Human Sexual Behaviour यौन व्यवहार और मानव: यौन संतुष्टि, मर्दाना कमजोरी , मिथक,समस्याएं तथा टूटते रिश्ते Jagriti PathJagriti Path

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Saturday, October 28, 2023

Human Sexual Behaviour यौन व्यवहार और मानव: यौन संतुष्टि, मर्दाना कमजोरी , मिथक,समस्याएं तथा टूटते रिश्ते

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Human physical relationship and behaviour


Warning to readers – This article contains material related to human sexual behavior. Therefore, this article is suitable for reading by readers above 18 years of age. The content of this article is for information only. This website is not responsible for the content and reliability of the facts of this article.

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जीवन मंत्र- यौन संबंध और मानव 


आजकल भौतिकवाद और पूंजीवाद की दौड़ में मानव खुद को जीवन से जुड़े तमाम क्षेत्रों जैसे आर्थिक सामाजिक मानसिक आदि क्षेत्रों में खुद को स्थापित करने के लिए दिन-रात मेहनत करता है जिससे उसका और उसके परिवार का जीवन यापन बेहतर ढंग से हो सके। लेकिन इस दौड़ में एक पुरुष या नारी के सामने मुश्किलें भी खूब है। आए दिन हर कोई जीवन में उत्पन हुई समस्या से जुझता है। इन समस्याओं में एक महत्वपूर्ण समस्या अपने पार्टनर के साथ रिश्ते बनाए रखना तथा अपनी प्रति लिंगी के साथ एक रिश्ता कायम कर उसे स्थायित्व देना।

लेकिन अन्य जीव जन्तुओ की प्रजातियों के अनुसार मानव जाति में भी प्रत्येक व्यक्ति की शारीरिक क्षमता, अंगों का आकार आदि में भिन्नता है। मानव की बात करें तो मनुष्य में प्रत्येक व्यक्ति शारीरिक बनावट,आकार सुन्दरता कौशल तथा भावनात्मक रूप से भिन्न है। इसलिए मनुष्य जाति में सेक्स या शारीरिक संबंधों का मुद्दा हमेशा आकृषित और महत्वपूर्ण रहा है। आकृषण प्यार और शारीरिक रिश्ते हमेशा किसी भी व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण हिस्सा रहे हैं जो भविष्य में भी रहेंगे। कितना भी रईस व्यक्ति हों चाहे बड़ा व्यक्ति हों अगर वह स्वस्थ हैं तो शारीरिक संबंध और प्रतिलिंग आकृषण उसके जीवन में कभी महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। लेकिन मनौवैज्ञान के अनुसार शारीरिक संबंध भी भूख प्यास की तरह एक प्राथमिक अवस्था है जिसके बिना बहुत कम ही लोग रह सकते हैं। 
इसलिए शारीरिक संबंध और हार्मोन्स का प्रभाव एक व्यक्ति के जीवन में सबसे मुख्य जिम्मेदारी निभाता है तो जीवन में सबसे अधिक समस्याएं तनाव और चिंता इस विषय में देखने को मिलती हैं। 


शारीरिक संबंध और स्त्री पुरुष


शारीरिक संबंध बनाने की इच्छा जागृत करने वाले हार्मोन स्त्री और पुरुष दोनों में जीवन की एक लम्बी और विशेष अवस्था में समान रूप से सक्रिय रहते हैं। इसके स्थायित्व के लिए आकृषण मुख्य भूमिका निभाता है जिसके मुख्य घटक शारीरिक बनावट,रंग रूप,कला व्यवहार आदि है लेकिन आजकल भौतिकवाद में शारिरिक सुडोलता और सौन्दर्य को अधिक प्राथमिकता दी जाती है। इसलिए एक स्त्री पुरुष विवाह जैसी व्यवस्था से सामाजिक पारिवारिक जीवन की नींव रखकर शारीरिक संबंधों को स्थायित्व प्रदान कर संतति विकास और वंश परम्परा और जिम्मेदारी के वाहक बनते हैं।

Sexual-problem-male-female
Male and female relationship and physical relationship



हालांकि मानव जीवन के पूरे कालक्रम में शारीरिक संबंध या संभोग का समय विशेष अवस्था में ही प्रभावी है फिर भी यह अवधि जीवन की महत्वपूर्ण और लम्बी होने के कारण अपने आप में खास है। इसलिए इस समयावधि की समस्या और उलझने सबसे अधिक परिलक्षित होती है। इस समय की सबसे बड़ी समस्या पार्टनर का एक दूसरे को पसंद नहीं करना या भावात्मक दूरी का बढ़ जाना है जिससे रिश्ते में दरार आती है। दूसरी तरफ विवाह या विवाह से पहले भी व्यक्ति शारीरिक संबंध से जुड़ी समस्याओं के कारण जीवन में दुखी रहते हैं और शर्मिंदगी महसूस करते हैं।

