इजरायल -फिलिस्तीन नवीन विवाद और ईरान तथा गाजा पर इजरायली हमला लेटेस्ट अपडेट्स
7 अक्टूबर 2023 का दिन इजरायल और फिलिस्तीन मुक्ति संगठनों के इतिहास का विशेष दिन था क्योंकि यहां से इजरायल फिलिस्तीन विवाद की आग में लपटें भड़क उठी। यहां पर हमास और कई अन्य फिलिस्तीनी राष्ट्रवादी आतंकवादी समूहों ने गाजा पट्टी से दक्षिणी इस्राइल के गाजा क्षेत्र में समन्वित सशस्त्र घुसपैठ की जो 1948 के अरब-इजरायल युद्ध के बाद से इजरायली क्षेत्र पर पहला आक्रमण हुआ। हालांकि फिलिस्तीन की मांग वाले इस संगठन को इजरायल हमेशा आंतकवादी संगठन मानकर खत्म करना चाहता है। हालांकि युद्ध की शुरुआत हमास की की तरफ से होती है लेकिन इजरायल ने इसका बदला लेते हुए गाजा पट्टी पर बर्बर नरसंहार किया। गाजा को बारूद का ढेर बना दिया है। निर्दोष लोगों और महिलाओं तथा बच्चों को भी नहीं छोड़ा। उसके बाद अब हमास के सहयोगी निशाने पर आ गए हैं। हफ्तेभर से लेबनान में दहशत का माहौल है। सड़कों पर सन्नाटा पसर गया है। एक झटके में हिज्बुल्लाह का चीफ नसरल्लाह का खात्मा हो गया है। अब इजरायली डिफेंस फोर्स ने हूती विद्रोहियों पर बम गिराए हैं। लेबनान पर भी खतरनाक हमले किए गए। लेबनान के लोग भारी संख्या में सीरिया की ओर पलायन कर रहे हैं वहीं गाजा में हजारों परिवार बेघर हो गए हैं तथा भूखमरी के हालात बन गये है मानवता को झकझोर देने वाली इस लड़ाई में निर्दोष बच्चे और महिलाओं की मौत मानवता के लिए कलंकित करने वाला मसला है। हालांकि इजरायल के पक्ष के देश और लोग इजरायल की वाहवाही कर रहे तो दूसरी तरफ मानवतावादी लोग इस विनाशकारी और जनहानि वाले संघर्ष की निंदा भी करते हैं।
वर्ष 2023-24 में हमास इजरायल और ईरान के बीच तनाव तथा इजरायल की बर्बर कार्रवाई
हालांकि हम जानते हैं कि इजरायल और फिलिस्तीन विवाद का इतिहास लम्बा और पुराना है लेकिन इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष का नवीनतम दौर 7 अक्टूबर को शुरू हुआ जब हमास के उग्रवादियों ने सीमा पार करके इजरायली समुदायों में घुसपैठ की। इजरायल का कहना है कि उग्रवादियों ने 1,200 से अधिक लोगों को मार डाला, जिनमें से अधिकतर नागरिक थे, और गाजा में लगभग 250 लोगों को बंदी बना लिया। इस मसले के बाद इजरायल की सेना गाजा पट्टी पर टूट पड़ी हमास के लड़ाकों के साथ साथ हजारों लोगों को मारकर गाजा की घनी आबादी वाले क्षेत्रों को मलबे में तब्दील कर दिया। हमास और हिजबुल्ला को खत्म करने के लिए इजरायल लगातार लेबनान गाजा पर मिसाइलों से हमले कर रहा है। इजरायल द्वारा हमले में हमास के हजारों लड़ाकों के साथ हजारों लोग की जानें गईं हैं।
29 सितम्बर 2024 तक फिलिस्तीनी स्वास्थ्य मंत्रालय के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 41,595 फिलिस्तीनी मारे गए, जो 2008 के बाद से अब तक हुए सभी गाजा संघर्षों में हुई क्षति से लगभग 10 गुना अधिक है। हालांकि यह आंकड़े कितने विश्वसनीय है बताना मुश्किल है।
इजरायल के पेजर अटैक (Pager attack) क्या है?
