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Wednesday, October 15, 2025

मैं बहुत निराशावादी अवसादग्रस्त और नकारात्मक हूं इससे बाहर कैसे निकलूं

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What is pessimistic-negative Mind? निराशा नकारात्मकता और चिंता क्या है इससे मुक्ति कैसे मिलती है 


आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में मनुष्य की समस्याएं बहुत है। अनेक दुखों का सामना करना पड़ता है। स्वास्थ्य, धन-दौलत, प्रेम, परिवार, वैवाहिक जीवन, कर्ज, सुख-सुविधाओं की कमी लोगों द्वारा परेशान करना, अपराध खुद और परिवार की सुरक्षा,तनाव, चुनौतियों का सामना करना तथा आदि समस्याएं हैं जिससे मनुष्य टूट जाता है और निराशाजनक सोच के साथ निराशावादी हो जाता है Negativity उसके दिमाग़ में घर कर लेती है तथा वो हमेशा खुद के साथ बुरा होने की सोचता है उसके भविष्य में हर चीज में तबाही नकारात्मक ऊर्जा हावी होकर उसे इतना हतोत्साहित कर देती है कि हर तरफ बर्बादी और सबकुछ ख़त्म होने तथा कुछ भी उम्मीद नहीं होने की सोचता है तथा आत्महत्या के विचार उसके दिमाग़ में आते हैं या उसका दिमाग उग्र हो जाता है। चिड़चिड़ापन रहने लगता है। वह सबकुछ तबाह करना चाहता है। आखिर ऐसा क्यों होता है कि एक हंसमुख व्यक्ति कभी कभी ऐसी समस्याओं में घिर जाता है कि बस यह सोचता है कि इस दुनिया में मेरा कुछ नहीं होने वाला है। मैं तो बर्बाद हूं।मेरा सबकुछ ख़त्म हो जाएगा।
आइए इस लेख में समझते हैं कि निराशावादी और नकारात्मकता क्यों आती है जो लम्बे समय तक जकड़ के रखती है जो आत्महत्या का कारण बनती है या नशा करने की आदत बनती है? नकारात्मकता दूर करने के क्या उपाय है? कैसे खुद के मनोबल और आत्मविश्वास को मजबूत किया जा सकता है जिससे एक निराशावादी इंसान दुबारा सकारात्मक हो कर खुशहाल जिंदगी जी सके?


एक ध्येय बात हमेशा याद रखें।


"मृत्यु सत्य है वो किसी न किसी रूप में किसी समय आएगी।
मृत्यु के बाद आपका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता जब तक जिंदा हो जियो याद रखो कुछ भी स्थाई नहीं है समय के चक्र में जिंदा इंसान बहुत कुछ बदल सकता है। रास्ते बन सकते हैं भविष्य की चिंता क्यों क्या पता जहां आप सोचते हो वहां आप हो ही नहीं परिस्थितियों से लड़ते लड़ते आगे बढ़ते रहो। जो स्वत घटित हो रहा है होने दो क्षमता का उपयोग करो जितना तुम कर सको"