स्वस्थ मनुष्य में यौन संबंधों से जुड़ी समझ पहचान चेतना और महत्वत्ता


यौन संबंध के हार्मोन वैज्ञानिक ढ़ंग से काम करते हैं तथा इनकी मौजूदगी सही ढ़ंग होना उतना जरुरी है तो इसके लिए संपूर्ण शरीर का स्वास्थ्य और इससे जुड़े अंगों का सामान्य अवस्था में होना ही एक परिपूर्ण यौन प्रकिया को संचालित करता है। इसमें से कुछ खामियों का आजकल आधुनिक चिकित्सा तकनीक और आयुर्वेद के अनुसार उपचार और निदान भी संभव है जैसे शुक्राणु नहीं बनना, नाड़ी तंत्र अवरोध, हार्मोन संबंधी विकार आदि। हमें यह समझना जरूरी है कि यौन प्रकिया में दो पहलू मुख्य रूप से समानान्तर उतरदायी है वे है शारीरीक तथा भावनात्मक । शारीरिक क्रिया से जुड़े इस सिस्टम में भावात्मक या मानसिक पहलु भी बहुत भूमिका निभाता है। भावनात्मक मानसिक और नैतिक जागृति ही इस यौन प्रकिया को नियंत्रित करती है । इसलिए मानव जाति में यौन संबंध इच्छा व्यक्ति विशेष से एक भिन्नता के साथ संबंधित रहती है। इस प्रकार यौन प्रकिया एक स्त्री पुरुष जो उपरोक्त शारिरिक विशेषता रखते हैं तो उनमें स्वाभाविक और समान रूप से मौजूद होती है। इसलिए हम समझ सकते हैं कि हर मनुष्य में यौन प्रकिया की पहचान तो सम्मान है लेकिन इस प्रकिया की समझ , नियंत्रण आदतें आदि शारीरिक और भावनात्मक भिन्नता के कारण अलग रूप से परिलक्षित होती है तथा उसके सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन के निर्णयों और व्यवहार को प्रभावित करती है। जैसे एक पुरुष या महिला के लिए यौन संबंध की बारम्बारता, एक या अनेक यौन साथी का चुनाव , यौन प्रकिया करने की अलग-अलग कलाओं का उपयोग , आनन्द और अनुभूति का भिन्न अहसास आदि।

यौन संबंध और स्त्री पुरुष के रिश्तों की समस्याएं


व्यक्ति अपनी यौन उत्तेजना को शांति प्रदान करने के लिए यौन क्रिया से गुजरता है जो कृत्रिम या प्राकृतिक तथा द्विलैंगिक या समलैंगिक किसी भी रूप से हो सकती है लेकिन जब बात स्त्री और पुरुष के बीच प्राकृतिक यौन प्रकिया की आती है तो इसमें सबसे पहले बात पति पत्नी या अवैध संबंधों के दौरान होने वाली यौन प्रकिया की आती है। 
यही से रिश्तों का स्थायित्व , विवाह, चरित्र, यौन भाव , नियंत्रण आदि जीवन से जुड़े विभिन्न मुद्दे सामने आते हैं। यही से एक इंसान के लिए किसी संभावित समस्या का जन्म होता है। इन समस्याओं में विभिन्न समस्याए सामने आती है जो शारीरिक,मानसिक , सामाजिक और भावनात्मक से जुड़ी होती है। 
इन समस्याओं में अवैध संबंधों की आदतें, यौन इच्छा का कम या अधिक होना,यौन अंगों का छोटा बड़ा या असामान्य होना,यौन संचालित रोग, यौन प्रकिया और इससे उत्पन्न होने वाले शारीरिक बदलाव और परिणाम आदि है जो कहीं खुशी और आनंद पैदा करते हैं तो कहीं निराशा और चिंता।
अब बात करते हैं कि पति-पत्नी या शारीरिक संबंधों के लिए दो साथियों के सामने आने वाली समस्याएं जो उन्हें जीवन में शर्मिंदा महसूस करवाती है या इस व्यवस्था में इंसान आपसे में हक और सामाजिक और जैविक व्यवस्था के अनुसार अनुकूलित करने के लिए हिंसात्मक हो जाते हैं। पृथ्वी पर आदिमानव के बाद आधुनिक सामाजिक मानव ने स्वयं को एक सिस्टम के अनुसार जीवन जीने की व्यवस्था में बांधा है इसलिए कभी-कभी यौन संबंध और प्रकिया इस सिस्टम के अनुकूल नहीं होती है तो मनुष्य हिंसा और लड़ाई का हिस्सा बनता है। यौन संबंध प्रकिया से जुड़े मुद्दों पर हिंसा अधिक होती है क्योंकि सामाजिक व्यवस्था एक पुरुष या नारी के ऊपर यौन प्रकिया का हक और सीमाएं निर्धारित करता है। 
खैर अरबों की जनसंख्या में यौन संबंधों का क्षेत्र भी मानव की मौजूदगी के इर्द-गिर्द ही रहता है इसलिए बात इससे जुड़ी समस्याओं की करते हैं जिसमें एक पुरुष या स्त्री एक दूसरे से यौन संबंध बनाने के दौरान या बाद में असंतुष्ट महसूस करते हैं। या उनके यौन संबंधों की प्रक्रिया उनके भावनात्मक रूप और आनन्द की अनुभूति को उनके द्वारा विकसित की गई इच्छा के अनुरूप परिपूर्ण नहीं होती है इससे उसमें यौन संबंध की क्रिया में अलगाव पैदा होता है हालांकि यह स्वैच्छिक रूप से या बाहरी प्रभाव आदि से नियंत्रित हो सकता है। लेकिन जब यही बात एक स्थायित्व वाले वैवाहिक युगल या अवैवाहिक रूप से यौन संबंध की प्रक्रिया को स्थायित्व देने वाले युगल के बीच यह बंध टूटने लगता है तो इसे हम रिश्ता टुटने या विच्छेदन की संज्ञा देते हैं। आजकल वैवाहिक युगल या अवैध यौन संबंधों की बुनियाद पर बने नर नारी के रिश्तों
 के बंध को टूटने की समस्या को ही मुख्य समस्या के रूप में देखा जाता है। हालांकि इस विच्छेदन में विभिन्न कारक भी उतरदायी हो सकते हैं। लेकिन बात करते हैं शारीरिक क्षमता और यौन प्रकिया की निपुणता की जिसकी कमी के कारण एक पुरुष दुसरे साथी की तालाश कर उसके साथ यौन सुख भोगता चाहता है तो दूसरी तरफ एक फीमेल एक पुरुष को रिजेक्ट कर अन्य पुरुष में शारीरिक संबंध भोगने की इच्छा जागृत करती है। अक्सर रिश्तों में इस विच्छेदन से एक दूसरे से घृणा करके उनके बीच प्यार और आकर्षक का बंध भी तोड़ देते हैं। लेकिन जरुरी नहीं कि यौन क्रिया की पसंद में बदलाव आने से रिश्तों में दरार आए । क्योंकि यौन प्रकिया एक गोपनीयता और व्यक्तिगत पहचान का रूप है इसलिए यह उस व्यक्ति तक ही सीमित रहती है। लेकिन सामाजिक मानदंडों और नैतिक दायित्वों के चलते यौनिक व्यवहार चोरी चुपके या जाहिर रुप से भी चलता है। यही समस्याए जन्म लेती है। सामाजिक और परिवेश के माहोल अनुसार यौन संबंधों की प्रक्रिया अधिक चलतीं है जैसे एक पुरुष या स्त्री अगर एक से अधिक पार्टनर के साथ संबंध बनाना चाहता है लेकिन उसके परिवेश में अनुमति नहीं है तो वो इस प्रकिया में चोरी चुपके यह काम करेगा हालांकि इस दौरान उसे दण्डित भी होना पड़ सकता है। इसी व्यवस्था में आजकल यह मुद्दा सबसे जटिल और समस्यात्मक बना हुआ है जिसका समाधान ना तो व्यवस्था के पास है ना ही शारीरिक हार्मोन से उत्तेजित हुए स्त्री पुरुष के पास है। इसलिए हर स्त्री पुरुष अपनी इच्छा समझ , प्रभाव आदि के कारण यौन संबंध की क्रिया में शामिल होते हैं। अब यह तय तो कोई स्त्री पुरुष स्वयं तय करते हैं कि हमें किसके साथ, कब और कैसे यौन संबंध स्थापित करना है इसी फैसले पर बाहरी बाधाएं और मापदंडों का प्रभाव रहता है यही से समस्याए शुरू होती है। और प्रश्न खड़े होते हैं। कि क्यों एक स्त्री या पुरुष निर्धारित व्यवस्था के बाहर जाकर शारिरिक संबंध की इच्छा जताते है या एक दूसरे को जबरन इस प्रक्रिया में शामिल करते हैं।

