RMS Titanic ship: टाइटैनिक एक चर्चित जहाज
साल 1912 की टाइटैनिक जहाज दुर्घटना विश्व में हमेशा चर्चित रही है एक बड़े जहाज की यात्रा तथा इसमें सवार बड़े बड़े रईसों की यात्रा का सफर,विशालकाय जहाज की डिजाइन तथा इनमें सवार यात्रियों की खुशी भावनाएं ख्वाब और यात्रा की तमन्नाओं की कहानियां हम बहुत सुन चुके हैं। आज भी टाइटैनिक जहाज के डूबने की कहानी हमारे जहन में जिज्ञासा और सवालों के साथ साथ उस इतिहास में बीते घटनाक्रम का साक्षी बनने की अभिलाषा से उस मंजर के बहुत करीब ले जाने की जिद्द करवाती है। टाइटैनिक जहाज के डूबने की कहानी ने बच्चों, जिज्ञासु व्यक्तियों, वैज्ञानिकों ,गोताखोरों को ही आकर्षित नहीं किया बल्कि फिल्म निर्माताओं के साथ साथ उस हर व्यक्ति को प्रभावित किया जो प्रकृति की विपुलता में बस रही समुद्र की गहराइयों के साथ साथ मानव की असीम क्षमताओं को जानने की इच्छा रखता हो। टाइटैनिक जहाज 14 अप्रैल 1912 के दिन दो टूकडों में टूटकर समुद्र की असीम गहराई से में समा गया। उत्तर अटलांटिक महासागर की वो गहराई जहां सूर्य का प्रकाश भी नहीं पहुंचता वहां आज भी एक अवशेष के रूप में मौजूद हैं।
उत्तरी अटलांटिक महासागर की गोद में टाइटैनिक जहाज की विरासत
उत्तरी अटलांटिक महासागर अपने शांत चित्त से मानव के एक खूबसूरत उपहार को अपनी गोद में सैकड़ों वर्षों संभाल कर रखे हुए हैं जो इतिहास की यादों,भावनाओं दर्द-बेबसी तथा मानव की विकसित होती सोच व उन हजारों लोगों के आनन्द अनुभूति, उल्लास और सपनों के साथ साथ भारी भरकम औजारों, कोयले की चिमनियों, विशाल कीलों से लगाकर संगीत और साहित्य की अद्भुत कहानी के रूप में आज भी समुद्र की गहराई से आवाज दे रही है कि मैं यहां हूं!
भलां बुद्धिजीवी मानव इस गहराई और आकाश की ऊंचाई से डरकर कब रूका हैं वह अपनों की बनाई वस्तु से कब तक दूर रह सकता है।
जी हां यही से शुरू करते हैं टाइटैनिक जहाज के अवशेष और मानव की वहां तक पहुंचने की जिद्द की कहानी और एक और रहस्यमई हादसा जो हजारों सवाल पैदा करते हैं।
हम जानते हैं कि 1912 को डूबे एक ऐतिहासिक जहाज टाइटैनिक का मलबा आज भी समुद्र में लगभग चार किलोमीटर की गहराई में एक सड़े हुए ढ़ांचे के रूप में 1500 यात्रियों के मौत के साक्ष्य पेश कर रहा है। लेकिन इस विशालकाय जहाज जो कभी नहीं डूबने वाला जाना जाता था जो रात में एक विशाल हिमखंड से टकराकर महासागर में डूबा था तब से मानव ने इसके कारणों को जानने के साथ साथ उस जगह की शानबीन के लिए विभिन्न प्रयास किए, जिससे जहाज के मलबे से हादसे के कारण और जहाज की क्षमताओं और कमियों पर विश्लेषण किया जा सके। समुद्र की गहराई में पड़ी मानव द्वारा लगन और शिद्दत से बनाई वस्तु को करीब से देखने के लिए अनेक बार बड़ी बड़ी हस्तियों ने इच्छा जाहिर की।
लेकिन इतनी गहराई में मानव के लिए इस ढांचे को बाहर निकालने की कामयाबी तो नहीं मिली लेकिन लम्बे समय बाद आधुनिक युग की तकनीक से उस गहराई की तस्वीरें ली गई यहां तक वहां मानव पहुंचने में कामयाब भी हुआ। अनेक बार समुद्री वैज्ञानिकों और खोजी कम्पनियों ने जहाज के मलबे को बाहर लाने की योजनाएं बनाई लेकिन व्यवहारिक रूप से कोई खास सफलता नहीं मिली। सौ सालों में इस जहाज के मलबे को देखने के लिए रोमांस और जूनून की कोई कमी नहीं रही।
टाइटैनिक जहाज के मलबे को खोजने का लम्बा संघर्षThe long struggle to find the wreckage of the Titanic ship
