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Sunday, January 8, 2023

Smallest- Largest Object in Universe: ब्रह्माण्ड में मानव की अब तक सूक्ष्म और विशालतम संरचना की खोज

the universe
ब्रह्माण्ड में मानव की पहुंच  Man's Journey into the Universe


ब्रह्माण्ड में मानव की पहुंच 

table of contents

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जब से पृथ्वी पर इंसान का आगमन हुआ तभी से इंसान सभ्य होना शुरू हुआ था शनै शनै प्रगति करते हुए अपने जीवन के विभिन्न पहलुओं को सुधारता गया जब हमारा पहला मानव धरती पर आया था तब उसके पास कुछ नहीं था नंगा जंगल में घूमता रहा लम्बे समयांतराल के बाद उसने अग्नि और पत्थर के उपकरण बनाने शुरू किए पेड़ों के पत्तों से तन ढकना शुरू किया तथा अपने जीवन स्तर को सुधारने में लग गया। इस ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति तथा पृथ्वी के निमार्ण की तुलना में हमारा मानव ज्यादा पुराना नहीं है। आधुनिक मानव का इतिहास तो 5-10 लाख पुराना है लेकिन इस ब्रह्माण्ड और हमारी पृथ्वी के निमार्ण को तो अरबों खरबों वर्ष बीत गए है। डायनासोर युग को करोड़ों वर्ष बीत गए है तो हम कल्पना नहीं कर सकते कि यह ब्रह्मांड कितना पुराना होगा। लेकिन जब से मानव पृथ्वी पर आपना विकास शुरू करता है तो वो विभिन्न अविष्कार शुरू करता है तथा आधुनिक युग तक वो समुद्र तल से चंद्रमा, मंगल ग्रह तथा ब्राह्मण में सूर्य तथा आकाशगंगाओं और सुपर क्लस्टर तक के सिद्धांत विकसित कर चुका है। मानव ने में क्रमिक विकास में उन्नत तकनीकी का विकास किया ही साथ ही इस ब्रह्माण्ड के रहस्यों से पर्दा उठाने में हमेशा तत्पर रहा है। मानव ने अनन्त ब्रह्माण्ड में करोड़ों प्रकाश वर्षों की दूरी में स्थित विभिन्न प्रकार की वस्तुओं को शक्तिशाली और उन्नत दूरबीनों से देखा है तथा उनके सिद्धान्त विकसित किए हैं। जिसमें सूर्य, तारों का जीवन, क्लस्टर, आकाशगंगाए ,क्वासर,ब्लेक हाॅल, ग्रह,उपग्रह तथा विचित्र संरचनाओं के समुहों का विश्लेषण कर उनका नामकरण किया है। आइए जानते हैं मानव में दिमाग़ का अभी तक कितना स्तेमाल किया है तथा सबसे विशाल और सबसे सूक्ष्म क्या खोजा है  कहा जाता है कि बहुत सारी क्रांतिकारी खोजों के लिए प्रसिद्ध साइंटिस्ट अल्बर्ट आइंस्टीन ने अपने दिमाग का 13 प्रतिशत उपयोग किया था जबकि सामान्य व्यक्ति सिर्फ 1-2 प्रतिशत का उपयोग कर सकता है। तो हम समझ सकते हैं कि मानव जब अपने दिमाग का 90% उपयोग करेगा तथा खरबों वर्ष बाद वह कहां तक पहुंच जाएगा यह मुश्किल कल्पना है। ब्रह्माण्ड और इससे जुड़े रहस्यों का मानव ने अभी तक 0.001 प्रतिशत ही खोजा है तथा इतना ही अपनी क्षमताओं का विकास किया है। लेकिन आज के कंम्पयूटर युग और अंतरिक्ष यात्राओं तक हमने बहुत प्रगति की है हालांकि पूरे ब्रह्मांड की तुलना में यह कम लग रही हो लेकिन एक सामान्य व्यक्ति और उसकी सभ्यता में बहुत बड़ी प्रगति मानी जा सकती हैं। आइए जानते हैं मानव जाति ने अब तक सबसे सूक्ष्म और सबसे विशालकाय क्या खोजा है।




ब्रह्माण्ड की सबसे सूक्ष्म वस्तु microscopic object of the universe discovered by human


हम जानते हैं कि हमारा तथा सभी संजीवो का शरीर उतकों तथा सबसे छोटी इकाई कोशिकाओं से बना है इसी तरह पृथ्वी और ब्रह्मांड में मौजूद सभी पदार्थ और संरचनाएं किसी न किसी सूक्ष्म कणों से बनी है। आधुनिक मानव और इनकी तकनीक ने कोशिकाओं की सूक्ष्म संरचनाओं का जाना है जिसमें डीएनए और जीन्स का पता लगाया है तथा इससे सूक्ष्म संरचनाओं में डीएनए की संरचना तथा इसके मूलभूत निमार्ण से जुड़े प्रोटीन तथा कार्बनिक पदार्थों के कणों की भी खोज की है। इस प्रकार मानव ने अब तक पाया कि  हमारे आसपास की संरचनाएं जिन मूलभूत चीज़ों  से बनी है वो  विभिन्न प्रकार के क्वार्क है, हमने सबसे सूक्ष्म कण अणु को खोजा फिर इससे छोटे कण परमाणु को खोजा यहां तक मानव ने परमाणु की संरचना को भी परिभाषित किया और बताया कि इनकी संरचना क्वार्क से बनती है जिसमें 12 तरहां के क्वार्क होते हैं जिनमें 6 तरह के तो क्वार्क (Quarks)  प्रोटोन और न्यट्रोन बनते हैं और बाकीं के 6 लेप्टोन्स (Leptons)  होते हैं जिनसे इलेक्ट्रोन का निर्माण होता है। यही 12 Blocks मिलकर के इन तीन प्रारंभिक पार्टिकल यानि की ऐलिमेंटरी पार्टिकल को बनाते हैं जिनसे यह Universe बना है। इससे छोटे और मूलभूत कण को जानने के लिए जेनेवा में लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर (LHC) परियोजना में उस सूक्ष्मतम कण की खोज के लिए प्रयोग किया गया जिसमें हिग्स बोसोन हिग्स क्षेत्र से जुड़ा प्राथमिक कण खोजना था। यह एक ऐसा क्षेत्र है जो क्वार्क और इलेक्ट्रॉन जैसे अन्य उप-परमाणु कणों को द्रव्यमान प्रदान करता है। दूसरे शब्दों में, यह हिग्स क्षेत्र का बोसोन या वाहक कण है जो अंतरिक्ष को भरता है और सभी प्राथमिक कणों को उनके साथ परस्पर क्रिया के माध्यम से द्रव्यमान से लैस करता है। इस कण की खोज का भी प्रयास किया जिसमें उस god particle तथा इस ब्रह्माण्ड के मूलभूत तत्व का पता लगाया कि आखिर इस संरचना का मूलभूत प्रारंभ कहां से है। इस प्रकार उस कण की पुष्टि की जो कण भौतिकी के मानक मॉडल में, हिग्स बोसोन (ईश्वर कण के रूप में भी जाना जाता है), प्राथमिक कण है जो जल्दी से क्षय होता है, यह बहुत अस्थिर है, इसका कोई विद्युत आवेश नहीं है और शून्य स्पिन है यह परमाणुओं में इलेक्ट्रान,प्रोटोन और न्युट्रोन से पहले की अवस्था है जो एक परमाणु की संरचना विकसित करते हैं। यह खोज अब तक सूक्ष्म संरचना से सम्बंधित थी। इसी क्रम में स्ट्रिंग थ्योरी (String Theory) सामने आई  जिसमें बताया गया कि इस ब्रह्मांड में बना हर मैटर और हर वह वस्तु जो इसकी वास्तिवकता का अनुभव कराती है वह स्ट्रिंग से ही बनी है। इसे ब्रह्मांड की सबसे छोटी चीज़ भी कहा जाता है जिसका आकार एक एटम से कई खरब गुना छोटा होता है। उदाहरण के लिए अगर एटम हमारा सौर मंडल है तो एक स्रिटिंग एक पेड़ के बराबर के साइज का है।
इससे आगे मानव अभी तक आगे नहीं बढ़ा है भविष्य में हो सकता है कि मानव यह भी जान लें की ब्रह्मांड की संरचना तथा उत्पत्ति किस अन्तिम क्षण से हुई और यह कण कहा से आया।

