ब्रह्माण्ड में एक तारे का जीवन चक्र और अंत Star Birth and death
तारा या पिंड स्वयंप्रकाशित (self-luminous) उष्ण वाति की द्रव्यमात्रा से भरपूर विशाल, खगोलीय पिंड हैं।जिसका स्वयं का गुरूत्वाकर्षण बल तथा ऊर्जा का स्रोत होता है सुर्य हमारी पृथ्वी का तारा तथा पूरे सौरमंडल मंडल का केन्द्रीय शक्ति है सभी ग्रह इस सूर्य की परिक्रमा करते हैं। सूर्य हमारा सबसे निकटतम तारा है हालांकि यह पृथ्वी से 147.1 मिलियन किमी दूर है फिर भी इतना तेज है हम कल्पना कर सकते हैं कि सूर्य जैसे करोड़ों तारें कितने विशालकाय और अद्भुत होते होंगे। हमारा सूर्य धरती से कई गुना बड़ा गर्म प्लाज्मा से बना एक तारा है जो ऊर्जा और प्रकाश का उत्सर्जन करता है। सूर्य से बढ़ती हुई दूरी के क्रम में हमारे सौर मंडल के आठ ग्रह बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, यूरेनस और नेपच्यून हैं। इनके अलावा, हमारे सौर मंडल में अन्य वस्तुएँ बौने ग्रह (प्लूटो और एरिस) और चंद्रमा, लघु ग्रह, धूमकेतु आदि हैं।
हमारे सूर्य के समान द्रव्यमान के सितारों का जीवन चक्र समान होता है। वे एक नेबुला के रूप में शुरू करते हैं। एक नेबुला धूल और गैस का एक बादल है जो बडे आकार में हो सकता है। एक तारे के लिए विशालकाय नीहारिका की आवश्यकता होगी। यह बादल, जिसमें तारे का निर्माण खंड होता है, गुरुत्वाकर्षण के कारण ढह जाता है। जैसे-जैसे बादल आकार में सिकुड़ता है, इसका तापमान बढ़ता जाता है, क्योंकि बादल बनाने वाले कण आपस में टकराते हैं। जब यह ढह गया बादल एक निश्चित तापमान और दबाव तक पहुँच जाता है, तो परमाणु संलयन हो सकता है। इस स्तर पर, गैस की गेंद को एक प्रोटोस्टार के रूप में जाना जाता है।
नाभिकीय संलयन एक नाभिकीय प्रतिक्रिया है जहां दो प्रकाश नाभिक आपस में मिलकर एक भारी नाभिक और ऊर्जा बनाते हैं। यह वह ऊर्जा है जो शुरू से ही विकीर्ण होती है। इन प्रतिक्रियाओं में उत्पादित ऊर्जा की मात्रा की गणना E = mc 2 से की जा सकती है। "ई" ऊर्जा की मात्रा है, "एम" द्रव्यमान में परिवर्तन है, और "सी" मीटर प्रति सेकंड में प्रकाश की गति है।
तारे के जन्म और अंत तक की अवस्थाएं जीवन से अंत तक का सफर
आकाशगंगा या गैलेक्सी की तीन घुर्णनशील भूजाए तथा निहारिका ही तारे की जन्मस्थली है जहां मौजूद गैसे और अन्य एलिमेंट्स मिलकर तेज घूमती हुई आकाशगंगा की भुजा इनमें एक भंवर पैदा करती है यही से एक तारे का निर्माण शुरू होता है जो आखिर में आकाशगंगा के केन्द्र में ब्लैक होल में समाहित होकर अपना जीवन समाप्त करते हैं। हम जानते हैं कि गेलेक्सी के बाहर की भुजा में भ्रुण तारे बीच की भुजा में युवा तारे तथा अंदर की भुजा में Old star मतलब बुड्ढे तारे होते हैं। इस प्रकार एक तारा खरबों वर्षों के दौरान गेलेक्सी के बाहरी भुजा में बनकर अंत में काला बौना तारा बनकर ब्लैक होल में समाहित हो जाता है लेकिन इस प्रकिया में एक तारा अपने द्रव्यमान के अनुसार विभिन्न अवस्थाओं से गुजरता है जिससे उसका जीवन काल प्रभावित होता रहता है कुछ तारे अपने अवशेषों के साथ विभिन्न रूपों में लम्बे काल रहते हैं तो कुछ कम समय में ब्लैक होल में बदलकर समाप्त हो जाते हैं। बड़े तारे अपने ईंधन को जल्दी जलाते हैं इसलिए वे छोटे तारों की अपेक्षा कम जीवित रहते हैं।
