Russia-Ukraine conflict रूस यूक्रेन युद्ध के कारण , इतिहास व ताजा हालात एवं घटनाक्रम प्रतिकात्मक फोटो |
Russia-Ukraine conflict रूस यूक्रेन संघर्ष
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद दुनिया में छिटपुट संघर्षों के बाद लगभग शान्ति का माहौल था लेकिन बीच-बीच में इजरायल-फिलिस्तीन अफगानिस्तान-तालिबान आदि मुद्दों पर हुए युद्धों के बाद अब रूस और यूक्रेन का संघर्ष दुनिया में बड़े युद्ध की आंशका की दृष्टि से देखा जा रहा है। हालांकि अटकलें लगाई जा रही है कि अगर यह संघर्ष बड़े स्तर पर होता है तो तृतीय विश्व युद्ध के ख़तरे का संकेत होगी। हालांकि दुनिया के देश युद्ध की विकराल तबाही से भली-भांति परिचित हैं। क्योंकि अब परमाणु हथियारों की बहुलता के कारण कोई विश्व स्तर का युद्ध होता है तो इस दुनिया की तबाही निश्चित है। आइए जानते हैं रूस यूक्रेन के संघर्ष की पूरी कहानी।
•यूक्रेन का उदय एवं भौगोलिक स्वरूप
•रूस-यूकेन संघर्ष के कारण
•नाटो की भूमिका
•रूस का यूक्रेन के प्रति रवैया
• रूस यूक्रेन विवाद में अमेरिका की भूमिका
• रूस यूक्रेन विवाद में भारत की भूमिका
•रूस-यूक्रेन युद्ध के ताजा हालात
यूक्रेन का भौगोलिक स्वरूप एवं इतिहास Geography and History of Ukraine
यूक्रेन या उक्रेन Ukraïna पूर्वी यूरोप का एक देश है ।
उक्रेन राजधानी-कीव यूक्रेन की संसद सुप्रीम काउंसिल है तथा स्वतंत्रता दिवस 24 अगस्त 1991को मनाया जाता है यूक्रेन की मुद्रा हिरवीन यूक्रेन की आधिकारिक भाषा-यूक्रेनियन तथा अन्य भाषाएं रूसी, रोमानियन पोलिश है, यूक्रेन का क्षेत्रफल 6,03,700 वर्ग किमी है यहां की प्रमुख नदियां-डान, डूनेप बग, डोनेट्स है यहां का सर्वोच्च शिखर-माउंट होवेरला। यूक्रेन के प्रमुख बड़े शहर-दोनेत्स्के, क्रिवोय रोग, कीव, ओडेस है यूक्रेन देश का प्रमुख उद्योग-खनिज उर्वरक कागज, सीमेंट, चीनी, दुग्ध उत्पाद, वस्त्र, विद्युत उपकरण, वाहन निर्माण उद्योग हैं। इस राष्ट्र की प्रमुख फसलें एवं उत्पादन -गेहूं, चुकंदर, फल, सब्जियां, तंबाकू, सोयाबीन, कोक सेग्याज नामक रबड़ का पौधा है तथा प्रमुख खनिज-कोयला, मैंगनीज, निकल, बॉक्साइट, टिटेनियम, कच्चा तेल व प्राकृतिक गैस है। यूक्रेन के प्रमुख बंदरगाह-मारिपोल, ओडेसा, माइकोलेव, खेर्सन है। हालांकि यूक्रेन की स्थिति यूरोप के अन्य विकसित देशों से पिछड़ी हुई है। यूक्रेन रूस के बाद यूरोप में क्षेत्रफल की दृष्टि से दूसरा सबसे बड़ा देश है । यूक्रेन के पड़ोसी देशों तथा सीमाओं की बात करें तो इस देश का विस्तार पूर्व और उत्तर-पूर्व में है।