कार्बनिक परमाणु से कोशिका - क्वार्क संरचना<प्रोटोन <न्युट्रान< इलेक्ट्रान  आवरण एवं नाभिकीय इलेक्ट्रान<कार्बन नाभिक carbon nucleus <डी एन ए नाभिक DNA nucleus<कोशिका/ पदार्थ केन्द्रक<कोशिका संरचना<उतक<शरीर इकाई 


ब्रह्माण्ड की सबसे विशालतम वस्तु Largest object in the universe discovered by human 


मानव ने इस पृथ्वी पर संजीव और निर्जीव संरचनाओं के सूक्ष्मतम कणों जिसमें  परमाणु Atom Facts ,अणु, कार्बनिक यौगिक, तत्वों तथा जीन डीएनए और कोशिकाओं से सफर शुरू कर पृथ्वी की भौगोलिक तथा आंतरिक संरचना के बाद अंतरिक्ष में चंद्रमा सहित सौरमंडल और इसके गृहों से आगे ब्रह्माण्ड के उन दूरस्थ क्षेत्रों की खोज की जहां प्रकाश को पहुंचने में खरबों वर्ष लग जाते हैं। हालांकि इंसान अपने एक जीवन काल में वहां पहुंच तो नहीं सकता लेकिन कुछ मशीनों को भेजकर उनकी जानकारी जरुर जुटा सकता है। हाल ही में खगोलविदों ने ब्रह्मांड में सबसे दूर स्थित तारा खोजने के बाद अब तक की सबसे दूर स्थित आकाशगंगा (गैलेक्सी) का पता लगाया है। उन्होंने इसे एचडी1 नाम दिया है। यह पृथ्वी से 13.5 अरब प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित है। खगोलविदों का कहना है कि इसका निर्माण बिग बैंग के बाद हुआ है। आइए जानते हैं हमारे मानव ने अब तक सबसे विशालतम ओब्जेक्ट क्या खोजा है। 

सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड एवं बिग बैंग थ्योरी Big Bang theory and univers


सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड अनन्त है इसके पूरे विस्तार को समझना नामुमकिन है लेकिन हमारे ग्रह पृथ्वी और सौरमंडल से दूर हमारे मानव जो जाना है वो भी बहुत विस्तृत और विचित्र है। ब्रह्माण्ड की अन्तिम परिधि को तो जानना हमारी कल्पना से भी दूर है लेकिन इस विकसित हो रहे ब्रह्माण्ड के निर्माण के सिद्धांत प्रतिपादित हुए हैं उनमें बिग बैंग सिद्धांत आजतक का सर्वमान्य सिद्धांत माना जा रहा है।बिग-बैंग मॉडल , व्यापक रूप से ब्रह्मांड के विकास का सिद्धांत माना जाता है । इसकी आवश्यक विशेषता ब्रह्मांड का अत्यधिक उच्च तापमान और घनत्व की स्थिति से उभरना है ‌। माना जा रहा है कि बिग बैंग या महा विस्फोट के बाद ब्रह्माण्ड अस्तित्व में आया तथा अभी विकसित हो रहा है। तथाकथित बड़ा विस्फोट जो अनुमानित 13.8 अरब साल पहले हुआ था। जार्ज लेमैत्रे (1927) ने ही ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के संदर्भ में इसी सिद्धांत का प्रतिपादन किया था, जिसे बिग बैंग सिद्धांत कहा जाता है। उसके बाद एडविन हबल ने बताया कि बिग बैंग, बम विस्फोट जैसा विस्फोट नहीं था बल्कि इसमें, प्रारंभिक ब्रह्मांड के कण, समूचे अंतरिक्ष में फैल गए और एक दूसरे से दूर भागने लगे। इसप्रकार ब्रह्मांड का निरंतर विस्तार हो रहा है। हालांकि यह सब ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति की परिकल्पनाएं है, हमारे हजारों सवालों के जवाब अधुरे है कि ब्रह्मांड का अन्तिम छोर कहा है? ब्रह्माण्ड कितना बड़ा है? ब्रह्माण्ड के अलावा और कितने ब्रह्माण्ड हो सकते हैं? यह सब प्रश्न बेतुके है क्योंकि ब्रह्माण्ड के बारे में सम्पूर्ण जानकारी सम्भव भी नहीं है।
लेकिन असल में हमारे बुद्धिजीवी मानव ने क्या देखा और अभी तक क्या समझा है इसे क्रमिक रूप से समझते हैं।


आकाशगंगाओं के क्लस्टर का समुह Super cluster and Galactic supercluster


अवलोकन योग्य ब्रह्मांड में मानव ने दूरबीनों तथा अंतरिक्ष यानों के माध्यम से अनेक परिकल्पनाएं विकसित कर अब तक ब्रह्माण्ड की सबसे बड़ी संरचना आकाशगंगाओं के समुहों को समझा है इन समुदायों में लाखों करोड़ों आकाशगंगाए होती है इन आकाशगंगाओं में असंख्य तारें या पिंड होते हैं जैसे हमारा सूर्य है। हमारे अवलोकन योग्य ब्रह्मांड में लगभग सुपरक्लस्टर की संख्या 10 मिलियन होने का अनुमान है। एक सूपर क्लस्टर अनेक आकाशगंगाओं का समुह होता है असंख्य आकाशगंगाओं के क्लस्टर का समुह मिलकर एक सूपर क्लस्टर का निर्माण करते हैं जो ब्रह्माण्ड की सबसे बड़ी संरचना होती है इनका आकार 10 करोड़ प्रकाश वर्ष से 100 करोड़ प्रकाश वर्ष तक हो सकता है।
आकाशगंगाएँ ब्रह्मांड की निर्माण इकाईयाँ हैं जिनमें बड़ी संख्या में तारे विद्यमान होते हैं । सामान्य आकाशगंगा समूहों में 3-20 आकाशगंगाएं हो सकती हैं तथा इनकी प्रचुर संरचना को ‘क्लस्टर’ कहा जाता है। जैसे हमारा मिल्की वे एक स्थानीय आकाशगंगा समूह है जिसमें 54 से अधिक आकाशगंगाएँ हैं यह सब मिलकर कन्या सुपरक्लस्टर का हिस्सा बनते है, यह असंख्य आकाशगंगाओं का विशाल समुह लानियाकिया सुपरक्लस्टर का हिस्सा बनते हैं। इस प्रकार सूपर क्लस्टर ही ब्रह्माण्ड की अब तक की  ज्ञान विशाल संरचना है इससे बड़ी संरचना की अब तक कोई कल्पना नहीं की जा सकी है। आकाशगंगा क्लस्टर में सैकड़ों आकाशगंगाएँ होती हैं| हालांकि ब्रह्मांड में अनेक सूपर क्लस्टर मौजूद है इस प्रकार आकाशगंगाओं को लेकर एक ग्रुप का निर्माण होता हैं। फिर कई हजारों ग्रुप्स मिलकर एक “क्लस्टर” (Cluster) को बनाते हैं और बाद में कई सैकड़ों हजारों क्लस्टर मिलकर एक सुपरक्लस्टर (Supercluster) को बनाते है। ब्रह्मांड में कई अरबों सुपरक्लस्टर मौजूद हो सकते हैं, जिनको की वैज्ञानिक आज धीरे-धीरे खोज रहें है। वैज्ञानिकों के लिए सबसे कठिन और अभी तक हमारी पहुंच से बाहर है वो इंटरस्टेलर स्पेस (अंतरखगोलीय)  है , ब्रह्माण्ड में वह सूदूर जगह जो तारों के बीच होती है उसे हम इंटरस्टेलर स्पेस कहते हैं। यह अक्सर तारों के बीच का स्पेस होता है, हम हमारे सूर्य के हेलिओस्फीयर और अन्य सितारों के एस्ट्रोस्फीयर के बीच के क्षेत्र को इंटरस्टेलर स्पेस कहते हैं।
प्रमुख आकाशगंगाओं के क्लस्टर 
लानियाकिया सुपरक्लस्टर
हाइड्रा-सेंटौरस सुपरक्लस्टर
कन्या सुपरक्लस्टर
पावो-सिंधु सुपरक्लस्टर
दक्षिण सुपरक्लस्टर
सरस्वती सुपरक्लस्टर