आकाशगंगा के घूमने से उत्पन्न हुए घर्षणबल से आसपास की नाब्युला (निहारिका) या गैसों में एक भंवर का निर्माण होता है गुरुत्वाकर्षण बल से इस भंवर हाइड्रोजन का संलयन हीलियम में होने लगता है यहां बड़ी मात्रा में ऊर्जा निकलती है तथा इसके साथ साथ कुछ गैसे इस ऊर्जा के साथ बाहर निकलती है। आखिर में जब हाइड्रोजन हीलियम में बदलने लगि जाता है तो तारा कमजोर पड़ता है वहीं उसका नाभिक शक्तिशाली बन जाता है। इस केन्द्र और गुरूत्वाकर्षण बल के कारण शक्तिशाली केंद्र बन जाता है जिस पर केन्द्रापचारी और केन्द्राभिसारी बल कार्य करते हैं जिससे वह स्थिर तारा बन जाता है। यहां तक यह अपने दिखाई देने के रंगों में तीन अवस्थाएं पार करता है। शुरुआत में इससे निकलने वाली रोशनी जो हाइड्रोजन के संलयन तथा दहन के अनुसार बदलती है जिसे इन्हें तीन भागों में बांट सकते हैं।
नीला पिंड ब्लु स्टार (उच्च दहन)
सफेद पिंड white star(मध्यम दहन)
पीला पिंड Yellow Star(निम्न दहन)
अब धीरे धीरे हाइड्रोजन हीलियम में बदलने के बाद हीलियम से बना केंद्र भारी हो जाता है तथा गुरुत्वाकर्षण बल के कारण हिलियम का केंद्र बाहरी हाइड्रोजन की परत के अंदर की ओर खींचकर उस परत में विखंडन या विस्फोट के साथ ढहाएगी। इस प्रकार एक बड़ा विस्फोटक होगा जिसकी चमक को ही रेड जायंट्स कहा जाता है। और इस धमाके को सूपर नोवा महाविस्फोट कहा जाता है। यहां तारे का बाहरी गैसों का आवरण जिसमें हाइड्रोजन गैस तथा अन्य गैसे अलग हो जाती है तथा इसकी क्रोड अलग हो जाती है केन्द्र या क्रोड ही न्युट्रान तारा बनाती है। यहां चन्द्रशेखर सीमा की बात आती है मतलब एक तारे के द्रव्यमान की, अगर एक तारे का द्रव्यमान कम होगा वो तारे रेड जायंट्स के बाद सफेद वामन, फिर काला वामन बनकर आकाश गंगा के केन्द्र में समाप्त हो जायेंगे। लेकिन सूर्य के 1.4 गुणा द्रव्यमान वाले ही तारे सफेद वामन बनते हैं। इसे चन्द्रशेखर सीमा कहा जाता है। इससे बड़े तारे श्वेत वामन नहीं बनते हैं जबकि वो न्युट्रान स्टार बनते हैं। इससे बहुत विशालकाय तारे जो ब्लैक होल बन जाते हैं। अब समझ सकते हैं कि यदि किसी लाल दानव Red Jiant का आकार सूर्य से 1.44 गुना छोटा है। तो ऐसी स्थिति में उसमे थोड़ा बहुत ईंधन बांकी रहेगा तो वह श्वेत वामन बनेगा और यदि ईंधन पूरा समाप्त हो गया है तो वह काला वामन बनेगा और अंत में गैलैक्सी के केन्द्र में समा जाएगा। यदि लाल दानव का द्रव्यमान सूर्य से 1.44 गुना से बड़ा है तो वह अभिनव तारे के रूप में कार्बन जैसे हल्के पदार्थ लोहे में बदलकर कंप्रेश होकर विस्फोट (Super Nova)कर लेगा जिससे एक न्यूट्रॉन तारे का जन्म हो सकता है। यह तारा विस्फोट के बाद बनता है और इसका घनत्व अधिक होता है तथा आकर छोटा होता है। सुपर नोवा महाविस्फोट के बाद क्रोड से न्यूट्रान तारा बनेगा जो आखिर सीधा ब्लैक होल में समाहित होगा वहीं इस विस्फोटक से अलग हुए गैसों के आवरण से एक द्वितीयक तारे का निर्माण होगा जिसके आसपास ग्रह और उपग्रहों का निर्माण होगा जैसे हमारा सूर्य है। इसी द्वितीयक तारे का आगे का जीवन उसके आकाशगंगा के केंद्र की और बढ़ते बढ़ते तथा नाभिकीय संलयन के आखिरी पड़ाव में उसके केंद्र का तापमान बढ़ जाएगा तथा अन्त: इसके आंतरिक उच्च घनत्व और ग्रेविटेशन के कारण यह तारा विस्फोट का शिकार होगा लेकिन यहां सूपर नोवा नहीं होकर इसमें बची खुची हाइड्रोजन और हीलियम अब भी ईंधन के रूप में इसे प्रकाशित करती रहेगी लेकिन कम प्रकाश के कारण यह सफेद बौना या सफेद वामन व्हाइट ड्वार्फ को जीवाश्म तारा fossil star के नाम से जाना जाता है। इस स्टेज में यह तारे लम्बे समय तक आकाशगंगा में मौजूद रह सकते हैं क्योंकि इलेक्ट्रॉन अध:पतन दबाव सफेद बौने के पतन को रोकता है जबकि न्यूट्रॉन अध: पतन दबाव न्यूट्रॉन सितारों के पतन को रोकता है।
