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कोहलर का अन्तर्दृष्टि या सूझ का सिद्धांत |
कोहलर का अन्तर्दृष्टि/सूझ का सिद्धांत
गेस्टाल्टवादी या समग्रतावादी सम्प्रदाय के प्रवर्तक मैक्स, वर्दीमर, कोफ्का एवं कोहलर (जर्मनी) थे। इस सम्प्रदाय के अनुसार कोई व्यक्ति किसी वस्तु का उसके समग्र रूप में देखता अथवा ग्रहण करता
पूर्ण से अंश की ओर शिक्षण पद्धति इसी सम्प्रदाय की देन है।
संज्ञानात्मक अधिगम
कुछ मनोवैज्ञानिक अधिगम को उन संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं के रूप में देखते हैं जो अधिगम के मूल में होती है। संज्ञानात्मक अधिगम में सीखने वाले व्यक्ति के कार्यकलापों के बजाय उसके ज्ञान में परिवर्तन आता है। अंतदृष्टि अधिगम एवं अव्यक्त अधिगम में इस प्रकार का अधिगम परिलक्षित होता है।
यह सिद्धांत गैस्टाल्ट सम्प्रदाय पर आधारित है। गैस्टाल्ट का अर्थ है समग्र। इसे सूझ या अन्तर्दृष्टि का सिद्धांत भी कहते है। संज्ञानात्मक अधिगम पर आधारित इस सिद्धान्त में सीखने वाले व्यक्ति के कार्यकलापों के बजाए उसके ज्ञान में परिवर्तन आता है अर्थात् उसकी समझ/सूझ बढ़ती है। कोहलर के अनुसार अधिगम (सीखना) धीरे धीरे अभ्यास तथा प्रयत्न एवं भूल द्वारा नहीं बल्कि एकाएक होता है। कोहलर को (जर्मनी) अन्तर्दृष्टि अधिगम सिद्धान्त का प्रवर्तक कहा जाता है। ज कोहलर ने सुल्तान नामक चिम्पैंजी पर प्रयोग कर इस सिद्धान्त को प्रतिपादित किया। इस प्रयोग में चिम्पैंजी को एक बन्द खेल क्षेत्र में रखा तथा भोजन उसकी पहुंच से बाहर रखा।
खेल क्षेत्र में डंडे तथा बॉक्स भी रख दिए। चिम्पैंजी कुछ समय के लिए खेल क्षेत्र में घूमता रहा। बाद में एकाएक/अकस्मात चिम्पैंजी को अन्तर्दृष्टि /सूझ विकसित हुई तथा चिम्पैंजी बक्से पर खड़ा होकर डंडे से केले पर मारता है जो उसकी पहुंच से बाहर थे। चिम्पैंजी ने यहां जो अधिगम प्रदर्शित किया है उसे कोहलर ने अन्तर्दृष्टि अधिगम कहा है। उनके अनुसार यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा किसी समस्या का समाधान एकाएक स्पष्ट हो जाता है।
कोहलर के अनुसार इस अधिगम सिद्धान्त में एक समस्या प्रस्तुत की जाती है। उसके पश्चात् कुछ समय तक प्रगति का आभास नहीं होता।फिर अन्त में एकाएक समस्या समाधान उत्पन्न हो जाता है।
शैक्षिक उपयोगिता :
इस सिद्धान्त की शैक्षिक उपयोगिता निम्न प्रकार है-
1.पूर्ण समस्या का प्रस्तुतीकरण :
छात्रों के समक्ष समस्या पूण रूप में प्रस्तुत करनी चाहिए। यदि समस्या को अशों में प्रस्तुत किया जायेगा तो छात्र सझ द्वारा समस्याका हल ढूंढने में असफल रहेंगे।
(2) तत्परता का विकास:
शिक्षण के पूर्व छात्रों में ज्ञानात्मक0तथा संवेगात्मक तत्परता विकसित करनी चाहिए। इसके0लिए अनुकूल वातावरण बनाया जाना चाहिए।
(3) विषय संगठन :
विषयवस्तु इस प्रकार में प्रस्तुत की जानी चाहिए कि वह समस्या के पूर्णांकार को स्पष्ट
करें।
(4) अधिगम उद्देश्य :
अन्तर्दृष्टि के विकास के लिए जरूरी है कि विद्यार्थियों को अधिगम के उद्देश्य स्पष्ट रूप से बताये जाये। अध्यापक अधिगम उद्देश्यों को स्पष्ट करके0छात्रों को सीखने के लिए प्रेरणा प्रदान कर सकता है।
(5) अनुभवों का प्रयोग :
शिक्षकों को विद्यार्थियों के पूर्व अनुभवों को संगठित कर उनका उपयोग सूझ द्वारा सीखने
में करना चाहिए।
(6) क्षमतानुसार विषयवस्तु :
विद्यालय के कार्य विद्यार्थियो की क्षमता के अनुसार होने चाहिए तभी छात्रों में सूझ विकसित हो सकती है, अन्यथा नहीं।
7.विषयवस्तु का सामान्यीकरण :
शिक्षक विषयवस्तु का सामान्यीकरण करे जिससे कि नवीन समस्याओं के हल में प्राप्त ज्ञान का उपयोग किया जा सके।
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