बुद्धि : अर्थ , परिभाषा, प्रकार एवं सिद्धांत तथा संवेगात्मक बुद्धिJagriti PathJagriti Path

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Monday, March 16, 2020

बुद्धि : अर्थ , परिभाषा, प्रकार एवं सिद्धांत तथा संवेगात्मक बुद्धि



Intelligence Meaning Definition Type Theory
बुद्धि-Intelligence Meaning Definition Type Theory



बुद्धि : अर्थ व परिभाषा 

 1. वुडवर्थ-"बुद्धि कार्य करने की एक विधि है।" 
 2. टरमन-"बुद्धि अमूर्त विचारों के बारे में सोचने की योग्यता है। 
 3. स्टर्न-“बुद्धि जीवन की नवीन समस्याओं के समायोजन की सामान्य योग्यता है।" 
 4. डियरबोर्न- "बुद्धि सीखने या अनुभव का लाभ उठाने की योग्यता है।"
  5. बर्ट-“बुद्धि अच्छी तरह निर्णय करने, समझने तथा तर्क करने की योग्यता है।" 
  6. पिन्टनर-"जीवन की अपेक्षाकत नवीन परिस्थितियों से अपना सामंजस्य करने की व्यक्ति की योग्यता ही बुद्धि है।" 
  7. रायबर्न—“बुद्धि वह शक्ति है, जो हमें समस्याओं का समाधान करने और उद्देश्यों को प्राप्त करने की क्षमता देती है।" 
  8. कॉलसनिक–“बुद्धि कोई एक शक्ति या क्षमता या योग्यता नहीं है,जो सब परिस्थितियों में समान रूप से कार्य करती है, वरन् अनेक विभिन्नताओं का योग है।"

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उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर बुद्धि निम्नलिखित योग्यताओं का पुंज है
 सीखने की योग्यता। 
 अमूर्त चिंतन की योग्यता। 
 समस्या समाधान की योग्यता।
अनुभव से लाभ उठाने की योग्यता। 
 वातावरण के साथ समायोजन की योग्यता।
  वर्तमान में मनोवैज्ञानिक बुद्धि का जो अर्थ स्वीकार करते हैं उसे इन शब्दों में व्यक्त किया जा सकता है—“बुद्धि व्यक्ति की जन्मजात शक्ति है और उसकी सब मानसिक योग्यताओं का योग एवं अभिन्न अंग है।"

बुद्धि की विशेषताएँ 

बुद्धि मनुष्य की जन्मजात शक्ति है। 
 बुद्धि मनुष्य को विविध बातें सीखने में सहायता देती है।
बुद्धि मनुष्य को अमूर्त चिन्तन की योग्यता देती है। 
 बुद्धि मनुष्य को अपने पूर्व अनुभवों से लाभ उठाने की क्षमता देती है। 
 बुद्धि पर वंशानुक्रम और वातावरण का प्रभाव पड़ता है।
बद्धि मनुष्य द्वारा नवीन परिस्थितियों से समायोजन करने में सहायक है। बद्धि मनुष्य की कठिन परिस्थितियों और जटिल समस्याओं को सुगम बनाती है।
बुद्धि मनुष्य को अच्छे-बुरे, सत्य-असत्य कार्यों में अन्तर का योग्यता देती है। 
प्रिन्टर के अनुसार बुद्धि का विकास जन्म से लेकर किशोरावस्या मध्य काल तक होता है। 
कोल एवं ब्रस के अनुसार लिंग भेद के कारण बालक-बालिकाओं बुद्धि में बहुत ही कम अंतर होता है।

 बुद्धि के प्रकार

  बुद्धि का विभाजन करना एक कठिन कार्य है। बुद्धि वह क्षमता है जिसका उपयोग मनुष्य विभिन्न परिस्थितियों तथा परिवेश में करता है। थार्नडाइक ने बुद्धि के तीन प्रकार बताये हैं

 1. यांत्रिक/मूर्त बुद्धि-

वस्तुओं को समझने और उनके अनमा क्रिया करने में मूर्त बुद्धि का उपयोग किया जाता है। इसको यांत्रिक  या गत्यात्मक बुद्धि भी कहा जाता है। इस बुद्धि के व्यक्ति यंत्रों और मशीनों के कार्य में विशेष रुचि लेते हैं। अतः इस बदि के व्यक्ति अच्छे मिस्त्री, इंजीनियर, मैकेनिक आदि होते हैं। ये बालक खेलकूद तथा अन्य शारीरिक कार्यों में भी कुशल होते हैं।