एक इंसान निराशावादी और नकारात्मक क्यों हो जाता है


एक इंसान नकारात्मक और निराशावादी तब होता है जब वह किसी त्रासदी का सामना करता है वह परिवार में किसी सदस्य की मौत देखता है। तथा परिवार में ऐसे क्लेश का सामना करता है जो लम्बे समय तक हल नहीं हो पाते । अनेक समस्याएं हैं जिसमें आर्थिक, सामाजिक , पारिवारिक, मनौवैज्ञानिक , अपराधिक आदि तरह की समस्याएं जिसमें पड़ोसियों के क्लेश होना। पती पत्नी के बीच रिश्तों की समस्या,भाई बहनों के बीच नहीं बनना, आर्थिक तंगी, कर्जदार होना, इच्छाओं का अधिक होना, किसी अन्य लोगों द्वारा शोषण और अन्याय पूर्ण व्यवहार, पत्नी या पति को किसी एक के अवैध संबंधो का पता चलता ।अपने कार्यस्थल पर हरासमेंट,नौकरी में साथी कर्मचारियों द्वारा टोर्चर करना। कोर्ट कचहरी के चक्कर, झूठे आरोपों में फसना, इल्जाम लगना,ठगी होना, किसी द्वारा किसी जगह बेइज्जती होना, बच्चों को पीटना या उनके छोटी अवस्था में माता-पिता का मर जाना किसी प्रकार के प्रयास में सफलता नहीं मिलना,बार बार असफल होना, शारीरिक कमजोरी,चोट, एक्सीडेंट होना, प्राकृतिक आपदाओं से घिरना कुछ असाध्य बिमारी का होना अनेक चीजें हैं जो इंसान को तोड देती है।

मानव मस्तिष्क स्वभाव से संवेदनशील और सोचने वाला होता है। जब यह सोच बार-बार दुख, असफलता या भय के अनुभवों से गुजरती है, तो धीरे-धीरे सोचने का तरीका बदल जाता है। वही व्यक्ति जो पहले आशावादी था, अब हर चीज़ में बुरा देखने लगता है। निराशा और नकारात्मकता अचानक नहीं आती — यह धीरे-धीरे भीतर जड़ पकड़ती है।

🔹 1. असफलताओं का लगातार अनुभव


जब व्यक्ति को लगातार असफलताएँ मिलती हैं — चाहे करियर में, प्रेम में या जीवन के किसी क्षेत्र में — तो मस्तिष्क “सीखी हुई असहायता (Learned helplessness)” की अवस्था में पहुँच जाता है। उसे लगता है कि “अब कुछ भी कर लूँ, कुछ नहीं बदलने वाला।” या ऐसा डर जो मन में बैठ जाए जिसके लिए बहुत चिंता होती रहें। कुछ लोग ऐसा व्यवहार करें जिसका आप कुछ बदल नहीं सकते। बहुत से दुख दर्द जब पहाड़ बनकर टूट पड़े तब इंसान हमेशा नकारात्मक हो जाता है। लेकिन कुछ चीजें हैं जो बदल नहीं सकते जैसे असाध्य बिमारी या शारीरिक कमजोरी जो लाइलाज हो लेकिन जब तक मौत नहीं आए तब तक इंसान सकारात्मक हो सकता है । कुछ परिणाम जो भी रहें जब तक इंसान चेतना अवस्था में है वह खुश रह कर मस्त रहकर सबकुछ सहन कर के नकारात्मकता से मुक्त रह सकता है। लेकिन कभी कभी यह नकारात्मक सोच ऊर्जा इतनी हावी हो जाती है कि वह यह सोचता है कि विनाश हो गया है कुछ बचा नहीं है। यही सोच उसे नकारात्मकता की ओर धकेलती है।

🔹 2. बचपन के अनुभव


कई बार बचपन में मिले ताने, उपेक्षा, या कठोर व्यवहार व्यक्ति के मन में गहराई तक बैठ जाते हैं।
यदि कोई बच्चा हमेशा सुनता है कि “तुमसे कुछ नहीं होगा” — तो वह बड़ा होकर भी वही विश्वास करने लगता है।
यह “नकारात्मक आत्म-छवि” उसकी पहचान का हिस्सा बन जाती है।

🔹 3. तुलना और सोशल मीडिया का प्रभाव


आज के युग में हर व्यक्ति सोशल मीडिया पर दूसरों की “सफल जिंदगी” देखता है — लेकिन अपनी कमियाँ महसूस करता है।
तुलना से उत्पन्न हीनभावना (Inferiority complex) व्यक्ति को धीरे-धीरे अंदर से खोखला बना देती है।