हाल में इजरायल ने पेजर (Pager attack) के जरिए हिजबुल्लाह (Hezbollah) के कई लड़ाकुओं को मार दिया और हजारों को घायल कर दिया और फिर वॉकी-टॉकी के जरिए भी धमाका कर पूरी दुनिया को हैरानी में डाल दिया। आधुनिक युद्धों में यह नवीन टेक्नोलॉजी है जिसके जरिए यह हमले किये गये। इलेक्ट्रिक डिवाइस का विस्फोटक करवाकर किसी दुश्मन को मारने की यह तकनीक मानवता और भौतिक युग की सनसनीखेज शुरुआत है जो भविष्य में हैकिंग तथा डाटा दुरुपयोग का बुरा संकेत है। हालांकि यह अलग बात है कि इजरायल ने इस हमले में सीधे अपना हाथ होने की बात नहीं स्वीकारी है।
पेजर डिवाइस क्या है?
पेजर एक छोटा इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस है, जिसका इस्तेमाल मैसेज भेजने और पाने के लिए किया जाता है। इसे बीपर भी कहा जाता है। क्योंकि यह भीड़भाड़ वाले इलाकों में बीप की आवाज पैदा कर संदेश सूचना का आदान-प्रदान करता है।पेजर बैटरी से चलता है और नेटवर्क कवरेज के बिना काम कर सकता है। यह छोटे आकार का होता है और इसे आसानी से कहीं भी ले जाया जा सकता है । पेजर का अविष्कार साल 1921 में ए एल ग्रॉस ने किया था। इसका इस्तेमाल 1950 के बाद से शुरू होने लगा था। आजकल स्मार्टफोन और मोबाइल के उपयोग के कारण पेजर का उपयोग कम हो गया है। इन दिनों पेजर अटैक के मामले में इसके उपयोग करने वाले लड़ाकों के हाथ में यह विस्फोटक हैकर आत्मघाती यंत्र बन गये थे। पेजर में विस्फोट के कारण अभी पता नहीं चल सके हैं। ऐसी अटकलें हैं कि पेजर के भीतर लिथियम बैटरी के अधिक गर्म होने से ये ब्लास्ट हुए। इन बैटरियों को गर्म करने के लिए विस्फोटक अंदर था। कई रिपोर्ट बताती हैं कि तकनीक का उपयोग करके ये विस्फोट किए गए हैं।
पेजर के प्रकार की बात करें तो मुख्यतः यह तीन प्रकार के होते हैं वन वे पेजर, टू वे पेजर, और वॉयस पेजर जिसमें संदेश और आवाज के आदान-प्रदान की अलग-अलग सुविधाएं होती है।
हिजबुल्ला तथा लेबनान पर इजरायल
हिज्बुल्लाह, लेबनान का आतंकी संगठन है। हूती, यमन का शिया मिलिशिया ग्रुप है और 2014 से यमन के बड़े हिस्से पर ईरान के समर्थन वाले हूती विद्रोहियों का कब्जा है। इजरायल ने जब हमास को खत्म करने के लिए बर्बरतापूर्ण हमले की शुरुआत की तब से हमास के समर्थन में लेबनान, हूती जैसे संगठन आगे आए इसलिए अब वे भी इजरायल के अगले निशाने बन गए हैं। इसलिए इजरायल लेबनान पर भी हमले कर रहा है वह हमास के साथ साथ हिज्बुल्लाह और हूती विद्रोहियों का दमन करना चाहता है।
ईरान क्यों नाराज है?