टाइटैनिक जहाज के मलबे को खोजने की ललक में कई अभियानों ने समुद्र तल का मानचित्रण तैयार करने के लिए सोनार तकनीक का उपयोग किया। विभिन्न योजनाएं तैयार की गई लेकिन ज्यादा बजट और प्राकृतिक बाधाओं के चलते धरातल पर कोई अभियान सफल नहीं हुआ। जहाज के डूबने के बाद इसकी लोकेशन का पता लगाकर बचाने एवं शवों को बाहर निकालने की कोशिश भी लम्बे समय तक शुरू नहीं हो सकी। प्रथम विश्व युद्ध के चलते बहुत सी योजनाएं और प्रयास रोक दिए गए। पहली बार 1985 में, IFREMER के जीन-लुई मिशेल और वुड्स होल ओशनोग्राफिक इंस्टीट्यूशन के रॉबर्ट बैलार्ड के नेतृत्व में एक संयुक्त फ्रांसीसी-अमेरिकी अभियान द्वारा अंततः मलबे का पता लगाया गया । यहां से टाइटैनिक के डूबने की कहानी में नया मोड़ आता है और दुनिया की नजरें उस जगह केन्द्रित हो जाती है। यहां से उस मलबे के पास पहुंचने और खोजबीन करने की कोशिश बड़े स्तर पर शुरू हो जाती है। 1985 के बाद टाइटैनिक मलबे पर खूब काम हुआ अनेक अभियानों के तहत वहां गोताखोर पहुंचे तथा टाइटैनिक के मलबे से हजारों चीज़े बाहर लाई गई। फिल्मों और डाक्यूमेंट्री के लिए वहां शुटिंग की गई।
IFREMER और अमेरिकी निवेशकों के एक संघ द्वारा चलाए गए एक अभियान में, जिसमें जॉर्ज टुलोच, जी. माइकल हैरिस, डी. माइकल हैरिस और राल्फ व्हाइट शामिल थे , ने सबमर्सिबल नॉटाइल का उपयोग करके टाइटैनिक में 32 गोते लगाए । विवादास्पद रूप से, उन्होंने 1,800 से अधिक वस्तुओं को बचा लिया और तट पर ले आये। इसके बाद भी टाइटैनिक के मलबे से अनेक प्रकार की सामग्री को बाहर लाकर संग्रहालय में रखा गया। टाइटैनिक अब सांस्कृतिक विरासत के रूप में समुद्र तल पर एक पर्यटक केन्द्र के रूप में स्थापित हो गया है। लेकिन दुख की बात यह है कि सौ साल बाद अब टाइटैनिक के अवशेष लम्बे समय तक पानी में नहीं टिक पायेंगे। समुद्री बैक्टीरिया और जीव द्वारा लगातार लोहे का अपघटन कर रहे हैं कुछ सालों बाद टाइटैनिक जहाज का मलबा पूरी तरह समुद्र में घुल जाएगा। लेकिन आज भी यह जगह दुनिया के लिए किसी रोमांटिक पर्यटक स्थल के रूप में स्थापित है जहां पर्यटन करवाने के लिए विभिन्न एजेंसियों द्वारा वहां पनडुब्बियों के माध्यम से यात्रा करवाई जा रही है। लम्बे समय तक यह मलबा रुचि का केंद्र रहा है और कई पर्यटक और वैज्ञानिक अभियानों द्वारा इसका दौरा किया गया है, जिसमें सबमर्सिबल टाइटन भी शामिल है । जो जून 2023 में मलबे के पास फट गया था , जिसमें सवार सभी पांच लोग मारे गए थे।
टाइटैनिक जहाज की खासियत, क्षमताएं एवं डिजाइन
Features, capabilities and design of the Titanic ship
टाइटैनिक अपने समय का सबसे विशाल और आलीशान जहाज था। टाइटैनिक जहाज की गति 43 किलोमीटर प्रति घंटा थी। टाइटैनिक जहाज में 29 boiler लगे थे जो 159 कोयला संचालित भट्टियो से जुड़े हुए । इस जहाज पर चार बड़ी चिमनियां जिसमें एक चिमनी केवल बैंलेस और वेंटिलेटर के लिए बनी थी। आलीशान सुविधा से लेस इस जहाज में एक लग्जरी होटल वाली सभी सुविधाएं यात्रियों के मनोरंजन के लिए संगीत वादक दल,जीवन रक्षक नौकाएं,कमरे, बाथरूम आदि सभी सुविधाएं मौजूद थी।