गेलेक्सी क्लस्टर


आकाशगंगा समुह वो होता है जो सेकंडों आकाशगंगाए आपस में एक समुह बनाते हैं हांलांकि ऐसे समुह में आकाशग़गाए कम और अदृश्य स्थान डार्क मैटर ज्यादा होता है। इन आकाशगंगाओं का विशाल समुह 32-160 लाख प्रकाश वर्ष की सीमा तक फैले होते हैं। इन्हीं आकाशगंगाओं के क्लस्टर का समुह मिलकर एक सूपर क्लस्टर का निर्माण करते हैं जो ब्रह्माण्ड की सबसे बड़ी संरचना होती है इनका आकार 10 करोड़ प्रकाश वर्ष से 100 करोड़ प्रकाश वर्ष तक हो सकता है। मिल्की वे और एद्रोमेदा (देवयानी आकाशगंगा) एक गैलेक्सी क्लस्टर ही जो Virgo super cluster का हिस्सा है यह सब एक super cluster के अंदर आते हैं जिसे Laniaeka ultra super Cluster कहा जाता है।
आकाशगंगा क्या है?
आकाशगंगा (Galaxy) ब्रह्मांड में लगभग 100 अरब आकाशगंगाएँ हैं। आकाशगंगा असंख्य तारों का एक विशाल पुंज होता है, जिसमें एक केन्द्रीय बल्ज (Bulge) एवं तीन घूर्णनशील भुजाएँ होती हैं। ये तीनों घूर्णनशील भुजाएँ अनेक तारों से निर्मित होती हैं। बल्ज, आकाशगंगा के केन्द्र को कहा जाता है। यहाँ तारों का संकेन्द्रण सर्वाधिक होता है। प्रत्येक आकाशगंगा में लगभग 100 अरब तारे होते हैं। आकाशगंगाओं के प्रतिसरण नियम का प्रतिपादन एडविन पी. हब्बल ने वर्ष 1920 में किया था। लिमन अल्फा ब्लॉब्स, अमीबा के आकार की एवं 20 करोड़ प्रकाश वर्ष चौड़ी विशालकाय आकाशगंगाओं और गैसों का समूह है। इस विशालकाय संरचना की आकाशगंगाएँ ब्रह्मांड में उपस्थित अन्य आकाशगंगाओं की अपेक्षा एक-दूसरे से चार गुनी ज्यादा निकट हैं।

एंड्रोमेडा हमारी आकाशगंगा के सबसे निकट की आकाशगंगा है, जो हमारी आकाशगंगा से 2.2 मिलियन प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित है। हमारी आकाशगंगा को मंदाकिनी कहा जाता है। इसकी आकृति सर्पिल ( Spiral) है। मिल्की वे रात के समय दिखाई पड़ने वाले तारों का समूह है, जो हमारी आकाशगंगा का ही भाग है। ऑरियन नेबुला हमारी आकाशगंगा के सबसे शीतल और चमकीले तारों का समूह है। हमारी आकाशगंगा का व्यास एक लाख प्रकाश वर्ष है।

आकाशगंगाओं के समूह या शृंखलाओं को सुपरक्लस्टर कहा जाता है। सरस्वती सुपरक्लस्टर ब्रह्माण्ड में अब तक ज्ञात सर्वाधिक वृहद संरचनाओं में से एक है।

सूर्य हमारी आकाशगंगा का एक तारा है। यह आकाशगंगा की परिक्रमा 200 मिलियन (20 करोड़) वर्षों से भी अधिक समय में कर रहा है। प्लेनेमस सौरमंडल से बाहर बिल्कुल एक जैसे दिखने वाले जुड़वा पिंडों का एक समूह है। साइरस या डॉग स्टार पृथ्वी से 9 प्रकाश वर्ष दूर स्थित हैं तथा सूर्य के दोगुने द्रव्यमान वाला तारा है। यह सूर्य से 20 गुना अधिक चमकीला है एवं यह रात्रि में दिखाई पड़ने वाला सर्वाधिक चमकीला तारा है। प्रॉक्सिमा सेन्चुरी (Proxima Centauri) सूर्य का निकटतम तारा है। यह सूर्य से 4.3 प्रकाश वर्ष दूर है। गैलीलियो ने सन् 1609 में पहली बार दूरबीन का प्रयोग करते हुए रात में आकाश का अध्ययन किया। उन्होंने ऐसे तारों की पहचान की जिन्हें नंगी आँखों से नहीं देखा जा सकता है।

क्वासर गैलेक्सीय नाभिक 


क्वासर ब्रह्माण्ड में अब तक खोजे गए सबसे दूरस्थ पिण्ड हैं। खगोलविद इनकी दूरी का पता उनके प्रकाश के वर्णक्रम (spectrum of  light) से लगाते हैं। यह संरचनाएं तारकीय गतिविधियो की बजाय शक्तिशाली रेडीयो तरंगो के स्रोत होते है।इसी कारण से उन्हे क्वासी-स्टेलर-रेडीयो-सोर्स(QUASAR) नाम दिया जाता है। जिसका अर्थ है तारे के जैसा रेडीयो स्रोत। ये अत्याधिक दीप्तीमान पिंड होते है।  विशाल आकाशगंगाओ के केंद्र मे क्वेसर के बीच में एक महाकाय ब्लैक होल होता है। सैद्धांतिक रूप से क्वासर और अन्य प्रकार के सक्रिय आकाशगंगीय नाभिको(Active Galactic Nuclei) मे इन महाकाय ब्लैक होल के आसपास एक गैसीय अक्रिशन डिस्क(accretion disk) होती है। जब भी गैस इन ब्लैक होल की ओर समाहित होती है तब विद्युत चुंबकीय विकिरण के रूप मे ऊर्जा का उत्सर्जन होता है।
यदि इस स्पेक्ट्रम का रंग लाल रंग की ओर स्थानांतरित हो रहा है तो इसका मतलब वह वस्तु हमसे दूर जा रही है। रेड शिफ्ट जितनी अधिक होगी, वह वस्तु उतनी तेजी से हमसे दूर जा रही होगी। क्वासर की रेड शिफ्ट बहुत उच्च पाई जाती है, जिसका अर्थ है वह बहुत तेजी से हमसे दूर जा रहा है। ऐसा माना जाता है कि कुछ क्वासर 240,000 किमी. प्रति सेकंड की गति से हमसे दूर जा रहे हैं, यानि प्रकाश 80% की गति से। क्वासर हमसे इतनी दूर हैं कि उनका प्रकाश हम तक पहुँचने में अरबों साल लगते हैं। हमारे  सबसे नजदीक का क्वासर भी हमसे 10 अरब प्रकाश वर्ष दूर है, इसका अर्थ यह हुआ की हम उसके उस प्रकाश को देखते हैं जो उसने 10 अरब वर्ष पूर्व उत्पन्न किया था। यह भी संभव है की वह क्वासर अब अस्तित्व में ही न हो। क्वासर वास्तव में क्या हैं यह हमें अभी तक पता नहीं है।
सबसे पहले जिस क्वासर की पहचान की गयी थी उसका नाम 3C 273 है, जो कन्या (virgo) नक्षत्र में स्थित था। इसकी खोज 1960 में टी.मैथ्यू और ए.सैन्दाग (T. Matthews and A. Sandage) ने की थी। आज तक 2000 से भी ज्यादा क्वासर की खोज की जा चुकी है। हबल टेलिस्कोप ने इनकी खोज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
क्वासर ब्रह्माण्ड में सबसे दूरस्थ और सबसे चमकीले तारे हैं। 1960 तक क्वासर को रेडियो तारे कहा जाता था,क्योंकि ये रेडियो तरंगों के एक शक्तिशाली स्रोत थे। क्वासर शब्द "quasi-stellar radio source" के संक्षेप से बना है। जैसे जैसे हमारे रेडियो और ऑप्टिकल दूरबीन बेहतर होते गए, हमें पता चला ये वास्तव में तारे नहीं, बल्कि तारे जसे ही कोई पदार्थ हैं। ये हमारी आकाशगंगा से बहार स्थित हैं। हमें अभी भी नहीं पता है की ये वास्तव में क्या हैं। हमें सिर्फ इस बात की जानकारी है की ये बहुत बड़ी मात्रा में उर्जा का उत्सर्जन करते हैं।  इनकी उर्जा एक खरब सूर्य के बराबर होती है। कुछ क्वासर की उर्जा हमारी सम्पूर्ण आकाशगंगा की उर्जा से भी 10 से 100 गुना ज्यादा हो सकती है, जबकि इनका आकार हमारे सौरमंडल के आकार के बराबर होता है।


