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Nirjala ekadashi |
निर्जला एकादशी nirjala ekadashi
भारतवर्ष में हिन्दू संस्कृति में विभिन्न पर्व एवं धार्मिक दिन विशेष महत्व रखते हैं जिसमें पुण्य दान तथा पवित्रता से जुड़े हुए होते हैं। निर्जला एकादशी इनमें से एक महत्वपूर्ण दिन है जो जून महीने में ज्येष्ठ मास की शुक्ला पक्ष में आती है गर्मियों में इस दिन बिना अन्न और जल के यह उपवास बहुत कठिन माना जाता है।
हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। प्रत्येक मास में दो एकादशी आती हैं, लेकिन उनमें से निर्जला एकादशी को सबसे श्रेष्ठ और पुण्यदायिनी माना गया है। यह व्रत ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को रखा जाता है और इसका पालन करने से सभी एकादशियों के व्रत का फल एक साथ प्राप्त होता है।
एकादशी व्रत दान एवं पीपल पूजा
निर्जला एकादशी को व्रत रखने वाली महिलाएं इस दिन बिना अन्न जल के रहती है तथा इस दिन पीपल पेड़ जो पवित्र माना जाता है इसकी जल और दूध के साथ पूजा की जाती है तथा कन्याओं और गरीबों को फलदान एवं अन्य प्रकार के दान किये जाते हैं। इस दिन सरबत जूस और शीतल जल पिलाना पुण्य का काम माना जाता है। पेड़-पौधों को पानी देना इस दिन सबसे बड़ा पूण्य माना जाता है। पीपल एवं वटवृक्ष तथा अन्य पेड़-पौधों को जल देना निर्जला एकादशी पर सबसे महत्वपूर्ण पुण्य माना जाता है। निर्जला एकादशी की शाम को व्रत रखने वाली युवतियां महिलाएं रात्रि जागरण करके हरजस गाती है तथा धार्मिक कार्यों के लिए इस दिन फल और ठंडाई,सरबत जूस आदि बनाकर सभी को पिलाया जाता है।
राजस्थान एकादशी के दिन महिलाएं हरिजस गायन करते हुए गांव या दूर की जगहों पर पीपल को जल दूध और घी चढ़ाने जाती है। पीपल पूजा एवं जलाभिषेक तथा पेड़ों की सुरक्षा इस दिन का वैज्ञानिक आधार भी माना जाता है। आम की रूत में आम फल की खरीदारी और दान इस दिन के लिए विशेष हैं। गांवों में मेले लगते हैं तथा पीपल पूजा भजन कीर्तन के साथ राजस्थान में एकादशी पर्व को पुण्य एव पवित्र दिन के रूप में एक त्यौहार के रूप में मनाया जाता है।
निर्जला एकादशी का अर्थ
'निर्जला' का अर्थ है 'बिना जल के'। इस दिन व्रती बिना अन्न और जल ग्रहण किए उपवास करता है। इसे भीष्म एकादशी भी कहा जाता है, क्योंकि इसका महत्व स्वयं महाभारत के पितामह भीष्म ने बताया था।
निर्जला एकादशी व्रत की विधि
निर्जला एकादशी का व्रत अत्यंत कठिन माना जाता है। व्रती को दशमी तिथि से ही संयमपूर्वक आहार लेना चाहिए और एकादशी के दिन प्रातः स्नान कर व्रत का संकल्प लेना चाहिए। भगवान विष्णु की विधिवत पूजा कर तुलसी पत्र अर्पित करना चाहिए। दिनभर जल तक ग्रहण नहीं किया जाता। रात्रि जागरण एवं भजन-कीर्तन का विशेष महत्व है। द्वादशी तिथि को ब्राह्मण या जरूरतमंद को अन्न, जल, वस्त्र आदि दान कर व्रत का पारण किया जाता है।
निर्जला एकादशी का धार्मिक महत्व
निर्जला एकादशी व्रत से सभी पापों का नाश होता है और व्रती को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन दान, पुण्य, जप, तप और भक्ति का विशेष फल प्राप्त होता है। इस व्रत को करने से व्यक्ति को सभी एकादशियों का पुण्य एक साथ मिल जाता है।
निर्जला एकादशी की आधुनिक सन्दर्भ में प्रासंगिकता
आज के समय में जहां जीवन भागदौड़ से भरा है, वहां निर्जला एकादशी आत्मनियंत्रण, संयम और आस्था की मिसाल है। यह व्रत न केवल आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है, बल्कि शरीर की शुद्धि एवं मन की स्थिरता में भी सहायक होता है।
निर्जला एकादशी का व्रत तथा पौराणिक इतिहास
निर्जला एकादशी हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण व्रत है। इसे ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। इसका नाम 'निर्जला' इसलिए है क्योंकि इस दिन व्रत रखने वाले व्यक्ति को अन्न और जल दोनों का त्याग करना होता है। यह वर्ष की सभी 24 एकादशियों में सबसे कठिन और महत्वपूर्ण मानी जाती है।
निर्जला एकादशी व्रत कथा:
पौराणिक कथा के अनुसार, महर्षि वेदव्यास ने पांडवों को एकादशी व्रत के महत्व के बारे में बताया था। तब महाबली भीम ने उनसे कहा कि वे भूख सहन नहीं कर सकते, इसलिए वर्ष की सभी एकादशियों का व्रत रखना उनके लिए संभव नहीं है। उन्होंने वेदव्यास जी से ऐसा कोई एक व्रत बताने का अनुरोध किया, जिसके पालन से उन्हें सभी एकादशियों का फल प्राप्त हो सके।