यौन उत्तेजना और यौन संबंधों को स्वीकृति का व्यक्तिगत और सामाजिक रूप


जब हमारे आदि मानव ने पशुओं की तरह बिना सामाजिक व्यवस्था और समुह व्यवस्था प्रणाली में जीवन यापन किया तब यौन संबंध बनाने के लिए हक और मानदंडों का निर्धारण नहीं रहा होगा हालांकि दो नर और मादा का साथ रहना एक तरह का करार है जो नियमित या अनियमित हो सकता है जैसा आज हम जानवरों अन्य जीवों में देखते हैं लेकिन मानव ने अपनी विकास यात्रा में अपनी बुद्धि और समझ से जल्द एक सभ्यता का निर्माण किया जिससे स्थाई व्यवस्थाएं बनी है। लेकिन क्या हम सोचते हैं कि मानव जाति में भी नर और मादा है जो निर्बाध रूप से एक और अनेक सम्भागियो के साथ यौन संबंध बनाते हैं हालांकि इसके पीछे के कारण भले ही शारीरिक या आर्थिक हो सकतें हैं। इस दौरान हमें देखने से लगता है कि पशु पक्षियों या अन्य जीवों और आदिमानव के शारीरिक संबंध सिस्टम में अंतर नहीं है लेकिन ऐसा नहीं है मानव बुद्धिजीवी है इसलिए तालमेल बिठाना भी जानता है।
बहुसंभागी यौन क्रिया को असुरक्षित करने के अपने नुकसान है वहीं मानव इस नुकसान से निपटना भी सीख गया है। दूसरी और यौन संबंध बहुत नैतिक मूल्यों और मानदंडों के दायरे में है जिसे सभ्यता की मान्यता है स्वीकार्यता है। जिसे हम एक संभागी यौन संबंध या पवित्र वैवाहिक जीवन की संज्ञा देते हैं।
लेकिन हम सब चिंतन करके स्थूल दृष्टि से मानव व्यवहार का अध्ययन करें तो बहुत कम ऐसा लगता है कि मानव यौन संबंध की मानव द्वारा बनाई गई व्यवस्था और स्वीकार्यता के दायरे में कितना बाहर और कितना अंदर है। यह गोपनीय और प्राइवेट मुद्दा है लेकिन कह सकते हैं कि आज के युग में जहां लोग नैतिक मूल्यों के विकास और एक व्यवस्था का निर्माण करना चाहते हैं उसके विपरीत आधुनिक विवेकशीलता और समझ से जनसंख्या का बड़ा हिस्सा स्वगठित व्यवस्था के अंदर स्वतंत्रता से जीवन के व्यवहार का परिचालन करता है। जिसके दौरान एक नर मादा मानव अपने विवेक से सुरक्षित या असुरक्षित एक से अनेक संभागी के साथ यौन संबंध बनाते हैं जिसे ना तो सही कहा जा सकता ना ही गलत।
क्योंकि यौन क्रिया शारीरिक और जैविक प्रकिया है इसे मापदंडों में नहीं बांधा जा सकता है । दूसरी तरफ व्यवस्था भी अपने स्थान पर सुरक्षा और मार्गदर्शन का काम बखूबी कर रही है। क्योंकि मानव की स्वतंत्रता और इच्छा के विरुद्ध उसे बला यौन प्रकिया का हिस्सा बनाने पर एक मानव दूसरे मानव के लिए सजा का प्रावधान भी बनाता है। लेकिन मुद्दा इससे उत्पन्न होने वाली तमाम समस्याओें का है तो समस्या यह है कि यौन संबंध के लिए निर्धारित संभागी और उनके स्थायित्व की। हम यह समझ चुके हैं कि यौन संबंध के लिए सामाजिक मानदंडों के अनुसार नर मादा का व्यवहार हो तभी यह प्रक्रिया आदर्श हो सर्वमान्य रहेगी। इसलिए सबसे पहली समस्या आती है कि एक पुरुष या नारी जो शारीरिक संबंध बनाने के लिए सामाजिक रूप से स्वीकृत होते हैं फिर भी एक दूसरे से वो संतुष्ट नहीं होते हैं और वो अन्य के साथ शारीरिक संबंध बनाने की कोशिश करते हैं इससे ही रिश्ते टूटते और अवैध संबंधों की बात सामने आती हैं। जिसे दुनिया में कुछ इस निर्णय को स्वीकृति भी देते हैं तो कुछ विरोध भी करते हैं।


