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Lata Mangeshkar, also known as the 'Nightingale of India', was one of the most playback versatile singers |
Lata Mangeshkar: भारत रत्न सुर कोकिला लता मंगेशकर का जीवन यादों के झरोखे से
भारत की जानी मानी गायिका सुर कोकिला के नाम से प्रसिद्ध भारत रत्न लता दीदी या सुश्री लता मंगेशकर को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनकी यादों एवं उनके जीवन के बारे में इस लेख की शुरुआत उनके गाये इस गीत से करते हैं वाकई इस गीत के बोल लता जी के जज़्बात ही है इन लाइनों से हम लता मंगेशकर के जीवन और उनकी मधुर आवाज को अब केवल यादों के अहसास को महसूस कर सकते हैं। लता मंगेशकर ने अपने पहले गीत मराठी फिल्म 'कीर्ती हसाल' कितना हसोगे 1942 से गायकी की शुरुआत की थी और अनेकानेक फिल्मों , देशभक्ति तथा भजन कीर्तन गाने के साथ लम्बे समय तक मधुर संगीत देती रही। इस लम्बे सफर के आखिर में साल 2006 में रिलीज हुई 'रंग दे बसंती' का गाना 'लुका छिपी' गाया इस गाने को एआर रहमान ने कंपोज किया था। लता मंगेशकर के आखिरी यादों में उसका अंतिम हिंदी ऐल्बम 2004 में रिलीज हुई फिल्म 'वीर-जारा' का था।
मेरी आवाज़ ही पहचान है
नाम गुम जायेगा, चेहरा ये बदल जायेगा
मेरी आवाज़ ही, पहचान है
गर याद रहे
वक़्त के सितम, कम हसीं नहीं
आज हैं यहाँ, कल कहीं नहीं
वक़्त से परे अगर, मिल गये कहीं
मेरी आवाज़ ही ...
जो गुज़र गई, कल की बात थी
उम्र तो नहीं, एक रात थी
रात का सिरा अगर, फिर मिले कहीं
मेरी आवाज़ ही ...
दिन ढले जहाँ, रात पास हो
ज़िंदगी की लौ, ऊँची कर चलो
याद आये गर कभी, जी उदास हो
इंसान इस दुनिया में आता है और जाता है लेकिन कुछ महामानव एक विलक्षणता लेकर आते हैं और पूरी दुनिया में अपना नाम कमाकर चलें जाते हैं। कुछ लोगों को उनकी प्रतिभा प्रकृति और जन्म के रूप से मिलती है तो कुछ लोग संघर्ष और त्याग से इस दुनिया में हमेशा के लिए अमर हो जातें हैं। लता मंगेशकर भी उन विरले व्यक्तियों में से थी जिन्होंने भगवान से प्राप्त मधुर कंठ तथा अपनी मेहनत और लग्न से जो गाया वह युगों युगों तक हमारे कानों में गूंजता रहेगा। हालांकि अगली कुछ पीढ़ियां लता जी का कोइ नगमा सुनकर नाम तो भूल सकते हैं लेकिन वो मधुर आवाज ही उनकी पहचान होगी क्योंकि लता मंगेशकर जी की आवाज़ सबसे अलग और अनूठी थी।
वर्ष 2022 की 6 फरवरी को गायकी खेमा तथा बालिवुड सिनेमा ही नहीं बल्कि पूरे भारत के इतिहास के सबसे दुखद और बेसुरे दिन के रूप में दर्ज हो गया जब लता मंगेशकर के निधन की खबर आई। स्वर साम्राज्ञी भारत रत्न लता मंगेशकर का स्वर हमेशा के लिए शान्त हो गया। लता मंगेशकर ने केवल संगीत में ही नहीं बल्कि अपनी विलक्षण प्रतिभा तथा मधुर व्यवहार से हर भारतवासी का दिल जीत लिया था। लता जी ने हिंदी सिनेमा तथा फिल्मों में बतौर गायिका के रूप में अनेक संगीत दिए। ऐ मेरे वतन के लोगों जैसे देश भक्ति गीत तो हर किसी को रूला देते थे। लता मंगेशकर का जीवन सादगी और साधना से भरपूर एक इंसानियत की मिशाल था। इस दुनिया में लता मंगेशकर जैसे विरले ही लोग ही जन्म लेते हैं। आइए जानते हैं सुर कोकिला के जीवन और गायकी से जुड़े रोचक तथ्यों के बारे में ।
लता मंगेशकर का जीवन परिचय
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Lata Mangeshkar cure picture credit twitter |