यूक्रेन की सीमाएं उत्तर में बेलारूस, पश्चिम में पोलैंड, स्लोवाकिया और हंगरी और दक्षिण में रोमानिया और मोल्दोवा के साथ मिलती हैं। इसके साथ साथ दक्षिण में काला सागर और अजोव सागर से भी सीमा मिलती है। कीव यूक्रेन देश की राजधानी होने के साथ-साथ इस देश का सबसे बड़ा शहर भी है। प्राचीन में इसे रूथेनियन भी कहा जाता था । यूक्रेन में नीपर नदी (Dnieper River) के तट पर स्थित है। दक्षिण-पूर्व में यूक्रेन को केर्च जलडमरूमध्य (Kerch Strait) द्वारा रूस से अलग किया गया है, जो आज़ोव सागर को काला सागर से जोड़ता है। यूक्रेन की भाषा की बात करें तो यहां इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार की एक पूर्वी स्लाव भाषा है । तथा यह मूल रूप से यूक्रेनियन की मूल भाषा और यूक्रेन की आधिकारिक राज्य भाषा है। उक्रेनी भाषा जो यूक्रेन के अधिकाधिक निवासियों की भाषा है। इसप्रकार यूक्रेन की आधिकारिक भाषा यूक्रेनी है। यूक्रेन देश का प्रमुख धर्म ईसाई है। ईसाई धर्म के लोग बहुसंख्यक हैं। इसके बाद मुस्लिम धर्म की आबादी सर्वाधिक हैं। यूक्रेन का क्षेत्रफल 603,548 km² है। आबादी की दृष्टि से यह देश यूरोप में आठवां सबसे अधिक आबादी वाला देश है।
यूक्रेन की उत्पत्ति और प्रारम्भिक इतिहास Origin and Early History of Ukraine
यूक्रेन की उत्पत्ति और प्रारम्भिक इतिहास की बात करें तो
प्राचीन में यूक्रेन ‘कीवयाई रूस’ के केंद्र में था।
कीवयाई रूस, पूर्वी एवं उत्तरी यूरोप के पूर्वी स्लाव,बाल्टिक और फिनिक आबादी का एक यूनियन था। यहां की राजधानी कीव थी। लगभग 10-11वीं शताब्दी में कीवयाई रूस अपने सबसे बड़े विस्तार में था उसके बाद लगभग 13वीं शताब्दी के मध्य में बाइजेटाइन साम्राज्य के पतन के साथ कीवयाई रूस काफी कमज़ोर हो गया था। दूसरी तरफ 'मंगोल गोल्डन होर्डे के हमले के कारण पूरी तरह से तहस-नहस हो गया जिसके बाद अंत में 1240 में कीवयाई रूस को बर्खास्त कर दिया गया था। बाइज़ेंटाइन साम्राज्य रोमन साम्राज्य का पूर्वी भाग था तथा कॉन्स्टेंटिनोपल या क़ुस्तुंतुनिया जिसे वर्तमान आधुनिक इस्तांबुल भी कहा जाता है में स्थित था, इस साम्राज्य के पश्चिमी आधे हिस्से के पतन के बाद भी यह उसका हिस्सा बना रहा। ‘गोल्डन होर्डे’ स्थायी मंगोलों का एक समूह था जिन्होंने 1240 से 1502 तक रूस, यूक्रेन, कज़ाखस्तान, माल्डोवा और काकेशस पर शासन किया था। 15वीं शताब्दी की शुरुआत में पूर्व कीवान रस के बड़े हिस्से को लिथुआनिया के बहु-नृजातीय ‘ग्रैंड डची’ में शामिल किया गया था। वर्ष 1569 में ल्यूबेल्स्की संघ, पोलैंड, लिथुआनिया के ‘ग्रैंड डची’ पोलिश-लिथुआनियाई राष्ट्रमंडल बनाने के लिये एक साथ आए, जो उस समय यूरोप के सबसे बड़े देशों में से एक था। इस घटना के लगभग एक शताब्दी बाद आधुनिक यूक्रेनी राष्ट्रीय पहचान सामने आई थी। पोलैंड, लिथुआनिया , रूस और सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक (यूएसएसआर) के संघ द्वारा लगातार वर्चस्व की लंबी अवधि के बाद वर्तमान स्वतंत्र यूक्रेन हाल ही में 20 वीं शताब्दी के अंत में अस्तित्व में आया । कुलमिलाकर यूक्रेन का इतिहास एक राजनीतिक इकाई के रूप में वाइकिंग्स के साथ शुरू हुआ था। हालांकि यूक्रेन