2. अमूर्त बुद्धि-अमूर्त बुद्धि 

का कार्य सूक्ष्म तथा अमूर्त प्रश्नों को चिंतन तथा मनन के माध्यम से हल करना है। इस बुद्धि का सम्बन्ध पुस्तकीय ज्ञान से है। इस बुद्धि का व्यक्ति ज्ञान का अर्जन करने में विशेष रुचि लेता है। अतः इस बुद्धि के व्यक्ति अच्छे डॉक्टर, वकील, चित्रकार, साहित्यकार आदि होते हैं। 

3. सामाजिक बुद्धि–सामाजिक बुद्धि 

से अभिप्राय व्यक्ति की वह योग्यता है, जो समाज में सामंजस्य की क्षमता उत्पन्न करती है। इस बुद्धि का व्यक्ति मिलनसार, सामाजिक कार्यों में रुचि लेने वाला और मानव-सम्बन्ध के ज्ञान से परिपूर्ण होता है। अतः इस बुद्धि के व्यक्ति अच्छे नेता, व्यवसायी, सामाजिक कार्यकर्ता होते हैं।

बुद्धि के सिद्धान्त 

1.बुद्धि का एक कारक सिद्धान्त- अल्फ्रेड बिने 
2. बुद्धि का द्विकारक सिद्धान्त -स्पीयर मैन
3. बुद्धि का त्रिकारक सिद्धान्त-स्पीयर मैन 
4. बुद्धि का बहुकारक सिद्धान्त-थार्नडाइक
5. बुद्धि का समूहकारक सिद्धान्त- थर्सटन व कैली
6.  क्रमिक महत्त्व का सिद्धान्त -बर्ट व वर्नन
7. बुद्धि का प्रतिदर्श सिद्धान्त-थॉमसन
8. बुद्धि का त्रिआयामी सिद्धान्त-गिलफोर्ड
9.  बुद्धि क और बुद्धि ख का सिद्धान्त-हेब
10. बुद्धि का विकास सिद्धांत-पियाजे

 1.एक कारक सिद्धान्त 

  इस सिद्धान्त के अतिपादक बिने हैं। उन्होंने बुद्धि को एक अखण्ड इकाई माना। इसके अनुसार सापर्ण बद्धि एक समय में सक्रिय होकर एक ही प्रकार का कार्य करती है। इस मत के अनुसार एक बुद्धिमान व्यक्ति को सभी क्षेत्र व विषयों में बुद्धिमान होना चाहिए, जबकि ऐसा नहीं होता है।

2.द्विकारक

सिद्धान्त -इस सिद्धान्त के प्रतिपादक स्पीयरमैन है। उनके अनुसार बुद्धि के दो तत्व हैं—सामान्य योग्यता (G) तथा विशिष्ट योग्यता (S)। सभी व्यक्तियों में एक 'G' कारक कम या अधिक मात्रा में पाया जाता है। इसी के कारण व्यक्ति जीवन के सभी क्षेत्रों में सफलता प्राप्त करता है। व्यक्ति में बहुत से 'S' कारक भी होते हैं, जिनमें से प्रत्येक किसी क्रिया विशेष के लिए ही विशिष्ट होता है।

 3. त्रिकारक सिद्धान्त 

—इस सिद्धान्त के प्रतिपादक भी स्पीयरमैन है। उन्होंने 'G' और 'S' तत्वों के साथ एक और 'सामूहिक तत्व' (G+S) जोड़ दिया। इसके अनुसार बुद्धि परीक्षा में सामान्यतः बुद्धि, विशिष्ट बुद्धि और भाषा ज्ञान की आवश्यकता होती है। यह सिद्धान्त भी विवादास्पद रहने के कारण सर्वमान्य नहीं हो सका।

 4. बहुकारक सिद्धान्त 

- इस मत के प्रतिपादक थार्नडाइक है। उनके अनुसार बुद्धि में सामान्य योग्यता जैसी कोई सत्ता नहीं है। बुद्धि के अन्तर्गत कई तत्व है। इस सिद्धान्त को असत्तात्मक सिद्धान्त या मात्रा सिद्धान्त या बालू-सिद्धान्त भी कहते हैं।
थार्नडाइक ने बुद्धि को उद्दीपन-अनुक्रिया  सिद्धान्त अर्थात् 'S.R. Theory' के आधार पर सिद्ध किया। उनके अनुसार जिन अनुभवों के मध्य उद्दीपन-अनुक्रिया (S.R.) का सम्बन्ध स्थापित हो जाता है, भविष्य में उसी प्रकार की समस्याओं को हल करने में वे अनुभव सहायक होते हैं। इन्हीं तत्वों के आधार पर थार्नडाइक ने मूर्त, अमूर्त और सामाजिक बुद्धि का अस्तित्व स्वीकार किया है।