🔹 4. मानसिक और शारीरिक थकान


जब शरीर में ऊर्जा की कमी होती है, नींद अधूरी रहती है या पोषण सही नहीं मिलता — तो मस्तिष्क भी थका हुआ महसूस करता है।
थका हुआ मन हमेशा “डर और चिंता” की ओर झुकता है। यही थकान नकारात्मक सोच को बढ़ाती है।

🔹 5. अवास्तविक अपेक्षाएँ


जब व्यक्ति जीवन से बहुत ज़्यादा उम्मीदें रखता है और वे पूरी नहीं होतीं — तो वह टूट जाता है।
हर चीज़ “परफेक्ट” चाहने की प्रवृत्ति जब अधूरी रहती है, तब निराशा जन्म लेती है।

निराशावादिता नकारात्मकता के प्रकार


नकारात्मक सोच के कई रूप होते हैं, जिन्हें मनोविज्ञान में “Cognitive Distortions” कहा जाता है। आइए इनके प्रमुख प्रकार जानें —

1. Catastrophizing (विनाशकारी सोच)


हर छोटी बात को बहुत बड़ा खतरा मान लेना —
जैसे “अगर नौकरी नहीं मिली तो जिंदगी खत्म हो जाएगी।”
किसी करीबी की मौत हो जाएगी तो सबकुछ ख़त्म हो जाएगा। कोई करीबी आत्महत्या की धमकी देता है तो उसे डर रहता है। परिवार में क्लेश जिससे वह एकाकीपन होकर उम्मीद खो देता है। उपरोक्त कारणों से इंसान की सोच विनाशकारी हो जाती है उसका भविष्य अंधकारमय दिखने लगता है।

2. Overgeneralization (अत्यधिक सामान्यीकरण)


एक घटना से पूरे जीवन का निष्कर्ष निकाल लेना —
“एक बार असफल हुआ, तो मैं हमेशा असफल रहूँगा।”
कभी कभी किसी एक पक्ष की असफलता को लेकर व्यक्ति सबकुछ बर्बाद समझ लेता है तथा हार कर बैठ जाता। कुछ सुधारने और नवनिर्माण के प्रयत्न नहीं करता। उदाहरण के लिए एक पुरुष का प्रेमिका या पत्नी का साथ छोड़ने पर वह सबकुछ खोया हुआ मानकर नशा करना शुरू कर देता है वो नहीं जानता कि इसे भूलकर खुद को आगे बढ़ाने के प्रयास करू तो हो सकता है इससे बेहतरीन इंसान जीवन में आ जाए। कुछ लोग अपंग या शरीर किसी एक या दो अंग नहीं होने के बावजूद वे आशावादी जीवन जीते हैं। इसलिए किसी एक पक्ष की असफलता या हादसा सभी पक्षों के लिए दरवाजे बंद नहीं करता है।

3. Negative Filtering (सकारात्मक बातों को अनदेखा करना)


यदि 10 बातें अच्छी और 1 बुरी होती है, तो व्यक्ति केवल उसी एक बुरी बात को याद रखता है। ऐसे में व्यक्ति जो सकारात्मक और अवसरों की चीजें हैं उन पर ध्यान नहीं देकर केवल नेगेटिव सोच और जो बूरा वक्त बीता है या जो भी खोया है बस उसी को सबकुछ मानकर हताश हो जाता है। लेकिन सबकुछ खो जाने के बाद अगर इंसान जिन्दा है तो वो अपने लिए बेहतर परिस्थितियों का निर्माण कर सकता है। याद रखना चाहिए कि शरीर के अलावा इस दुनिया में सबकुछ पुनरूत्थान सम्भव है।

4. Mind Reading (दूसरों के विचार पढ़ने की कोशिश)


बिना सबूत यह मान लेना कि “सब लोग मेरे खिलाफ हैं” या “कोई मुझे पसंद नहीं करता।” लोगों के विचारों और भावनाओं पर ध्यान देना तथा नकारात्मक लोगों के प्रभाव में रहना आदि नेगेटिविटी का करण बनते हैं। दिनचर्या मे भी श्रव्य दृश्य क्रियाएं रहती है कही कही वे नकारात्मक होती है इसलिए यह समस्या ओर भी बढ़ जाती है।

