प्रेरणा के असीम स्रोत है असली सोशल इनफ्लुएंसर रमेश विश्नोई पैरों से वो काम कर लेते है जो अक्सर दो हाथों वाले नहीं कर पातेJagriti PathJagriti Path

JUST NOW

Jagritipath जागृतिपथ News,Education,Business,Cricket,Politics,Health,Sports,Science,Tech,WildLife,Art,living,India,World,NewsAnalysis

Wednesday, October 15, 2025

प्रेरणा के असीम स्रोत है असली सोशल इनफ्लुएंसर रमेश विश्नोई पैरों से वो काम कर लेते है जो अक्सर दो हाथों वाले नहीं कर पाते

Ramesh-Vishnoi-inspiration-source
Ramesh Vishnoi 

रमेश विश्नोई एक प्रेरणा स्रोत 


जीवन मे मनुष्य थोड़ी सी कठिनाई आने से ही हार मान लेता है। निराशावादी हो जाता है तथा अपना आत्मविश्वास खो देता है बहुत से स्वस्थ व्यक्ति भी मेहनत और साहस के अभाव से हीन और संकीर्ण मानसिकता का विकास कर लेते हैं जिससे वे कुछ कर नहीं सकते अपने जीवन में सुधार और बेहतरीन बदलाव नहीं ला सकते। या फिर वे छोटी छोटी मुसीबतों का सामना करने की बजाय घबराकर आत्म हत्या कर लेते हैं। ऐसे लोग जो Give up करके अभावों में जीवन जीते हुए खुद को कोसते रहते हैं तथा अपने माता-पिता या अन्य लोगों को दोष देते हैं मेहनत और संघर्ष करने की जगह आलसीपन के साथ आत्मनिर्भर नहीं हो पाते हैं। जीवन में खुश और आशावादी रहने के असंख्य विकल्प है। लेकिन प्रेरणा और साहस की कमी से अधिकांश लोग अपनी क्षमताओं का फायदा नहीं उठा पाते हैं।
जब प्रकृति से हमें सही सलामत हाथ पैरों के साथ सभी ज्ञानेन्द्रिया सही रूप में मिली है फिर भी हम निराश हताश हो जाते हैं कि जीवन कठीन है हम कुछ बदल नहीं सकेंगे।

लेकिन कल्पना करो एक ऐसा व्यक्ति जिसके जन्म से दो हाथ नहीं हो वो व्यक्ति आज अपने रोजमर्रा के सभी कार्य स्वयं करता हो स्वालंबी हो तथा बिना हाथों के नहाने धोने चाय बनाने, गाड़ी चलाने के साथ साथ लोगों को मोटिवेट करें की जिंदगी में खुश रहनि सीखों। हालातों से संघर्ष करो। हिम्मत मत हारो तो वो इंसान वाकई कितना हिम्मतवाला,साहसी और महान योद्धा होता है जो अपने दो हाथों के बिना एक आशावादी मानसिकता के अपने जीवन को आनन्द और प्रसन्नता जीए जी हा आज बात करते हैं असली सोशल इनफ्लुएंसर रमेश विश्नोई जो करोड़ों युवाओं और उन शारीरिक अक्षम लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं जो जीवन में हिम्मत हारकर हाथ पर हाथ धरकर बैठ जाते हैं।

रमेश विश्नोई एक साहस,आत्मविश्वास और जुनून की कहानी 


राजस्थान के जोधपुर जिले के रमेश विश्नोई एक शो में अपने जन्म और बचपन की कठिनाईयों तथा लोगों के ताने और कानाफूसी का जिक्र करते हुए बताते हैं कि किस तरह मुझे बिना हाथों का देख कर वे माता-पिता के लिए नकारात्मकता का प्रचार किया करते थे। उन्होंने बचपन में कितनी दिक्कतों का सामना किया लेकिन जब वे युवा अवस्था में पहुंचे तो कैसे उन्होंने कुदरत द्वारा हाथों से वंचित रखने के फैसले को अपनी मेहनत लग्न और साहस से बौना साबित कर दिया क्योंकि रमेश विश्नोई वो सब काम पैरों से इतनी सहजता से कर देते हैं कि दो हाथों वाले नहीं कर सकते। ड्राइविंग करना हो,लिखना हो ,तैरना हो या कपड़े धोना और पहनना हो रमेश यह सब पैरों से आसानी से कर लेते हैं।
सोचने और प्रेरणा की बात यह कि इन सब कार्यों को करने के लिए रमेश विश्नोई ने अपने पैरों को कितनी कड़ी मेहनत से अभ्यस्त बनाया होगा?

रमेश विश्नोई वाकई आज हिम्मत हारने वाले और आत्महत्या की सोचने वालों के लिए प्रेरणा का वो दीपक है। वो खुद युवाओं को मोटिवेशन करते हैं सोशल मीडिया पर मिलियन फोलोअर्स के साथ हमेशा वो जीवन में संघर्ष करने और हौसलों की उड़ान भरने की प्रेरणा देते हैं। सोशल मीडिया फेसबुक इंस्टाग्राम पर उनके मिलियन फोलोअर्स है वे युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत के साथ साथ एक आइकन के रूप में प्रसिद्ध और चर्चा में है।


रमेश विश्नोई का जीवन परिचय व पृष्ठभूमि और उनके संघर्षों की कहानी 



राजस्थान की रेतीली भूमि जोधपुर से एक ऐसा नाम उभरा जिसने विकलांगता की परिभाषा ही बदल दी — वह नाम है रमेश विश्नोई। जन्म से ही दोनों हाथों के बिना जन्मे रमेश आज न केवल पूरे प्रदेश बल्कि पूरे देश के लिए प्रेरणा का स्रोत बन चुके हैं।