ब्लेक हाॅल 


कृष्ण विवर या ब्लैक होल, सामान्य सापेक्षता में, इतने शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र वाली कोई ऐसी खगोलीय वस्तु है, जो दैत्याकार संरचना जैसी है जो सूर्य जैसे बड़े तारों को निगल सकता है। ब्लैक होल एक अदृश्य संरचना है जहां समय और प्रकार का प्रभाव खत्म हो जाता है। अंतरिक्ष में अनेक ब्लैक होल है 
ब्लैक होल के खिंचाव से प्रकाश-सहित कुछ भी नहीं बच सकता। ब्लैक होल स्पेसटाइम का एक ऐसा क्षेत्र है जहां गुरुत्वाकर्षण इतना मजबूत होता है कि कोई भी कण या यहां तक ​​कि इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन जैसे प्रकाश भी इससे बच नहीं सकते हैं। क्योंकि जब कोई प्रकाश बाहर नहीं निकल सकता इसलिए हम ब्लैक होल नहीं देख सकते हैं। अब प्रश्न उठता है कि ब्लैक होल कैसे बनते हैं? तो इसका कोई पुख्ता सबूत नहीं है लेकिन ऐसा माना जाता है कि बिग बैंग की घटना के बाद प्रारंभिक ब्रह्मांड में प्राथमिक ब्लैक होल का निर्माण हुआ होगा। कृष्ण विवर के चारों ओर घटना क्षितिज नामक एक सीमा होती है जिसमें वस्तुएँ गिर तो सकती हैं परन्तु बाहर नहीं आ सकती। ब्लैक होल की संख्या की बात करें तो केवल हमारी आकाशगंगा 'मिल्की वे' में ही इनकी संख्या 100 मिलियन से ज्यादा है। ब्लैक होल का पता इस बात से चलता है कि इसके मजबूत गुरुत्वाकर्षण बल से आस पास की गैसे इस में समा रही होती है ब्लेक होल को उदाहरण के तोर पर समझें तो जैसे किसी बड़े जलस्रोत के नीचे जल तेज़ी से रिसाव हो रहा हो उस समय पानी की ऊपरी सतह पर जो घुमावदार भंवरा बनता है उसके मध्य बिंदु की संरचना एक ब्लैक होल जैसी होती है।

निहारिका या नेब्युला


निहारिका को कभी हम आकाशगंगा भी कहते हैं हालांकि निहारिका और आकाशगंगा मे अंतर की बात करें तो ज्यादा अंतर नहीं है आकाश गंगा में जहां असंख्य तारें होते हैं वहीं निहारिका एक विशाल गैसों और धूल का बादल समान संरचना होती है।
निहारिका या नेब्युला (Nebula) अंतरतारकीय माध्यम (इन्टरस्टॅलर स्पेस) में स्थित ऐसे अंतरतारकीय बादल को कहते हैं जिसमें धूल, हाइड्रोजन गैस, हीलियम गैस और अन्य आयनीकृत (आयोनाइज़्ड) प्लाज़्मा गैसे उपस्थित हों। पुराने जमाने में "निहारिका" खगोल में दिखने वाली किसी भी विस्तृत वस्तु को कहते थे। नीहारिका या नेबुला अंतरिक्ष में धूल और गैस का एक विशाल बादल होता है। कुछ नीहारिकाएं एक मरते हुए तारे, जैसे सुपरनोवा के विस्फोट से निकलने वाली गैस और धूल से बनते हैं। अन्य नीहारिकाएं ऐसे क्षेत्र में होते हैं जहां नए तारे बनने लगे हो। क्योकि नेबुला अर्थात बादल, गैस और धूल से तारे का निर्माण होता हैं।

स्टार क्लस्टर 


असंख्य तारों के समूह को स्टार क्लस्टर कहा जाता है ब्रह्माण्ड में ऐसे कई विशालकाय स्टार क्लस्टर खोजें गये है जिसमें कुछ का घनत्व बहुत बहुत ज्यादा है जिससे स्वते प्रकाश के पूंज जैसी संरचना दिखाई देती है। स्टार क्लस्टर को दो भागों में बांटा गया है 1. open cluster जिसमें हजार तारें जो एक गैसीय क्षैत्र में विस्तृत हो।  2. Globular cluster यह अनेक तारों की विशाल गोल संरचना होती है जिसमें आसपास नजदीक असंख्य तारें मिलकर संरचना बनाते हैं।

तारामंडल Planetarium


तारामंडल ब्रह्मांड में दिखाई देने वाले समान तारों की एक विशेष संरचना को कहते है जैसे सप्तर्षि तारामंडल, शिकारी तारामंडल आदि। इस प्रकार तारामंडल तारों का ऐसा समूह है, जो पहचानने योग्य आकृतियाँ बनाते प्रतीत होता है। जिसका नामकरण विभिन्न सभ्यताओं पर आधारित है। जैसे ग्रेट बियर (सप्तर्षि), ओरॉयन (orion, व्याध या शिकारी) आदि 


पिंड तारा the star

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तारा या पिंड स्वयंप्रकाशित (self-luminous) उष्ण वाति की द्रव्यमात्रा से भरपूर विशाल, खगोलीय पिंड हैं।जिसका स्वयं का गुरूत्वाकर्षण बल तथा ऊर्जा का स्रोत होता है सुर्य हमारी पृथ्वी का तारा तथा पूरे सौरमंडल मंडल का केन्द्रीय शक्ति है सभी ग्रह इस सूर्य की परिक्रमा करते हैं। सूर्य हमारा सबसे निकटतम तारा है हालांकि यह पृथ्वी से 147.1 मिलियन किमी दूर है फिर भी इतना तेज है हम कल्पना कर सकते हैं कि सूर्य जैसे करोड़ों तारें कितने विशालकाय और अद्भुत होते होंगे। हमारा सूर्य धरती से कई गुना बड़ा गर्म प्लाज्मा से बना एक तारा है जो ऊर्जा और प्रकाश का उत्सर्जन करता है। सूर्य से बढ़ती हुई दूरी के क्रम में हमारे सौर मंडल के आठ ग्रह बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, यूरेनस और नेपच्यून हैं। इनके अलावा, हमारे सौर मंडल में अन्य वस्तुएँ बौने ग्रह (प्लूटो और एरिस) और चंद्रमा, लघु ग्रह, धूमकेतु आदि हैं।

तारे का जीवन चक्र एवं अवस्थाएं 

तारे का जीवन चक्र इस प्रकार है 

1.आणविक बादल Molecular Cloud


तारा का निर्माण अंतरिक्ष मे उपस्थित हाइड्रोजन और हीलीयम गैसों के संघनन से होता है
पहली अवस्था में एक तारा एक जायंट गैस क्लाउड होता है जो सितारे बनने के लिए पहला चरण है। इनकी उत्पत्ति विशाल गैसीय बादलों से होती है।

2. प्रोटोस्टार Protostar


दूसरे चरण में  इसी संरचना में ऊष्मा ऊर्जा तब बनती है जब विशाल आणविक बादल में गैस के कण एक दूसरे के साथ परस्पर क्रिया करते हैं। परिणामस्वरूप अणुओं के एक समूह का निर्माण होगा जो प्रकृति में गर्म है। इस आणविक समूह को प्रोटोस्टार के रूप में जाना जाता है।

