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Eid Milad-un-Nabi,BARAVFAT |
आज इस्लाम धर्म तथा मुस्लिम भाइयों के लिए उनके धर्म और जीवन का खास दिन है यह दिन अपने आप धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व लिए हुए है। क्योंकि आज ही के पैगम्बर साहब का इस धरती पर आगमन हुआ था तथा आज ही के दिन वो इस दुनिया को अमन का संदेश देकर अलविदा भी कह गये थे। इस्लाम में वैसे तो ईद उल जुहा और ईद उल फितर पर्वों का भी बड़ा महत्व है लेकिन बारावफात या ईद उल मिलादुन्नबी को उन दिनों की तरह पाक दिन माना जाता है । कुरान के मुताबिक ईद- ए-मिलाद को मौलिद मावलिद के नाम से भी जाना जाता है।भारत सहित दुनिया के अधिकांश इस्लामिक देशों में इस दिन सरकारी दफ्तरों में अवकाश रहता है। तथा हमारे मुस्लिम समुदाय के भाई बहिन इस दिन को बड़े धूमधाम से मनाते हैं। नवीन पौशाकें विभिन्न प्रकार के व्यंजनों तथा एक दूसरे को खुशी अमन चैन की दुआ और बधाई देते हैं। इस्लाम के सबसे पवित्र स्थल मक्का में भी इस दिन रौनक देखते ही बनती है । तथा बाजारों में भीड़ लगती है। शहरों में बाजार सजावट लिए हुए अपने आप में बहुत आकृषित लगते हैं।
इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोग जनसभाएं करते हैं और पैगंबर मौहम्मद साहब की शिक्षा को समझा जाता है। लेकिन इस बार 2020 में कोरोनावायरस ने मानव जाति के सभी पर्व त्यौहारों पर अंकुश सा लगा दिया है क्योंकि इस बार पहले की तरह बड़ी संख्या में एकत्र नहीं हो सकते इसलिए इस कोरोना काल में एतिहात से हर त्योहार या पर्व मनाया जाता है। जिसमें सामुहिक भोज , जुलुस आदि में कोरोना फैलने का खतरा रहता है। इसलिए मास्क आदि पहन कर कोरोना से महफूज रहकर सोशल मीडिया के जरिए इस त्योहार की बधाई दी जाएगी। हमें हमारी संस्कृति और धर्म के अनुसार पर्व भी मनाने है तथा स्वास्थ्य का भी ख्याल रखना जरूरी है। जानते हैं ईद उल मिलादुन्नबी के इतिहास महत्व और शुरुआत के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें।
पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब का जीवन परिचय
इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार तीसरे महीने यानी रबी-उल- अव्वल की 12 तारीख को अरब के रेगिस्तान के शहर मक्का में 571 ईस्वी में पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब का जन्म हुआ था। इस दिन को ईद मिलाद उन नबी जिसे ईद-ए- मिलाद या फिर मालविद के नाम से जाना जाता है। इस बार ईद मिलाद उन नबी 29 और 30 अक्तूबर के दिन मनाया जा रहा है। इस्लामी कैलेंडर के 12वीं तारीख को पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब का जन्म बनी हाशिम के परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम अब्दुल्लाह और माता का नाम बीबी आमिना था। मां के निधन के बाद पैगंबर मोहम्मद अपने चाचा अबू तालिब और दादा अबू मुतालिब के साथ रहे। मुस्लिम समुदाय के लोग ईद-ए- मिलाद को पैगंबर मोहम्मद के जन्मदिन के रूप में बड़े ही धूम-धाम के साथ मनाते हैं।
बारावफात का इतिहास और शुरुआत
ईद मिलादुन्नबी इस्लाम के इतिहास का सबसे अहम दिन माना जाता है। पैगम्बर मोहम्मद साहब का जन्म इस तीसरे महीने के 12वें दिन हुआ था. इस दिन को मनाने की शुरुआत मिस्र से 11वीं सदी में हुई थी। फातिमिद वंश के सुल्तानों ने इस ईद को मनाना शुरू किया। पैगम्बर के इस दुनिया से जाने के चार सदियों बाद इसे त्योहार की तरह मनाया जाने लगा । इस मौके पर लोग रात भर जागते हैं और मस्जिदों में पैगम्बर द्वारा दी गई कुरआन और दीन की तालीम का जिक्र किया जाता है । इस दिन मस्जिदों में तकरीर कर पैगम्बर के बताए गए रास्ते और उनके आदर्शों पर चलने की सलाह दी जाती है।
बारावफात भी क्यों कहा जाता है इस दिन को
ईद मिलादुन्नबी के साथ बारावफात इसलिए कहते हैं क्योंकि इस दिन पैगंबर मोहम्मद के जन्मदिन के साथ वफात (मौत) भी हुई थी। दुनिया को अलविदा कहने से पहले पैगम्बर मोहम्मद बारह दिन तक बीमार रहे थे।12वें दिन उन्होंने इस दुनिया को जाहिरी तौर पर अलविदा कह दिया था और इत्तेफाक से उनका जन्म भी आज ही के दिन हुआ था। इसलिए इस दिन को बारावफात के नाम से भी जाना जाता है । लेकिन इस दिन मुस्लिम भाई ग़म मनाने की बजाए आज के दिन जश्न मनाते हैं।
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