“उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाये”स्वामी विवेकानंद
"Get up, wake up and don't stop until the goal is achieved"
प्रत्येक वर्ष के जनवरी माह की 12 तारीख को स्वामी विवेकानंद की जयंती के दिन संपूर्ण भारत में राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है। देश की युवा पीढ़ी किसी भी राष्ट्र की भावी राष्ट्र निर्माता होती है इसलिए आज के युवाओं पर ही देश का भविष्य निर्भर करता है। देश की युवा पीढ़ी को सही मार्गदर्शन एवं दिशा मिल सके, इसलिए हर साल 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है। स्वामी विवेकानंद के आदर्शों और विचारों से देशभर के युवाओं को प्रोत्साहना मिलता है। राष्ट्रीय युवा दिवस को देशभर में बड़े ही धूम- धाम से मनाया जाता है। इसके लिए सरकारी एवं निजी विद्यालयों में स्वामी विवेकानंद के आदर्शो पर भाषण एवं निबंध प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है।
राष्ट्रीय युवा दिवस की शुरुआत
भारत सरकार ने सन 1985 से 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस National Youth Day मनाने की घोषणा की थी। तब से भारत में हर साल 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद की जयंती को देशभर में राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। स्वामी विवेकानंद देश के महानतम पुरुष, आदर्श व्यक्ति, समाज सुधारक, विचारक और दार्शनिक थे। उनके आदर्शों और विचारों से देशभर के युवा प्रोत्साहित हो सके इसलिए यह दिन युवा वर्ग के लिए बहुत खास है। युवा वर्ग विवेकानंद के विचारों को जीवन में अपनाकर अपने जीवन सफल हो सकते है।
स्वामी विवेकानंद जी का जीवन परिचय
भारत के सिद्ध महापुरुष स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी सन् 1863 को हुआ था। उनके बालपन का नाम नरेंद्र दत्त था। इनकी माता का नाम भुवनेश्वर देवी था और वो एक गृहणी थी। इनके पिता विश्वनाथ दत थे। स्वामी विवेकानंद के पिता हाई कोर्ट के प्रसिद्ध वकील थे।
उनके दादा संस्कृत और फारसी के विद्वान थे। विवेकानंद ने अपने परिवार को 25 साल की उम्र में ही छोड़ दिया और एक साधु बन गए थे ।
हालांकि नरेंद्र दत के पिता विश्वनाथ दत्त पाश्चात्य सभ्यता में विश्वास रखते थे। वे अपने पुत्र को भी अंग्रेजी पढ़ाकर पाश्चात्य सभ्यता के ढंग पर ही चलाना चाहते थे। नरेंद्र की बुद्धि बचपन से बड़ी तीव्र थी और परमात्मा को पाने की लालसा भी प्रबल थी। इस हेतु वे पहले ब्रह्म समाज में गए किंतु वहां उनके चित्त को संतोष नहीं हुआ। और वे ईश्वर की खोज एवं ज्ञान के लिए भ्रमण पर निकल गये तथा लोगों को शिक्षा देने का काम शुरू किया।
स्वामी विवेकानंद की शिक्षा
स्वामी विवेकानंद ने स्कॉटिश चर्च कॉलेज और विद्यासागर कॉलेज से अपनी शिक्षा प्राप्त की थी। इसके बाद इन्होंने प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय, कलकत्ता में दाखिला लेने के लिए परीक्षा दी थी। विवेकानंद पढ़ाई में काफी तेज थे और इन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज की प्रवेश परीक्षा में प्रथम स्थान हासिल किया था। विवेकानंद को संस्कृत, साहित्य, इतिहास, सामाजिक विज्ञान, कला, धर्म और बंगाली साहित्य में गहरी रुचि थी।
शिकांगो सम्मेलन में स्वामी विवेकानंद
विदेशों में भारतीय संस्कृति के प्रचार के लिए स्वामी जी की हमेशा रूचि रही थी। इसलिए अथक प्रयासों के बाद वे अमेरिका जाने में सफल हुए। अंत में 1893 में शिकागो धर्म संसद में जाने के लिए प्रेरित किया गया तथा स्वामी विवेकानंद शिकांगो पहुंचे।
11 सितंबर सन् 1893 के उस दिन उनके अलौकिक तत्वज्ञान ने पाश्चात्य जगत को चौंका दिया। अमेरिका ने स्वीकार कर लिया कि वस्तुत: भारत ही जगद्गुरु है। स्वामी विवेकानन्द ने वहाँ भारत और हिन्दू धर्म की भव्यता स्थापित करके चमत्कारी प्रभाव छोड़ा।
मेरे अमेरिकी भाइयों एवं बहनों के संबोधन के साथ अपने भाषण की शुरुआत करते ही 7000 प्रतिनिधियों ने तालियों के साथ उनका स्वागत किया। विवेकानंद ने वहाँ एकत्र लोगों को सभी मानवों की अनिवार्य दिव्यता के प्राचीन वेदांतिक संदेश और सभी धर्मों में निहित एकता से परिचित कराया। इस प्रकार सन् 1896 तक वे अमेरिका रहे। तथा भारतीय संस्कृति का ज्ञान और शोभा विदेश मे बढ़ाते रहे।
रामकृष्ण मिशन Ramakrishna Mission की स्थापना
स्वामी विवेकानंद जी ने रामकृष्ण मिशन की स्थापना 1 मई 1897 में की थी और इस मिशन के तहत उन्होंने नए भारत के निर्माण का लक्ष्य रखा था और कई सारे अस्पताल, स्कूल और कॉलेजों का निर्माण किया था। रामकृष्ण मिशन के बाद विवेकानंद जी ने सन् 1898 में Belur Math (बेलूर मठ) की स्थापना की थी। इसके अलावा इन्होंने अन्य और दो मठों की स्थापना की थी। इस प्रकार स्वामी द्वारा स्थापित इस मिशन ने भारत में जनजागृति के नये द्वार खोल दिए । जिससे समाज में जागरूकता और शिक्षा का बखुबी प्रचार हुआ।
स्वामी विवेकानंद जी का देवलोकगमन
स्वामी विवेकानंद जी की महज 39 साल की आयु में 4 जुलाई 1902 को देवलोकगमन हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि मृत्यु से ठीक कुछ समय पहले ही उन्होंने अपने शिष्यों से बात की थी और अपने शिष्यों को कहा था कि वो ध्यान करने जा रहे हैं। इस प्रकार भारत के एक महापुरुष के जीवन का अन्त हुआ लेकिन उनका जीवन वर्षो में भले ही छोटा हो लेकिन उनकी शिक्षाओं और ओजस्वी चरित्र से वे आज महापुरुषों की पहली कड़ी में शामिल हैं जिन्हें भारत सहित पुरे विश्व में युग पुरुष की भांति याद किया जाता है।
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