पावलव का अनुकूलित अनुक्रिया सिद्धांत
इस अधिगम सिद्धांत का प्रतिपादन रूस के शरीरशास्त्री एवं मनोवैज्ञानिक इवान पेट्रोविच पावलव द्वारा 1904 में किया गया। इस सिद्धांत को संबंध प्रत्यावर्तन तथा शास्त्रीय अनुबंधन के नाम से भी जाना जाता है। अनुकूलित अनुक्रिया का अर्थ है अस्वभाविक उद्दीपक के प्रति स्वभाविक अनुक्रिया का होना।पावलव ने भूखे कुत्ते पर निम्न 3 परिस्थितियों में प्रयोग किए
1. अनुकूलन से पूर्व : प्रथम सोपान में पावलव ने एक भूखे कुत्ते को स्टैण्ड से इस प्रकार बांध दिया कि एक निश्चित दूरी के आगे वह नहीं जा सकता था। उसके सामने इतनी दूरी पर भोजन रखा गया था कि कुत्ता भोजन को खा नहीं सकता था। चूँकि कुत्ता भूखा था अतः सामने भोजन को देखने के कारण उसके मुख से लार टपकने लगी।
2. अनुकूलन के दौरान : द्वितीय सोपान में कुछ समय के बाद कुत्ते के सामने भोजन रखने से पहले एक घंटी बजायी गई और फिर कुत्ते के मुख से लार टपकने लगी। यहाँ पर घंटी का बजाना अस्वभाविक उत्तेजक है। यह क्रिया बार-बार दोहराई गयी जिससे दोनों उत्तेजकों में घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित हो गये।
3. अनुकूलन के पश्चात : तृतीय सोपान में घंटी तो बजायी
गयी किन्तु भोजन नहीं रखा गया। घंटी की आवाज सुनकर कुत्ते के मुँह से लार टपकने लगी। इस प्रकार स्वाभाविक तथा अस्वाभाविक उत्तेजक में इतना अनुकूलन स्थापित हो गया कि अस्वाभाविक उत्तेजक (घंटी की आवाज) स्वाभाविक उत्तेजक (भोजन) जैसा प्रभाव डालने लगा।
स्वभाविक उद्दीपक को अनानुबंधित उद्दीपक तथा अस्वभाविक उद्दीपक को अनुबंधित उद्दीपक के नाम से भी जाना जाता है।
1. स्वभाव व आदत का निर्माण 2. भाषा का विकास 3. गणित शिक्षण में सहायक 4. अभिवृत्ति का विकास 5. अनुशासन 6. गणित शिक्षण में सहायक 7. भय का निवारण 8. सामाजीकरण में उपयोगी
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