5. समुहकारक सिद्धान्त

इस सिद्धान्त के प्रतिपादक थर्सटन और कैली है। इन्होंने बुद्धि को नौ मानसिक योग्यताओं का समूह माना है। ये योग्यताएँ इस प्रकार हैं
(1) सामाजिक योग्यता (2) वाचिक योग्यता (3) संख्यात्मक योग्यता (4) क्रियात्मक योग्यता (5) शारीरिक योग्यता (6) यांत्रिक योग्यता (7) संगीतात्मक योग्यता (8) अभिरुचि योग्यता (9) स्थानिक योग्यता।
इन्होंने अपनी पुस्तक . (Primary Mental Abilities (PMA) में बद्धि को 13 तत्त्वों का समूह बताया है। जिनमें से 7 को अधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता है— Intelligence = S+P+V+W+R+M+N
 S = Spatial Ability (स्थानिक योग्यता)
 P= Perceptual Ability (प्रत्यक्षीकरण योग्यता)
 V= Verbal Ability(शाब्दिक योग्यता)
 W = Word-Fluency (वाक् योग्यता)
  R= Reasoning Ability (तार्किक योग्यता) 
  M = Memory Ability (स्मृति) 
  N = Numeric Ability (आंकिक योग्यता) इसी प्रकार कैली अपनी पुस्तक 'Cross Roads In the Mind of Man' में बुद्धि को 9 तत्त्वों का समूह बताया है

इनके अनुसार बुद्धि अनेक प्राथमिक कारकों से मिलकर बनी है। मानसिक क्रियाओं के अनेक समूह होते हैं तथा प्रत्येक समूह का एक अलग प्राथमिक कारक होता है। यही कारक समूह की क्रियाओं में समन्वय करता है। इसलिए इस सिद्धान्त को प्राथमिक मानसिक योग्यता का सिद्धान्त भी कहते हैं।

6. क्रमिक महत्त्व का सिद्धान्त 

-इस सिद्धान्त के प्रवर्तक बर्ट और वर्नन है। इस सिद्धान्त को पदानुक्रमिक सिद्धान्त भी कहा जाता है। इसमें मानसिक योग्यताओं को क्रमिक महत्त्व देकर इनके चार स्तर बताए गए हैं
(1) सामान्य मानसिक योग्यता (2) सामान्य मानसिक योग्यता के दो भाग—(A) क्रियात्मक, यांत्रिक, आन्तरिक और शारीरिक योग्यताएँ (B) शाब्दिक, सांख्यिक और शैक्षिक योग्यताएँ (3) उपर्युक्त दोनों स्तरों की योग्यताओं का अनेक मानसिक योग्यताओं में विभाजन (4) विशिष्ट मानसिक योग्यताएँ।

7. प्रतिदर्श सिद्धान्त 

—इस सिद्धान्त के प्रवर्तक थॉमसन है। इनके अनुसार एक ही समूह की योग्यताओं में परस्पर समानता पाई जाती है, किन्तु दूसरे समूह की योग्यताओं से इसका कोई सम्बन्ध नहीं होता है। जैसे—साहित्यिक योग्यताओं के समूह में कहानो कविता, निबंध, उपन्यास आदि में परस्पर सम्बन्ध होता है, किन्तु इनकी योग्यताओं का गणित समूह की योग्यताओं से कोई सम्बन्ध नहीं होता है। इस सिद्धान्त को वर्ग घटक या संघ सत्तात्मक सिद्धान्त भी कहते हैं।

8.त्रिआयामी सिद्धांत-

इस सिद्धान्त के प्रतिपादक गिलफोर्ड है। इनके अनसार बद्धि एक ताकिक रचना है। इसको तीन वर्गों में विभक्त किया जाता है (1) विषयवस्तु  (2) संक्रिया  (3) उत्पाद 
इन्होंने विषयवस्तु के 5 सक्रिया के 5 और उत्पाद के 6 तत्व बताकर बुद्धि के 5x5x6 = 150 तत्व बताये।
 पूर्व में विषयवस्तु के 4 तत्व मानकर कुल 120 तत्व माने थे। इन्होंने बुद्धि प्रणाली को त्रिआयामी घन प्रतिमान के माध्यम से प्रदर्शित किया। त्रिआयामी सिद्धान्त के अनुसार हम विषयवस्तु के माध्यम से किसी बात को पढ़ते या सूचना प्राप्त करते हैं। तत्पश्चात् संक्रिया के माध्यम से उस सूचना का चिंतन-मनन करके, उत्पाद के माध्यम से निष्कर्ष निकालते हैं। गिलफोर्ड ने 1967 में घन के आकार का 'बुद्धि संरचना मॉडल' प्रस्तुत किया।