अवैध शारीरिक संबंध अपराध या स्वतंत्रता


सामाजिक और सभ्यता की स्वीकार्यता में अवैध संबंधों को व्याभिचार, अनैतिक माना जाता है। लेकिन एक असंतुष्ट या अन्य कारणो से एक नर या नारी अवैध संबंधों में लिप्त होते हैं तो इसके रोकना सही है या ग़लत इसका जबाव भी एक जैसा नहीं मिलता है। लेकिन आदर्श जीवन और नैतिक मूल्यों में ऐसा ग़लत और व्यवस्था के विपरित माना जाता है। बड़ी विडंबना यह है कि ऐसी मान्यता वाले लोग भी मौका पाते ही अवैध शारीरिक संबंध बनाने से नहीं चुकते इसलिए समस्या अभी समाप्त नहीं हुई है। आखिर क्या कारण रहते हैं कि एक व्यक्ति को ऐसे कृत्य को करना पड़ता है। इसके विभिन्न कारण उतरदायी हो सकते हैं जैसे साथी का व्यवहार,उसका स्वास्थ्य आदि। इसलिए इस मुद्दे पर सही ग़लत कहना जल्दबाजी होगी। क्योंकि भूख प्यास की तरह यौन क्रिया भी एक आवश्यकता है इसलिए इसे पुरा करना हर व्यक्ति की शारीरिक आवश्यकता है इसे बाधित तो नहीं किया जा सकता है । लेकिन यौन इच्छा या कामुकता का संबंध संज्ञानात्मक और मानसिक चेतना से भी है इसलिए जो व्यक्ति
जैसा देखेगा सुनेगा या गतिविधियों में शामिल होगा उससे उसके यौन हार्मोन सक्रिय होते हैं और उसे यौन क्रिया में शामिल होने के लिए ट्रिगर करते हैं। यह समझना भी जरूरी है कि रसायनों के स्त्राव और संज्ञानात्मक चेतना से नियंत्रित होने वाली शारीरिक गतिविधि एक ऊर्जा है जब इस ऊर्जा को कामुकता और संभोग से अलग कर मन मस्तिष्क को दूसरे जीवन उपयोगी कार्यों की तरफ मोड़ दिया जाता है तो इसका प्रभाव कम हो जाता है तथा इसकी आवृत्ति में अंतराल आता है। लेकिन एक स्वस्थ व्यक्ति को इस शारीरिक आवश्यकता से वंचित रखना भी मुश्किल है क्योंकि यह कभी भी भूत काल के विचारों , दृश्यों या गतिविधियों को याद करके या तत्कालीन शरीर और मस्तिष्क से उत्पन्न हुए रसायनों और विचारों से यौन अंगों को उत्तेजित कर देते हैं जिससे व्यस्त या एकाग्रता वाले व्यक्ति भी यौन क्रिया के लिए तैयार हो जाते हैं।
अगर यौन क्रिया एक ऊर्जा है तो इसका प्रबंधन और नियंत्रण आदर्श रूप से होता है तो इसमें कम समस्याओं की गुंजाइश रहती है। इसलिए मानव सभ्यता ने यौन क्रिया के लिए अलग-अलग देशों में अलग-अलग मानदंडों का निर्धारण किया है जहां कहीं विवाह पूर्व यौन संबंध अवैध और अस्वीकार्य है तो कहीं यौन क्रिया पर अधिक ध्यान भी नहीं दिया जाता है। कहीं धर्म और सामाजिक व्यवस्था में विवाहेत्तर संबंध ही आदर्श माने जाते हैं जो एक निर्धारित पार्टनर के साथ ही बनाने की अनुमति होती है। हालांकि यौन क्रिया पर नियंत्रण जीवन और सामाजिक शान्ति व्यवस्था के लिए जरूरी है फिर भी इस दायरे के जाकर यौन क्रिया में संलिप्त होने वाले लोगों की संख्या भी कम नहीं है यही से समस्याए शुरू होती है लेकिन जहां यौन क्रिया और इससे संबंधित आचरण पर बाहरी प्रभाव कम है वहां यह अबाधित रूप से होता है लेकिन फिर भी मानव इसे नियंत्रित और व्यवस्थापरक बनाकर जीवन यापन के अन्य कर्तव्यों में स्वयं को स्थापित करने में लग जाते हैं क्योंकि सेक्स एक भुख प्यास की तरह शारीरिक आवश्यकता है जो पूर्ति के बाद शरीर की मांसपेशियों और मस्तिष्क और अंगों के उत्तेजक स्तर को शान्त कर देती है इस प्राकार यह तनिक अवस्था का अहसास
तथा शारीरिक स्खलन की गतिविधि है। लेकिन यह जीवन के लम्बे समय में बारम्बारता की क्रिया होने के कारण यह प्रत्येक दिन के समय के साथ प्रभावित करती है। हमने जाना कि सभ्य मानव ने यौन संबंध को अपनी सामाजिक व्यवस्था से नियंत्रित करने की कोशिश की है लेकिन यह स्वैच्छिक और व्यक्तिगत होने से अनियंत्रित भी रही है तथा विवेक आधारित परिवेश , संज्ञानात्मक चेतना जीवन के मूल्यों , नैतिक कर्तव्यों, जैविक संबंधों तथा मस्तिष्क और शरीर की विभिन्न अवस्थाओं और स्थितियों से स्वनियंत्रण रहीं हैं फिर भी शारीरिक संबंध या कामोत्तेजना का मुद्दा एक व्यक्ति के जीवन में अधिकतर विवादास्पद और समस्याओं का कारण रहा है जिसमें यौन उत्पीडन, संबंधों के लिए पार्टनर का चुनाव,यौन सुख प्राप्त करने की इच्छा,यौन क्रियाओं के पैटर्न, जीवन की अवधि में यौन क्रिया का आरम्भ , यौन क्रिया से जुड़े रोग,प्रजनन , उभयलिंगी और समलैंगिक संबंध, यौन सुख तथा स्खलन ,काम तृप्ति , पार्टनर का आकर्षण और भावात्मक पक्ष आदि से जुड़े मुद्दों से मानव व्यवहार में कहीं न कुछ असामान्य रूप से समस्याएं उत्पन्न होती है जो एक पुरुष या स्त्री के सामाजिक जीवन और व्यवहार पर प्रभाव डालती है। इसलिए आज यौन संबंधों से जुड़े आचरण को शत् प्रतिशत नियंत्रण में नहीं लाया जा सका है ।