5. Labeling (स्वयं को या दूसरों को टैग करना)


“मैं बेकार हूँ”, “वो धोखेबाज है” — ऐसे स्थायी लेबल जो वास्तविकता से परे होते हैं। या खुद को किसी हादसे या घटना का दोषी मान कर आत्मविश्वास खो देना। दुनिया को ना समझना तथा हर कार्य दूसरे पर निर्भर होकर । अपने आप पर दोष मढ़ना आदि भावनाएं हैं जिसको वह दिमाग में घर कर जाती है।

6. Self-blame (स्वयं को दोष देना)


हर असफलता के लिए खुद को जिम्मेदार मानना, चाहे परिस्थिति कुछ भी हो। ज्यादा सोचना और समस्याओं और परिस्थितियों के लिए स्वयं को दोषी मानना। हर बार खुद को बुरा और कमजोर मान कर हीनभावना का विकास करना जिससे आत्मविश्वास में कभी आती है तथा आगे नये कार्य करने तथा सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं कर पाता है।

7. Hopeless Thinking (आशा खो देना)


यह मान लेना कि भविष्य में कुछ अच्छा हो ही नहीं सकता।
सबकुछ बिखर गया है कोई समाधान नहीं होगा। हालात नहीं सुधरने वाले हैं। मेरा सबकुछ बर्बाद हो गया है ऐसा सोच सोचकर वह आशा खो देता है उसे कहीं भी उम्मीद नजर नहीं आती है। किसी कारणवश नकारात्मकता आ जाती है लेकिन इससे टूटकर आशा खो देना अच्छी रणनीति नहीं है कोई बात नहीं जो हुआ जो हुआ लेकिन जो भी शेष बचा है उन्हीं के साथ बेहतरीन तालमेल के साथ आगे बढ़ा जाए जो भविष्य में बदलकर सब ठीक हो सकता है। इसलिए आशा का को देना निराशावादी की खास विशेषता है।

नकारात्मक सोच के परिणाम


नकारात्मकता सोच तो किसी समस्या या दुर्घटना से मानो आ जाती है लेकिन इसका समाधान भी अपना दिमाग है जिसमें कुछ विचार आइडियाज जरूर होते हैं जो हालातों को काबु करने और बदलने के लिए उपयोगी होते हैं लेकिन उनके लिए दिमाग़ का संतुलन जरूरी है ठंडे दिमाग से सोच कर कुछ बदलाव और प्रयास करने होते हैं लेकिन निराशावादी यह नहीं करके दिन भर चिता करता रहता है जिसके दूरगामी परिणाम खतरनाक होते हैं। नकारात्मकता से अनेक समस्याएं उत्पन्न हो जाती है। जैसे 

आत्मविश्वास की कमी होना।

चिंता, तनाव, अवसाद में घिर जाना 

रिश्तों में दूरी और टूटना शुरू हो जाना

स्वास्थ्य पर असर (हाई ब्लड प्रेशर, थकान, नींद की कमी)

जीवन में निर्णय लेने की क्षमता का अभाव होना आदि

नकारात्मक व्यक्ति अक्सर अवसरों को भी खो देता है क्योंकि उसका मन पहले ही हार मान लेता है।

नकारात्मकता , अवसादग्रस्त और निराशावादी सोच से बाहर निकलने के उपाय और समाधान Ways and solutions to get out of negativity, depressive and pessimistic thinking