Guilford intelligence club
बुद्धि संरचना मांडल Guilford intelligence club

9. बुद्धि-क और बुद्धि-ख का सिद्धान्त

इस सिद्धान्त के प्रतिपादक हैब के अनुसार-“बुद्धि एक वंशानुगत रूप से व्यक्ति में पाई जाने वाली वृद्धि की संभावना है। प्रतिदिन के व्यवहार में पाई जाने वाली बुद्धिमत्ता को बुद्धि का नाम दिया जाता है। यह वंशानुगत एवं पर्यावरणजन्य कारकों का प्रतिफल है।" इन्होंने बुद्धि को दो भागों में बाँटा है—बुद्धि-क और बुद्धि-ख बुद्धि-क-इसमें व्यक्ति के जन्मजात गुणों का समावेश किया जाता है।
बुद्धि-ख-यह व्यक्ति के अधिगम, अनुभव व वातावरणीय घटकों का परिणाम है।
दैनिक जीवन में दोनों प्रकार की बुद्धि विभिन्न क्रियाओं को आच्छादित किये रहती है। इन्हें अलग-अलग करके नहीं देखा जा सकता।

10. विकासात्मक सिद्धान्त -

इस सिद्धान्त के प्रतिपादक जीन पियाजे है। इनके अनुसार बुद्धि के विकास की प्रक्रिया चार अवस्थाओं विभाजित हैं।
(1) सवेगी पेशीय अवस्था-0 से 2 वर्ष (1) पूर्व वैचारिक क्रिया अवस्था-2 से 6 वर्ष (iii) वैचारिक क्रिया अवस्था-7 से 12 वर्ष (iv) औपचारिक संक्रिया अवस्था-12 वर्ष के बाद ।

बुद्धि परीक्षण

टरमन दारा बुद्धि का वर्गीकरण
1. 140 या उससे अधिक  प्रतिभाशाली बुद्धि
2. 120 से 139  अति प्रखर बुद्धि 
3. 110 से 119 प्रखर या तीव्र बुद्धि  
4. 90 से 109  सामान्य या औसत बुद्धि
5.80 से 89 मन्द बुद्धि या पिछड़े
6. 70से 79 निर्बल या क्षीण बुद्धि
7. 70 से कम निश्चित क्षीण बुद्धि 
8. 50 से 69 अल्प या मूर्ख बुद्धि
9. 25 से 49 मूढ़ बुद्धि 
10. 25 से कम  जड़ या महामूर्ख बुद्धि  
 1879 में विलियम वुण्ट ने लिपजिंग (जर्मनी) में प्रथम मनोवैज्ञानिक प्रयोगशाला स्थापित कर बुद्धि मापन को वैज्ञानिक आधार प्रदान किया। 
 बुद्धि मापन के कार्य में प्रथम सफलता फ्रांस के अल्फ्रेड बिने  को प्राप्त हुई। इन्होंने साइमन के साथ मिलकर 1905 ई. में 'बिने-साइमन बुद्धि परीक्षण' तैयार किया। . अमरीका में स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर टरमन ने बिने साइमन परीक्षण में संशोधन करके इसे 'स्टैनफोर्ड बिने परीक्षण' नाम दिया।
 मानसिक आयु शब्द का प्रयोग बिने द्वारा 1908 में किया गया।

बुद्धि लब्द्धि


बद्धि परीक्षण का आधार मानसिक एवं शारीरिक आयु के मध्य का सम्बन्ध है। मानसिक आयु बालक या व्यक्ति की सामान्य योग्यता बताती है। बद्धि परीक्षण के परिणाम बुद्धि-लब्धि द्वारा दिखाये जाते हैं
 कोल एवं ब्रूस के अनुसार—“बुद्धि-लब्धि यह बताती है कि मानसिक योग्यता में किस गति से विकास हो रहा है।" स्टर्न ने बुद्धि-लब्धि ज्ञात करने का सूत्र का सम्प्रत्यय 1912 में दिया। 1916 में टरमन द्वारा स्टैनफोर्ड बिने परीक्षण में इस सूत्र का प्रयोग करने के बाद यह प्रचलित हो गया।