3.टी-तौरी चरण T-Tauri Phase


इस चरण को टी-टौरी चरण कहा जाता है। यहाँ भारी मात्रा में ऊर्जा मुक्त होती है।

4.मुख्य अनुक्रम Main Sequence


मुख्य अनुक्रम एक खगोलीय शब्द है जो सितारों की एक विशिष्ट और निरंतर जोड़ी वाली स्थिति का उल्लेख करता है। वे सभी तारकीय रंग सितारों बनाम चमक पर दिखाई देते हैं। इन रंग-परिमाण भूखंडों का नाम हर्ट्ज़स्प्रंग-रसेल आरेख है।

5.लाल विशाल Red Giant


तारा अपनी अंतिम अवस्था मे धीरे- धीरे ठंडा होता है जिसके कारण यह लाल रंग का दिखाई देने लगता है तारे की इस अवस्था को रक्त दानव (Red Giant) कहते है रक्त दानव मे हीलियम कार्बन मे और कार्बीन लोहा जैसे भारी पदार्थों मे परिवर्तित होने लगता है। इस लाल विशाल तारे का एकमात्र उद्देश्य हाइड्रोजन के परमाणुओं को हीलियम के परमाणुओं में परिवर्तित करना है। इसलिए, हाइड्रोजन ईंधन के बाहर निकलने की प्रवृत्ति होती है, जिससे आंतरिक प्रतिक्रिया रुक जाती है।

6.भारी तत्वों के बीच संलयन Fusion between Heavier Elements


जैसे-जैसे तारे का विस्तार होता रहता है, हीलियम के अणु कोर में फ्यूज हो सकते हैं। प्रतिक्रिया द्वारा प्रदान की गई ऊर्जा कोर को ढहने से रोकेगी। नतीजतन, कोर का संकुचन होगा। हीलियम का संलयन पूरा होते ही यह कार्बन का संलयन शुरू हो जाता है।

7.सुपरनोवा और प्लैनेटरी नेबुला Supernova and Planetary Nebulae


इस अवस्था के बाद इन तारों का जीवन दो रास्तों मे बंट जाता है। यदि तारे का द्रव्यमान 9 सौर द्रव्यमान से कम लेकिन 1.4 सौर द्रव्यमान से अधिक हो तो वह न्यूट्रॉन तारे में बदल जाता है। वही इससे बड़े तारे श्याम वीवर (black hole) मे बदल जाते है । हालांकि छोटे तारे नहीं फटते; बल्कि, उनके कोर सिकुड़ जातें हैं, गर्म तारे बन जाते हैं जिन्हें सफेद बौने तारे भी कहा जाता है। इस प्रतिक्रिया के दौरान बाहरी पदार्थ बह जाते हैं।

सूर्य the sun


सूर्य (Sun) सौरमंडल के केंद्र में स्थित तारा है (Star at the Centre of the Solar System). यह गर्म प्लाज्मा का एक गोल पिंड है। सूर्य की सतह का तापमान लगभग 5800 केल्विन है । सूर्य के उच्च तापमान के कारण यह सभी दिशाओं में लगातार थर्मल विकिरण की विलक्षण मात्रा का उत्सर्जन करता है,
इसके गर्म कोर में न्यूक्लियर फ्यूजन (Nuclear Fusion) से इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रिएक्शन होता है, जिससे प्रकाश, पराबैंगनी किरण और इंफ्रारेड रेडिएशन के रूप में ऊर्जा निकलती है (Emission of Energy from Sun) यह अब तक पृथ्वी पर जीवन के लिए ऊर्जा का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत है (Source of Energy for Earth)  इसका व्यास लगभग 1.39 मिलियन किलोमीटर है (Diameter of Sun)सूर्य पृथ्वी से 109 गुना बड़ा है। इसका द्रव्यमान पृथ्वी के द्रव्यमान का लगभग 330,000 गुना है।

ग्रह  Planet 


किसी एक तारे के एक से अधिक ग्रह होते हैं जो उस मध्यस्थ पिंड की परिक्रमा करते हैं हमारी पृथ्वी सहित अन्य सात ग्रह सूर्य के ग्रह है , इन ग्रहों के अपने एक या एक से अधिक उपग्रह होते हैं जैसे पृथ्वी का उपग्रह चन्द्रमा हैं।
ग्रहों की खोज की बात करें तो मानव ने चंद्रमा पर तो कदम रखा ही साथ में मंगल,बुध और शुक्र ग्रहों पर अपने मानव रहित यान भेजने के सफल प्रयास किए हैं। अंतर्गत दो मानवरहित अंतरिक्ष मिशन, वॉयजर 1 और वॉयजर 2, शुरू किए गए हैं। 1970 के दशक के अंत में ग्रहों के एक सीध में होने से मिलने वाले फायदे के मद्देनजर इसे 1977 में छोड़ा गया था

पृथ्वी The Earth 


मानव द्वारा अभी तक जीवन योग्य खोजा गया ग्रह पृथ्वी ही है । पृथ्वी की उत्पत्ति के बारे में वैज्ञानिकों ने विभिन्न अनुमान लगाएं तथा परिकल्पनाएं विकसित की हालांकि पृथ्वी की उत्पत्ति के संबंध में सभी वैज्ञानिक एक मत नहीं है लेकिन बिग बैंग सिद्धांत के अनुसार पृथ्वी का निर्माण भी ब्रह्माण्ड के अन्य तारों और ग्रहों की तरह हुआं जिसमें पृथ्वी पहले एक आग का गोला रही होगी फिर धीरे धीरे ऊपरी सतह ठंडी हुई तथा महासागरों और महाद्वीपों का निर्माण हुआ। कालांतर में खरबों वर्षों के लम्बे काल में विभिन्न परिवर्तनों से गुजर कर हमारी पृथ्वी वर्तमान स्वरूप में आई। हालांकि पृथ्वी के वर्तमान स्थलमंडल के वर्तमान स्वरूप को खोजने की जरूरत ही नहीं पड़ी क्योंकि प्रारम्भ से ही मानव ने अपने को जहां पाया वह पृथ्वी थी सबसे पहले मानव ने अपने जीवन स्तर को सुधारने तथा खाने पीने और सुरक्षित रहने के प्रयास किए जिसके दौरान वह पृथ्वी पर मौजूद संरचनाओं के साथ अन्तःक्रिया करता रहा जब वह इस सिलसिले में आधुनिक युग तक पहुंचा तब उसने अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए जिस तरह दिमाग का प्रयोग किया तो उसे हर दिन रहस्यमय वस्तुएं प्राप्त हुई तथा वह अपनी आवश्यकताओं और आरामदायक जीवन की तालाश में पृथ्वी पर नई-नई वस्तूएं बनाता रहा तथा इन्हीं वस्तुओं और तकनीकी में नवाचार करते हुए अपनी जिज्ञासु प्रवृत्ति को शान्त करने के लिए तेज रफ्तार से आगे बढ़ता गया जब उसकी मूलभूत आवश्यकताएं लगभग पूरी हुई तो मानव अपने आसपास के वातावरण को समझने तथा उसके बारे में ज्ञान प्राप्त करने की कोशिश में लग गया इसी के परिणामस्वरूप आधुनिक युग में आते आते मानव की यह प्रगति ब्रह्माण्ड के रहस्यों तक जा पहुंची। पृथ्वी के अलावा अबतक इंसान को किसी ग्रह या ब्राह्मण की किसी संरचना पर जीवन की सम्भावनाएं नहीं मिली। पृथ्वी और इसके भौगोलिक स्वरूप के बारे में इंसान ने बहुत कुछ जाना लेकिन पूर्णतः तह तक जाना यहां भी सम्भव नहीं हुआ। हालांकि मानव ने स्थलमंडल में उन सभी संरचनाओं पर व्यवस्थित और वैज्ञानिक तरीके से अध्ययन किया जिसके अंतर्गत पृथ्वी के ऊपरी स्थल मंडल का सम्पूर्ण स्वरूप जहां महासागर और महाद्वीप ऊंचे पहाड़,पठार, नदियां, झीलें, ज्वालामुखी, ग्लेशियर,मौसम परिवर्तन, जलवायु, ध्रुवों पर बर्फ , पृथ्वी का घूर्णन, परिक्रमा, प्राकृतिक घटनाएं तथा विभिन्न रहस्यमय संरचनाओं पर पुख्ता जानकारी प्राप्त की। यह भी जान लिया कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर 365 दिनों में सूर्य की परिक्रमा करती है वहीं अपने अक्ष पर साढ़े 23 डिग्री झुकी हुई 24 घंटे में एक घूर्णन चक्र पूरा करती है जिससे दिन रात बनते हैं। इसके बाद मानव की खोज की प्रवृत्ति,आवश्यकता और जिज्ञासा उन्हें पृथ्वी के आन्तरिक भाग की और ले गई जहां मानव संसाधनों और रहस्यों की खोज में पृथ्वी को अंदर से खोदने लगा तो उसको विशाल जलश्रोत, ईंधन तेल,गैस सहित विभिन्न प्रकार के पदार्थ और धातुएं मिलती गई जिसमें सोना, चांदी, कोयला,हीरे, यूरेनियम,शीशा,जस्ता, तांबा, टंगस्टन आदि सहित मानव ने हजारों प्रकार की धातुएं एवं पदार्थ प्राप्त किए जो उनके जीवन में बहुत आवश्यक और महत्वपूर्ण थे यह खोज आज भी जारी है तथा नवीन संरचनाएं आज भी मिल रही है। मानव ने यहां तक पृथ्वी की उत्पत्ति तथा वर्तमान स्वरूप के जीवन काल को भी परिभाषित कर दिया। यह भी बता दिया कि पृथ्वी की पृथ्वी की सतह स्थिर नहीं है यहां पर भी सात बड़ी बड़ी प्लेट्स है जो गतिमान है जो एक दूसरे से टकराती भी है जिसके घर्षण से भूकम्प आते हैं। इतना सब कुछ जानते के बाद मानव पृथ्वी की उस गहराई में नहीं पहुंच पाया जिससे पृथ्वी के आरपार निकला जा सकें क्योंकि अनुमान के आधार पर पृथ्वी के आन्तरिक कोर (क्रोड) में इंसान का जाना संभव नहीं हुआ है। धरती का गर्भ (कोर) बाहरी सतह से करीब 5,000 से 6,000 किलोमीटर नीचे है। मानव 12000 हजार मीटर से ज्यादा गहराई में नहीं पहुंच पाया है इस गहराई में उसे 180 डिग्री तापमान मिला वहीं पृथ्वी की मेंटल के बाद बाहरी तरल कोर का तापमान लगभग 4000 ° C है जहां मानव की बनाई कोई वस्तु नहीं पहुंच सकती, इससे आगे पृथ्वी की कठोर आंतरिक कोर है अनुमान में यह लोहा और निकल की ठोस संरचना हो सकती है पृथ्वी के अन्दर खोदे गये गहरे गड्ढे जिसकी गहराई 12262 मीटर थी इससे नीचे के साक्ष्य अभी तक मानव के पास उपलब्ध नहीं है। अब यहां तक मानव पृथ्वी की इस अगम्य जगह को छोड़ अंतरिक्ष की और रूख करता है। अंतरिक्ष में कितनी दूर अपनी वस्तु भेज सकता है इसकी चर्चा हमने इस पूरे लेख में की है।