तारे का जीवन चक्र एवं अवस्थाएं Life cycle and stages of a star
तारे का जीवन चक्र इस प्रकार है ।
1.निहारिका या नेबुला गैस और धूल के कण
2.भ्रुण तारा
3.नीला पिंड ब्लु स्टार
4.सफेद पिंड white star
5.पीला पिंड Yellow Star
6.रक्त दानव Red jaint
7.अभिनव तारा
8.सुपर नोवा महाविस्फोट Super Nova
HIGH MASS STAR |
MEDIUM MASS STAR |
LOW MASS STAR |
रेड सुपर जायंट RED
SUPER GIANT |
रेड जायंट RED
SUPER GIANT |
रेड जायंट RED
GIANT |
SUPER NOVA सुपर नोवा |
SUPER NOVA सुपर नोवा |
WHITE DWARF सफ़ेद बौना |
BLACK HOLE ब्लैक होल |
NEUTRON STAR न्यूट्रॉन तारा |
BLACK DWARF काला बौना |
अंत END |
अंत END |
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G TYPE STAR SUN |
G टाइप के तारे का निर्माण PLANETARY NEBULA [ग्रहीय निहारिका] से होता हैं जो
एक सुपर नोवा की घटना के बाद शेष PLANETARY NEBULA से हुआ होगा |
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रेड जायंट RED
GIANT |
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WHITE DWARF सफ़ेद बौना |
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BLACK DWARF काला बौना |
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आकाशगंगा के केंद्र के
ब्लैक होल में अंत END |
किसी तारे का जीवन चक्र एक विशाल आणविक बादल के गुरुत्वाकर्षण पतन से शुरू होता है। जैसे-जैसे समय के साथ बादल सिकुड़ते हैं, वे धीरे-धीरे गर्म होते जाते हैं, सघन होते जाते हैं और छोटे-छोटे गुच्छों में विभाजित हो जाते हैं। ये छोटे-छोटे टुकड़े संघनित होकर गर्म गैस की घूमती हुई डिस्क में तब्दील हो जाते हैं। धूल और गैस की परिस्थितिजन्य डिस्क वाले नए प्रोटोस्टार इन गुच्छों के भीतर पैदा होते हैं। धूल और गैस के उनके आवरण अंततः ग्रहों और ग्रह प्रणालियों का निर्माण कर सकते हैं। यदि ये घूमते बादल छोटे-छोटे गुच्छों में टूट जाते हैं, तो वे बाइनरी और मल्टीपल स्टार सिस्टम का निर्माण करते हैं। इस प्रकार तारे की पहली अवस्था भ्रुण तारा या Protostar है। वही सूर्य जैसे तारों की अन्तिम अवस्था काला वामन या black dwraf हैं। वही स्टीफेन्सन 2-18 जैसे महाविशाल तारे सुपर नोवा करके ब्लैक होल में तब्दील हो जाते हैं या फिर न्युट्रान स्टार neutron star बनते हैं जो इनकी अंतिम अवस्था हैं। इस प्रकार विशाल तारे सुपरनोवा, न्यूट्रॉन तारे (pulsar star) या ब्लैक होल में बदल जाते हैं, जबकि सूर्य जैसे औसत तारे, एक लुप्त होती ग्रह नीहारिका से घिरे एक सफेद बौने के रूप में अपना जीवन समाप्त करते हैं।
एक तारे के जीवन चक्र की मुख्य सात अवस्थाएं Seven Stag of star
तारे के निर्माण और अंत की पूरी कहानी हमने ऊपर समझ ली है लेकिन एक वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन हेतु एक तारे के जीवन चक्र की निम्न सात अवस्थाएं इस प्रकार है।
1.आणविक बादल Molecular Cloud
तारा का निर्माण अंतरिक्ष मे उपस्थित हाइड्रोजन और हीलीयम गैसों के संघनन से होता है
पहली अवस्था में एक तारा एक जायंट गैस क्लाउड होता है जो सितारे बनने के लिए पहला चरण है। इनकी उत्पत्ति विशाल गैसीय बादलों से होती है।
2. प्रोटोस्टार Protostar