                    मानसिक आयु MA
 बुद्धि-लब्धि= ------------------------×100
                     वास्तविक आयु CA


बुद्धि परिक्षाएं


Intelligence test buddhi mapn
Intelligence test buddhi mapn बुद्धि परीक्षा



(1) वैयक्तिक भाषात्मक परीक्षाएँ 

बिने साइमन बुद्धि स्केल-वैयक्तिक बुद्धि-परीक्षा का सर्वप्रथम स पेरिस विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान के प्रोफेसर अल्फ्रेड बिने ने किया इन्होंने 1905 में साइमन के साथ मिलकर यह परीक्षा विधि तैयार की। 1908 और 1911 में इसमें कुछ संशोधन किये । यह परीक्षा विधि 3 से 15वर्ष के बालकों के लिए थी। उन्होंने इस विधि का प्रयोग पेरिस के विद्यालयों में मंद बुद्धि बालकों का पता लगाने के लिए किया, ताकि उन्हें विशिष्ट विद्यालयों में भेजा जा सके।

-स्टैनफोर्ड-बिने स्केल-अमरीका में स्टेनफोर्ड विश्व-विद्यालय के मनोविज्ञान के प्रोफेसर टरमन ने बिने के मापक के अनेक दोषों को दुर करके 1916 में उसे एक नया रूप प्रदान किया, जो 'स्टैनफोर्ड-बिने स्केल' के नाम से प्रसिद्ध हुआ। उन्होंने 1937 और 1960 में मैरिल के साथ मिलकर इसे पुर्णतया निर्दोष बना दिया। यह स्केल 2 से 14 वर्ष तक के बालकों के लिए है। इसमें कुल 90 प्रश्नावलियाँ हैं।


2.वैयक्तिक क्रियात्मक परीक्षाएँ 

पोरटियस भूलभुलैया टेस्ट यह परीक्षण 3 से 14 वर्ष तक के बालकों के लिए है। जिस बालक की परीक्षा ली जाती है, उसे अपनी आयु के अनुसार कागज पर बना हुआ भूलभुलैया का एक चित्र और पेंसिल दे दी जाती है। बालक को पेंसिल से उसमें से बाहर निकलने का निशान लगाकर मार्ग अकित करना पड़ता है। यदि वे प्रयास में असफल होते हैं, तो उनकी बुद्धि का विकास उनकी आयु के अनुपात से कम समझा जाता है।
 वेश्लर-बैल्यूव टेस्ट-इस परीक्षण का निर्माण 1944 में 10 से 60 वर्ष की आयु के व्यक्तियों की बुद्धि-परीक्षा लेने के लिए किया गया था। 1955 में इसे संशोधित करके 16 से 60 वर्ष के वयस्कों के लिए कर दिया गया। वयस्कों की बुद्धि-परीक्षा लेने के लिए इसका बहुत प्रचलन है। इसमें मानसिक आयु निकालने के दोष को दूर कर दिया गया है।


3. सामूहिक भाषात्मक परीक्षाएँ । 

आर्मी एल्फा टेस्ट—इसका निर्माण अमरीका में प्रथम विश्वयुद्ध के समय  ओटिस महोदय ने सैनिकों और सेना के अन्य पदाधिकारियों का चुनाव करने के लिए किया गया था। इसका प्रयोग केवल शिक्षित मनुष्यों के लिए किया जा सकता था। इस टेस्ट का प्रयोग करके लगभग 20 लाख सैनिकों की बुद्धि-परीक्षा ली गई।

सेना सामान्य वर्गीकरण टेस्ट-इसका निर्माण अमरीका में द्वितीय विश्वयुद्ध के समय सेना के विभिन्न विभागों के लिए सैनिकों का वर्गीकरण करने के लिए किया गया था। इस परीक्षण में सैनिकों को शब्दावली, गणित और वस्तु गणना सम्बन्धी तीन समस्याओं का समाधान करना होता था। इस टेस्ट का प्रयोग लगभग 12 लाख सैनिकों की बुद्धिपरीक्षा लेने के लिए किया गया।