तब वेदव्यास जी ने भीम को निर्जला एकादशी व्रत का महत्व बताया। उन्होंने कहा कि ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की जो एकादशी आती है, उसका नाम निर्जला है। इस व्रत में स्नान और आचमन के अलावा जल का सेवन भी वर्जित है। आचमन में भी छह मासे (लगभग 6 ग्राम) से अधिक जल नहीं होना चाहिए, अन्यथा वह मद्यपान के समान हो जाता है।
वेदव्यास जी ने भीम को आश्वस्त किया कि जो व्यक्ति इस निर्जला एकादशी का व्रत विधिपूर्वक करता है, उसे वर्ष भर की सभी 24 एकादशियों के व्रत का फल प्राप्त होता है। इस व्रत के प्रभाव से व्यक्ति सभी पापों से मुक्त होकर विष्णुलोक को प्राप्त होता है। भीम ने वेदव्यास जी के वचनों को सुनकर यह व्रत किया और सफल हुए। इसीलिए इस एकादशी को भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।
निर्जला
एकादशी का धार्मिक एवं आध्यात्मिक महत्व:
समस्त एकादशियों का पुण्य: मान्यता है कि निर्जला एकादशी का व्रत करने से साल भर की सभी 24 एकादशियों के व्रत का पुण्य फल प्राप्त हो जाता है। जो लोग सभी एकादशी व्रत नहीं कर पाते, उनके लिए यह व्रत अत्यंत लाभकारी होता है।
पापों का नाश: इस दिन भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा-अर्चना करने और व्रत रखने से समस्त पापों का नाश होता है।
मोक्ष की प्राप्ति: निर्जला एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को विष्णुलोक में स्थान मिलता है और अंततः मोक्ष की प्राप्ति होती है।
शारीरिक और मानसिक शुद्धि: यह व्रत आत्मसंयम, तप और भगवान के प्रति भक्ति का प्रतीक है। यह मन और शरीर दोनों की शुद्धि के लिए लाभकारी माना जाता है।
दान का महत्व: इस दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व है। निर्जल व्रत रखकर जरूरतमंदों को जल, अन्न, वस्त्र, और अन्य वस्तुओं का दान करने से कई गुना पुण्य फल प्राप्त होता है। खासकर जल का दान बहुत शुभ माना जाता है।
दीर्घायु और आरोग्य: इस व्रत के प्रभाव से व्यक्ति को लंबी आयु और आरोग्य की प्राप्ति होती है।
कुल मिलाकर, निर्जला एकादशी एक बहुत ही पवित्र और फलदायी व्रत है जो भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने और आध्यात्मिक उन्नति के लिए किया जाता है।
महाभारत में निर्जला एकादशी का ऐतिहासिक महत्व
निर्जला एकादशी व्रत की कथा महाभारत काल से जुड़ी हुई है। इसे भीष्म एकादशी भी कहा जाता है क्योंकि इस व्रत का महत्व स्वयं भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को बताया था।
महाभारत में निर्जला एकादशी और भीमसेन
महाभारत के समय की बात है। पांडवों में से भीमसेन भोजन और पानी के बिना नहीं रह सकते थे। युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल और सहदेव सभी एकादशी व्रत रखते थे, लेकिन भीम इस व्रत को नहीं रख पाते थे क्योंकि उन्हें बहुत भूख लगती थी और वे उपवास सहन नहीं कर सकते थे।
भीमसेन इस बात से चिंतित हो गए कि अगर वे एकादशी व्रत नहीं करेंगे तो उन्हें पुण्य नहीं मिलेगा और स्वर्ग की प्राप्ति नहीं होगी। तब उन्होंने महर्षि व्यास से उपाय पूछा।
महर्षि व्यास का सुझाव:
महर्षि व्यास ने कहा —
"हे भीम! यदि तुम सभी एकादशियों का पुण्य प्राप्त करना चाहते हो, परंतु सभी एकादशी नहीं रख सकते, तो वर्ष में केवल एक व्रत निर्जला एकादशी का पालन करो। इस दिन बिना अन्न और जल के उपवास करना होगा। यह व्रत अत्यंत कठिन है, परंतु इसका फल सभी 24 एकादशियों के बराबर होता है।"
भीमसेन का कठिन संकल्प एवं एकादशी व्रत
भीमसेन ने इस कठिन व्रत को करने का संकल्प लिया। उन्होंने ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को बिना जल ग्रहण किए पूरे दिन और रात्रि उपवास किया, और द्वादशी को ब्राह्मणों को अन्न-जल दान कर व्रत का पारण किया।
इस कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें दर्शन दिए और कहा कि इस एक व्रत के पुण्य से उन्हें सभी एकादशियों का फल प्राप्त होगा।
Disclaimer-यह लेख जानकारी मात्र के लिए है जो मान्यताओं पर आधारित है।
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