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Sunday, March 1, 2020

मापन एवं मूल्यांकन

      
Measurement and Evaluation mulyankan
Measurement and Evaluation mulyankan मापन एवं मूल्यांकन


मापन एवं मूल्यांकन विधियां,  परिभाषा, प्रकार, उद्देश्य


मूल्यांकन=  मापन+मूल्यों का निर्धारण
शिक्षक शिक्षण के आरम्भ से पूर्व कतिपय उददेश्यों का निर्धारण करता हैं। उन उद्देश्यों की प्राप्ति तथा छात्रों में व्यवहारगत परिवर्तनों की उपलब्धि का परीक्षण दो प्रकार से करता है। प्रथम पाठान्तर्गत द्वितीय पठोपरान्त। प्रथमप्रक्रिया में शिक्षण में मध्य बोध, भाव  बोध-विचारविश्लेषणात्मक, भावविश्लेषणात्मक-विकासात्मक-काठिन्यनिवारण-सम्बद्ध प्रश्नों के सफलता के लिए बीच-बीच में पूरक प्रश्नों को पूछकर शिक्षक पाठान्तर्गत मूल्यांकन करता हुआ शिक्षण करता है।
द्वितीय प्रक्रिया में पाठोपरान्त या समाप्ति पर विविध पाठ से सम्बद्ध प्रश्नों को पूछकर शिक्षक अपने उद्देश्य प्राप्ति का पाठ की सफलता का छात्रा की उपलब्धि का परीक्षण करता हैं। छात्रों के ज्ञानात्मक पक्ष का निष्पत्ति या उपलब्धि परीक्षणों द्वारा मापन किया जाता है । परन्तु उनके भावात्मक एवं मनो शारीरिक पक्ष का उपलब्धि परीक्षणों द्वारा मापन कठिन होता है। अतः दोनों पक्षों के मापन हेतु मूल्यांकन अधिक उपयोगी है। क्योंकि मूल्यांकन द्वारा परिणात्मक एवं गुणात्मक पक्ष दोनों की प्राप्ति होती है। 
मापन एवं मूल्यांकन- मापन किसी वस्तु या उपलब्धि का सख्यात्मक ज्ञान है। इसके द्वारा विभिन्न योग्यताओं तथा गुणों के परिमाण के सम्बन्ध के बताया जाता है।
मूल्यांकन द्वारा परिणामात्मक तथा गुणात्मक दोनों ही प्रकार की सूचनाएँ प्राप्त होती है। अर्थात् मूल्यांकन के अन्तर्गत किसी गुण योग्यता अथवा विशेषता का मूल्य निर्धारित किया जाता है।