4. सामूहिक क्रियात्मक परीक्षाएँ। 

 आर्मी बीटा टेस्ट-इसका निर्माण अमरीका में प्रथम विश्वयुद्ध के समय सेना के विभिन्न पदों पर चनाव के लिए किया गया था। इसका प्रयोग आशिक्षित या अंग्रेजी नहीं जानने वाले लोगों के लिए किया गया था।
शिकागो क्रियात्मक टेस्ट यह टेस्ट 6 वर्ष के बालकों से लेकर वयस्कों तक के लिए है। यह 13 वर्ष की आय के बालकों की बुद्धि-परीक्षा लेने में विशेष रूप से उपयोगी सिद्ध हआ है। इस परीक्षा में आकृतियो म समानता-असमानता बताना, चित्र के टकडों को जोड़कर पूर्ण करना, समान वस्तुओं को छाँटना आदि क्रियाएँ की जाती है।
बुद्धि परीक्षाओं की उपयोगिता 
* सर्वोत्तम बालकों का चुनाव करना । 
* पिछड़े बालकों का चुनाव करना ।
 * बालकों को क्षमतानुसार कार्य देना। 
* समस्यात्मक बालकों में सुधार करना । 
* बालकों की विशिष्ट योग्यताओं का पता लगाना।
* बालकों की व्यावसायिक योग्यताओं का पता लगाना
* बालकों का वर्गीकरण करके स्तारानुसार शिक्षा देना 


संवेगात्मक बुद्धि 

 गोलमैन ने संवेगात्मक बुद्धि के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया था। संवेगात्मक बुद्धि से तात्पर्य कुछ वैसी क्षमताओं से होता है जो बुद्धि लब्धि से भिन्न, किन्तु जीवन में सफलता पाने के लिए आवश्यक होते हैं। संवेगात्मक बुद्धि जीवन के संवेगात्मक पहलू से सम्बन्धित क्षमताओं का योग है जिनके माध्यम से व्यक्ति अपने संवेगों को पहचानता है तथा उसे ठीक ढंग से प्रबंधित करता है, स्वयं को अभिप्रेरित करता है, अपने आवेगों पर नियंत्रण रखकर दूसरों के संवेगों को ठीक से समझता है तथा सम्पूर्ण रूप से एक उत्तम अन्तर्वैयक्तिक सम्बन्ध कायम रखता है। * गोलमैन तथा बोयातिज ने संवेगात्मक बुद्धि को परिभाषित करते हुए लिखा है, “संवेगात्मक बुद्धि से हमारा तात्पर्य स्व-जागरूकता, स्वप्रबन्धन सामाजिक जागरूकता तथा सामाजिक कौशलों के सही समय पर प्रभावी ढंग से प्रयुक्त करने की दक्षता है।" * सांवेगिक बुद्धि पद का प्रतिपादन सैलोवी तथा मेयर द्वारा किया गया तथा इनके अनुसार सांवेगिक बुद्धि के पाँच मुख्य तत्त्व होते हैं(i) अपने आप को अभिप्रेरित करना। (ii) अपने संवेगों की पहचान करना तथा प्रबन्धन करना। (iii) अपने आपको अभिप्रेरित करना। (iv) दूसरों के संवेगों की पहचान करना तथा (v) अन्तर्वैयक्तिक सम्बन्ध को ठीक ढंग से संचालित करना। बुद्धि के क्षेत्र में यह एक नया प्रत्यय है। इस प्रकार की बुद्धि से हमारा तात्पर्य उस दक्षता से है जिसके द्वारा कोई व्यक्ति अपने तथा दूसरे के संवेगों को समझता है, उन्हें प्रेरित करता है और अपने तथा दूसरे के संवेगों का प्रभावी ढंग से प्रबन्धन करता है। विभिन्न विद्वानों ने संवेगात्मक बुद्धि के अंतर्गत अलग-अलग तत्व बतलाये हैं। हे ने संवेगात्मक बुद्धि के चार तत्व बतलाये हैं(i) स्व-जागरूकता 
 (ii) सामाजिक जागरूकता (iii) स्व-प्रबन्धन
(iv) सम्बन्ध प्रबन्धन 
चारों तत्वों के अंतर्गत हे (Hay) ने 16 उपतत्वों का उल्लेख
किया है।  गोलमैन ने संवेगात्मक बुद्धि की 25 दक्षताओं को सम्मिलित किया।
(1) स्व-जागरूकता
(A) संवेगात्मक जागरूकता (B) विशुद्ध स्व आँकलन तथा
(C) आत्मविश्वास
 (ii) स्व-नियंत्रण
(A) स्वनियंत्रण (B) संचेतना
(C) नवाचार 
(III) अभिप्रेरणा
(A) उपलब्धि चालक (B) वचनबद्धता (C) पहल क्षमता
(D) आशावादिता 
(iv) सहानुभूति समूह (v) सामाजिक कौशल . सांवेगिक बद्धि को मापने के सिलसिले में बार-ऑन कनाडा में टेन्ट
विश्वविद्यालय ने सांवेगिक लब्धि का पद का प्रतिपादन किया। सांवेगिक बुद्धि को मापने के लिए बार-ऑन सांवेगिक लब्धि आविष्कारिका का प्रतिपादन किया। भारतीयं संदर्भ में दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एन.के. चड्डा ने सांवेगिक बुद्धि को मापने के लिए सांवेगिक लब्धि परीक्षण विकसित किया है।