सुर कोकिला लता दीनानाथ मंगेशकर का जन्म 28 सितम्बर, 1929 इंदौर, मध्यप्रदेश में हुआ था। उनके पिता का नाम दीनानाथ मंगेशकर तथा माता का नाम शेवंती मंगेशकर था। लता मंगेशकर के पिता एक कुशल रंगमंचीय गायक थे इसलिए जल्दी ही लता को संगीत सिखाना शुरू कर दिया था। लता जब पाँच साल की थी तो उनके साथ उनकी बहनें आशा, ऊषा और मीना भी संगीत कला सीखा करतीं थीं। लता मंगेशकर ने अल्प आयु में ही पढ़ाई के दौरान संगीत कला और नाटक अभिनय सीखना शुरू कर दिया। दुर्भाग्यवश लता जब मात्र तेरह वर्ष की थी तब 1942 में इनके पिता की मौत हो गई। इसी दौरान नवयुग चित्रपट फिल्म कंपनी के मालिक और लला के पिता के मित्र मास्टर विनायक दामोदर कर्नाटकी ने इनके परिवार को संभाला और लता मंगेशकर को एक सिंगर और अभिनेत्री बनाने में मदद की। लता मंगेशकर के जीवन में यहां संघर्ष की शुरुआत होती है लेकिन यहां से लता जी पीछे मुड़कर नहीं देखती है अपना संघर्ष जारी रखते हुए मेहनत करती है , लता मंगेशकर ने अपने जीवन में बहुत कठिनाइयों का सामना करती है शुरुआत में तो कई संगीतकारों ने लता मंगेशकर की पतली आवाज़ के कारण उनको काम देने से मना कर देते थे। उस समय की प्रसिद्ध पार्श्व गायिका नूरजहाँ के साथ लता जी की तुलना की जाती थी। लेकिन धीरे-धीरे अपनी लगन और प्रतिभा के बल पर लता जी ने अपनी मंजिल की शुरुआत की। जीवन में असीम सफलता पाने के बाद भी लता मंगेशकर ने अपने जीवन में बहुत कठिनाइयों का सामना कि इसलिए वो एक इंटरव्यू में कहती है कि "मुझे दुबारा मानव जन्म नहीं मिले गर मिले तो मैं लता मंगेशकर नहीं बनना चाहुंगी क्योंकि इस लता मंगेशकर की परेशानियां सिर्फ लता मंगेशकर ही जानती है"
लेकिन लता जी की मेहनत, लग्न ने उन्हें अद्भुत कामयाबी के साथ फ़िल्मी जगत की सबसे मज़बूत महिला बना दिया था। जिससे वह सदी की महान गायिका और भारत रत्न बना दिया।
2019 में बिगड़ी थी सेहत
लता मंगेशकर अपनी बहन उषा और भाई हृदयनाथ के साथ मुंबई के पेडर रोड स्थित प्रभुकुंज में पहले फ्लोर पर रहती थीं। वह कई सालों से वे यहां रह रही थीं। बहन आशा भोंसले भी यहां से कुछ दूरी पर रहती हैं। सालों तक प्रभाकुंज सोसायटी की सुबह लता मंगेशकर के संगीत के रियाज से ही शुरू होती रहीं। करीब 4 साल से उनका रियाज खराब सेहत के कारण लगभग बंद सा ही था। नवंबर 2019 में भी लता जी को निमोनिया और सांस की तकलीफ के कारण ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती कराया गयाथा। जहां वे 28 दिन भर्ती रही थीं। नवंबर 2019 के बाद से उनका घर से निकलना भी लगभग बंद हो चुका था।
सुर कोकिला के सुरीले आठ दशक
लता मंगेशकर ने बचपन से ही गाना शुरू किया था लम्बे जीवन में उनका सुर कभी कमजोर नहीं पड़ा। संगीत कला के क्षेत्र में फिल्मी, देशभक्ति, भक्ति संगीत आदि में उनका असीम योगदान था। 92 साल की लता दीदी ने 36 भाषाओं में 50 हजार गाने गाए, करीब 1000 से ज्यादा फिल्मों में उन्होंने अपनी आवाज दी। 1960 से 2000 तक एक दौर था, जब लता मंगेशकर की आवाज के बिना फिल्में अधूरी मानी जाती थीं। उनकी आवाज गानों के हिट होने की गारंटी हुआ करती थी। सन 2000 के बाद से उन्होंने फिल्मों में गाना कम कर दिया और कुछ चुनिंदा फिल्मों में ही गाने गाए। उनका आखिरी गाना 2015 में आई फिल्म डुन्नो वाय में था। करीब 80 साल से संगीत की दुनिया में सक्रिय रहना किसी गायक के लिए रिकार्ड था। लम्बे समय तक अपनी सेहत और आवाज़ को लय में बनाएं रखना अपने आप में एक चुनौती होती है लेकिन लता मंगेशकर ने वो सब कुछ किया जो एक संगीत कलाकार को करना चाहिए। लता खुद बताती थी कि "मैंने संगीत के लिए स्वर को बनाए रखने के लिए कोई परहेज नहीं रखा क्योंकि मेरे पिता जी कहते थे कि सुर के लिए परहेज नहीं बल्कि लगातार गाते रहना चाहिए और मैं हमेशा गाती रही"