मूल्यांकन
मापन

मूल्यांकन का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक 



सम्पूर्ण व्यक्तित्व का मूल्यांकन

अंक प्रदान करने के बाद मूल्यों का निर्धारण

संख्यात्मक एवं वर्णात्मक व्याख्या


अनवरत चलने वाली प्रक्रिया

छा़त्र संबंधी सार्थक भविष्यवाणी

मापन का क्षेत्र सीमित




कुछ आयामों को प्रतीक प्रदान

अंक प्रदान करने के आगे कुछ नही

केवल संख्यात्मक व्याख्या



सामयिक जांच हेतु प्रयुक्त


सार्थक भविष्यवाणी संभव नही                       
1.मूल्यांकन एक व्यापक शब्द है जिसमें मापन एव निरीक्षण दोनों,कार्य निहित है।
2. मूल्यांकन का क्षेत्र व्यापक है जिसके अन्तर्गत बालक के शारीरिक मानसिक नैतिक आदि सभी पक्षों को समायोजित किया जाता है।
3.मूल्यांकन एक सतत क्रिया है जिसके द्वारा बालक के व्यावहारिक परिवर्तनों का परीक्षण होता है।
4.मापन द्वारा किसी योग्यता या गुण की मात्रा मापी जाती है। यह संख्यात्मक एवं गुणात्मक दोनों हो सकता है। मूल्यांकन द्वारा यह निर्णय लिया जाता है। अतः कि मापी गई मात्रा उपर्युक्त है या नहीं मूल्यांकन गुणात्मक होता है।
5.मापन मात्रात्मक होता है । मूल्यांकन गुणात्मक0होता है।
6. मापन एक बार में किसी एक पक्ष से सम्बन्धित होता है । मूल्यांकन बहुपक्षीय ।
7.  मापन सकीर्ण है यह मूल्यांकन का एक भाग मात्र है जबकि मूल्यांकन विस्तृत है मापन इसका एक अंग है।
8.  मापन मूल्यांकन का अनिवार्य अंग है। मूल्यांकन के उद्देश्यों की पूर्ति मापन द्वारा होती है।
9.  मूल्यांकन के द्वारा निदानात्मक एवं उपचारात्मक शिक्षण संभव है।
इस प्रकार शैक्षिक मूल्यांकन का अर्थ है- पाठ्यक्रम के उद्देश्यों एवं मूल्यों के प्रति छात्रों की प्रवृति एवं प्रगति का आकलन । मूल्यांकन से ही छात्रों के विषयगत कठिनाईयों का ज्ञान होता है कि उसमें कितनी योग्यता अर्जित की है। ज्ञान, कौशल, अभिरूचि अभिवृति आदि की दृष्टि से क्या प्रगति हुई । तथा भावि शिक्षा के लिए कौनसें आधार निर्धारित हो एवं उसमें कौनसे व्यवहारगत परिवर्तन परिलक्षित होते है। उन समस्त प्रश्नों के उतर प्राप्त करने के लिए मूल्यांकन की प्रक्रिया सतत चलती है । शैक्षिक उद्देश्यों, शैक्षिणानुभव एवं मूल्यांकन में परस्पर सम्बन्ध इस प्रकार प्रकट कर सकते है।
उद्देश्यों का निर्धारण- शिक्षण प्रक्रिया (शैक्षिक अनुभव) मूल्यांकन व्यवहार गतपरिवर्तन मूल्यांकन प्रक्रिया।
सर्वप्रथम शिक्षक उद्देश्यों का निर्धारण करता है । तत्पश्चात् विभिन्न विधियों से प्रविधियों से दृश्यश्रव्य उपकरणों का प्रयोग करता हुआ इन उद्देश्यों की प्राप्ति के प्रति उन्मुख होता है। एवं पाठ की सफलता के परिक्षण के लिए मूल्यांकन करता है।