कुछ समय पहले ईरान की राजधानी तेहरान में हमास चीफ इस्माइल हानिया मारा गया था। यह आरोप इजरायल पर लगा था। इस हमले के बाद ईरान में रोष देखा जा रहा है और उसने बदला लेने की ठान ली है ईरान,ना सिर्फ हिज्बुल्लाह को पूरा समर्थन दे रहा है, बल्कि युद्ध के लिए मददगार भी बना है। इसलिए इन दिनों ईरान ने इजरायल पर लगभग 150-200 बेलेस्टिक मिसाइलों से हमला किया इस हमले में लगभग 30-37 मिसाइलें अपने टारगेट एरिया के अन्दर गिरी जिससे ईरान की तरफ़ से इजरायल को खतरे की चेतावनी दे दी गई इस हमले में ईरान की सैन्य ताकत का भी अंदाजा लगाया जा सकता है कि आयरन डोम के बावजूद यह हमला इजरायल के लिए चिंता का विषय है। इसलिए ऐसा माना जा रहा है कि अब इजरायल ईरान पर बड़ी सैन्य कार्रवाई करने की तैयारी में है। ईरान जहा विवादित परमाणु हथियार तथा सैन्य ताकत में उभरती हुई शक्ति माना जा रहा है ऐसे में इजरायल और ईरान के बीच ज़ंग होती है तो किसका पलड़ा भारी रहेगा यह कहना मुश्किल है। यहूदियों को जहां अमेरिका और यूरोपीय देशों से सहयोग की उम्मीद है अगर अमेरिका इजरायल को सपोर्ट करता है तो इजरायल के पड़ोसी देशों को पहले की तरहां मात खानी पड़ेगी। हम जानते हैं कि फिलिस्तीन मांग वाले संगठनों ने जिस तरह अरब देशों पर भरोसा किया था वे धीरे-धीरे इजरायल से परास्त होकर फिलिस्तीनी संगठनों से दूर हो चुकें हैं तेल उत्पादन वाले अरब देशों से अमेरिका के कई तरह के संबंध हैं, जिनमें आर्थिक, व्यापारिक, और राजनीतिक संबंध शामिल हैं। इसके परिणामस्वरूप अमेरिका की छवि एक मुक्तिदाता के रूप में बनी, खास तौर पर सऊदी अरब, यूएई, बहरीन, कतर और कुवैत जैसे अमीर खाड़ी राजतंत्रों के बीच। अमेरिका ने वर्तमान में इस क्षेत्र में कई सैन्य अड्डे बनाए हुए हैं। इस प्रकार इन देशों से फिलिस्तीन संगठनों के साथ खड़े होने की कोई उम्मीद नहीं है। इसलिए अब फिलिस्तीन मांग वाले संगठनों को बार बार इजरायल से मात खानी पड़ती है। इस प्रकार पश्चिम एशिया में खतरनाक स्थिति बन गई है। इस क्षेत्र में एक व्यापक युद्ध छिड़ने की आशंका बढ़ रही है। यह कहा जा सकता है कि ये पूरा क्षेत्र एक बारूद का ढेर बन गया है जिसमे कभी भी चिंगारी लग सकती है। अरब देशों की बात करें तो अधिकतर देशों के अमेरिका से आर्थिक और राजनीतिक संबंध है वे देश इजरायल के खिलाफ खड़े नहीं होंगे क्योंकि इजरायल और यहूदियों से अमेरिका और ब्रिटेन से पहले से अच्छे संबंध हैं। इसके अलावा जिन अरब देशों से अमेरिका और ब्रिटेन से संबंध नहीं है वे फिलिस्तीन के लिए संघर्षरत है। हाल ही में अमेरिका ने सीरिया और इराक़ में ईरान से जुड़े ठिकानों पर हवाई हमले किए हैं। यह कार्रवाई जॉर्डन में अमेरिकी सैन्य ठिकाने पर हुए ड्रोन हमले के जवाब में की गई है इस प्रकार जोर्डन तथा आसपास के देशों में अमेरिका के सैन्य ठिकाने होना इजरायल के लिए बहुत राहत की बात है। अन्य देशों की बात करें तो इजरायल और फिलिस्तीन मुक्ति संगठनों के समर्थकों में बदलाव आया है। जहा भारत में 80 के दशक में फिलिस्तीन मुक्ति संगठन को मान्यता दी वहीं 22 मई 2024 तक बेलीज, बोलीविया और कोलंबिया ने इजरायल के साथ राजनयिक संबंध तोड़ दिए हैं वहीं बहरीन, चाड, चिली, होंडुरास, जॉर्डन, दक्षिण अफ्रीका और तुर्की ने युद्ध के दौरान इजरायल की कार्रवाइयों का हवाला देते हुए इजरायल से अपने राजदूतों को वापस बुला लिया है।