ने 1918-20 में स्वतंत्रता की छोटी अवधि का अनुभव किया था, लेकिन दो विश्व युद्धों के बीच की अवधि में पश्चिमी यूक्रेन के कुछ हिस्सों पर पोलैंड, रोमानिया और चेकोस्लोवाकिया का अधिकार भी रहा , इसके बाद यूक्रेन यूक्रेनी सोवियत समाजवादी के रूप में सोवियत संघ का हिस्सा बन गया। जब 1990-91 में सोवियत संघ की जड़ें उथल-पुथल हो रही थी तभी 16 जुलाई 1990 यूक्रेनी एसएसआर की विधायिका ने संप्रभुता की घोषणा की फिर जनमत संग्रह के माध्यम से 1 दिसंबर,1991 को अनुमोदन पूर्ण स्वतंत्रता की प्राप्ति हुई। कभी यूएसएसआर(USSR) का अंग रहा यूक्रेन आखिर दिसंबर 1991 में USSR के विघटन के साथ यूक्रेन को पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त हुई। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इस देश ने अपना आधिकारिक नाम यूक्रेन/उक्रेन में बदल दिया।
रूस और यूक्रेन के बीच संघर्ष के कारण इतिहास एवं संबंध History and relations due to the conflict between Russia and Ukraine
रूस और यूक्रेन के बीच संघर्ष के क्या कारण रहे, यह सबसे महत्वपूर्ण सवाल है ऐसा क्या हुआ जिससे यह दो देश युद्ध की आग में जल रहे हैं। अगर हम इतिहास में रूस और यूक्रेन के संबंधों के बारे में जानें तो
वर्ष 2014 में रूस ने जल्दबाजी में जनमत संग्रह के बाद क्रीमिया को यूक्रेन से अलग कर दिया। यह एक ऐसा कदम था जिसने पूर्वी यूक्रेन में रूस समर्थित अलगाववादियों और सरकारी बलों के बीच लड़ाई शुरू कर दी। यहां रूस और यूक्रेन के बीच तनाव के बीज बो दिए गए थे। हाल ही में यूक्रेन द्वारा नाटो संगठन की सदस्यता ग्रहण करने की प्रक्रिया में तेजी लाई गई। इसी बीच रूस द्वारा इस कदम को "रेड लाइन" घोषित किया गया। यह वर्तमान रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध का कारण बना गया। 1994 में यूक्रेन ने अमेरिका,ब्रिटेन,रूस सहित सात देशों द्वारा सुरक्षा की गारंटी के मेमोरंडम में फँसकर सारे परमाणु बम रूस को सौंप दिए थे। सोवियत संघ के विघटन के बाद परमाणु बमों का सबसे बड़ा जखीरा यूक्रेन के हिस्से आया था। लेकिन आज जब रूस यूक्रेन पर धावा बोल रहा है लेकिन दुर्भाग्यवश कोई देश यूक्रेन के साथ नजर नहीं आ रहे हैं। इतिहास के झरोखे से देखा जाए तो इन देशों की विरासत साझी है। यूक्रेन की राजधानी कीव जहां किसी समय में पहला स्लेविक राज्य कीवन रस हुआ करता था। यह राज्य ही यूक्रेन और रूस की जन्मस्थली बना है। दोनों देशों के रिश्तों में दो अहम घटनाक्रम हैं। 988 ईस्वी में कीव के प्रिंस व्लादिमीर प्रथम ने ऑर्थोडॉक्स क्रिश्चियन धर्म अपनाया था और इसके दस शताब्दियों बाद रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का यह बयान कि यूक्रेन और रूस के नागरिक एक ही हैं। यूक्रेन को रूस से अलग नहीं रखा जा सकता। इन दोनों घटनाओं के बीच के इतिहास ने ही दोनों देशों को बांटने और जोड़ने का भी काम किया है।