कभी कभी अनेक समस्याओं का समाधान बहुत ही छोटा और आसान होता है जैसे एक असाध्य बिमारी के कारण चिकित्सक ने मौत नजदीक बंता दी हो तो वह इंसान यह सोच कर सकारात्मक रह सकता है कि अभी जिंदा हूं तब तक कष्टों को सहन करते हुए जो आराम के लम्हों में कम से कम ख़ुश रहूं क्योंकि मरना तो सबको है एक दिन हर कोई उसके पीछे उसी मुकाम पर पहुंचने वाला हैं। जो सत्य परिणाम है उसे स्वीकार करते हुए जो क्षण है उन्हीं में सकारात्मक सोच कर जिएं क्या पता परिणाम बदल भी जाए अगर नहीं बदलें तो भी कुछ नहीं।

दुसरा वे सभी कारण जो एक जिंदा इंसान जो स्वस्थ हैं को अन्य बाहरी कारण जो ऊपर बताए गये थे उनसे चिंतित होकर सदमे में आ जाता है और निराश हो जाता है तो उसे यह समझना चाहिए कि वह जिंदा है तो सबकुछ बदल देगा भविष्य में क्या पता परिस्थितियां उसके पक्ष में रहें और एक नई उम्मीद उसके लिए कही से आ जाए। कुछ परिणाम जो या तो घटित हो गये है या होने की आंशका है उनके घटित होने के बाद कुछ समय कष्टों को सहने के बाद एक बेहतरीन ज़िन्दगी की शुरुआत हो जाए। 
कुछ भूतकाल में हुई घटनाओं को नजरंदाज करना पड़ता है बुरे अनुभवों को नजरंदाज करना पड़ता है तभी जाकर वर्तमान समय में खुश रहकर सकारात्मक पहलुओं के साथ रहा जा सकता है।
सबसे अच्छा तरीका यह कि अपको परिस्थितियों को बदलने के लिए धैर्य और साहस से साथ संघर्ष और कर्म करते रहना चाहिए जिससे एक दिन जरूर आएगा कि आपकी वो समस्याएं समाप्त हो जाएगी जिसके कारण आप निराशावादी हो गये थे। कभी कभी कुछ चीजों का त्याग करना पड़ता है कुछ लोग सभी तरह के तनाव और निराशाओं से मुक्त होने के लिए एकाकी होकर शान्त वातावरण में रहने लगे वे अध्यात्मिक ज्ञान और सुख दुख की सोच से बहुत उपर उठ गये। लेकिन हम परिवार और गृहस्थ जीवन में रहकर त्याग नहीं कर सकते हैं हमारे समस्याओं से लड़ना पड़ता है। इंसान अपने प्रयासों से सबकुछ बदल सकता है। नकारात्मकता मुख्य रूप से दो प्रकार से पनपती हैं एक वास्तविकता से लेकर दूसरी काल्पनिक जिसका मूल कारण होता ही नहीं है जैसे वर्तमान की छोटी-छोटी बातों से भविष्य को जोड़कर निराशा से देखना और सोचना जैसे प्रेमिका,पति और पत्नी के बीच कुछ समय की अनबन, कुछ प्रयासों के परिणाम,किसी व्यक्ति द्वारा दुःखी करना या कष्ट देना,हलकी स्वास्थ्य समस्याएं आदि जिसका समाधान भी है तथा वो कुछ समय बाद अपने आप ठीक होने वाली समस्या होती है जिसे हम त्वरित आवेश में आकर मस्तिष्क और विचारों के संतुलन को खो देते हैं तथा कुछ दिनों के लिए निराशावादी बने रहते हैं जैसे ही परिस्थितियों में सुधार होता है तब हम नई आशाओं में जीने लगते हैं। कुछ समस्याएं ऐसी होती हैं जो लम्बे समय तक रहती है या एसी घटित होती है जो कि जीवन की खुशियों का बहुत बड़ा हिस्सा छीन लेती है लेकिन इसका मतलब यह नहीं हुआ कि सबकुछ खत्म हो गया "मतलब आप अभी भी जिंदा है तो खत्म क्या हुआ है ? सबकुछ शेष है" इसका मतलब बड़ी बड़ी त्रासदियों के बाद भी अगर एक इंसान जिन्दा है तो उसके पास सकारात्मक होकर आगे बढ़ने के अनेक विकल्प है। इससे निपटने के कुछ सरल उपाय है जो हमम जीवन में अपना सकते हैं।

