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Tuesday, January 12, 2021

सुप्रीम कोर्ट ने तीनों कृषि कानूनों पर लगाई रोक चार सदस्यीय कमेटी गठित SC Stay on Farm Laws 2020

Supreme Court bans agricultural laws
सुप्रीम कोर्ट ने तीनों कृषि कानून पर रोक  चार सदस्यीय कमेटी गठित 



Supreme Court bans agricultural laws

भारत में क़ृषि बिलों के विरोध में लम्बे समय से आन्दोलन कर रहे किसानों के लिए थोड़ी राहत की खबर है कि सुप्रीम कोर्ट ने इन बिलों पर कुछ समय के लिए रोक लगाई है। इससे पहले इस देशव्यापी आंदोलन में दर्जनों किसानो की मौत भी हो चुकी है। लम्बे समय से माननीय सुप्रीम कोर्ट इस आन्दोलन को देखता रहा लेकिन 12 जनवरी को इस बिलों पर स्टे दिया है। आइए जानते हैं कि क्या यहा पर किसानों की जीत हुई है? जो लम्बे समय से हाड़ कंपा देने वाली सर्दी में अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे थे। या फिर गणतंत्र दिवस की व्यवस्था को देखते हुए किसानो को जगह ख़ाली करने का प्रयास मात्र है? क्या माननीय उच्चतम न्यायालय को ऐसा लगा कि यह कानून किसान विरोधी है इन्हें रोकना चाहिए। अगर ऐसा लगा है तो यह कानून सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज क्यों नहीं किए गए?

गणतंत्र दिवस की परेड में बाधा की समस्या का सवाल


हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने गणतंत्र दिवस परेड बाधित करने की आशंका पर जिसमें दिल्ली पुलिस ने याचिका डाली थी, उसको लेकर नोटिस जारी किया है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि हम सॉलिसीटर जनरल की अर्जी पर नोटिस जारी कर रहे हैं। इस पर सोमवार को सुनवाई होगी। सभी पक्षों को याचिका की कॉपी दी जाए। इस प्रकार हो सकता है कि गणतंत्र दिवस परेड की व्यवस्था में कोई दखल नहीं आए इसलिए यह फैसला दिया होगा कि इसके बाद किसान आन्दोलन खत्म कर देंगे।

गठित कमेटी की रिपोर्ट पर आगे का रास्ता


अब जब उच्चतम न्यायालय ने एक कमेटी गठित कर इन कानूनों को डिले किया है । तथा सुनवाई के बाद यह फैसला किया है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद बड़ा सवाल है कि क्या किसान संगठन केंद्र सरकार की बनाई इस कमेटी के सामने पेश होंगे? क्योंकि किसान संगठनों की ओर से 11 जनवरी को  ही यह साफ कर दिया गया था कि कृषि कानूनों पर रोक का स्वागत है लेकिन हम किसी कमेटी के सामने पेश नहीं होंगे।
वैसे कृषि कानूनों पर रोक लगा दी हैं  सुनवाई पूरी करने के बाद  सुप्रीम कोर्ट ने आदेश देते हुए तीनों कानूनों के अमल पर रोक लगा दी है। साथ ही कमेटी का भी गठन कर दिया गया है। 

यह है कमेटी के सदस्य


सुप्रीम कोर्ट द्वारा जिस कमेटी का गठन किया गया है, उसमें कुल चार लोग शामिल होंगे, जिनमें भारतीय किसान यूनियन के भूपेंद्र सिंह मान, डॉ. प्रमोद कुमार जोशी, अशोक गुलाटी (कृषि विशेषज्ञ) और अनिल घनवंत शामिल हैं। ये कमेटी अपनी रिपोर्ट सीधे सुप्रीम कोर्ट को ही सौंपेगी, जबतक कमेटी की रिपोर्ट नहीं आती है तबतक कृषि कानूनों के अमल पर रोक जारी रहेगी।