सोवियत संघ के जमाने में कभी मित्र रहे ये प्रांत दो देश बनने के बाद एक दूसरे के शत्रु बनकर मैदान में एक दूसरे के खिलाफ हो गये है। हम जानते हैं कि यूक्रेन की सीमा पश्चिम में यूरोप और पूर्व में रूस से जुड़ी है।
रूस और यूक्रेन के बीच तनाव नवंबर 2013 में तब शुरू हुआ जब यूक्रेन के तत्कालीन राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच का कीव में विरोध शुरू हुआ। उस समय विक्टर यानुकोविच को रूस का समर्थन प्राप्त था। इस प्रकार इस विद्रोह में अमेरिका-ब्रिटेन समर्थित प्रदर्शनकारियों के विरोध के कारण विक्टर यानुकोविच को फरवरी 2014 में देश छोड़कर भागना पड़ा। इस प्रकार रूस को यह बात रास नहीं आई इसलिए रूस ने दक्षिणी यूक्रेन के क्रीमिया पर कब्जा कर लिया। इसके बाद रूस ने वहां के अलगाववादियों को समर्थन दिया। इन अलगाववादियों ने पूर्वी यूक्रेन के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया। 2014 के बाद से रूस समर्थक अलगाववादियों और यूक्रेन की सेना के बीच डोनबास प्रांत में संघर्षरत माहौल रहा। हालांकि 1991 में यूक्रेन सोवियत संघ से अलग हुआ था तब भी क्रीमिया को लेकर दोनों देशों में टकराव हुआ था।
2014 के बाद रूस व यूक्रेन में लगातार तनाव व टकराव को रोकने व शांति कायम कराने के लिए पश्चिमी देशों ने पहल भी की थी जिसमें फ्रांस और जर्मनी ने 2015 में बेलारूस की राजधानी मिन्स्क में दोनों के बीच शांति व संघर्ष विराम का समझौता कराया था। इसी दौरान यूक्रेन ने नाटो से संबंध बनाने शुरू किए यूक्रेन के नाटो से अच्छे रिश्ते कायम किए। रूस को यूक्रेन की नाटो से दोस्ती रास नहीं आई। रूस को नाटो का विस्तार अखरता रहता है। राष्ट्रपति पुतिन इसी मांग को लेकर यूक्रेन व पश्चिमी देशों पर दबाव डाल रहे थे। आखिरकार रूस ने अमेरिका व अन्य देशों की पाबंदियों के बावजूद यूक्रेन पर वर्तमान 2022 में हमला बोल दिया।
नाटो क्या है (What is NATO)
नाटो का पूरा नाम उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन North Atlantic Treaty Organization (नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन) नाटो अमेरिका, ब्रिटेन जैसे 30 देशों का एक सैन्य समूह है। NATO की स्थापना 4 अप्रैल 1949 को हुई थी। इसका हेडक्वॉर्टर बेल्जियम के ब्रसेल्स में है। NATO की स्थापना के समय अमेरिका समेत 12 देश इसके सदस्य थे। अब 30 सदस्य देश हैं, जिनमें 28 यूरोपीय और दो उत्तर अमेरिकी देश हैं। वर्तमान में निम्न देश इसके सदस्य हैं- अल्बानिया, बेल्जियम,बुल्गारिया कनाडा,क्रोएशिया,चेक गणतंत्र,डेनमार्क,एस्तोनिया,फ्रांस
जर्मनी,यूनान,हंगरी,आइसलैंड,इटली,लातविया, लिथुआनिया,लक्समबर्ग,मोंटेनेग्रो,नीदरलैंड,उत्तर मैसेडोनिया,नॉर्वे, पोलैंड ,पुर्तगाल,रोमानिया,स्लोवाकिया
