वक्र (आणात्मक त्वरित वक्र):- प्रारंभ में सीखने की गति तीव्र गति से होती है और बाद में प्रगति की गति मंद हो जाती है। इस चाप का अंतिम भाग पठार की आकृति का होता है। शारीरिक कौशल के सीखने में प्रायः इस प्रकार के वक्र बनते हैं। इसे ऋणात्मक त्वरित वक्र भी कहते हैं।
3.नतोदर वक्र (धनात्मक त्वरित वक्र):- इस वक्र में सीखने की गति पहले बहुत मंद होती है। अभ्यास के कारण विषय वस्तु सरल हो जाती है। इस कारण सीखने की गति में प्रगति होती है। इसे धनात्मक त्वरित वक्र कहते हैं।
4.मिश्रित वक्र :- यह वक्र उन्नतोदर और नतोदार वक्र
का मिश्रण है। प्रायः इसके बीच-बीच में पठार भी बनते हैं। प्रारंभ में सीखने की गति मंद, मध्यमभाग में तीव्र और अंतिम भाग में पुनः मंद होती है। इसे "S" आकारीय वक्र भी कहते हैं।


सीखने का पठार 

सीखने का पठार का अर्थ 

सीखने की गति एक समान नहीं होती है। सीखना प्रारंभ करने के कुछ समय पश्चात सीखने की प्रगति बिलकुल रुक जाती है इस स्थिति को पठार कहते हैं।
उदाहरण के लिए एक व्यक्ति टाइप करना सीखता है, पहले उसे कठिन लगता है। इस कारण सीखने की गति मंद रहती है। अभ्यास के कारण वह टाइप करना सीख लेता है। निरंतर अभ्यास के कारण सीखने की गति बढ़ती है। कुछ समय बाद (अभ्यास के बावजूद भी) सीखने की गति में रुकावट हो सकती है। इस कारण की रुकावट को पठार कहते हैं।

अधिगम पठार के कारण

सीखने की सामग्री पर रुचि न होना। जब आदतों में परिवर्तन होता है, तब भी पठार बनते हैं। सीखनेवाला एक अवस्था से दूसरी अवस्था में पहुँचता है तब भी पठार बनता है। सीखने की विषयवस्तु कठिन हो।।
सीखने की अनुचित विधि के कारण भी पठार बनते हैं।  शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य ठीक न होने पर भी पठार बनते हैं। सीखने की परिस्थिति या मनोदशा के कारण भी पठार बनते हैं।

अधिगम पठारों का समाधान 


सीखनेवाले को अतिरिक्त उत्तेजना या प्रेरणा देकर। 
सीखने की सामग्री की रुचि में वृद्धि द्वारा।
सीखने की विधि में परिवर्तन करके। 
शारीरिक दुर्बलता को दूर करके।
आदतों में परिवर्तन किया जाय। 
वातावरण परिवर्तन के द्वारा भी पठारों का निराकरण
किया जा सकता है। 
सामग्री को अधिक गहराई से समझकर।

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