जब लोकप्रिय देशभक्ति गीत "ऐ मेरे वतन के लोगों" ने नेहरू जी की आंखे की थी नम
लिरिक्स
ऐ मेरे वतन के लोगों
तुम खूब लगा लो नारा
ये शुभ दिन है हम सब का
लहरा लो तिरंगा प्यारा
पर मत भूलो सीमा पर
वीरों ने है प्राण गँवाए
कुछ याद उन्हें भी कर लो
जो लौट के घर न आये
ऐ मेरे वतन के लोगों
ज़रा आँख में भर लो पानी
जो शहीद हुए हैं उनकी
ज़रा याद करो क़ुरबानी
जब घायल हुआ हिमालय
खतरे में पड़ी आज़ादी
जब तक थी साँस लड़े वो
फिर अपनी लाश बिछा दी
संगीन पे धर कर माथा
सो गये अमर बलिदानी
जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो कुर्बानी
जब देश में थी दीवाली
वो खेल रहे थे होली
जब हम बैठे थे घरों में
वो झेल रहे थे गोली
थे धन्य जवान वो आपने
थी धन्य वो उनकी जवानी
जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो कुर्बानी
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लता मंगेशकर नेशनल स्टेडियम में ऐ मेरे वतन के लोगों गाते हुए फोटो साभार सोशल मीडिया |
लोकप्रिय देशभक्ति गीत, ऐ मेरे वतन के लोगों, भारत-चीन युद्ध के बाद लिखा गया था और तब से यह भारत का सबसे लोकप्रिय देशभक्ति गीत बन गया है।
यह गाना लेखक कवि प्रदीप ने एक अजीबोगरीब तरीके से टहलते हुए एक डिब्बे को फाड़कर पीछे लिखा था। इस लोकप्रिय गाने के म्यू़ज़िक डायरेक्टर सी. रामचंद्र थे। हालांकि यह गाना आशा भोसले से गंवाने की बात कही गई लेकिन आखिर यह गाना लता मंगेशकर ने ही गाया जिससे स्टेडियम में देशभक्ति का रंग चढ़ गया।
27 जनवरी 1963 को जब लता मंगेशकर ने इसे राष्ट्रपति डॉ. एस राधाकृष्णन और प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की मौजूदगी में नेशनल स्टेडियम में गाया तो तत्कालीन प्रधानमंत्री की आंखें नम हो गईं। नेहरू ने कहा था कि एक सच्चा भारतीय इस गीत से पूरी तरह प्रभावित होगा।
2001 में भारत रत्न से नवाजा
लता मंगेशकर को 2001 में संगीत की दुनिया में उनके योगदान के लिए भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया था। इसके पहले भी उन्हें कई सम्मान दिए गए, जिसमें पद्म विभूषण, पद्म भूषण और दादा साहेब फाल्के सम्मान भी शामिल हैं। लता मंगेशकर ने आठ दशकों तक बालीवुड तथा हिन्दी फिल्मों की गायकी पर राज किया। जिसमें उन्होंने सैकड़ों अवार्ड और उपलब्धियां हासिल की।
लता जी गायिका के साथ साथ संगीतकार भी थीं और उनका अपना फिल्म प्रोडक्शन भी था, उनकी एक फिल्म "लेकिन" थी, इस फिल्म के लिए उन्हें बेस्ट गायिका का नेशनल अवॉर्ड भी मिला था, 61 साल की उम्र में गाने के लिए नेशनल अवॉर्ड जीतने वाली वे एकमात्र गायिका रहीं। इसके अलावा भी फिल्म "लेकिन" को 5 और नेशनल अवॉर्ड मिले थे।
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Lata Mangeshkar |
घर के नौकर के पॉजिटिव आने के बाद लता को हुआ था कोरोना