स्लोवेनिया,स्पेन,तुर्की,यूनाइटेड किंगडम,संयुक्त राज्य अमेरिका । द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अमेरिका ने नाटो की स्थापना की पहल कर नींव रखी थी। उस समय इस संगठन का मुख्य उद्देश्य सोवियत संघ के विस्तार पर रोक लगाना था। वर्तमान स्थिति ये है कि लातविया, इस्तोनिया जैसे देश नाटो में शामिल हो चुके हैं। अब यूक्रेन के नाटो से जुड़ जाने से रूस के लिए चुनौती बढ़ जाएगी। अमेरिका समेत पश्चिमी देश उस पर दवाब बना पाएंगे। यदि यूक्रेन नाटो से जुड़ा तो इस संगठन के समझौते के तहत इसके सभी सदस्य यानि तीस देश यूक्रेन को सैन्य बल देंगे और एक साथ मिल कर रूस पर हमला भी कर पाएंगे। लेकिन अब रूस और यूक्रेन के तनाव के बीच यह स्पष्ट नहीं कहा जा सकता कि नाटो यूक्रेन को किस रूप में सहयोग प्रदान करेगा। यूक्रेन का नाटो के प्रति नजदिकियां बढ़ाना ही रूस के लिए सर दर्द का कारण बन रहा है।
यूक्रेन और रूस के संबंध Ukraine and Russia relations
रूस और वर्तमान यूक्रेन के संबंधों का इतिहास पुराना है जब 18वीं शताब्दी में रूस की महारानी कैथरीन द ग्रेट (1762-96) ने पूरे जातीय यूक्रेन के क्षेत्र को रूसी साम्राज्य में मिलाया था। तब से रूसीकरण की ज़ारिस्ट नीति द्वारा यूक्रेनवासी सहित जातीय पहचान और भाषाओं का दमन किया गया। रूसी साम्राज्य के भीतर हालाँकि कई यूक्रेनियन समृद्धि और महत्त्व के पदों पर पहुँच गए तथा बड़ी संख्या में रूस के अन्य हिस्सों में बस गए। प्रथम विश्व युद्ध में 3.5 मिलियन से अधिक यूक्रेनवासियों ने रूसी साम्राज्य के पक्ष में लड़ा तथा एक छोटी संख्या ने ऑस्ट्रो-हंगेरियन के साथ ज़ार की सेना के खिलाफ लड़ाई लड़ी। प्रथम विश्व युद्ध के कारण ज़ार साम्राज्य और ओटोमन साम्राज्य दोनों का अंत हो गया। फिर मुख्य रूप से कम्युनिस्ट के नेतृत्त्व वाले यूक्रेनी राष्ट्रीय आंदोलन का उदय हुआ जिससे कई छोटे यूक्रेनी राज्य उभरे। वर्ष 1917 की अक्तूबर क्रांति में बोल्शेविकों के सत्ता में आने के कई महीनों बाद एक स्वतंत्र यूक्रेनी पीपुल्स रिपब्लिक की घोषणा की गई, लेकिन सत्ता के विभिन्न दावेदारों के बीच गृहयुद्ध जारी रहा, जिसमें यूक्रेनी गुट, अराजकतावादी, जार साम्राज्य और पोलैंड शामिल थे। वर्ष 1922 में यूक्रेन सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक (USSR) संघ का हिस्सा बन गया।
यूएसएसआर USSR के पतन के बाद यूक्रेन की स्थिति: The situation in Ukraine after the collapse of the USSR
जब वर्ष 1991 में USSR का पतन हुआ था। तभी यूक्रेन में आज़ादी की मांग शुरू हो गई थी। तथा वर्ष 1990 में 300,000 से अधिक यूक्रेनवासियों ने स्वतंत्रता के समर्थन में एक मानव शृंखला बनाई। इसके बाद ग्रेनाइट की क्रांति हुई जब यूक्रेन के छात्रों ने यूएसएसआर के साथ एक नए समझौते पर हस्ताक्षर न करने की मांग की।
24 अगस्त, 1991 में राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव को हटाने और कम्युनिस्टों को सत्ता में बहाल करने के लिये तख्तापलट की विफलता के बाद यूक्रेन की संसद ने देश की स्वतंत्रता हेतु अधिनियम को अपनाया।
