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Chenab Bridge photo social media |
Chenab Bridge USBRL चेनाब ब्रिज भारत का एक ऐतिहासिक और इंजीनियरिंग चमत्कार
भारत ने 2025 में एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जम्मू-कश्मीर में स्थित चेनाब रेल ब्रिज का उद्घाटन किया। यह पुल न केवल भारत का, बल्कि दुनिया का सबसे ऊँचा रेलवे आर्च ब्रिज है। इसका उद्घाटन न केवल एक ढांचागत परियोजना का समापन था, बल्कि यह राष्ट्रीय एकता, तकनीकी प्रगति, और सामरिक मजबूती का प्रतीक बन गया है। इस पुल के निर्माण में बेंगलुरु के भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) में प्रोफेसर माधवी लता का बहुत बड़ा योगदान है. माधवी ने पुल के डिजाइन से लेकर निर्माण तक में बड़ा रोल निभाया है।
चेनाब ब्रिज: एक संक्षिप्त परिचय
स्थान: रियासी ज़िला, जम्मू-कश्मीर
नदी: चेनाब नदी पर स्थित
प्रोजेक्ट: उधमपुर-श्रीनगर-बारामुला रेलवे लिंक (USBRL)
ऊँचाई: नदी तल से 359 मीटर (एफिल टॉवर से लगभग 35 मीटर ऊँचा)
लंबाई: लगभग 1,315 मीटर
मुख्य आर्च स्पैन: 467 मीटर
निर्माण लागत: ₹1,486 करोड़ (लगभग)
उद्घाटन समारोह प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी
तारीख: 6 जून 2025
मुख्य अतिथि: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
PM मोदी का संबोधन: उन्होंने इसे "विकास की नई रेखा और देश की एकता का प्रतीक" बताया।
तिरंगा यात्रा: पीएम मोदी ने पुल पर तिरंगा हाथ में लेकर चलकर यात्रा की, जिससे यह कार्यक्रम भावनात्मक और देशभक्ति से ओतप्रोत बन गया।
विशेष संदेश: उन्होंने चीन और पाकिस्तान को अप्रत्यक्ष संदेश देते हुए कहा कि "अब भारत किसी भी इलाके में बुनियादी ढांचा पहुंचा सकता है"।
चिनाब नदी ब्रिज की तकनीकी और सामरिक विशेषताएँ
यह ब्रिज 260 किमी/घंटा की हवा और 8 रिक्टर स्केल तक के भूकंप को भी सह सकता है।
यह पुल विस्फोट और चरम जलवायु परिस्थितियों के लिए डिज़ाइन किया गया है।
इसमें लगभग 28,000 टन स्टील का उपयोग हुआ है।
यह पुल भारतीय सेना के लिए रणनीतिक दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह कश्मीर को शेष भारत से रेलमार्ग द्वारा जोड़ता है।
वंदे भारत ट्रेन और पुल का भविष्य
उद्घाटन के साथ ही वंदे भारत ट्रेन का ट्रायल रन भी सफलतापूर्वक पूरा किया गया।
इस ट्रेन से कटरा से श्रीनगर की यात्रा अब महज 3 घंटे में पूरी की जा सकेगी, जो सड़क मार्ग से 6-7 घंटे लगते थे।
यह पुल और रेल सेवा पर्यटन, व्यापार और स्थानीय विकास के लिए एक नई क्रांति लाएंगे।
राष्ट्रीय और वैश्विक संदेश
चेनाब ब्रिज ने भारत को विश्व मानचित्र पर रेलवे इंजीनियरिंग की अग्रणी शक्ति के रूप में स्थापित किया है।
यह पुल न केवल भौगोलिक दूरी को पाटता है, बल्कि दिलों को भी जोड़ने वाला पुल बन गया है।
अगर आप चाहें तो मैं इस लेख को PDF या पोस्टर फॉर्मेट में भी तैयार कर सकता हूँ।
पृष्ठभूमि और महत्व तथा पुल की मुख्य विशेषताएं
चीनार नदी यानि चेनाब नदी पर बना यह ब्रिज विश्व का सबसे ऊँचा रेलवे आर्च ब्रिज है। इसे उधमपुर–श्रीनगर–बारामुला रेल लिंक (USBRL) परियोजना का हिस्सा माना जाता है, जिसे 1994‑95 में मंजूरी मिली थी।
मुख्य विशेषताएँ
लंबाई: लगभग 1,315 मीटर, जिसमें मुख्य आर्च का स्पैन लगभग 467 मीटर है।
ऊँचाई: पुल की रेल पटरी नदी तल से लगभग 359 मीटर (1,178 फीट) ऊपर है—एफिल टॉवर से लगभग 35 मीटर ऊँचाई में।
भूकंपीय प्रतिरोध: एडॉप्टेड डिजाइन रिक्टर पैमाने पर 8 तक के भूकंप का सामना कर सकता है, और 260 कि.मी./घंटा की हवा में भी सुरक्षित रहता है।
स्थायित्व: बम विस्फोट और तेज भूकंप सहेजने की क्षमता।
निर्माण और इंजीनियरिंग
परियोजना में ₹14.86 अरब (~₹1,486 करोड़) की लागत से 30,000–28,000 टन उच्च ग्रेड इस्पात का इस्तेमाल हुआ।
सेल (सार्वजनिक इस्पात प्राधिकरण लिमिटेड) ने ब्रिज निर्माण में मुख्य योगदान दिया, जो भूकंप और तेज हवाओं के प्रति मजबूती सुनिश्चित करता है।
निर्माण कार्य 2002 में शुरू हुआ, कई तकनीकी तथा कानूनी चुनौतियों के बावजूद 22 वर्षों के बाद ब्रिज तैयार हुआ।
वंदे भारत एक्सप्रेस और प्रयोग
25 जनवरी 2025 को वंदे भारत ट्रेन ने इस ब्रिज पर पहली सफल ट्रायल रन पूरी की।
ट्रेन को विशेष रूप से –20 °C की ठंड, पाइपलाइन व टैंक फ्रीज़िंग जैसे चरम मौसम में चलने योग्य बनाया गया है—हीटिंग सिस्टम, एंटी‑फ्रीज़ उपकरण, बायो-टॉयलेट आदि से लैस।
मान्यता प्राप्त है कि यह पुल वंदे भारत ट्रेन के माध्यम से कटरा–श्रीनगर यात्रा को सड़क की 6‑7 घंटे की दूरी से घटाकर केवल 3 घंटे में पूरा करेगा।
रणनीतिक और आर्थिक प्रभाव
रेलवे का मानना है कि यह पुल जम्मू–कश्मीर को देश के बुनियादी नेटवर्क से जोड़कर सपने, विकास, और राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 अप्रैल को यह ब्रिज और वंदे भारत ट्रेन का उद्घाटन किया, जो पर्यटन, व्यापार तथा क्षेत्रीय समृद्धि के लिहाज़ से महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।
उद्घाटन के दौरान पीएम मोदी ने ब्रिज पर तिरंगा हाथ में लेकर पदयात्रा की, जिससे पड़ोसी देशों—पाकिस्तान और चीन—को एक सशक्त संदेश मिला।
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