 मानव संज्ञान

 प्रक्रिया-उन्मुखी सिद्धान्त-इस सिद्धान्त के अनुसार बुद्धि के स्वरूप की व्याख्या उसके भिन्न-भिन्न कारकों के रूप में न करके उन बौद्धिक प्रक्रियाओं के रूप में की गई है जिसे व्यक्ति किसी समस्या के समाधान करने में या सोच-विचार करने में लगाता है। पियाजे द्वारा प्रतिपादित बुद्धि के सिद्धान्त को संज्ञानात्मक विकास का सिमान्त कहा जाता है। पियाजे के अनुसार बुद्धि एक प्रकार की अनकली प्रक्रिया है जिसमें जैविक परिपक्वता तथा वातावरण के साथ होने वाली अन्तः क्रियाएं सम्मिलित होती हैं। पियाजे ने बुद्धि को संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं के विकास का दूसरा रूप माना है। उनके अनुसार संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं का विकास चार अवस्थाओं में होता है--(1) संवेदी-क्रियात्मक अवस्था (2) प्रावसंक्रियात्मक अवस्था (3) मूर्त संक्रियात्मक अवस्था (4) औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था।
स्टनबर्ग एक ऐसे संज्ञानात्मक मनोवैज्ञानिक है जिन्होंने बुद्धि का वितंत्र सिमान्त प्रतिपादित किया है। इस सिमान्त के अनुसार बद्धि के तीन मा प्रकार होते हैं (1) अनुभवजन्य बुद्धि (2) संदर्भात्मक बुद्धि 3 घटकीय बुद्धि
(1) अनुभवजन्य बुद्धि को सर्जनात्मक बुद्धि भी कहा जाता है। यह व्यक्ति में असाधारण मुझ तथा नये-नये विचारों को जन्म देने की क्षमता होती अधिकतर वैज्ञानिकों एवं अन्वेषणकर्ताओं में अनुभवजन्य बद्धि की प्रबलता होती है। 
(2)संदर्भात्मक बुद्धि को व्यावहारिक बुद्धि भी कहा जाता है। यह ऐसी बुद्धि होती है जो व्यक्ति में व्यावहारिक सूझ-बूझ उत्पन्न करने के साथ-साथ ही विपरीत परिस्थितियों में उत्तम समायोजन की क्षमता दिखलाने में मदद करती है। 3) घटकीय बुद्धि को विश्लेषणात्मक बुद्धि भी कहा जाता है । यह ऐसी बुद्धि होती है जिसमें व्यक्ति आलोचनात्मक ढंग से तथा विश्लेषणात्मक ढंग से सोच पाता है। ऐसी क्षमता अधिक रहने पर शैक्षिक अन्तः शक्ति अधिक होती है।

बहुआयामी बुद्धि एवं इसके अभिप्रेत हार्वड गार्डनर 

हावर्ड गार्डनर ने 1983 में बुद्धि के संप्रत्य को  7 भागों में बांटा था बाद में से संशोधित करके 8 भागों में बांटा ।
गार्डन में अपनी पुस्तक (फ्रेम्स ऑफ माइंड: द थ्योरी ऑफ मल्टीपल इंटेलीजेंस) ने इसे काफी अच्छे से विस्तार पूर्वक बताया है।
गार्डनर ने 1983 में सात वर्ग तथा1998 में 8 वां वर्ग प्राकृतिक बुद्धि दिया था इसलिए अब आठ वर्ग माने जाते हैं। हालांकि कहीं हमें 9 वर्ग भी बताये जाते हैं क्योकि गार्डनर ने वर्ष 2000 में अस्तित्ववादी 2002 में अध्यात्मिक 2004 में नैतिक बुध्दि यह तीन सिध्दांत दिये लेकिन इन्हें स्वीकार नहीं किया गया। इसलिए अब बहुबुद्धि के आठ प्रकार माने जाते हैं।
बुद्धि के 8 भाग निम्न है
1.भाषागत
2.तार्किक गणितीय
3.देशिक
4.संगीतात्मक
5.शारीरिक गति संवेदी
6.अंतर वैयक्तिक
7.अंतः व्यक्ति
8.प्रकृति वादी
 बहु आयामी बुद्धि का सिद्धांत 1983 में गार्डनर द्वारा प्रस्तुत किया गया। गार्डनर ने 7 प्रकार की बुद्धि का चर्चा करते हए यह सिद्धांत दिया। इन 7 प्रकार की बुद्धि का संक्षिप्त वर्णन निम्न प्रकार से है