~मूल्यांकन की पद्धतियां

Methods of evolution
Methods of evolution मूल्यांकन की प्रविधियां



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 भारत में मूल्यांकन के क्षेत्र में नवचिन्तन स्वतन्त्रता प्राप्ति के उपरान्त सर्वप्रथम् 1948 ई. में आचार्य नरेन्द्र देव समिति ने मूल्यांकन में सूची अभिलेखपत्र, प्रयोगिक मौखिक लिखित परीक्षा, बुद्धि का अभियोग्यतात्मक परीक्षण की परीक्षा एवं एक विभाग को प्रारम्भ करने की अनुशंसा की।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने परम्परागत परीक्षण उचित नहीं माना।
माध्यमिक शिक्षा आयोग 1952-53 मूल्यांकन हेतु सुझाव दिये।
बाह्य परीक्षा अल्प होनी चाहिए निबन्धात्मक परीक्षा की अपेक्षा वस्तुनिष्ठ परीक्षण होना चाहिए।
बालक के सर्वाङ्गीण प्रगति के परीक्षण के लिए और छात्र के भविष्य के निर्णय के लिए विद्यालयों में अभिलेखों की व्यवस्था करनी चाहिए।
आन्तिरिक मूल्यांकन को महत्व देना चाहिए।
माध्यमिक स्तर के अन्त में केवल एक बाह्य परीक्षा होनी चाहिए।
अखिल भारतीय माध्यमिक शिक्षा परिषद् 1956 से निम्न सुझाव दिये। A-35 तीन प्रकार के प्रश्न प्रश्न पत्रों में हो-1. निबन्धात्मक 2.लघुत्तरात्मक 3. शुद्धरूप वस्तुनिष्ठप्रश्न प्रश्नपत्रों के मूल्यांकन समिति के निर्देशानुसार हो।
विद्यालय में सत्रीय कार्य के अभिलेख एवं बाहरीपरीक्षा के निर्णय में असमानता को दूर करने हेतु कार्य किया गया जिसमें शिकागोविश्वविद्यालय के परीक्षाविभाग के अध्यक्ष डॉ. बैजामिन एस. ब्लूम महोदय के शैक्षिक उद्देश्यों को अधिगमानुभावा को एवं मूल्यांकन कार्यप्रणाली को स्वीकार किया तथा भारत में 6 मूल्यांकन कार्यशालाओं का सञ्चालन किया। 1961 में राष्ट्रीय प्रशिक्षण अनुसंधान परिषद की स्थापना के साथ परीक्षा सुधार हेतु राष्ट्रीय मूल्यांकन यूनिट (एकाकानां) की स्थापना की। 1963 में परीक्षा सुधार कार्यकर्ताओं के लिए समिति गठित की गई। 1964 में एन. सी. ई. आर. टी एवं राजस्थान माध्यमिक शिक्षा परिषद् अजमेर ने परीक्षा सुधार हेतु एक-एक योजना स्वीकार की।
शिक्षा आयोग-1964-66 के सुझाव
मूल्यांकन के नवीनदिशा में लिखित परीक्षा में सुधार करना चाहिए ताकि मापन विश्वसनीय हो ।
प्राथमिकस्तर में मूल्यांकन से मूलभूत कौशलों में उपलब्धि, प्रवृति एवं दृष्टिकोण का विकास हो । उच्चतर प्राथमिक स्तरपर छात्रोपलब्धि परीक्ष के लिए त्रिविध परीक्षा लिखित, मौखिक एवं निदानात्मक होनी चाहिए। वाह्य परीक्षा प्रणाली के प्रश्न पत्रों के स्वरूप को सुधार होना चाहिए। आन्तरिक परीक्षण व्यापक होना चाहिए। कुछ प्रयोगात्मक विद्यालयों की स्थापना करनी चाहिए।
व्यापक मूल्यांकन कार्यक्रम क्रियान्वय के लिए राज्यस्तर पर राज्यविद्यालय शिक्षामण्डल एवं केन्द्र में राष्ट्रिय विद्यालय शिक्षामण्डल की स्थापना की जाए।
राष्ट्रिय शिक्षा नीति कार्य योजना 1968-के सुझाव
विद्यार्थी अपनी पुस्तिका देख रखता है।
सततगतिशील संस्थागत-मूल्यांकन कार्य के लिए विद्यालय में सुविधा होनी चाहिए।
1971 में वी. के. आर. वी. राव समिति ने आन्तरिक एवं ब्राह्म मूल्यांकन प्रमाणपत्र पर पृथक-पृथक चिह्नित करने पर बल देना चाहिए।
1975 में एन. सी. ई. आर. टी ने आन्तरिक मूल्यांकन के उपर बल दिया जिससे बाह्य परीक्षण के उन्मूलन हो सकेगा। 1976 में एकाकानसार पद्धति में उपर से दो से 6 तक की संख्या अंकित करने पर जोर दिया । उक्त समस्त परीक्षा पद्धतियों में सर्वमान्य एवं परिष्कृत रूप ग्रेड प्रणाली (ग्रेड सिस्टम) है।
मूल्यांकन हेतु आवश्यक जानकारी जरुर हों
जैसे