शारीरिक संबंध बनाने की कमजोरी तथा पार्टनर के आनन्द और संतुष्टि का महत्व


शारीरिक संबंध को लेकर रिश्तों में आने वाली खटाश की बात करें तो अधिकतर मामलों में देखा जाता है कि पुरुष या नारी दोनों में से कोई एक को अपने संभागी से आनन्द और संतुष्टि नहीं मिल पाती या पार्टनर के यौन अंगों में कसाव की कमी होती है । पुरूषों में जल्दी स्खलन की समस्या तथा लिंग का छोटापन की शिकायत महिला पार्टनर को होती है वहीं पुरुष पार्टनर की शिकायत महिला पार्टनर से उसके अंगों की बनावट ,कसावट और यौन क्रियाओं में उदासीनता तथा कथित आकर्षक शरीर को लेकर होती है। दरअसल अनेक बार यह समस्याएं इतनी बड़ी नहीं होती है लेकिन सोच पूर्वाग्रह और विचारों के कारण एक पार्टनर दूसरे पार्टनर को रास नहीं आता है इसमें विभिन्न गलतफहमियां और एक दुसरे को समझने की कमी यौन प्रकिया की जानकारी तथा इसके कौशल की कमी के कारण विभिन्न समस्या सामने आती हैं। इसके अलावा टूटते वैवाहिक और यौन संबंधों के रिश्तों पर अन्य कारको का प्रभाव भी आधे से ज्यादा रहता है जिसके मुख्य कारण सामाजिक, आर्थिक,परिवारिक , नशा, व्यवहार , घरेलू झगड़े, शिक्षा स्वास्थ्य, परिवारिक मामलों के मुद्दे,पसंद ना पसंद , आर्थिक असमानता, जागरूकता,शहरी और ग्रामीण माहौल,माता पिता का व्यवहार,आय और संसाधनों आदि से जुड़े मुद्दों पर बिना किसी शारिरिक संबंध से जुड़ी समस्या से रिश्तों के बन्धन टूटते हैं । लेकिन यहां बात केवल शारीरिक संबंध से जुड़े मुद्दों पर करते हैं तो हम समझ सकते हैं हर पुरूष महिला के जीवन की एक विशेष अवस्था में शारीरिक संबंध और यौन संतुष्टि का बहुत महत्व है। हर एक फीमेल अपने मेल पार्टनर से यौन क्रियाओं से जुड़े वो हर एक पल को आनन्द की अनुभूति के हसीन सपने देखती है तो पुरुष भी अपने संपूर्ण आनन्द के साथ अपनी प्यास बुझाकर यौन तृप्ति आपने फीमेल पार्टनर से चाहता है। ऐसे में इस काम में रहने वाली थोड़ी सी कमी भी एक दूसरे के लिए शिक़ायत का कारण बनने लगती है। अधुरे यौन सुख के कारण कोई भी मेल या फीमेल दूसरे के साथ यौन क्रिया करके अपनी यौन की भूख मिटाने के लिए संबंध बनाने के लिए कदम उठाते हैं यहां सामाजिक अस्वीकार्य के कारण या या किसी प्राकार के डर से यह कार्य चोरी चुपके शुरू करते हैं।
लेकिन सभी मनुष्यों का स्वभाव आदतें और जीवन मूल्य अलग-अलग हैं मन और संवेगो पर नियंत्रण वाले लोगों में यौन संबंधों से जुड़े निर्णय और विचारों में भिन्नता है । यह भी जरूरी नहीं है कि हर असंतुष्ट मेल या फीमेल संभोग के लिए एक से अधिक पार्टनर का चुनाव करें। इन सब चीजों में परिपक्वता , परिवारिक मूल्यों, स्वविवेक जागरूकता और चेतना भी बड़ी भूमिका निभाती है। वेश्याओं में यह कार्य धन और पेट पालने के लिए होता है तो कहीं लोग शोक और आनन्द के लिए भिन्न-भिन्न संभागियो के साथ शारिरिक संबंध
बनाने है। दूसरी तरफ लगाव या आकर्षक जिसे प्यार की संज्ञा दी जाती है जिसके कारण कोई फीमेल या मेल किसी विपरीत लिंगी को दिल दे बैठते हैं यहीं से उनकी मोहब्बत और इकरार आगे चलकर विवाह या साथ रहने और शारीरिक संबंध बनाने तक पहुंच जाता है। इसलिए यौन क्रिया से जुड़े मुद्दे पर संज्ञानात्मक, भावात्मक तथा अंतःकरण से जुड़े विभिन्न पहलू उतरदायी हैं इसलिए इससे जुड़ी समस्याओं में एकरूपता नहीं है। एक व्यक्ति के जीवन में यौन संबंधों से जुड़े व्यवहार में बहुत बदलाव देखे जाते हैं। लेकिन एक मनुष्य के जीवन में शारीरिक मानसिक संतुलन का बड़ा महत्व है । भावात्मक नैतिक व्यवहार आदतें अनुभव और शारीरिक हार्मोन की मात्रा तथा जीवन में अर्जन किये गये मूल्य एक व्यक्ति की यौन प्रकिया को भी नियंत्रित करती है। इसलिए एक व्यक्ति के अंदर परिपक्वता , बुद्धि, समझ,ज्ञान और विवेकशीलता होना ही यौन क्रियाओं से जुडी समस्याओं का समाधान कर सकती हैं।