उपग्रह चन्द्रमा The Moon 


पृथ्वी से आसमान की और आकर्षित करने वाली सबसे पहरी वस्तु चंद्रमा रही है और मानव ने सबसे पहले चंद्रमा पर पहुंचने की कोशिश की जिसके दौरान पहले मानव रहित यान भेजने के बाद जब पता चला कि आक्सीजन और पृथ्वी जैसा वातावरण नहीं है तो वैज्ञानिकों ने वहां की परिस्थितियों के अनुसार तैयार होकर नील आर्मस्ट्रांग और उनके साथियों को वहां 20 जुलाई 1969 को अपोलो 11 मिशन के तहत पहली बार भेज कर ही दम लिया नील आर्मस्ट्रांग के अलावा बज एल्ड्रिन (Buzz Aldrin),पेटे कॉनराड (Pete Conrad),एलन बीन (Alan Bean), चार्ल्स ड्यूक (Charles Duke),हैरिसन श्मिट तथा कुछ अन्य सहित बारह व्यक्ति चांद पर जा चुके हैं। चांद की ऊपरी सतह के बारे में लगभग इंसान जान चुका है लेकिन आंतरिक भाग अभी भी मानव की समझ से परे है हालांकि चांद पर जल के संकेत नहीं मिले हैं फिर भी इंसान की खोज जारी है कि वहां पर मानव बस्ती कैसे बचाई जा सकें। अभी तक मानव जाति ने चन्द्रमा के बारे में जो जाना है उसके अनुसार चांद चट्टान और धातु से बना है उसकी उत्पत्ति के बारे जो परिकल्पना है उसके अनुसार अरबों साल पहले कोई ग्रह या ब्राह्मण की बड़ी संरचना पृथ्वी से टकराईं से पृथ्वी से अलग हुआ यह एक टुकड़ा पृथ्वी का उपग्रह बन गया और अपनी जगह पर 27 दिन 8 घंटे 
में घूर्णन तथा इसी गति मे पृथ्वी की परिक्रमा करने लगा इसप्रकार हमें चंद्रमा का एक भाग पृथ्वी से दिखाई देता है।


मानव की सुदूर ब्रह्माण्ड की यात्रा और इस यात्रा के दूत 


पृथ्वी से दूर ब्रह्माण्ड में असीम दूरी पर फैली संरचना का अभी तक कोई पार नहीं समझा नही है मानव द्वारा खोजी सबसे तेज गति जो प्रकाश की गति है, इसप्रकार ब्रह्माण्ड में दूर की संरचनाएं और तारें इतने दूर है कि प्रकाश को भी वहां पहुंचने में करोड़ों, खरबों साल लग जाते हैं ऐसे में इंसान अपनी छोटी सी जिंदगी में प्रकाश की रफ्तार से भी तेज किसी यंत्र से जाएं तो एक तारे के नजदीक जाते जाते उसकी उम्र कम पड़ जाती है इसलिए मानव कुछ उन्नत तकनीकी के उपकरण भेज कर अंतरिक्ष और ब्रह्माण्ड के रहस्यों को जानने की कोशिश कर रहा है इसी क्रम में कुछ यंत्र या यान पृथ्वी से प्रक्षेपित किए गये जिसमें कुछ रहस्यमय लम्बी यात्राओं पर चल रहे हैं आइए जानते हैं कौनसे वो दूत हैं जिन्होंने कल्पनाओं और रहस्यों के अंधकार का सफर तय किया। 


Pioneer 10 एवं Pioneer 11 पायनियर मिशन

पायनियर  मिशन का पहला वह दूरगामी प्रयास इंसान ने शुरू किया था जिसका लक्ष्य सूदूर ग्रहों का अध्ययन करना था। 

पायनियर Pioneer 10

 Pioneer 10 मिशन का पहला वह दूरगामी प्रयास इंसान ने शुरू किया था जिसका लक्ष्य सूदूर ग्रहों का अध्ययन करना था। ।इस मिशन के पहलें Spacecraft Pioneer मार्च 1972 में Launch किया गया था। इस यान ने एक साथ कई रिकॉर्ड स्थपित किए। यह पहला मानव रहित अंतरिक्ष यान था जिसनें मंगलग्रह और बृहस्पति ग्रह के बीच मौजूद Asteroid belt को सफलतापूर्वक पार किया गया था। साथ ही यह ब्रहस्पति (Jupiter ) ग्रह और उसके चन्द्रमाओ का बहुत करीब से अध्ययन करनें वाला पहला यान बना। वर्तमान समय यह Pioneer 10 Space Probe हमारी धरती से करीब 65 Light years की दुरी पर मौजूद Red Star Aldebarn की ओर बढ़ रहा हैं एवं यहां तक पहुंचानें में इसें करीब 2 MIllion सालो का समय लगेगा। Pioneer 10 Spacecraft को दुसरे Voyager 1 , Voyager 2 और Pioneer 11 मिशनों से opposite direction में Launch किया गया हैं। 23 जनवरी 2003 के बाद पायनियर 10 का पृथ्वी से सम्पर्क टूट गया। अब कयास लगाए जा सकते हैं कि यह यान हमारे सौरमंडल से बाहर कहीं दूर यात्रा कर रहा होगा।मानव द्वारा निर्मित यह ऐसी वस्तु थी जो इतनी दूर उस रहस्यों से भरे इस ब्रह्माण्ड में खो गई जहां इंसान की कल्पना भी सफर नहीं कर सकती।