इसके बाद संसद के प्रमुख लियोनिद क्रावचुक यूक्रेन के पहले राष्ट्रपति चुने गए। दिसंबर 1991 में बेलारूस, रूस और यूक्रेन के नेताओं ने औपचारिक रूप से सोवियत संघ की सदस्यता त्याग कर स्वतंत्र राज्यों के राष्ट्रमंडल (CIA) का गठन किया। हालांँकि यूक्रेन की संसद वेरखोव्ना राडा (Verkhovna Rada) ने कभी भी परिग्रहण (Accession) की पुष्टि नहीं की, इसलिये यूक्रेन कानूनी रूप से कभी भी CIS का सदस्य नहीं था।
रूस और यूक्रेन विवाद में अमेरिका की भूमिका USA Russia and Ukraine War 2022
रूस और यूक्रेन संबंधित विवाद में अमेरिका की बड़ी भूमिका है। कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार अमेरिका ने तीन हज़ार सैनिक यूक्रेन की धरती पर भेजा है।
विश्व में किसी भी महाद्वीप में कोई संघर्ष हो तो अमेरिका प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से जरूर संबंधित रहा है हालांकि अमेरिका अपनी महत्त्वाकांक्षाओं तथा विश्व शक्ति के रूप में कभी सीधे तौर पर आमने-सामने बहुत कम आया है। लेकिन अमेरिका के पड़ोस में हो रहे किसी भी युद्ध में अमेरिका की विदेश नीति तथा अंतरराष्ट्रीय संगठनों की अगुवाई को लेकर जरुर हरकत में आया है। रूस और यूक्रेन के बीच हो रहे विवाद में अमेरिका की भूमिका को नजरंदाज नहीं किया जा सकता। हालही में अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने विश्व को संबोधित करते हुए ये कहा है कि रूस अब वेस्ट कंट्रीज के साथ व्यापार नहीं कर सकता है, और वहां से उसे जो सहायता मिलती है वह भी मिलनी बंद हो जाएगी। इस बयान से जाहिर होता है शीत युद्ध के बाद की कड़वाहट अब भी बरकरार है। कहीं न कहीं अप्रत्यक्ष रूप से अमेरिका की भावना यूक्रेन के साथ नजर आ रही है। भले ही युद्ध के मैदान में नाटो व अमेरिका सीधे साथ नहीं दे रहें हैं लेकिन इन देशों की आंतरिक गुटबाजी यूक्रेन के साथ है। हालिया बयान में यह भी कहा गया था कि यदि रूस पीछे नहीं हटता है तो वह अगले फैसले के लिए तैयार रहे। अमेरिका और चीन के बीच संबंध अच्छे नहीं हैं वैसे कोरोना वायरस से लेकर काफी यूरोपीय देश चीन पर राजी नहीं है। अमेरिका नाटो के माध्यम से हरगिज़ यूक्रेन को बचाने की कोशिश करेगा लेकिन अमेरिका भी रूस की ताकत जो जानता है इसलिए विश्व शक्ति अमेरिका यूक्रेन के लिए रूस से उलझना मुश्किल हालातों में ही चाहेगा। हालांकि अमेरिका का समर्थन तो यूक्रेन को है लेकिन सैन्य कार्रवाई में अमेरिका रूस को क्या जवाब देगा यह भविष्य के गर्भ में है।
रूस और यूक्रेन विवाद में भारत की भूमिका India's role in Russia and Ukraine dispute