अरब-इजरायल संघर्ष के मुख्य चरण के दौरान, सऊदी अरब ने इजरायल के खिलाफ अरब लीग का समर्थन किया था। इसी तरह, इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष के प्रति आधिकारिक सऊदी नीति फिलिस्तीनी अरबों का समर्थन करती रही है लेकिन अब धीरे धीरे विश्व में बदलते आर्थिक और राजनीतिक माहौल जहां युद्ध और शांति तथा कूटनीतिक नितियों और अंतरराष्ट्रीय निकटवर्ती सिद्धांत के चलते सभी देशों ने फिलिस्तीनी संगठनों से मूंह मोड़ लिया है हालांकि ईरान जैसे देश अब भी फिलिस्तीन समर्थकों का साथ देते हैं लेकिन अन्य अरब देश जो वर्तमान में फिलिस्तीनी शरणार्थियों को नागरिकता देने तथा बसाने से इनकार कर रहे हैं।
ईरान का इजरायल पर हमला
गौरतलब है कि ईरान ने इजरायल पर 1 अक्तूबर को 2024 को मिसाइलों से हमला किया और कुछ मिसाइल इजरायल पर जाकर गिरी भी कुछ इमारतों में नुकसान भी हुआ। इजरायल ने साफ कहा कि उसके यहां ईरान के हमले में किसी की मौत नहीं हुई है। ईरान ने साफ कहा कि उसका यह हमला इजरायल की गाज़ा में लगातार जारी कार्रवाई के बाद लेबनान में हिजबुल्लाह के लड़ाकों पर जारी हमलों के साथ ही हिजबुल्लाह के प्रमुख हसन नसरल्लाह की बमबारी में की गई हत्या के बदले के स्वरूप किया गया है। इससे पता चलता है कि ईरान इकलौता देश है जो आज हमास और हिज्बुल्लाह के साथ सीधी लड़ाई में साथ दे रहा है। बाकि अरब देश फिलिस्तीन समर्थकों को सीधा साथ नहीं दे रहे हैं। अरब देशों का स्वीटजरलैंड कहा जाने वाले लेबनान में गृहयुद्ध और शिया सुन्नी मुस्लिम के मतभेद तथा हिजबुल्ला के कारण स्थति विवादित बनी हुई है। लेबनान अब हिजबुल्ला की गतिविधियों के कारण इजरायल का निशाना बना हुआ।
ईरान इजरायल तनाव के बीच दो पक्षीय दुनिया तथा अरब देश
मौजूदा हालात ने दुनिया के देश इस मसले पर दो हिस्सों में बंटे हुए हैं। हम जानते हैं कि अमेरिका ब्रिटेन जर्मनी और बाकी के पश्चिमी देश इजरायल के पक्ष में है लेकिन अरब देशों
फिलिस्तीन और ईरान को कितना साथ देंगे यह स्पष्ट नहीं है।
हालांकि जीसीसी (GCC)गल्फ को-ऑपरेशन काउंसिल जो सउदी अरब, कतर, बहरीन, ओमान, यूएई और खाड़ी के छह देशों का एक संगठन है जिसके रवैए से लगता है कि आखिरकार अरब देश लेबनान और फिलिस्तीन समर्थकों का साथ देने की बात कर सकता है लेकिन सीधे तौर युद्ध में अरब देश शामिल नहीं होना चाहते। जीसीसी ने लेबनान पर इजरायली एयर स्ट्राइक का विरोध करते हुए लेबनान की आज़ादी का समर्थन तो किया है। लेकिन जीसीसी किसी भी हाल में इजरायल के खिलाफ सीधे जंग में शामिल होना नहीं चाहता। अरब देशों के नागरिकों के कारण अरब देशों की भी मजबूरी बनती है कि वे इनका अप्रत्यक्ष रूप से इजरायल का विरोध करें।
हिजबुल्ला संगठन क्या है?