Pioneer पायनियर 11


पायनियर 10 की सफलता बाद पायनियर 11 लॉन्च किया गया। पायनियर 11 ने 5-6 अप्रैल, 1973 को केप कैनावेरल से उड़ान भरी थी, जो पायनियर 10 की तुलना में बृहस्पति के तीन गुना करीब से देखने के उद्देश्य से भेजा गया था। शनि ग्रह से आगे निकलते हुए इस यान ने शनि ग्रह से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य भेजे। पायनियर 11 1 सितंबर, 1979 को 71,000 मील प्रति घंटे के वेग से शनि के बादल के 13,000 मील के भीतर से गुजरा। पायनियर 11 ने इस रहस्यमई यात्रा के दौरान लगभग 440 छवियां खींच कर धरती पर भेजी। जिससे मानव को पता चला कि शनि ग्रह के चारों ओर एक रिंग है तथा शनि के भी अपने उपग्रह है।
पायनियर के डेटा से पता चला है कि शनि के वातावरण में ज्यादातर तरल हाइड्रोजन है। इसने इस तथ्य की भी पुष्टि की कि ग्रह में एक चुंबकीय क्षेत्र था। इसके अलावा, पायनियर ने शनि के चंद्रमा टाइटन की छवियों को अपने कैमरे में कैद किया। जिसने उपग्रह को एक नारंगी बादल से ढके ग्लोब के रूप में प्रकट किया, यहां का तापमान माइनस 315°F अनुमानित हो सकता है। पायनियर ने यह भी खुलासा किया कि पृथ्वी जैसा दिखाई देने वाला यह उपग्रह टाइटन बहुत ठंडा है।
अपनी अनन्त यात्रा के दौरान इस अंतरिक्ष यान ने 23 फरवरी, 1990 को नेपच्यून की कक्षा को पार किया और पायनियर 10, वायेजर 1 और 2 के बाद ऐसा करने वाला चौथा अंतरिक्ष यान बन गया। लगभग 22 वर्षों तक सौर मंडल की खोज करने के बाद, इसी वर्ष नासा से इस अंतरिक्ष यान से नियमित संपर्क को समाप्त कर दिया। अंततः 30 नवंबर, 1995 को अंतरिक्ष यान के साथ अंतिम संपर्क टूट गया। इस प्रकार कल्पनाओं से दूर जाने वाली इस मशीन ने संपर्क तो तोड़ दिया लेकिन वह अब कहां और कितनी दूरी में कब तक यात्रा करेगा यह अब पता नहीं चलेगा।


Voyager mission वाॅयजर मिशन


1977 में अगस्त और सितंबर महीने में अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा (US Space Agency NASA) ने दो अंतरिक्ष यान (Space Craft) धरती से रवाना किए थे। जिनका नाम था वोएजर-1 और वोएजर-2 . वोएजर-2 को 20 अगस्त 1977 को अमेरिकी स्पेस सेंटर केप कनावरल से छोड़ा गया था। वहीं वोएजर-1 को 5 सितंबर 1977 को अंतरिक्ष में भेजा गया था। नवंबर 1980 में वोएजर 1 ने शनि से आगे का सफ़र शुरू किया वहीं नौ महीने बाद वोएजर 2 ने सौर मंडल के दूर के ग्रहों का रुख़ किया। इस प्रकार यह यान 1986 में यूरेनस ग्रह के क़रीब पहुंचा, वोएजर 2 ने हमें बताया कि ये ग्रह गैस से बना हुआ है और इसके 10 उपग्रह हैं। इस मिशन के दौरान जब वायजर के एक कैमरे ने धरती की तरफ घूमकर एक चित्र लिया जिसमें हमारी पृथ्वी एक नीले बिन्दु की तरहां दिखाई दे रही थी।इस तस्वीर ने मानव जगत को चौका दिया कि वास्तव में पृथ्वी पर हमारी इस विशाल भौतिक सभ्यता की जब ब्रह्माण्ड से तुलना की जाए तो हम रेगिस्तान में धूल के कण जितना अस्तित्व ही रखते हैं। यह मिशन अपने अपने आप में खास है क्योंकि मानव द्वारा निर्मित कोइ वस्तु हमारे विशाल सौरमंडल में इतनी दूर यात्रा पर निकली है यह छोटे से मानव की बहुत बड़ी छलांग है आगे भविष्य में उम्मीद है कि इससे भी शक्तिशाली यंत्र ब्रह्मांड में इससे भी दूर जाकर इस ब्रह्माण्ड के छुपे हुए कुछ राज खोल सकें।
इस यानों से जुड़ी दिलचस्प बात यह है कि इनके साथ गोल्डन डिस्क पर पृथ्वी पर मानव सभ्यता के कुछ प्रतीक भेजे गये जिसमें चुनिंदा आडियो, टेक्स्ट मैसेज तथा पृथ्वी पर मानव सभ्यता की झलक रिकार्ड की गई जिस रिकॉर्ड में पृथ्वी पर जीवन और संस्कृति की विविधता को चित्रित करने के लिए चुनी गई ध्वनियां और छवियां हैं, और किसी भी बुद्धिमान अलौकिक जीवन रूप के लिए अभिप्रेत हैं जो उन्हें मिल सकता है। इस प्रकार कल्पनाओं और एक उम्मीद के साथ भेजा गया पैगाम है जिसका पता नहीं कि जिसे मिलेगा वो कौन, कैसे और कितने विकसित लोग होंगे उनके लिए यह एक रिकॉर्ड टाइम कैप्सूल था ।
राष्ट्रपति जिमी कार्टर का एक संदेश उस संभावनाओं के साथ भेजा गया कि संभवत कहीं किसी ग्रह या ब्रह्माण्ड की किसी संरचना पर हमारे जैसी मानव सभ्यता हो कहीं उनके हाथ यह लग जाए तो वो हमारी सभ्यता और संस्कृति को जान सकें तथा हमारी मानव सभ्यता के बारे में वे लोग विचार कर सकें यह एक संदेश इस प्रकार था।

यह एक छोटी, दूर की दुनिया से एक उपहार है, हमारी आवाज़, हमारे विज्ञान, हमारी छवियों, हमारे संगीत, हमारे विचारों और हमारी भावनाओं का प्रतीक है। हम अपने समय को जीवित रखने का प्रयास कर रहे हैं ताकि हम आपके समय में जी सकें। (श्रोत - विकिपीडिया)


वाॅयजर 1 Voyager First 


1977 मे प्रक्षेपित वायेजर 1 अंतरिक्ष यान को सौर मंडल के बाह्य ग्रहो के अध्यन के लिये भेजा गया था, यह यान अपने प्राथमिक उद्देश्यो को पूरा करने के बाद भी यात्रा करते रहा और हमे नित नयी जानकारी देता रहा। वर्तमान मे नासा का यह यान पृथ्वी से 19 खरब किमी दूरी पर गतिशील है यह दूरी इतनी ज्यादा है कि इस यान द्वारा उत्सर्जित सिग्नल प्रकाशगति से यात्रा करते हुए पृथ्वी तक पहुंचने में 17 से 30 घंटे का समय लेते है।
वॉयजर 1 अब भी पूरी तरह से सही सलामत काम कर रहा है। इसने साल 2012 में सौरमंडल से बाहर जाकर अंतरतारकीय अंतरिक्ष में प्रवेश किया था। यह पृथ्वी से अब 14.5 अरब मील दूर जा चुका है।
वॉयजर 1 से आने वाले सिग्नल्स को डिटेक्ट करने के लिए NASA ने दुनिया भर में बड़े-बड़े Satellite dish लगाए हुए हैं। हम वॉयजर 1 से आने वाले सिग्नल्स को डिटेक्ट नहीं कर पाते अगर हमारे पास DSN (Deep space network) न होता। ये एक ऐसा network है जो week से week सिग्नल्स को भी आसानी से कैच कर लेता है। और ये network NASA द्वारा दुनिया के तीन हिस्सों में लगाया गया है (USA, Spain और Australia) .
आज वायेजर एक ब्रह्मांड में इतनी दूर है, जहां शून्य, अंधेरे और सर्द माहौल के सिवा कुछ भी नहीं है। 
वॉयजर 1 को सौरमंडल के बाहर स्थित हेलियोस्फियर और अंतरतारकीय अंतरिक्ष के अध्ययन के लिए भेजा गया है। इसने रास्ते में शनि के चंद्रमा, गुरु और प्लूटो ग्रह का अध्ययन किया । फिलहाल जिस तरह से वॉयजर 1 काम कर रहा है, उसके कम से कम साल 2025 तक काम करने की उम्मीद है। Voyager 1 बिना कहीं टकराये ऐसे ही हजारों सालों तक हमारी मिल्कीवे गैलेक्सी में ही घूमता रहेगा। और हो सकता है कि Voyager 1 कभी एलियंस के हाथ लग सकता है। Voyager 1 में एक चिप लगी हुई है, जिसमे हमारी धरती की फोटोज और वीडियोस जैसा डाटा है। जिससे एलियन सभ्यता को भी पता लग सके कि हम भी इस ब्रह्माण्ड में कहीं मौजूद हैं।