दूसरे चरण में इसी संरचना में ऊष्मा ऊर्जा तब बनती है जब विशाल आणविक बादल में गैस के कण एक दूसरे के साथ परस्पर क्रिया करते हैं। परिणामस्वरूप अणुओं के एक समूह का निर्माण होगा जो प्रकृति में गर्म है। इस आणविक समूह को प्रोटोस्टार के रूप में जाना जाता है। यहां एक प्रारंभिक तारे का निर्माण होता है।
3.टी-तौरी चरण T-Tauri Phase
इस चरण को टी-टौरी चरण कहा जाता है। यहाँ भारी मात्रा में ऊर्जा मुक्त होती है। टी-टौरी तारा तब शुरू होता है जब सामग्री प्रोटोस्टार में गिरना बंद कर देती है और भारी मात्रा में ऊर्जा मुक्त होती है। टॉरी तारे का औसत तापमान इसके मूल में परमाणु संलयन का समर्थन करने के लिए पर्याप्त नहीं है। टी-टौरी तारा लगभग 100 मिलियन वर्षों तक रहता है, जिसके बाद यह विकास के सबसे विस्तारित चरण - मुख्य अनुक्रम चरण - में प्रवेश करता है।
4.मुख्य अनुक्रम Main Sequence
मुख्य अनुक्रम एक खगोलीय शब्द है जो सितारों की एक विशिष्ट और निरंतर जोड़ी वाली स्थिति का उल्लेख करता है।
मुख्य अनुक्रम चरण विकास का वह चरण है जहां मुख्य तापमान संलयन शुरू होने के बिंदु तक पहुंच जाता है। इस प्रक्रिया में हाइड्रोजन के प्रोटॉन हीलियम के परमाणुओं में परिवर्तित हो जाते हैं। यह प्रतिक्रिया ऊष्माक्षेपी है; यह आवश्यकता से अधिक गर्मी छोड़ता है और इसलिए मुख्य अनुक्रम तारे का कोर बडी मात्रा में ऊर्जा मुक्त करता है।
5.लाल विशाल Red Giant
तारा अपनी अंतिम अवस्था मे धीरे- धीरे ठंडा होता है जिसके कारण यह लाल रंग का दिखाई देने लगता है तारे की इस अवस्था को रक्त दानव (Red Giant) कहते है रक्त दानव मे हीलियम कार्बन मे और कार्बीन लोहा जैसे भारी पदार्थों मे परिवर्तित होने लगता है। इस लाल विशाल तारे का एकमात्र उद्देश्य हाइड्रोजन के परमाणुओं को हीलियम के परमाणुओं में परिवर्तित करना है। इसलिए, हाइड्रोजन ईंधन के बाहर निकलने की प्रवृत्ति होती है, जिससे आंतरिक प्रतिक्रिया रुक जाती है।
6.भारी तत्वों के बीच संलयन Fusion between Heavier Elements
जैसे-जैसे तारे का विस्तार होता रहता है, हीलियम के अणु कोर में फ्यूज हो सकते हैं। प्रतिक्रिया द्वारा प्रदान की गई ऊर्जा कोर को ढहने से रोकेगी। नतीजतन, कोर का संकुचन होगा। हीलियम का संलयन पूरा होते ही यह कार्बन का संलयन शुरू हो जाता है।
7.सुपरनोवा और प्लैनेटरी नेबुला Supernova and Planetary Nebulae
इस अवस्था के बाद इन तारों का जीवन दो रास्तों मे बंट जाता है। यदि तारे का द्रव्यमान 9 सौर द्रव्यमान से कम लेकिन 1.4 सौर द्रव्यमान से अधिक हो तो वह न्यूट्रॉन तारे में बदल जाता है। वही इससे बड़े तारे श्याम वीवर (black hole) मे बदल जाते है । हालांकि छोटे तारे नहीं फटते; बल्कि, उनके कोर सिकुड़ जातें हैं, गर्म तारे बन जाते हैं जिन्हें सफेद बौने तारे भी कहा जाता है। इस प्रतिक्रिया के दौरान बाहरी पदार्थ बह जाते हैं। वही सूर्य जैसे तारों की अन्तिम अवस्था काला वामन या black dwraf हैं। वही स्टीफेन्सन 2-18 जैसे महाविशाल तारे सुपर नोवा करके ब्लैक होल में तब्दील हो जाते हैं या फिर न्युट्रान स्टार बनते हैं जो इनकी अंतिम अवस्था हैं। इस प्रकार विशाल तारे सुपरनोवा, न्यूट्रॉन तारे और ब्लैक होल में बदल जाते हैं, जबकि सूर्य जैसे औसत तारे, एक लुप्त होती ग्रह नीहारिका से घिरे एक सफेद बौने के रूप में अपना जीवन समाप्त करते हैं।
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