हिजबुल्ला एक शिया संगठन है जो लेबनान में बेहद ताकतवर है। इसे फिलहाल दुनिया की सबसे ताकतवर मिलिशिया की तरह भी देखा जा रहा है जिसका उद्देश्य इजरायल को को नुक़सान पहुचाना है इस संगठन को आर्थिक रूप से मुख्य सहायक ईरान से होती है इसलिए हिजबुल्ला के चीफ़ की हत्या का दर्द ईरान को सबसे ज्यादा है। लेबनान की राजधानी बेरूत के दो टुकड़ों में एक पर हिजबुल्ला का कब्जा है वहीं लेबनान में शिया और सुन्नी मुसलमानों के साथ साथ ईसाई आबादी भी है फ्रांस से स्वतंत्र होने के बाद लेबनान अच्छी स्थिति में था लेकिन 60 के दशक के बाद फिलिस्तीनी लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन (PLO) ने पहली बार लेबनान में अपना ठिकाना बना लिया । लेबनान में सीरिया और फिलिस्तीन से आए सुन्नी मुसलमानों का भी बोलबाला है इसलिए यहां लड़ाई हिजबुल्ला से इजरायल की है ही साथ साथ में तीन समुहों से उथल-पुथल लेबनान में इजराइल के हमलों पर ईरान के अलावा कोई अरब देश दिलचस्पी नहीं दिखा रहा है।
फिलिस्तीनी अपनी जमीन के लिए तो इजरायल पनाह के लिए एक वतन की खातिर संघर्षरत लम्बे समय से जारी मसले का समाधान कैसे?
हम जानते हैं कि इजरायल के यहूदी जेरूसलम के आसपास आज से 2000-2500 वर्ष पहले अपने पूर्वजों की भूमि के रूप में स्वीकारते हैं जब जर्मनी में गये यहुदियों को को हिटलर ने सताया तब ब्रिटेन ने इजरायल में उन्हें आर्थिक सहायता के बदले बचाने का वादा किया था । 1917 में, प्रथम विश्व युद्ध में ब्रिटेन यहूदियों का समर्थन प्राप्त करने के लिए , ब्रिटिश बाल्फोर घोषणापत्र में ओटोमन-नियंत्रित फिलिस्तीन में एक यहूदी राष्ट्र की स्थापना का वादा किया गया था। इससे पहले
ब्रिटेन ने पहले ही अरबों को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में फिलिस्तीन देने का वादा कर दिया था और फ्रांसीसी सरकार से वादा किया था कि यह एक अंतरराष्ट्रीय प्रशासित क्षेत्र होगा। इन तीन विवादित घोषणाओं ने इजरायल और फिलिस्तीन विवाद शुरू किया जो आज भी जारी है फिलिस्तीन की जमीन धीरे धीरे इजरायल हड़प रहा है इजरायल के यहूदियों को ब्रिटेन और अमेरिका का साथ है वहीं यहुदी पहले से ही प्रतिभाशाली लोग हैं वे समय के साथ अपने राष्ट्र को ताकतवर बनाते गये तकनीकी,राजनीतिक तथा कूटनीतिक विकास में इजराइल ने 1948 के बाद अपने को बेहद मजबूत राष्ट्र के रूप में खड़ा कर दिया है जिसे अरब देश कभी हरा नहीं पाते हैं इसलिए अंतरराष्ट्रीय शांति संगठनों की मध्यस्थता के बाद भी मसला शान्त नहीं हुआ है। फिलिस्तीनी संगठनों के लालच और अस्वीकरण के कारण उन्हें भारी नुक़सान हुआ फिलिस्तीन के लिए संयुक्त राष्ट्र विभाजन योजना संयुक्त राष्ट्र द्वारा एक प्रस्ताव था जिसमें अनिवार्य फिलिस्तीन को स्वतंत्र अरब और यहूदी राज्यों में विभाजित करने की सिफारिश की गई थी। जिसमें पहला टू स्टेट सॉल्यूशन या दो राष्ट्र समाधान का प्रस्ताव सबसे पहले 1937 में आया था। तब ब्रिटिश सरकार में पील कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में ये प्रस्ताव दिया था कि इसमें नेगेव रेगिस्तान, वेस्ट और गाजा पट्टी को अरब लोगों को देने का प्रस्ताव रखा था था। जबकि, गलीली में ज्यादातर समुद्री तट और फिलिस्तीन की