इससे बाहर निकलने के लिए जरूरी है इसे स्वीकार करना — यह मान लेना कि “हाँ, मैं परेशान हूँ, पर यह अंत नहीं।” जब व्यक्ति अपने दुख को पहचानता है, तभी वह उससे बाहर आने का मार्ग खोज पाता है। इसके अलावा मन की सफाई भी जरूरी है जैसे शरीर को स्नान की आवश्यकता होती है, वैसे ही मन को भी सकारात्मक विचारों की जरूरत होती है। किताबें पढ़ना, प्रकृति में समय बिताना, किसी भरोसेमंद मित्र या परिवार से खुलकर बात करना — यह सब मन को हल्का करते हैं।

कर्म करना या कुछ उपाय करना सबसे बेहतरीन समाधान है निष्क्रियता अवसाद को बढ़ाती है, जबकि छोटा-सा भी कार्य आत्मविश्वास जगाता है। चाहे पौधा लगाना हो, लेख लिखना हो, या किसी की मदद करना — ये सब जीवन में उद्देश्य का एहसास कराते हैं।

सबसे महत्वपूर्ण है आशा को थामे रखना। यह समझना कि कोई भी अंधेरा स्थायी नहीं होता, हर रात के बाद सुबह आती है। मनुष्य के भीतर अपार शक्ति है; बस उसे पहचानने की देर है। हो हुआ जो हुआ जो भी संसाधन,लोग, उद्देश्य बचे हुए हैं उनके बेहतरीन रूप से आगे बढा जाए। सबसे महत्वपूर्ण चीजें हैं जो अवसादग्रस्त करती है वे होती है स्वास्थ्य समास्याएं जिससे व्यक्ति मरने के डर से घबराता है हालांकि मौत से नहीं घबराना चाहिए जो चीजें स्वास्थ्य के लिए तुम बदल सको उनपर ज्यादा ध्यान दो जैसे नशा छोड़ना हो या वर्क आउट करना स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए कुछ बुरी आदतों को छोड़कर अच्छी आदतों का निर्माण करना हो आदि।
स्वास्थ्य के अलावा सांसारिक जीवन की अन्य समस्याएं तुच्छ है क्योंकि जल्दबाजी ना की जाए तो एक वक्त आप अच्छी स्थिति में जरूर पहुंच सकते हैं।


नकारात्मकता या निराशावादी होना वास्तविक स्थिति नहीं है यह एक मानसिक नकारात्मकता उर्जा है — जीवन के संघर्षों से टूटा हुआ मन जब उम्मीद खो देता है, तब वह अवसाद के अंधेरे में डूब जाता है। लेकिन हर अंधेरा स्थायी नहीं होता। जिस तरह रात के बाद सुबह आती है, उसी तरह अवसाद के बाद भी जीवन में नई रोशनी आ सकती है — बस पहला कदम उठाने की हिम्मत चाहिए।

पहला कदम -सबसे पहले व्यक्ति को स्वीकार करना चाहिए कि वह अवसाद में है। इससे भागना नहीं, बल्कि इसे पहचानना ही उपचार की शुरुआत है। अपने भावनाओं को दबाने की जगह किसी भरोसेमंद व्यक्ति से बात करना बहुत ज़रूरी है — चाहे वह परिवार हो, मित्र हो या कोई विशेषज्ञ (काउंसलर या मनोचिकित्सक)। बातचीत मन को हल्का करती है और भीतर की गांठों को खोलती है।