यूक्रेन और रूस विवाद में भारत की भूमिका लगभग तटस्थ सी है भारत और रूस के संबंध वर्षों से बेहतर है। हथियार खरीदारी तथा विभिन्न प्रकार के आयात निर्यात में भारत और रूस की हमेशा दोस्ती रही है। लेकिन भारत हमेशा की तरह इस बार भी दोनों देशों की मध्यस्थता कर शान्ति से हल निकालने की कोशिश कर रहा है। भारत के संबंध अमेरिका से अच्छे हैं तो दूसरी तरफ रूस से भी। भारत इस विवाद में एक धर्मसंकट में है भारत यूक्रेन देश के व्यवहार को मध्यनजर रख कर अगर रूस का समर्थन करता है तो यह अमेरिका भारत संबंधों के लिए ठीक नहीं है। रूस भारत का पुराना मित्र रहा है रूस ने भारत की कई बार विकट परिस्थितियों में मदद भी की है। वर्ष 1962 में क्यूबा मिसाइल संकट और भारत पर चीन का हमला, दोनों एक साथ हुए थे. तब सोवियत यूनियन को चीन के समर्थन की जरूरत थी. ऐसे में रूस ने भारत को मुश्किल वक्त में समर्थन नहीं दिया था। इसलिए भारत इस विवाद से तटस्थ रहकर यूक्रेन मामले में रूस पर कड़े प्रतिबंध लगाने की पश्चिमी देशों की धमकियों को दरकिनार कर वह रूस के खिलाफ किसी भी आर्थिक प्रतिबंध का पक्षकार नहीं बन बन रहा है। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) डेटाबेस के अनुसार, रूस पिछले तीन दशकों में भारत को हथियारों की आपूर्ति करने वाला प्रमुख देश रहा है तो कश्मीर मामले में भारत को हर बार रूस से समर्थन मिला है। हालांकि यूक्रेन से भारत की कोई दुश्मनी नहीं है लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यूक्रेन की नीति भारत के प्रति कोई खास मित्रता वाली नहीं रही है। लेकिन नाटो की अगुवाई करने वाले अमेरिका का यूक्रेन का समर्थन में होना भारत के लिए ऊहापोह की स्थिति में डालता है। भारत भी किसी भी कीमत पर सीधा रूस का समर्थन कर अमेरिका और नाटो में शामिल देशों की आंखों में अखरना नहीं चाहता। हाल ही में 25 फरवरी को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रूस के खिलाफ लाए गए प्रस्ताव पर भारत वोटिंग से बाहर रहा था। भारत के इस कदम की रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने प्रशंसा की थी। उन्होंने कहा था कि भारत ने स्वतंत्र रुख अपनाया है। हालांकि, इस फैसले को लेकर अमेरिका ने एक सधी हुई प्रतिक्रिया दी थी। भारत के इस फैसले का विरोध अमेरिका ने प्रत्यक्ष रूप से नहीं किया था। भारत और यूक्रेन के संबंध वैसे पहले से ही मैत्रीपूर्ण रहे हैं जब यूक्रेन यूएसएसआर का हिस्सा था लेकिन वैसे संबंध भी नहीं है जैसे वर्तमान में रूस से हैं। इस बात का अंदाजा लगा सकते हैं कि भारत का कोई भी प्रधानमंत्री आजतक यूक्रेन के दौरे पर नहीं गया है। लेकिन जब यूक्रेन भारत से सहयोग की गुहार लगाता है तो मना करना भी आसान नहीं है कुलमिलाकर भारत इस दुविधा में ही रहेगा तथा भारत हमेशा युद्ध रूकवाने की कोशिश करेगा हालांकि भारतीय प्रधानमंत्री ने रूस से बात कर हमले को रोकने की अपील की है।
क्या रूस-यूक्रेन विवाद तृतीय विश्व युद्ध का संकेत है? Is the Russia-Ukraine dispute a sign of World War III?