कैसे करें अपने पार्टनर को संतुष्ट और तृप्त


अक्सर कई बार एक पुरुष या महिला में यौन क्रिया से जुड़ी क्षमता और अंगों के औसत होने के बाद भी वे किसी न किसी कमी का अहसास करते हैं। हालांकि अधिकतर यह पाले गये भ्रम होते हैं जो उनके दिमाग में एक कमजोरी के रूप में घर कर देते हैं। बेहतर व्यवहार तथा यौन क्रियाओं के बेहतर क्रियाकलाप इस तथाकथित कमजोरी को हमेशा के लिए दूर कर देते हैं। लेकिन इसके लिए पार्टनर्स को दिमाग में स्थाई किये नकारात्मक भावों समझ और संप्रत्यो में सुधार करना जरूरी है। एक औसत लिंग वाला पुरुष अपने पार्टनर को पूर्ण यौन सुख प्रदान कर सकता है क्योंकि यौन क्रिया का संबंध मन मस्तिष्क और भावनाओं से बहुत अधिक है। इसके लिए सबसे पहले एक दूसरे को समझना , एक दूसरे की पसंद और ना पसंद की कद्र करना, जज्बातों को समझना तथा एक दूसरे से चाहत रखना जरूरी है घृणा और अविश्वास संभोग सुख के बड़े शत्रु है यौन व्यवहार में बनावटी व्यवहार उचित नहीं होता है इसलिए वास्तविकता और एक दूसरे का एक दूसरे को समर्पित होना यौन व्यवहार की मधुरता का महत्वपूर्ण घटक है। हालांकि केवल शारीरिक संतुष्टि और स्थाई रिश्ते में बहुत अन्तर है। एक व्यक्ति शारीरिक संतुष्टि तो अप्राकृतिक तरीके भी कर सकता है लेकिन जब बात शारीरिक संबंधों में एक नर और नारी को लेते हैं तो उसमें बहुत से पहलु जुड़े होते हैं। इसलिए यौन संबंधों मे पार्टनर को तृप्त करने के लिए यौन जागरूकता , भावनात्मक आदान-प्रदान तथा समझ का होना जरूरी है। एक पार्टनर को अपने पार्टनर की क्षमताओं, रूचियों और भावनाओं के प्रति पारदर्शिता रखनी चाहिए। यौन सुख कहीं संभोग से अधिक ललित क्रियाओं में अधिक मिलता है। पार्टनर का शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक स्वरूप,तनाव-खुशी आदि यौन सुख को प्रभावित करते हैं। इसलिए एक पुरुष के स्खलन तथा महिला की उत्तेजना की चरम सीमा भी मस्तिष्क से नियंत्रित होती है जो उस समय के व्यवहार, भावनात्मक और भाषाई आदान-प्रदान और क्रियाकलापों से जुड़े रहता है। इसलिए यौन क्रिया में आनंद की चरम अनुभूति और सुख प्राप्त करने के लिए संभोग के बाद और पहले उन सभी ज्ञानेन्द्रियो और संवेगी तंत्रिकाओं को जागृत करना जरूरी है। सुरक्षा लगाव और चाहत यह शारीरिक आकर्षण को बढ़ाते हैं इसलिए एक पुरुष को एक फीमेल पार्टनर को सम्पूर्ण यौन सुख देने के लिए सम्भोग पूर्व आपसी लैंगिक उत्तेजना एवं आनंददायक कार्य जिसे foreplay भी कहा जाता है बहुत जरूरी है यह कार्य मौखिक भाषाई स्पर्श भावात्मक आदि रूप से होता है जैसा पार्टनर अपने लिए रूचिकर मानते हैं। यह समझना भी जरूरी है कि हर दिन शारीरिक और मानसिक स्तर एक जैसा नहीं रहता है इसलिए हर बार ऐसा जरूरी नहीं है कि कोई एक पार्टनर एक बार में चरम सुख का अनुभव करें हम जानते हैं कि ह्यूमन एनाटॉमी या शारीरिक बनावट और प्रकार्यात्मक रूप से स्त्री पुरुष का शरीर भिन्न है जहां पुरुष अपने यौन सुख की अंतिम सीमा या सन्तुटि को स्खलन से जाहिर करता है तो फीमेल में यह क्रिया भिन्न होती है कुछ पुरुष स्खलन के बाद भी संभोग क्रिया जारी रख सकते हैं तो कुछ पुरूषों में इसके बीच अंतराल होता है। इसलिए संभोग और यौन सुख प्राप्त करने की क्रिया किसी एक ही समय में की गई सापेक्षिक क्रिया से है इसके लिए कोई सेट निर्धारित नहीं है ना ही अवधी और क्रम निर्धारित है।
इसलिए मानसिक संतुलन खुद पर भरोसा और साथी के साथ भावात्मक नज़दीकियां आदि एक व्यक्ति की यौन क्रिया को मधुर और प्रभावी बनाती है। 