दूसरा उपाय है दिनचर्या में बदलाव। सुबह जल्दी उठना, थोड़ा टहलना, योग या ध्यान करना, पौष्टिक भोजन लेना — ये छोटे-छोटे कदम मन पर बड़ा असर डालते हैं। अवसाद तब गहराता है जब हम खुद को निष्क्रिय बना लेते हैं, इसलिए हर दिन कुछ सार्थक कार्य करना जरूरी है, चाहे छोटा ही क्यों न हो।

तीसरा कदम है नकारात्मक विचारों से दूरी बनाना। मोबाइल, सोशल मीडिया या उन लोगों से थोड़ा समय दूर रहना चाहिए जो मन को और भारी करते हैं। उसकी जगह किताबें, संगीत या प्रकृति के साथ समय बिताना मानसिक शांति लाता है।

नकारात्मकता से बाहर निकलने के अन्य उपाय 

कुछ उपाय जो हम कर सकते हैं जिससे निराशावादी सोच से मुक्त हो सकते हैं।

🔹 1. सोच को पहचानें (Awareness)


पहला कदम है यह समझना कि “मैं नकारात्मक सोच रहा हूँ।”
हर नकारात्मक विचार पर ध्यान दें और खुद से पूछें — “क्या यह सच है?”
सिर्फ यह जागरूकता ही आधा इलाज है।

🔹 2. विचारों को चुनौती दें (Challenge Thoughts)


जब भी मन कहे — “मैं असफल हूँ,”
तो तुरंत पूछें — “क्या वाकई हमेशा असफल रहा हूँ?”
तथ्यों से सोच को चुनौती दें।

🔹 3. सकारात्मक दिनचर्या बनाएं


व्यायाम, ध्यान (Meditation), संगीत, या सुबह की प्रार्थना — ये सब मन को स्थिर करते हैं।
मन स्थिर होगा तो सोच भी संतुलित रहेगी।

🔹 4. कृतज्ञता की भावना (Gratitude)


हर दिन तीन चीजें लिखें जिनके लिए आप आभारी हैं।
यह अभ्यास धीरे-धीरे मस्तिष्क को सकारात्मक दिशा में प्रशिक्षित करता है।

🔹 5. सही संगति


नकारात्मक लोग नकारात्मकता फैलाते हैं।
ऐसे लोगों के बजाय प्रेरक, उत्साही और सच्चे लोगों के साथ रहें।

🔹 6. उद्देश्यपूर्ण जीवन


जब जीवन में कोई अर्थ होता है, तो व्यक्ति निराश नहीं होता।
कोई लक्ष्य रखें — छोटा या बड़ा — और उस पर काम करें।

🔹 7. मनोवैज्ञानिक या काउंसलर से बात करें


यदि नकारात्मकता बहुत गहरी हो चुकी है, तो किसी मनोवैज्ञानिक या थेरेपिस्ट से मदद लें।
यह कमजोरी नहीं, बल्कि बुद्धिमत्ता का संकेत है।


कुछ घटनाएं और नकारात्मकता आने के कारण और उदाहरण 


नकारात्मकता, अवसादग्रस्त और निराशावादी सोच का आना आपके आचरण से जुडा हुआ है कुछ चीजों का समाधान नहीं होता लेकिन आप उसी स्थिति में भी पाज़िटिव रह सकते हैं उदाहरण आपने अपराध किया है और आप पकड़े गये तो आपको जेल होगी यह स्वीकार करना जरूरी है अब आप सजा काटने के बाद के समय के बारे में अच्छा बनने की सोच सकते हैं। इसलिए कुछ समस्याओं से बचने के लिए नैतिक आचरण जरूरी है। लेकिन कभी कभी अनायास कुछ समस्याएं गले लग जाती है या आप कुछ ऐसा काम करते हो जिसके परिणाम आपको निराशावादी बना देता है या अवसादग्रस्त कर देता है जिससे आप चिन्तित रहते हैं। इसका सीधा मतलब है कि अगर आपके कर्म अच्छे नहीं हैं तो आपको अपने किए हुए कार्यों की सजा मिलेगी और चिन्तित होना पडेगा जैसे अपराध गैर कानूनी चीजें आदि।
लेकिन कभी कभार आपके करीब के लोग या उनसे जुड़े मुद्दों से होने वाली क्रिया प्रतिक्रिया से उलझने पैदा होती है उनसे चिंता का विषय बनता है उनका समाधान आपके पास है इससे घबराने की आवश्यकता नहीं है। 