1. भाषायी बुद्धि : 

इप्रकार की बुद्धि के लोग भाषा के विभिन्न कार्यों को जानना, शब्दों की ध्वनियों, उनका लय व अर्थों के प्रति संवेदनशीलता रखते हैं । इस प्रकार की बुद्धि के लोग कवि, पत्रकार, लेखक, व्याख्यता एवं वकील होते हैं।

2. स्थानिक बुद्धि : 

इस प्रकार की बुद्धि के लोग किसी स्थान का सही प्रत्यक्षीकरण करने ऐसे प्रत्यक्षीकरणों में संशोधन करने तथा उपयुक्त उद्दीपनों की अनुपस्थित में भी दृश्यतात्मक अनुभवों को पुनः सृजित करने तथा अभिव्यक्ति करने की क्षमता रखते हैं। ऐसी बुद्धि वाले
मूर्तिकार, नेवीगेटर, इन्जिनियर,सर्वेयर आदि होते हैं।

 3. तार्किक-गणितिय बुद्धि : 

ऐसी बुद्धि वाले तार्किक श्रृंखला को समझना, तर्क के प्रति संवेदनशील होना, तार्किक प्रारुपों की खोज करने में सक्षम होते हैं। ऐसी
बुद्धि दार्शनिक, वैज्ञानिक, गणितज्ञ में पाई जाती है। 

4. शरीर-गति की बुद्धि : 

ऐसी बुद्धि वाले अभिव्यक्ति हेतु अपने शरीर का कुशलतापूर्वक प्रयोग करने, लक्ष्य केन्द्रित उद्देश्यों के लिए शारीरिक अंगों का कुशलतापूर्वक प्रयोग करने तथा वस्तुओं का कुशलतापूर्वक प्रयोग करने में सक्षम होते हैं। ऐसी बुद्धि वाले नृत्यक, नृत्यांगना, धावक, एथलीट, तैराक, मुक्केबाज, शल्य चिकित्सक आदि होते हैं।बाल विकास एवं शिक्षा शास्त्र

 5. संगीत बुद्धि : 

इस बुद्धि का संबंध संगीतात्मक योग्यता से विशेष रूप से होता है। ऐसी बुद्धि वाले विभिन्न ध्वनियों व स्वरों को निकालने, लय-गति, आरोह,अवरोह तथा सौन्दर्यात्मक ध्वनियों का बोध एवं उन्हें तैयार करने की योग्यता रखते हैं। ऐसी बुद्धि संगीतकार, गायक तथा विभिन्न वाद्य यंत्रों को बजाने वालों में पाई जाती है। 

6. अर्न्त-वैयक्तिक बुद्धि/वैयक्तिक-अन्य बुद्धि


ऐसी बुद्धि वाले मनोभावों को पहचानने तथा उनके अनुसार प्रतिक्रिया करने, स्वभाव एवं अभिप्रेरकों को जानने व प्रदान करने में सक्षम होते हैं। इस प्रकार की बुद्धि चिकित्सक, विक्रय अधिकारी, राजनेता, सामाजिक कार्यकर्ता आदि में पाई जाती है। 

7.आर्न्त-वैयक्तिक बुद्धि/वैयक्तिक बुद्धि :

 इस प्रकार की बुद्धि वाले लोग जटिल आंतरिक भावों में भेद करने, स्वयं की समर्थता, कमियों, इच्छाओं आदि को जानने में सक्षम होते हैं। ऐसी बुद्धि वाले योगी, संत आदि होते हैं।

8.प्रकृति वादी (Naturalistic)-

प्रकृति के बारे में अधिक जानकारी रखने वाले व्यक्ति इसके अंतर्गत आते है जैसे -शिकारी, किसान,पर्यटक आदि।

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1 comment:

  1. बहुत उपयोगी जानकारी है सर

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