वाॅयजर 2 Voyager Second 


वायेजर 1 से पहले 20 अगस्त 1977 को प्रक्षेपित किया गया था। यह अपने जुड़वा यान वायेजर 1 के जैसा ही है, लेकिन वायेजर 1 के विपरित इसका पथ धीमा है। इसे धीमा रखकर इसका पथ युरेनस और नेपच्युन तक पहुचने के लिये तय किया गया था। शनि के गुरुत्वाकर्षण के फलस्वरूप यह युरेनस की ओर धकेल दिया गया था जिससे यह यान वायेजर 1 की तरह टाईटन चन्द्रमा को नही देख पाया था। लेकिन यह युरेनस और नेपच्युन तक पहुंचने वाला पहला यान बन गया था, इस तरह मानव का एक विशेष ग्रहीय परिस्थिती के दौरान जिसमे सभी ग्रह एक सरल रेखा मे आ जाते है;महा सैर (Grand Tour) का सपना पूरा हुआ था। यह विशेष स्थिती हर 176 वर्ष पश्चात उतपन्न होती है। 24 जनवरी 1986 को वायेजर 2 युरेनस के निकट 81,5000 किमी की दूरी पर पहुंचा। वायेजर ने युरेनस के 10 नये चन्द्रमाओं की खोज की। युरेनस के वातावरण का अध्ययन किया और उसकी 97.77 डिग्री झुके अक्ष का मापन और वलयो का अध्यन किया।
युरेनस सौरमंडल का तीसरा सबसे बड़ा ग्रह है। यह सूर्य की परिक्रमा 2.8 करोड़ किमी की दूरी से 84 वर्षो मे करता है। युरेनस पर एक दिन 17 घंटे 4 मिनिट का होता है।
वायेजर 2 वर्ष 2020 तक पृथ्वी तक संकेत भेजता रहेगा।
उर्जा की बचत और इस यान का जीवन काल बढाने के लिये नियंत्रण अधिकारियों ने इसके कुछ उपकरण बंद करने का निर्णय लिया है।अब वोयाजर 2 के सिस्टम को धीरे-धीरे बंद किया जा रहा है ताकि यथासंभव लंबे समय ऊर्जा बचाकर तक उसे चलाया जा सके। लेकिन 2030 तक इस यान की क्षमता लगभग समाप्त हो जाएगी। 

सूर्य के करीबी तारे की खोज प्रॉक्सिमा सेंचुरी Proxima Centauri


हम जानते हैं कि ब्रह्माण्ड में आकाशगंगाए एवं इनके समुह तारों की विशाल संरचनाओं से बनी है इस प्रकार हमारा सूर्य भी इसी का एक हिस्सा है तो अंतरिक्ष में खोज करने वाले वैज्ञानिकों को उत्सुकता हुई कि हमारे सूर्य के अलावा और कोई तारा हैं तो वो कौनसा है एवं कैसा है इसी ख़ोज में वैज्ञानिकों ने कुछ तारों का पता लगाया जिससे उपग्रह भी है उस तारे तथा उसके आसपास के तारों का नाम प्रॉक्सिमा सेंचुरी रखा प्रॉक्सिमा सेंचुरी सूर्य का सबसे करीबी तारा है। यह एक छोटा लाल बौना ग्रह है जो हमारी पृथ्वी से 4 प्रकाश वर्ष की दूरी पर है। इस प्रकार यहां तीन तारों का समूह का हिस्सा है, जिसके पास अल्फा-सेंचुरी A व B तथा एक अन्य को बीटा सेंचुरई कहते हैं।
इस तारे का धरती के आकार का प्रॉक्सिमा बी उपग्रह इसकी परिक्रमा करता है और इसकी खोज 2016 में की गई थी। यह उपग्रह Habitable Zone में है इसलिए पृथ्वी की तरह यहां जीवन की संभावनाएं हो सकती है लेकिन इसकी दूरी 4.3 प्रकाश वर्ष है मानों वायजर 1 की गति से पृथ्वी से कोई यान भेजे तो उसे प्रॉक्सिमा सेंचुरी तक पहुंचने में 73 हजार वर्ष लग जायेंगे। इसलिए मानव द्वारा बनाई कोई मशीन को यहां तक पहुंचाना बड़ी चुनौती है।
 

ब्रह्माण्ड के रहस्यों को जानने के लिए मानव के प्रयास एवं महत्वपूर्ण मिशन


आधुनिक युग में मानव के कुछ बुद्धिजीवी वर्ग ने जब स्वयं की मूलभूत आवश्यकताएं पूरी की तो उन्हें असीम ब्रह्माण्ड की खोज की सूझी इसलिए वैज्ञानिक वर्ग बार बार नवीन जानकारियों के लिए ब्रह्माण्ड में मिशन भेजता रहा पायनियर और वायजर जैसे चमत्कारिक प्रयोगों के अलावा निम्न मिशन अंतरिक्ष में ग्रहों की खोज एवं असीमित ब्रह्माण्ड के रहस्यों को जानने के उद्देश्य से चलाए गये। जिसमें 
लुना कार्यक्रम (Luna Programme1959-1976 चंद्रमा),प्रोजेक्ट अपोलो (Project Apollo),फोबोस कार्यक्रम (Phobos Programme), मंगल ग्लोबल सर्वेक्षक (Mars Global Surveyor)
मंगल पाथफाइंडर (Mars Pathfinder 4 जुलाई 1997 ),वेनेरा मिशन (Venera Mission),वेगा कार्यक्रम (Vega programme,वीनस एक्सप्रेस (Venus Express), मैगलन अंतरिक्ष यान (Magellan Spacecraft)
,डॉन मिशन (Dawn Mission),मैसेंजर [Messenger (Mercury Surface, Space Environment, Geochemistry, and Ranging),कैसिनी-ह्यूजेन्स (Cassini-Huygens),गैलीलियो (Galileo) डिस्कवरी कार्यक्रम (Discovery program, चंद्रयान कार्यक्रम (Chandrayaan Program),मंगलयान कार्यक्रम (Mangalyaan Program)

इस लेख में हमने जाना कि मानव जाति जो पृथ्वी पर हैं ब्रह्माण्ड में थोड़ी दूर जो एक नीले बिन्दु की तरह है जिसका ब्रह्माण्ड में अस्तित्व बहुत छोटा है लेकिन यहां रहने वाले इंसानों ने पृथ्वी से लेकर ब्रह्माण्ड में छोटी बड़ी क्या संरचना खोजी और उसका विश्लेषण वैज्ञानिक ढंग से किया। लेख अच्छा लगा हो तो कंमेट करके हमें बताएं।







2 comments:

  1. बहुत विस्तृत जानकारी
    ऐसी पहली बार हमारे मानव ब्रह्माण्ड से जुड़े तथ्य पढ़ने को मिले।

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  2. Very nice information abou univers

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