उपजाऊ भूमि यहूदियों को देने की बात थी। येरूशलम ब्रिटिश अपने पास ही रखना चाहते थे। इस प्रस्ताव का यहूदियों ने तो समर्थन किया लेकिन अरबों ने खारिज कर दिया था इसके बाद 1947 में फिर संयुक्त राष्ट्र ने बंटवारे का प्रस्ताव रखा। इसमें तीन-तरफा विभाजन था। येरूशलम को अंतरराष्ट्रीय नियंत्रण में ही रखने का प्रस्ताव था। जबकि, यहूदियों और अरबों के लिए अलग-अलग मुल्क बनाने की बात थी। इस बार भी यहूदियों ने इसे मान लिया लेकिन फिलिस्तीनियों द्वारा अस्वीकार कर दिया गया, जिसके कारण गृह युद्ध हुआ । 14 मई 1948 को इजरायल नया देश बना बनते ही पहला अरब-इजरायल युद्ध शुरू हो गया।
इस युद्ध में इजरायल ने सिनाई प्रायद्वीप, गाजा पट्टी, वेस्ट बैंक, येरूशलम और गोलान हाइट्स पर कब्जा कर लिया। इस युद्ध से पहले तक गाजा पट्टी पर मिस्र और वेस्ट बैंक पर जॉर्डन का नियंत्रण था। हालांकि 2005 में गाजा से इजरायल ने नियंत्रण हटा लिया था। फिलिस्तीन मांग के संगठन वेस्ट बैंक, गाजा पट्टी और पूर्वी यरुशलम में एक स्वतंत्र एवं संप्रभु राज्य स्थापित करना चाहते है, जिस पर वर्ष 1967 से इज़राइल का कब्ज़ा है। इजरायल की बस्तियों को खाली करवाना चाहता है लेकिन इसी बीच इजरायल युद्धों में जीतकर पूरे क्षेत्र में कब्जा कर रहा है। इस प्रकार फिलिस्तीनी अपनी हासिल की गई जमीन भी खोते जा रहे हैं हालांकि संयुक्त राष्ट्र संघ का बंटवारा फिलिस्तीनी मान लेते तो आज यह ज़ंग समाप्त हो जाती । ओस्लो समझौता हुआ वो भी वेस्ट बैंक के आसपास फिलिस्तीनियों को स्वतंत्र राज्य बचाने की बात करता था लेकिन कोई समझौता अभी तक समाधान नही कर पाया। इस प्रकार अब गाजा और वेस्ट बैंक के कुछ क्षेत्रों पर इजरायल और फिलिस्तीन का कब्जा अस्थाई है वेस्ट बैंक में इजराइली बस्तियों का बसना भी अब इजरायल के फैलाव का संकेत है तो इजरायल सैन्य कार्रवाई से गाजा पट्टी को बर्बाद कर रहा वहीं दूसरी तरफ हमास और हिज्बुल्लाह फिलिस्तीन बनाने के लिए संघर्षरत है। वर्तमान में एक शांतिपूर्ण बंटवारा ही समाधान हो सकता है ना ही इजरायल की बड़ी आबादी को खदेड़ना संबंध ना ही अरबों को इस भूमि से पूर्णतः हटाना संभव है इसलिए शान्ति स्थापित करना उन देशों का कर्तव्य बनता है जिन देशों ने इस मसले को हमेशा अपने स्वार्थ के लिए उपयोग किया है। फिलिस्तीन का थोड़ा सा अस्तित्व रामल्लाह और गाजा में देखा जाता है जहां रामल्लाह फ़िलिस्तीन सरकार की अस्थायी प्रशासनिक सीट है रामरल्लाह 1995 के ओस्लो समझौते के बाद से, रामल्लाह को फ़िलिस्तीनी राष्ट्रीय प्राधिकरण (पीएनए) द्वारा शासित किया जाता है। इस प्रकार आज इस मसले के सामाधान के लिए वेस्ट बैंक और रामल्लाह के क्षेत्रों तथा गाजा को मिलाकर जनसंख्या के अनुपात में फिलिस्तीन और इजरायल के बीच बंटवारा होना चाहिए ताकि निर्दोष लोग अपने जीवन में स्थायित्व लाकर चैन से जी सकें लेकिन हमास और हिज्बुल्लाह तथा फिलिस्तीनी कट्टरपंथियों द्वारा फिलिस्तीन मुक्ति की मांग उन्हें हर बार युद्धों में विनाश के साथ फिलिस्तीन की मौजूदा भूमि से दूर कर रही है वहीं इजरायल इन विरोधियों को समाप्त करने के लिए आम लोगों को भी उजाड़ रहा है।
Knowledgeable
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