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| Mahabharat Karana Pankaj Dheer |
अभिनेता पंकज धीर को भावपूर्ण श्रद्धांजलि
भारतीय टेलीविजन और फिल्म जगत के मशहूर अभिनेता पंकज धीर के निधन की खबर ने पूरे मनोरंजन जगत को गहरे शोक में डुबो दिया है। उन्होंने अपने अभिनय से करोड़ों दर्शकों के दिलों में एक अमिट छाप छोड़ी थी। 1988 में प्रसारित महाभारत सीरियल में कर्ण के रूप में उनका अभिनय आज भी दर्शकों की स्मृतियों में जीवित है। उनकी आवाज़, संवाद शैली और चेहरे के भावों ने कर्ण के चरित्र को अमर बना दिया।
पंकज धीर केवल एक अभिनेता ही नहीं, बल्कि एक सशक्त व्यक्तित्व के धनी थे — अनुशासनप्रिय, विनम्र और समर्पित कलाकार। उन्होंने फिल्मों, धारावाहिकों और नाटकों में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। “सौदागर”, “सन ऑफ सरदार”, “बाहुबली” और अनेक टीवी शोज़ में उनका अभिनय सशक्तता और गहराई का उदाहरण रहा।
उनका जीवन संघर्ष, मेहनत और लगन का प्रतीक था। एक साधारण कलाकार से लेकर भारतीय टेलीविजन के सबसे यादगार चेहरों में जगह बनाना आसान नहीं था, पर उन्होंने यह मुकाम अपनी मेहनत और सादगी से हासिल किया। उनके पुत्र निकितन धीर भी उनके नक्शे-कदम पर चलकर फिल्म जगत में सक्रिय हैं।
आज जब वे हमारे बीच नहीं हैं, तब भी उनकी अभिनय यात्रा आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देती रहेगी। पंकज धीर जैसे कलाकार शायद कभी भुलाए नहीं जा सकते — वे अपने कार्यों के माध्यम से सदा जीवित रहेंगे।
महाभारत में कर्ण के रूप में पंकज धीर का अमर अभिनय
पंकज धीर का नाम लेते ही लोगों के मन में सबसे पहले महाभारत के कर्ण का चेहरा उभर आता है। बी.आर. चोपड़ा द्वारा निर्देशित महाभारत में उन्होंने जिस समर्पण, गहराई और भावनात्मक तीव्रता से कर्ण का किरदार निभाया, उसने उन्हें घर-घर में प्रसिद्ध कर दिया।
कर्ण का चरित्र महाभारत का सबसे जटिल और मार्मिक पात्र माना जाता है — जन्म से सूतपुत्र कहलाने वाला, लेकिन वीरता, दानशीलता और निष्ठा का प्रतीक। पंकज धीर ने इस भूमिका में ऐसी आत्मा भरी कि दर्शक आज भी उनके संवाद, उनकी आंखों का दर्द और चेहरे की दृढ़ता को नहीं भूल पाए हैं।
“दानवीर कर्ण” के रूप में उन्होंने न्याय, आत्मसम्मान और त्याग का जो उदाहरण प्रस्तुत किया, वह टेलीविजन के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज है।
उनकी आवाज़ में वह गंभीरता थी जो कर्ण के आंतरिक द्वंद्व को सजीव कर देती थी — अर्जुन से युद्ध, मित्र दुर्योधन के प्रति निष्ठा, और मां कुंती के प्रति भावनात्मक वेदना; हर दृश्य में पंकज धीर ने अभिनय की ऐसी ऊँचाई छुई जो भारतीय टेलीविजन के लिए मानक बन गई।
महाभारत के बाद भी लोग उन्हें केवल अभिनेता नहीं, बल्कि “कर्ण” का पर्याय मानते रहे। यह उनकी कला की सच्ची विजय थी।

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