यथास्थिति पर बने रहना यानी बिना किसी जल्दबाजी के अपनी स्थिति को स्वीकार करना और निर्णय को टाल देना — जब तक मन शांत न हो जाए। यह कमजोरी नहीं, बल्कि आत्म-संयम का प्रतीक है। जब व्यक्ति तनाव में होता है, तब उसका निर्णय-शक्ति भ्रमित हो जाती है। ऐसे में रुक जाना, अपनी भावनाओं को समझना और समय को स्वयं उपचार करने देना एक सुरक्षित मार्ग है।

वहीं आप जो स्थिति लोग तथा माहौल आपको तनावग्रस्त बनाता है उससे आप अलग हो सकते हैं हालांकि अलगाव का अर्थ पलायन नहीं है, बल्कि स्वयं को थोड़ी देर के लिए बाहरी शोर और नकारात्मक वातावरण से दूर रखना है। यह मानसिक सफाई का तरीका है। कुछ समय अकेले बिताना, मोबाइल और सोशल मीडिया से दूर रहना, प्रकृति के बीच जाना या आत्मचिंतन करना — यह सब व्यक्ति को भीतर से मजबूत बनाते हैं।

चिंता और निराश की अवस्था में पलायन भी विकल्प है लेकिन यह समझारी से करना चाहिए पलायन तब गलत होता है जब वह जिम्मेदारी से भागने के लिए किया जाए, पर जब वह मन की शांति और आत्मरक्षा के लिए किया जाए, तब यह एक उपचार बन जाता है। जैसे एक सैनिक पीछे हटता है ताकि फिर से तैयारी कर सके — वैसे ही कभी-कभी जीवन में पीछे हटना भविष्य की लड़ाई जीतने की रणनीति होती है।

कभी-कभी परिस्थितियाँ इतनी विषैली हो जाती हैं कि उनमें रहना स्वयं को नष्ट करने जैसा होता है — चाहे वह एक संबंध हो, कार्यस्थल हो या वातावरण। ऐसे में अलग हो जाना, दूरी बना लेना, या कुछ समय के लिए पलायन करना व्यक्ति को अपनी ऊर्जा और स्पष्टता वापस पाने का अवसर देता है।
अंतिम बात यह है कि मनुष्य जब इस दुनिया में आया तब एक जंगली जानवर था उसके पास कुछ नहीं था बाकी सब कुछ चीजें बाद की मनुष्य द्वारा बनाई गई है चाहे कपड़े, रिश्ते, संपत्ति आदि मतलब मनुष्य एक जीव है जिसका जन्म और मृत्यु प्राकृतिक और सत्य चीजें हैं तो निश्चित रहना चाहिए कि क्या होगा कुछ नहीं होगा वह इस व्यवस्था का एक अल्पकालिक सदस्य हैं जिससे इसमें कुछ सालों रहना है तो फिर जो भी घटित होता है वो कुछ भी मायने नहीं रखता कि आपने क्या खोया क्या खो दोगे? क्या है क्या नहीं है बस मेहनत करते रहो जो मिलता है जो बनता है उसे बनाने की कोशिश करो। आप दुनिया में अकेले आये हो अकेले जाओगे जैसा प्रयास करोगे उतने परिणाम बेहतर होंगे इसलिए आपकी मौत के समय यह संसार शून्य और महत्वहीन हो जाता है तब आपकी चिंताएं , अवसाद डर आकांक्षाएं सब गौण और शुन्य ही हो जाती है। 

 

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