यौन व्यवहार प्रबंधन नियंत्रण एवं इतिहास और वर्तमान में मानव के यौन व्यवहार का स्वरूप


यौन इच्छा और आकर्षक जिसका दायरा सीमित नहीं है इसलिए आज तक कोई इस मुद्दे से जुड़े तमाम समस्याओें और निर्णयों को एक धागे में पिरो नहीं सका है। अधिकतर यौन संबंध में नाकामी और विफलता की समस्यायों में पुरुष खुद को वहां पाते हैं। हर एक पुरुष चाहता है कि उसका स्थाई पार्टनर उसके यौन संबंधों से संतुष्ट और खुश रहें अन्य किसी पुरुष से बेहतर आनंद और सुख की अपेक्षा ना करें तो पुरूषों को भी समझना चाहिए कि वे जिस सामाजिक सभ्यता के संस्थागत स्वीकार्यता के कारण वो ऐसी अपेक्षा करता है तो उसकी फीमेल भी स्वाभाविक तोर पर ऐसी ही अपेक्षा रखती है क्योंकि वो भी उसी सभ्यता के अन्दर एक सामाजिक और मानवीय व्यवस्था के अन्दर है। लेकिन हो सकता है कि एक स्त्री या पुरुष यौन सुख आनन्द के लिए मानवीय व्यवस्था के दायरें के बाहर जाकर इससे संबंधित आचरण करें। जैसे किसी देश में एक या एक से संभागियो के साथ स्वेच्छा के साथ यौन संबंध बनाने पर मानवीय संस्थागत मानदंडों शिथिल हो या उदासीन हो तो फिर वहां यौन संबंधों और रिश्तों के बने रहने या नहीं रहने की समस्या स्वत समाप्त हो जाती है। इसलिए यौन व्यवहार स्वयं के मूल्यों पर बहुत निर्भर करता है। आत्मनियंत्रण और शारीरिक नियंत्रण एक व्यक्ति को जीवन भर संभोग से दूर रख सकता है। इसलिए एक पुरुष या महिला जो सामाजिक मानदंडों और स्वीकार्यता से बाहर कदम रखते है तो इसका समाधान क्या है? इसका उत्तर सहजता से नहीं मिल सकता है। कानुन, सामाजिक पाबंदी,सजा आदि इसकी आवृत्ति को कम कर सकते हैं लेकिन जो मस्तिष्क और विचारों में घटित होता है उसके समाधान के बिना अन्य कोई समाधान नहीं है। हालांकि मानवीय व्यवस्था , कानून और वैश्विक नैतिकता से एक मनुष्य का यौन व्यवहार जरूर प्रतिबंधित होता है। लेकिन आज भी यह मुद्दा हिंसा, मार-काट और कानुनी उलझनों का सबब बना हुआ है । इसलिए यौन व्यवहार और रिश्तों में आने वाली समस्याओं का समाधान जितना शारीरिक है उतना दूसरे पक्षों में भी है इसलिए एक पुरुष या स्त्री को उसके जीवन में बेहतर शिक्षा, जागरूकता , समायोजन, विवेकशीलता ,सांवेगिक नियंत्रण और शारीरिक ऊर्जा के बेहतर स्तेमाल और जीवन के सर्वांगीण विकास में काम आने वाले सभी पहलुओं पर निरंतर कर्म करते हुए सभ्यता के अनुकूल मानव के सभी गुण मिले। क्योंकि यौन व्यवहार जीवन का एक हिस्सा है । इसलिए एक पुरुष और स्त्री को अपने जीवन में यौन संबंधों को लेकर स्वतंत्रता है क्योंकि इस स्वतंत्रता को मानव खुद निर्धारित करता है। प्राचीन धर्मों की मान्यताओं में यौन व्यवहार को नियंत्रित करने की खूब कोशिश की गई थी लेकिन यह सार्वभौमिक रूप से हमेशा पर्दे के पीछे अपने ही अनुसार रही। आज कानून और सामाजिक व्यवस्था में एक स्त्री पुरुष के लिए यौन व्यवहार का दायरा निश्चित है । लेकिन सच यह है कि जैसा मानव ने चाहा वैसे उसने दायरों और मानदंडों को लचीला और कठोर किया। 