वर्ष 2019 से लता मंगेशकर की तबीयत में कुछ समस्याएं होनी शुरू हुई थी बीच में ठीक होने के बाद वह बहुत कम बाहर आया करती थी। लता मंगेशकरद लगभग दो साल से घर से नहीं निकली थीं। वे कभी-कभी सोशल मीडिया के जरिए अपने फैंस के लिए संदेश देती थीं। लेकिन बड़े कार्यक्रम में हिस्सा लेना या किसी आयोजन में लगभग जाना बंद कर दिया था। बढ़ती उम्र से कमजोरी और गिरती सेहत के कारण वे अपने कमरे में ही ज्यादा समय गुजारती थीं। हाल ही में उनके घर के एक स्टॉफ मेंबर की रिपोर्ट कोरोना पॉजिटिव आने के बाद उनका टेस्ट कराया गया था। 8 जनवरी को उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी। तबीयत खराब होने के बाद दीदी को ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती कराया गया था यहां इन्हें आईसीयू में रखा गया था। लता मंगेशकर के अस्पताल में भर्ती होने के बाद उन्हें कोरोना के साथ निमोनिया की पुष्टि हुई। इसप्रकार 29 दिन तक इस बिमारियों से जंग लड़ती रही। इसी दौरान बीच-बीच में उनकी सेहत में सुधार होना भी शुरू हो गया था। ऑक्सीजन निकाल दी गई थी । इसी बीच वेंटिलेटर से हटाने के बाद लग रहा था कि सब ठीक होगा। सभी देशवासियों ने उनके स्वास्थ्य के लिए दुआएं मांगी लेकिन इस बार दुआएं काम नहीं आईं।
इसी दौरान उनकी सेहत में फिर समस्या होने लगी इसलिए कुछ दिन बाद ही वे फिर से वेंटिलेटर पर आ गई लेकिन दुर्भाग्यवश इस बार कोरोना तथा मल्टीपल ऑर्गन फेलियर की वजह से लता मंगेशकर जीवन की जंग हार गई। डाक्टरों की कड़ी मेहनत भी उन्हें बचा नहीं पाई। इसप्रकार भारत रत्न सुर कोकिला लता मंगेशकर का 92 साल की उम्र में मुंबई में 6 फरवरी को निधन हो गया। इस बार लंबे समय से बीमार चल रही लता दीदी को इस बार लोगों की दुआएं नहीं लगी। लता मंगेशकर ने अपने इस जीवन में महानतम बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। लता मंगेशकर के निधन पर पूरा देश गमगीन हुआ भले ही लता दीदी ने शादी नहीं की और उनके कोई बच्चें नहीं थे लेकिन उनके जीवन का महत्व तथा उनकी प्रसिद्धि का आलम यह था कि हर बच्चा बच्चा उसकी आवाज से उन्हें पहचानता था इसलिए लता मंगेशकर के निधन की खबर से देश के हर व्यक्ति को दुःख महसूस हुआ तथा लता जी के शोहरत भरे जीवन एव उपलब्धियों को जानकर भाव विभोर हुआ।
क्या होता है मल्टीपल ऑर्गन फेलियर जिससे लता मंगेशकर का हुआ निधन
किसी बिमारी के कारण या लम्बी आयु के बाद किसी व्यक्ति के शरीर के दो या उससे अधिक अंग एकसाथ काम करना बंद कर देने की स्थिति को मल्टीपल ऑर्गन फेलियर कहा जाता है। हमारे शरीर के कुछ महत्वपूर्ण अंग होते हैं जिसमें ब्रेन , हार्ट, किडनी,लीवर जो किसी मनुष्य को जिंदा रहने के लिए जरूरी होते हैं। इनके साथ साथ शरीर के बहुत से ऑर्गन होते हैं इनमें से कुछ अंग एक साथ काम करना बंद कर तो इंसान को बचाया नहीं जा सकता।
इसे मल्टीप्ल ऑर्गन डिसफंक्शन सिंड्रोम कहा जाता है। इससे इम्यून सिस्टम यानी प्रतिरक्षा प्रणाली समेत संपूर्ण शरीर प्रभावित होता है। जिसमें इंसान का शरीर सर्पोटिंग खो देता है जिससे यह मौत का कारण बनता है।
लता दीदी को ज़हर देने का किस्सा
लता मंगेशकर एक इंटरव्यू में खुद को तक़लिफों वाली महिला बताया । इसके अलावा कुछ दावों में लता जी ने किसी द्वारा हल्का जहर देने की बात भी कही थी।