दुनिया भर में रूस यूक्रेन संकट से माहौल गर्मागर्म है ऐसे कयास भी लगाए जा रहे हैं कि यह युद्ध पूरे यूरोप में खतरनाक रूप लेकर तीसरे विश्व युद्ध का खतरा बनेगा। हालांकि समाचार एजेंसियों द्वारा इस युद्ध के बिगुल को तीसरे विश्व युद्ध की भनक तक बताया जा रहा है लेकिन हमें तीसरे विश्व युद्ध की आंशका करार देना जल्दबाजी होगी। वर्तमान में वैश्वीकरण तथा भूमंडलीकरण के दौर में सभी देश अपने विकास की दौड़ में अग्रसर है ऐसे में कोई देश युद्ध में अपनी ऊर्जा खर्च करके बर्बाद नहीं होना चाहता। परमाणु हथियारों के युग में युद्ध का मतलब विनाश हैं ऐसे में कोई देश युद्ध करके हजारों साल पीछे लौटने से पहले सौ बार सोचेगा। लेकिन तीसरे विश्व युद्ध के कारणों की आंशका इसलिए जताई जा रही है क्योंकि इस बात रूस के सामने अकेला यूक्रेन ही नहीं बल्कि तीस देश सामने है। तीसरे विश्व युद्ध की आंशका इसलिए भी है कि अगर रूस के खिलाफ अमेरिका तथा नाटो के देश सीधा मोर्चा खोल दें। इधर रूस की मदद के लिए चीन रूस की मदद करने लग जाए तो बड़े युद्ध होने में देरी नहीं लगेगी। लेकिन आज के युग में ऐसा संभवतः बमुश्किल है क्योंकि युद्ध के परिणाम और विकराल रूप हर देश भली-भांति जानते हैं। चीन ने अभी से ही रूस के समर्थन में बयान देने शुरू कर दिए हैं और पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर बनाए जा रहे दबाव को ही जंग भड़काने का कारण बताया है। अमेरिका और चीन के बीच पिछले काफी समय से नौक झौंक चलती आ रही है। तीसरा विश्व युद्ध तभी संभव है जब अमेरिका और चीन जैसे देश इस युद्ध में हिस्सा लेना शुरू कर दें। दूसरी तरफ रूस की अन्य देशों को यूक्रेन की सहायता ना करने की धमकियों से नाटो तथा यूरोप के अन्य देश उकसावे में आकर रूस पर धावा बोल दें। हालांकि इस प्रकार के कयास लगाए जा रहे हैं तथा रूस यूक्रेन पर लगातार सैन्य कार्रवाई कर रहा है फिलहाल यूक्रेन के साथ कोई नहीं है लेकिन अगर नाटो यूक्रेन के समर्थन में कोई बड़ा अभियान शुरू करता है तो स्थति विकराल हो सकती है इसमें कोई दोराय नहीं है। लेकिन संयुक्त राष्ट्र संघ तथा विभिन्न देशों की मानवतावादी और निशस्त्रीकरण की नीतियों के कारण बड़े युद्ध की आंशका बहुत कम रहती है। भारत सहित दुनिया के शान्तिप्रिय देश हरगिज बड़े युद्ध को टालने की कोशिश करेंगे।
रूस यूक्रेन युद्ध के ताजा हालात Russia Ukraine latest situation of war
रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमिर पुतिन का इशारा मिलते ही रूसी सेना ने 24-25 फरवरी को अलसुबह यूक्रेन में घुसपैठ कर धावा बोल दिया। शाम होते होते पुतिन के सैनिक यूक्रेन की राजधानी कीव तक कूच कर लिया। अभी भी हमला जारी है हाल ही में खारकीव (kharkiv)में फिर से भीषण गोलाबारी भी हुई। इसी बीच रूसी सेना खेर्सोन के बाहर तक पहुंच चुकी है। खेर्सोन, दक्षिणी यूक्रेन का प्रमुख शहर है। खबर है कि रूस की सेना खेर्सोन के बाहरी इलाकों तक पहुंच चुकी है। साथ ही रूसी सेना ने यूक्रेन के सैन्य इलाकों पर बड़ा हमला किया । अब तक हुई झड़पों में लगभग 70-80 यूक्रेनी सैनिकों के मारे जाने की खबर है। खारकीव यूक्रेन का दूसरा सबसे बड़ा शहर है। यहां रूसी सेना द्वारा बमबारी करने की खबर सामने आ रही है।
Very interesting and knowledgeable
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