रमेश विश्नोई का जन्म जोधपुर जिले की फलोदी तहसील के नोखड़ा गाँव में हुआ था। उनके पिता पेमाराम विश्नोई एक किसान हैं और माता शायरी देवी गृहिणी हैं। परिवार में पाँच भाई और एक बहन हैं, जिनमें रमेश अकेले ऐसे हैं जिनके दोनों हाथ नहीं हैं। जब उनका जन्म हुआ, तो गाँव के लोग कहते थे — "यह बच्चा कुछ नहीं कर पाएगा, इसे जीने का कोई अर्थ नहीं"। परंतु किसे पता था कि वही बच्चा एक दिन अपनी हिम्मत और मेहनत से पूरे राजस्थान का गौरव बनेगा।

रमेश ने कभी अपनी शारीरिक कमी को कमजोरी नहीं माना। उन्होंने पैरों से लिखना, खाना, कपड़े पहनना, मोबाइल चलाना और यहां तक कि कार चलाना भी सीख लिया। यह सब उन्होंने किसी प्रशिक्षण के बिना, केवल आत्मविश्वास और अभ्यास से सीखा। उनकी यह अद्भुत लगन देखकर हर कोई हैरान रह जाता है।

उन्होंने पढ़ाई को कभी बोझ नहीं बनने दिया। दसवीं कक्षा में उन्होंने 66% अंक प्राप्त किए और बारहवीं में 72% अंकों से उत्तीर्ण होकर सबको चौंका दिया। इसके बाद उन्होंने बी.ए. और बी.एड. की पढ़ाई पूरी की। आज वे राजस्थान प्रशासनिक सेवा (RAS) की तैयारी कर रहे हैं और अपने जैसे अनेक दिव्यांग युवाओं के लिए प्रेरणा का दीप जला रहे हैं।

रमेश न केवल पढ़ाई में आगे हैं बल्कि सोशल मीडिया पर भी सक्रिय रहते हैं। उनके वीडियो, जिनमें वे पैरों से कार चलाते या लैपटॉप पर काम करते नजर आते हैं, लाखों लोगों को हौसला देते हैं कि जीवन में कोई भी कठिनाई इतनी बड़ी नहीं होती कि उससे हार मान ली जाए।

कई बार जीवन ने उन्हें परखा — सामाजिक उपेक्षा, आर्थिक तंगी और शारीरिक कठिनाइयाँ उनके सामने आईं। पर रमेश ने कभी सिर नहीं झुकाया। उनका कहना है —

 “भगवान ने अगर हाथ नहीं दिए, तो पैर दिए हैं; और मैं उन्हीं से अपनी दुनिया बदल दूँगा।”


आज रमेश विश्नोई का नाम उन लोगों में गिना जाता है जिन्होंने साबित किया कि विकलांगता अक्षमता नहीं, बल्कि जीवन को देखने का एक अलग दृष्टिकोण है। उनकी कहानी हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है जो कठिनाइयों से घबरा जाता है या अपनी परिस्थितियों से हार मान लेता है।

सच्चे अर्थों में रमेश विश्नोई ने यह साबित किया है कि अगर मन में हौसला हो तो शरीर की कमी कभी रुकावट नहीं बनती। वे आज राजस्थान के गौरव, संघर्ष के प्रतीक और लाखों युवाओं के आदर्श बन चुके हैं।


रमेश विश्नोई की शिक्षा व उपलब्धियाँ


रमेश ने प्रारंभ से ही यह तय किया कि अपनी पढ़ाई को बाधित नहीं होने देंगे। उन्होंने पैरों से लिखकर पढ़ाई की। 
•10वीं की परीक्षा में लगभग 66% अंक प्राप्त किए थे। 
•12वीं की परीक्षा 72% अंकों से उत्तीर्ण की। 
•बी.ए. (आर्ट्स) की डिग्री उन्होंने प्राप्त की है। 
•उन्होंने B.Ed. (शिक्षा में स्नातकोत्तर) भी पूरी की। 

रमेश विश्नोई की विशेष क्षमताएँ, चुनौतियाँ और उपलब्धियाँ


चूंकि उनके दोनों हाथ नहीं थे, उन्होंने पैरों को हाथ की तरह उपयोग करना सीख लिया — खाना बनाना, लिखना, चित्रकारी करना, आदि। 
उन्होंने सोशल मीडिया तक अपनी पहुँच बनाई — फेसबुक पर बड़ी संख्या में फॉलोवर्स हैं। 
एक वीडियो वायरल हुआ है जिसमें वे पैरों से कार चला रहे हैं। 
मीडिया में यह बताया गया है कि उनका सकारात्मक स्वभाव और आत्मविश्वास ही उन्हें आगे बढ़ने में सहायक रहा। 

कृत्रिम हाथ रमेश विश्नोई के लिए चुनौतियाँ व सीमाएँ


कई लेखों में उल्लेख है कि उन्होंने कृत्रिम हाथ नहीं लगवाया — क्योंकि उनका जन्म से हाथ नहीं थे और कंधों से ही हाथ नहीं थे, इसलिए कृत्रिम हाथ लगवाना संभव नहीं माना गया। 
आर्थिक सीमाएँ और सामाजिक सामाजिक बाधाएँ उन्हें संघर्ष के मार्ग पर ले गईं, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। 


No comments:

Post a Comment


Post Top Ad