अब तक सभी प्रयास विफल


गौरतलब है कि केंद्र सरकार और किसान संघों ने अब तक आठ दौर की वार्ता कर ली है, लेकिन गतिरोध को तोड़ने में विफल रहे। उनकी अगली बैठक 15 जनवरी को निर्धारित है। किसान गणतंत्र दिवस पर एक ट्रैक्टर मार्च में राष्ट्रीय राजधानी में प्रवेश करके अपना विरोध प्रदर्शन तेज करने की योजना बना रहे हैं।

आखिर विवादास्पद और फायदेहीन कानून पर हठधर्मिता क्यों


लेकिन सबसे बड़ी बात है कि आखिर इस समस्या का समाधान कैसे होगा क्योंकि किसान इन बिलों को पूर्णतः वापिस चाहती है। दूसरी तरफ सरकार अपने नाक का  सवाल मानकर  इन बिलों को वापिस लेना अपनी फजीहत और कमजोरी उजागर होने की आंशका मान रही है।
लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में पहल की है तो यह देखना दिलचस्प होगा कि सुप्रीम कोर्ट का पलड़ा किस ओर झुकाता है । एक तरफ शक्तिशाली सरकार का दबाव है तो दूसरी ओर किसानो तथा राजधानी  की व्यवस्था की चिंता ।

यहां पर लग रहा है कि स्पष्ट कुछ नहीं होगा कमेटी जांच करके अपनी रिपोर्ट न्यायालय में देगी फिर न्यायालय अपना फैसला देगा जिससे यह साफ होगा कि इन बिलों में संशोधन करना चाहिए या पूर्णतः वापिस होने चाहिए।
 अब सरकार भी यही चाहती है कि यह मामला गोलमोल बनाकर एक बार किसानों को आन्दोलन से दूर कर दें। फिर मौका मिलते ही यह कानून मामूली बदलावों के साथ वापिस ला सकें। इसलिए माननीय उच्चतम न्यायालय को सरकार की रणनीति से परे यह स्पष्ट फैसला देना चाहिए कि अगर कानून देश के किसानों के लिए फायदेमंद नहीं है तो इस ज़्यादा समय लेने से कोई फायदा भी नहीं।
 अगर कानून नहीं आते तो देश को कोई नुक्सान नहीं होने वाला था। इसलिए कहीं ऐसा ना हो कि इन कानूनों पर किसानों को संशोधन के नाम पर गुमराह करके लागु किये जाएं। अगर यह कानून किसानों के लिए बहुत लाभकारी है तो क्यो ना किसानों को आश्वस्त किया जाए। इसलिए सरकार और सुप्रीम कोर्ट को किसानों के हित में खड़ा होकर बिना किसी राजनैतिक नजरिए से समाधान करना चाहिए। ऐसे बदलाव जो देश की उन्नति में सहायक भी नहीं हो और विवादास्पद भी हो तो ऐसे कानूनों पर हठधर्मिता सरकार को संदेश के दायरे में खड़ा करती है। लेकिन इस बार किसान बहुत जागरूक हैं वे इन कानूनों के पूर्णतः समाप्त न होने तक आन्दोलन वापिस नहीं करेंगे। दूसरी बात समस्याप्रद है अगर सुप्रीम कोर्ट इन कानूनों को सरकार की अनुशंसा पर संशोधित कर के लागु करने का फैसला भी दे सकती है । तो ऐसे में भी किसान स्वयं को ठगा हुआ महसूस करेंगे। ऐसे में फिर आन्दोलन होता है तो न्याय के अवमानना का खतरा रहेगा तो सूप्रीम कोर्ट  सख्त रूप भी अपना सकता है । यह भी किसानों के लिए अच्छी बात नहीं है । क्योंकि भारत कृषि प्रधान देश है और यहां के करोड़ों किसानों की भावना के विपरित ऐसे कानूनों को जबरन थोंपना भी अन्याय होगा।


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