एक पुरुष के साथ उसकी विवाहित स्त्री या एक विवाहित पुरुष विवाह के कुछ समय बाद वह किसी कारणवश वे एक दूसरे साथ नहीं रहना चाहते है इसका मतलब यह हुआ कि अब वे यौन व्यवहार भी साझा नहीं करना चाहते। इसलिए मानवीय व्यवस्था जिसे हम विधान या कानून कहते हैं उसने तलाक या डाइवोर्स की व्यवस्था की है जिसका मतलब है कि वे अब दोनों एक दूसरे को अन्य इच्छित से शारीरिक संबंध बनाने की आज्ञा या छुट दे रहे हैं और एक बोंड को ख़त्म कर रहे हैं। इससे हम यह समझ सकते हैं की मानव का यौन व्यवहार काफी हद तक स्वतंत्रता रहा है क्योंकि असल में यह संस्थागत नियंत्रण में नहीं बल्कि मनोदैहिक नियंत्रित और प्राइवेट है। इसलिए मानवीय सभ्यता को समय-समय पर इसके पीछे पीछे चलकर नियमों में संशोधन सजा और पाबंदियों में बदलाव करना पड़ा। कहीं समलैंगिक संबंधों के लिए और समलैंगिक विवाह की मांग उठी तो कहीं वेश्यावृत्ति को कानूनी बनाने की मांग उठी। मसलन विभिन्न क्षेत्रों में इतिहास और वर्तमान में यौन व्यवहार जो स्वच्छंदता से जुडा है इसे नियंत्रित करने की खूब कोशिश की गई जो कि ज़रुरी है प्रकृति के अनुसार और उसके अनुसार मानव व्यवहार को नियंत्रित करना मानव सभ्यता और संस्कृति तथा पृथ्वी के सम्पूर्ण जैवमंडल की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है और इसकी जिम्मेदारी मानव के कंधों पर है। इसलिए मानव सभ्यता में सभी प्रकृति की अनुमति के अनुरूप कर्म करें इसके लिए विभिन्न दंड संहिताओं का निर्माण किया गया। यौन व्यवहार की निश्चित आयु है इसलिए बाल विकास और सुरक्षा की परिकल्पना में एक निर्धारित शारीरिक परिपक्वता से पहले यौन आचरण बिल्कुल स्पष्ट है कि इस काल में कोई भी यौन आचरण अपराध है जो एक निर्धारित व्यस्क होने से पहले किसी उन सभी पर लागू होती है। यहां तक सही है क्यों यौन परिपक्वता से पहले यौन व्यवहार का मसला भी नहीं है। यौन समस्याएं यौन परिपक्वता के साथ ही जन्म लेती है इसलिए यौन व्यवहार और स्त्री पुरुष के रिश्ते और यौन क्रिया के सारे पहलु एक व्यक्ति की लगभग 16-18 से 65-75 वर्ष की आयु पर लागू होते हैं। यही लम्बा काल जीवन के लिए महत्वपूर्ण है एक व्यक्ति यौन व्यवहार से जुड़ी दिक्कतों का आयू के मध्य में सामना करता है। वही कभी कभी शारीरिक अंगों की विफलता, कमजोरी दुर्घटनाए , प्रजनन , संतान और सांसारिक कर्म मानव के यौन व्यवहार को प्रभावित करता हुआ स्थायित्व प्रदान करके अंत में उदासीन और तटस्थ कर देता है। तो दूसरी तरफ आयु के बढ़ने के साथ साथ यौन व्यवहार लुप्त हो जाता है और मनुष्य जीवन के अंतिम पड़ाव में मानसिक शांति और सांसारिक मोहमाया से दूर होने की कोशिश करता है। हमें प्रकृति की व्यवस्था के अनुरूप विधि विधान और सामाजिक मानदंडों से यौन व्यवहार को नियंत्रित करना चाहिए क्योंकि विवाह , पुनर्विवाह, तलाक,दो व्यस्कों का अपनी मर्जी से बिना शादी किए एक साथ रहने जैसी तमाम व्यवस्था है। इन सब के बावजूद यह स्वछंद प्रकिया मानव जाति के एक बड़े हिस्से में समस्यापरक विवादित और असंगत रही है जिसमें हम प्यार बेवफाई,परकिया, नाजायज रिश्ते, वेश्यावृत्ति, पुरूषों का एक से अधिक फीमेल से शारीरिक संबंध, कामोत्तेजना और यौन सुख प्राप्त करने के निर्णय और व्यवहार हमेशा विरोधाभासी जटिल और क्लिष्ट रहे हैं। इसलिए युवा पीढ़ी को जीवन के उच्च मूल्यों की शिक्षा और समझ हस्तांतरित करना जरूरी है जिससे वे प्राकृतिक विधान को मानकर अपने मानव व्यवहार के सभी पहलुओं के साथ यौन व्यवहार को आदर्श और कम से कम प्रकृति की स्वीकार्यता के अनुरूप बनाये रखें। शारीरिक स्वास्थ्य जो मानव के नियंत्रण में है उसे वह सामान्य रखें तो उनके यौन व्यवहार में शारीरिक क्षमता और भावात्मक व्यवहार से जुड़ी कोई जटिलता सामने नहीं आए इससे एक पुरुष और नारी क युगल अपने जीवन में बेहतरीन यौन व्यवहार के साथ सुखी जीवन यापन करने में सक्षम होगा।

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