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Sanskrit bhasha shikshan avm samasya |
संस्कृत भाषाा शिक्षण सिद्धांत
वर्तमान काल में मनोविज्ञान का क्षेत्र प्रतिदिन व्यापक होता जा रहा है। मनोविज्ञान के क्षेत्र में भाषा शिक्षण का भी अनुसन्धान प्रचलित है। इस अनुसन्धान से प्राप्त कुछ निकर्षों को अति उत्तम संस्कृत शिक्षण में प्रयोग कर सकते हैं। शिक्षा शास्त्रियों एवं भाषा वैज्ञानिकों ने भाषा के पठन पाठन हेत कछ सिद्धान्तों जैसे-निरीक्षण अभ्यास अनुकरण एवं अनुसंधान आदि की रचना की है। किन्तु इसके अतिरिक्त भी कुछ साधारण सिद्धान्त संस्कृत शिक्षण हेतु है। इनके ज्ञान से निःसन्देह अध्यापक को लाभ होता है। शिक्षण में अध्यापक को बालक की रुचियों, योग्यताओं, क्षमताओं एवं आवश्यकताओं का ध्यान रखना जरूरी है। ये ही शिक्षण के सामान्य सिद्धांतकहे जाते हैं जो इस प्रकार हैं
1. रुचि एवं अभिप्रेषण का सिद्धांत
बच्चे की शिक्षण में रुचि
2. क्रियाशीलता का सिद्धांत
बच्चे का सक्रिय रहना
3. ज्ञान को जीवन से संबंधित करने का सिद्धांत
दैनिक अनुभव
4. स्वाभाविकता का सिद्धांत
भयमुक्त, बनावटीपन नहीं
5. बोलचाल का सिद्धांत
सुनना फिर बोलना
6. व्यक्तिगत विभिन्नता का सिद्धांत
व्यक्तिगत योग्यता
7. निश्चित उद्देश्य
क्या सिखाना है
8. अभ्यास का सिद्धांत
बार-बार कई तरह से कार्य करवाना
9. चयन का सिद्धांत
योग्यतानुसार-विधि, सामग्री आदि का चयन
10. नियोजन का सिद्धांत
योजना बनाना
11. आवृत्ति का सिद्धांत
बार-बार वही कार्य वैसे ही करवाना
12. बहुमुखी प्रयास का सिद्धांत
अनेक प्रकार से शिक्षण करवाना
13. अनुकरण का सिद्धांत
अनुकरण द्वारा
14 शिक्षण सूत्रों पर आधारित हो
सरल से कठिन की ओर
15. बालकेन्द्रित का सिद्धांत
बालक का स्तर एवं रुचि को ध्यान में रखकर
16. अनुपात एवं क्रम का सिद्धान्त
भाषा शिक्षण संबंधी समस्याएँ
1. संस्कृत शिक्षक को उचित महत्त्व न देना।
2. दोषपूर्ण शिक्षण विधियाँ
3. उचित पाठ्यक्रम तथा पाठ्यपुस्तकों का अभाव
4. अभिरुचि का अभाव
5. संस्कृत के प्रति भावात्मक संबंध का अभाव
6. भाषा प्रयोगशालाओं का अभाव
7. उच्चारण, वर्तनी, वाचन व लेखन संबंधी त्रुटियों के निराकरण की समस्या
8. उपचारात्मक शिक्षण का अभाव
9. योग्य संस्कृत शिक्षकों का अभाव
स्वभाविकता का सिद्धान्त- भाषा एक जन्मजात प्रवृत्ति है। यही कारण है कि बालक में भाषा सीखने की प्रवति जन्मजात होती हैं अतः बालक मातृभाषा को सरलता से सीखता है। किसी भी भाषा को शिक्षण के लिए चार कौशलों का स्वभाविक क्रम होता है। श्रवण भाषण परत एवं लेखन। भाषाशिक्षण के इस स्वभाविक प्रवृति का उपयोग संस्कृत शिक्षण में सहायक होता है। अत: संस्कृत शिक्षण में निम्न बिलों का रखना चाहिए।
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