सामान्य सूचना, विद्यालय जीवन, परिवार और समाज का वातावरण,स्वास्थ्य, सफलता, मानसिक योग्यता,अभियोग्यता, रूचि, व्यक्तित्व, समायोजन आदि

Methods of evolution
मूल्यांकन में सूचना प्राप्त करने की विधियां




अच्छे मूल्यांकन परीक्षण की विशेषताएँ

1. वस्तुनिष्ठता (Objectivity)-

बालकों के प्राप्तांको पर किसी व्यक्तिगत रुचि का प्रभाव न पड़े। प्रश्नों के उत्तर अलग-अलग न होकर केवल एक ही होंगे। कोई भी परीक्षण मूल्यांकन कर छात्र की उपलब्धि हमेशा समान आए।

2.  विश्वसनीयता (Reliability)-

व्यवहार में शुद्धता एवं संगति (Accuracy & Consistancy) एक परीक्षण की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता उसकी विश्वसनीयता है यानि शुद्धता से मूल्यांकन होना। एक परीक्षण को एक समूह पर बार-बार देने पर तथा परीक्षक विभिन्न समय पर अंकन करने पर भी बालकों के प्राप्तांकों में अन्तर न आए। मापन की यथार्थता व संगति दोनों से संबंध।

3. वैधता (Validity)-

कोई परीक्षण कितनी शुद्धता से, सार्थकता से किसी बालक की योग्यताओं का आंकलन करता है अच्छ परीक्षण-विषय वस्तु के अनुकूल हो अर्थात् उसके द्वारा वही मापा जाए जिसके मापन हेतु उसे प्रयोग किया गया है। अभीष्ट लक्ष्य का मूल्यांकन हो।

4.  विभेदकारिता-

प्रतिभाशाली, सामान्य व कमजोर छात्रों में भेद करे।

5. व्यापकता-

अधिक से अधिक तथ्यों प्रकरणों को सम्मिलित करने से।

6. व्यवहारिकता-

प्रश्न पत्र बनाने में सरलता, परीक्षा प्रशसित करने में सरलता, अंक प्रदान करने मूल्यांकन में सरलता

7.  स्पष्टता-

प्रश्नों की भाषा सरल स्पष्ट पठीय समझने योग्य निर्देश संक्षिप्त, स्पष्टता, निश्चितता।

8. मानक-

मानक का अर्थ तुलना का प्रतिमान है इससे समूह में बालक विशेष की स्थिति सम्बंधी परस्पर तुलना। आयुमानक, श्रेणी मानक आदि।
मापन एवं मूल्यांकन के उद्देश्य एक नजर में
मूल्यांकन
1.पूर्व कथन तथा भविष्यवाणी
2. परामर्श एवं निर्देशन
3. तुलना
4. संशोधन
5. निदान
6. वर्गीकरण
7. अनुसंधान
मापन
1.बालक को समझना
2.शिक्षण विधि में सुधार
3.पाठ्यक्रम में संशोधन
4.विद्यालय प्रशासन में सुधार
5.व्यक्तिगत विभिन्नता का ज्ञान
6.कक्षा कक्ष तथा वर्ग निर्माण
परीक्षा के प्रकार
1.मौखिक परीक्षा
2.लिखित परीक्षा
अ निबंधात्मक
ब लघुतरात्मक
स वस्तुनिष्ठ
*1प्रत्यास्मण
रिक्त स्थान , साधारण स्मृति प्रश्न
*2.अभिज्ञान
बहु विकल्प, तुलनात्मक,सत्य असत्य, वर्गीकरण प्रश्न
3.प्रायोगिक परीक्षा
याद रखें------
*विश्वनियंता और वैधता वस्तुनिष्ठ परीक्षा में अधिक होती है।
*प्रायोगिक परीक्षा खर्चीली होती है।
• निबंधात्मक परीक्षा में वैषयिकता की प्रधानता और स्मरण शक्ति ,भाव प्रकाशन का सहज मूल्यांकन किया जाना सरल है

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