टाइटैनिक जहाज की कुल लम्बाई 882 फीट लगभग 270 मीटर तथा ढलवें की चौड़ाई 92 फीट लगभग 28 मीटर तथा इस जहाज का भार 46,328 टन (GRT) और पानी के स्तर से डेक तक की ऊंचाई 59 फीट लगभग 18 मीटर थी। टाइटैनिक के मालिक जे .ब्रूस इस्मे (J. Bruce Ismay) तथा जहाज के कप्तान एडवर्ड स्मिथ (Edward Smith) थे। व्हाइट स्टार लाइन इस जहाज की स्वामी कंपनी थी। इस जहाज का निर्माण Belfast (Ireland) के Harland ओर Wolff शिपयार्ड में किया गया था। लगभग तीन हजार लोगों को ले जाने की क्षमता वाला यह जहाज साउथेम्प्टन से न्यूयॉर्क सीटी के रूट के लिए तैयार हुआ था। इस जहाज में 1100 के करीब जीवनरक्षक नौकाएं थी। हालांकि जब टाइटैनिक जहाज डूबा उस समय इसमें 2,223 यात्री सवार थे। जिसमें अधिकांश पुरूषों की मौत हुई क्योंकि पहले महिलाओं को बचाने की कोशिश की गई होगी। इस जहाज में अधिकतर धनी लोग समुद्री यात्रा का आनंद लेने के लिए बड़ी धनराशि खर्च कर यात्रा का टिकट करवाया था। लेकिन ऐसी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि यह जहाज अपनी पहली यात्रा में ही हादसे का शिकार हो जाएगा। हादसे का कारण हिमशिला से टकराना माना जा रहा है ऐसा माना जाता है कि आइसबर्ग ,(iceberg ) टक्कर इतनी ज़ोरदार थी कि जहाज की मुख्य बॉडी की आधी लंबाई तक सुराख हो गया था। ऐसी परिस्थिति में पानी छत तक पहुंच गया था तेजी से अंदर आ रहे पानी को बाहर निकालना मुश्किल हो गया था। इस प्रकार यह जहाज दो टूकडों में टूटकर 15 मिनटों में समुद्र की गहराई में समा गया।
टाइटैनिक जहाज की यात्रा की बात करें तो ये जहाज 10 अप्रैल 1912 को अपनी पहली यात्रा पर ब्रिटेन के साउथैम्पटन बंदरगाह से न्यूयॉर्क के लिए निकला था। 14 अप्रैल 1912 को उत्तर अटलांटिक महासागर में एक हादसे का शिकार होकर समुद्र में डूब गया। इस जहाज का मलबा नोर्थ अंटलाटिक महासागर में 3.8 किलोमीटर की गहराई में पहुंच गया। बता दें कि ओशनगेट एक्सपीडिशन प्रोजेक्ट पानी के नीचे टाइटैनिक के मलबे की खोज और रिसर्च के लिए एक विशेष संस्थान है जो पनडुब्बियों और गोताखोरों के उपयोग से टाइटैनिक के मलबे तक पहुंचने का काम करती है।
धीरे धीरे नष्ट हो रहा है टाइटैनिक जहाज का मलबा कुछ सालों में मिट जायेंगे अवशेष
वर्तमान में टाइटैनिक जहाज का मलबा समुद्र की अनन्त गहराई में पर्यटन के रूप में लोगों के लिए रोमांचक जगह बनी हुई है। जो टाइटैनिक जहाज की पूरी कहानी और इसके ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक विरासत का परिचय देती है। लेकिन दुःख की बात यह है कि अब धीरे धीरे टाइटैनिक जहाज का मलबा गल कर समुद्र में घुल रहा है अनुमान के आधार पर आने वाले 30-40 वर्षों तक यह पूरी तरह समाप्त हो जाएगा। टाइटैनिक जहाज के डूबने के सौ सालों बाद मानव की तकनीक एवं प्रयासों से समुद्र की गहराई में उस मलबे तक पहुंचकर हजारों कीमती वस्तुओं को बचाकर बाहर लाया गया। समुद्र की तह से टाइटैनिक जहाज के मलबे और धनुषाकार ढांचे की तस्वीरें ली गई। लेकिन दुर्भाग्यवश मरने वाले यात्रियों के शव बाहर नहीं निकाल सके । टाइटैनिक जहाज के ढांचे को बाहर निकालने के लिए अनेक योजनाएं बनी लेकिन समुद्र की गहराई में उच्च दाब के कारण इसे बाहर खींचने में कामयाबी नहीं मिली। हालांकि वैज्ञानिकों ने पिंग-पोंग बॉल, गुब्बारों और बर्फ का इस्तेमाल कर इस ढांचे को बाहर निकालने के विभिन्न प्रोजेक्ट तैयार किए लेकिन यह सब खर्चीले और मुश्किलों भरे थे इसलिए किसी में सफलता नहीं मिली। कहा जाता है कि टाइटैनिक जहाज में आग लगने के बाद जब डूबा तो दो टूकडों में बंट गया इसलिए इसके दो हिस्सों को खींचना सबमरीन के लिए असंभव था।
No comments:
Post a Comment