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मशहूर शायर मुनव्वर राना |
मुनव्वर राना 26 नवंबर 1952 - 14 जनवरी 2024
किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई
मैं घर में सब से छोटा था मिरे हिस्से में माँ आई
मशहूर शायर मुनव्वर राना का कार्डियक अरेस्ट से निधन हो गया। वह कई दिनों से बीमार चल रहे मुनव्वर राना लखनऊ के पीजीआई में इलाज अपना इलाज करवा रहे थे। उन्हें 9 जनवरी को स्वास्थ्य बिगड़ने के बाद आईसीयू में भर्ती कराया गया था। राना 71 साल के थे उन्हें किडनी और हार्ट संबंधी कई समस्याएं थी। 15 जनवरी को राना का अंतिम संस्कार किया जाएगा। मुनव्वर के परिवार में उनकी पत्नी, चार बेटियां और एक बेटा है। उन्हें पहले लखनऊ के मेदांता और फिर एसजीपीजीआई में भर्ती कराया गया था। जहां उन्होंने 14 जनवरी को रात करीब 11 बजे अंतिम सांस ली।
मुनव्वर राना का जीवन परिचय
मुनव्वर राना उर्दू भाषा के साहित्यकार और मशहूर शायर थे।
मुनव्वर राणा मूल रूप से उत्तर प्रदेश के रायबरेली के रहने वाले थे , मुनव्वर राना का जन्म 26 नवंबर 1952 उत्तर प्रदेश स्थित रायबरेली में एक मुस्लिम परिवार में हुआ था। भारत विभाजन के बाद, उनके अधिकांश रिश्तेदार पाकिस्तान चले गए थे, तब उनके पिता ही थे, जिन्होंने भारत में रहने को प्राथमिकता दी। अधिकतर वे कोलकाता में रहें वहीं से राना साहब ने प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त की। 14 जनवरी 2024 को मुनव्वर राना ने लखनऊ में अंतिम सांस ली।
मुनव्वर राना की मशहूर रचनाएं एवं पुरस्कार
मुनव्वर राना द्वारा रचित एक कविता शाहदाबा के लिये उन्हें सन् 2014 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 2014: में, उन्हें भारत सरकार द्वारा उर्दू साहित्य के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। हालांकि उन्होंने एक लाइव टीवी शो पर 18 अक्तूबर 2015 को इस पुरस्कार को वापस लौटाया और भविष्य में किसी भी सरकारी पुरस्कार को स्वीकार न करने का वचन दिया।
माँ पे लिखते हैं : मुनव्वर राना
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है
मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊँ
माँ से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ
लिपट को रोती नहीं है कभी शहीदों से
ये हौंसला भी हमारे वतन की माँओं में है
ये ऐसा क़र्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता
मैं जब तक घर न लौटूँ मेरी माँ सजदे में रहती है
यारों को मसर्रत मेरी दौलत पे है लेकिन
इक माँ है जो बस मेरी ख़ुशी देख के ख़ुश है
तेरे दामन में सितारे होंगे तो होंगे ऐ फलक़
मुझको अपनी माँ की मैली ओढ़नी अच्छी लगी
जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है
माँ दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती है
घेर लेने को जब भी बलाएँ आ गईं
ढाल बनकर माँ की दुआएँ आ गईं
मुनव्वर राना की रचनाएं
•माँ
•ग़ज़ल गाँव
•पीपल छाँव
•बदन सराय
•नीम के फूल
•सब उसके लिए
•घर अकेला हो गया
•कहो ज़िल्ले इलाही से
•बग़ैर नक़्शे का मकान
•फिर कबीर
•नए मौसम के फूल
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