स्वर कोकिला लता मंगेशकर के बारे में कहा जाता है कि जब वे 33 साल की थीं, तब किसी ने उन्हें जहर देकर मारने की कोशिश की थी। कहा जाता है एक बार खुद लता मंगेशकर ने इस कहानी के पीछे से पर्दा हटाया था। उन्होंने एक बातचीत में कहा था, "हम मंगेशकर्स इस बारे में बात नहीं करते, क्योंकि यह हमारी जिंदगी का सबसे भयानक दौर था। कहा जाता है कि इस घटना के बाद लता मंगेशकर बिमार हो गई थी जिसमें वह कुछ महिनों तक बेड पर रही थी लता मंगेशकर इस भयानक दौर में टूट गई कि उसे लगा कि वह अब गा नहीं पाएगी लेकिन लता मंगेशकर ने हिम्मत को जिंदा रखा। कमजोरी के बाद भी लता का हौसला नहीं टूटा वह धीरे-धीरे स्वस्थ होने लगी ।
लता खुद कहती हैं कि उसने किसी का बुरा सोचा नहीं , किसी का बुरा किया नहीं मैंने हमेशा देश की सेवा करने की कोशिश की लेकिन यह सेवा कितनी की यह मै नहीं बता सकती। लता जी की मानें तो इलाज के बाद वे धीरे-धीरे ठीक हुईं। लता मंगेशकर खुद कहती हैं, कि "इस बात की पुष्टि हो चुकी थी कि मुझे धीमा जहर दिया गया था। डॉक्टर्स का सहयोग और इलाज के साथ साथ मेरे सपनों और मेरे दृढ़ संकल्प ने मुझे वापस गाने के काबिल बनाया। मैं तीन महीने तक बेड पर रहने के बाद मैं फिर से रिकॉर्ड करने लायक हो गई थी।"
सुर सम्राज्ञी की अधुरी प्रेम कहानी
हम सब जानते है कि सूश्री लता मंगेशकर अपने जीवन में शादी नहीं की यह उनका संगीत प्रेम और त्याग था। हालांकि शादी और प्रेम से जीवन महान बनें यह जरूरी नहीं कुछ महान लोग हैं जो अजीवन अविवाहित रहें हैं और रह रहे हैं। लेकिन प्रेम किसी व्यक्ति से अनछुआ रहें यह भी मुमकिन नहीं है। लता जी को पूरा देश सम्मान देते हुए दीदी के नाम से पुकारता है। लता मंगेशकर आज पूरे देश के लिए आदर्श और आदरणीय बन गई है। लता का जीवन नैतिक मूल्यों और आदर्शों के कारण आज देश के लिए पूजनीय और श्रद्धा योग्य है। अगर प्रेम और इंसान की बात करें तो भगवान और अवतारों के भी प्रेम प्रसंग हमें सुनने को को मिलते हैं। इसलिए लता मंगेशकर के जीवन के किस्सों को जानते हुए हमारे जहन में सवाल आता होगा क्या लता मंगेशकर को भी जीवन में किसी से प्रेम हुआ था? क्या उन्होंने कभी शादी की सोची थी। तो एक वाकया सुनने में मिलता है कि लता मंगेशकर के जीवन से एक प्रेम कहानी जुड़ी हुई है। हालांकि लता ने इस बारे में कभी खुद कुछ नहीं कहा, लेकिन कुछ लोगों तथा कुछ वेबसाइटों एवं न्युज चैनलों के लेखों में पढ़ने को मिलता है कि डूंगरपुर राजघराने के महाराजा राज सिंह से लता मंगेशकर बेहद प्यार करती थीं। लता के भाई हृदयनाथ मंगेशकर और राज सिंह एक-दूसरे के अच्छे दोस्त थे। वो एक साथ क्रिकेट खेला करते थे। उनकी मुलाकात उस समय हुई जब राज लॉ करने के लिए मुंबई आए थे डूंगरपुर राजसिंह डूंगरपुर का नाम क्रिकेट में काफी चर्चित रहा था। राज सिंह भी लंबे समय तक बीसीसीआई से जुड़े रहें। हालांकि राजसिंह डूंगरपुर ने भी शादी नहीं की थी। इस प्रकार लता और राज की प्रेम कहानी विवाह में नहीं बदल सकी लेकिन इन दोनों की यह कहानी अपने आप में भाव विभोर करने वाली रही है। इस प्रकार महान लोगों की प्रसिद्धी तो दूर दूर तक जाती है लेकिन उनके जीवन की कठिनाईयों और जज्बातों को हम बड़ी मुश्किल से अहसास कर पाते हैं। महानतम लोगों के कुछ सपने और कुछ अपनी समस्याएं होती हैं जो वो खुद जानते हैं और इस दुनिया के लिए हजारों अनसुलझे सवाल छोड़ जाते हैं।
लता जी को भावपूर्ण श्रद्धांजलि।
ReplyDeleteनमन
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