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Sunday, March 29, 2020

अधिगम के सिद्धांत सामाजिक अधिगम या बाण्डुरा का अधिगम सिद्धांत


सामाजिक अधिगम


Samajik adhigam bandura
सामाजिक अधिगम अल्बर्ट बांडुरा




अल्बर्ट बण्डुरा
जन्म :- कनाडा (1925) . सिद्धांत :- सामाजिक अधिगम सिद्धांत (बंडुरा का अधिगम सिद्धांत) 
बडुंरा ने सीखने की प्रक्रिया में अन्यों के व्यवहार का अवलोकन करने तथा उसकी नकल करके सीखने पर बल दिया है। अवलोकनात्मक अधिगम के अप्रत्यक्ष अनुभवों के द्वारा होने के कारण इसे अप्रत्यक्षात्मक अधिगम
भी कहते हैं। 

सामाजिक अधिगम की अवधारणा पर कनाडा के अल्बर्ट  प्रदेश निवासी अल्बर्ट बाण्डुरा द्वारा कार्य किया गया।  उन्होने ब्रिटिश कोलंबिया  विश्वविद्यालय से स्नातक किया तथा आयोवा विश्वविद्यालय  से पी०एच०डी० प्राप्त की।
बाण्डुरा ने 'सामाजिक अधिगम' पर अपने सम्पूर्ण के व्यावसायिक जीवन में कार्य किया।
बाण्डुरा ने अपने 'सामाजिक संज्ञानात्मक सिद्धांत' का नाम बदल कर 'सामाजिक अधिगम सिद्धांत' कर दिया है। इन्होने व्यवहारो के अर्जन पर ध्यान केन्द्रित किया तथा बताया कि व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के व्यवहार को देखकर व्यवहार का अर्जन करता है। इन्होने अपने इस विचार की पुष्टि टेलीविजन पर व्यावसायिक प्रसारणों एवं धारावाहिकों में हिंसा से संबंधित शोध अध्ययनो के माध्यम से की।

 बाण्डुरा द्वारा सामाजिक संज्ञानात्मक सिद्धांत की रूपरेखा


 1986 में अपनी पुस्तक Social Foundation of Thoughts And Action शिक्षा एवं मनोविज्ञान के क्षेत्र मे विशिष्ट योगदान देने के कारण इन्हें 1998 में 'थार्नडाइक अवार्ड फॉर डिसटिनगुइश्ड कन्ट्रीब्यूशन्स ऑफ साइकोलॉजी टु एज्युकेशन' प्रदान किया गया।
 बंडुरा  को प्रेक्षणात्मक अधिगम का प्रवर्तक माना जाता है। इस प्रकार के अधिगम में व्यक्ति सामाजिक व्यवहारों को सीखता है, इसलिए इसे कभी-कभी सामाजिक अधिगम भी कहा जाता है। बहुत बार हमारे सामने ऐसी सामाजिक स्थितियाँ आती हैं जिनमेंहमें यह पता नहीं होता है कि हमें कैसा व्यवहार करना चाहिए। ऐसी स्थिति में हम दूसरोंकेव्यवहार का प्रेक्षण करते हैं। और नकी तरह व्यवहार करने लगते है। इस प्रकार के अधिगम को मॉडलिंग कहा जाता है। 
 

 बांडूरा का प्रयोग -


बंडूरा ने सामाजिक अधिगम को समझने के लिए एक प्रयोग किया। जिसमें बच्चों को पाँच मिनट की एक फिल्म दिखाई गई। फिल्म में एक कमरे में बहुत सारे खिलौने रखे थे। उनमें एक खिलौना बहुत बड़ा सा गुड्डा (बोबो डॉल) था। एक लड़का कमरे में प्रवेश करता है सभी खिलौने के प्रति क्रोध प्रदर्शित करता है और बड़े खिलौने के प्रति विशेष रूप से आक्रामक हो उठता है। इसके बाद का घटनाक्रम तीन अलग रूपों में तीन फिल्मों में तैयार किया गया। एक फिल्म में बच्चों के समूह ने देखा कि आक्रामक व्यवहार करने वाले लड़के (मॉडल) को पुरस्कृत किया गया। और एक प्रौढ़ व्यक्ति ने उसके आक्रामक व्यवहार की प्रशंसा की। दूसरी फिल्म में बच्चों के समूह ने देखा कि उस लड़के को उसके आक्रामक व्यवहार के लिए दण्डित किया गया। तीसरी फिल्म में बच्चों के तीसरे समूह ने देखा कि लड़के को न तो पुरस्कृत किया गया और न ही दण्डित किया गया। फिल्म देख लेने के बाद सभी बच्चों को एक अलग प्रायोगिक कक्ष में बिठाकर विभिन्न प्रकार के खिलौने से खेलने के लिए स्वतंत्र छोड़ दिया गया। प्रयोग में यह पाया कि जिन बच्चों ने खिलौनों के प्रति किये जाने वाले आक्रामक व्यवहार को पुरस्कृत होते हुए देखा था, वे खिलौने के प्रति सबसे अधिक आक्रामक थे। सबसे कम आक्रामकता उन बच्चों ने दिखाई जिन्होंने फिल्म में आक्रामक व्यवहार को दंडित होते हुए देखा 

 बाण्डुरा ने प्रतिरूपण प्रक्रिया के निम्न चरण 


 1.अवधान 

किसी भी कार्य को सीखने के
लिये व्यक्ति को प्रतिरूपित व्यवहार  की विशेषताओं का निरीक्षण करना पड़ता है। मॉडल को क्रियाओं पर ध्यान केन्द्रण में कई कारकों का योगदान होता है। 

 2. धारण  :

 किसी अन्य व्यक्ति के व्यवहार से प्रभावित होने की दशा में व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति की क्रियाओं को स्मृति में धारण करना होता है। सूचना धारण करने में प्रतिमा एवं भाषा सहायक होती है। व्यक्ति व्यवहारों को अपने मस्तिष्क में प्रतिमाओं के रूप अथवा शाब्दिक वर्णन के रूप में संग्रहण कर लेते हैं। संग्रहण के पश्चात् उस शाब्दिक विवरण या प्रतिमाओं का प्रत्यास्मरण कर उन्हें पुनः उसी रूप में अपने व्यवहार के साथ प्रस्तुत करता है।

 3. पुनः प्रस्तुतीकरण  : 

पुनः प्रस्तुतीकरण से तात्पर्य प्रतीकों व संकेतों को उपयुक्त क्रियाओं में परिवर्तित करना। व्यवहार का पुनः प्रस्तुतीकरण मॉडल प्रतिमान के अनुसार अपने व्यवहार को संगठित करके किया जाता है। व्यक्ति के व्यवहार का पुनः प्रस्तुतीकरण अभ्यास के साथ संशोधित हो जाता है। 

 4.अभिप्रेरणा  : 

किसी व्यवहार के अनुकरण के लिये व्यक्ति के पास कोई न कोई अभिप्रेरणा प्रदान करने वाला तत्त्व अवश्य होना चाहिये। अभिप्रेरक  व्यक्ति के लिये सकारात्मक व नकारात्मक पुनर्बलन का कार्य करते हैं। नकारात्मक पुनर्बलन व्यक्ति को अनुकरण न करने व माॅडल्ड क्रिया की निरन्तरता को रोकते हैं।

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