Eid-ul-Adha ईद उल अधा बकरीद
इस्लाम धर्म में , ईद उल अजहा का पर्व बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है। कुर्बानी का यह पावन पर्व बकरीद के नाम से भी जाना जाता है। आइए जानते इस पावन पर्व का इतिहास और महत्त्व आखिर इस दिन के पीछे क्या मान्यता है।
इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार, ईद उल अजहा का पर्व साल के आखिरी महीने यानी 12वें महीने में आता है। इस महीने में बकरीद के अलावा धू-अल-हिज्जा के दिन भी आते हैं। ईद उल अजहा के पीछे की मान्यता और इतिहास की बात करें तो हजरत इब्राहिम को अल्लाह ने स्वप्न में हुक्म दिया था कि वह अपने प्यारे बेटे हजरत इस्माइल की कुर्बानी दे दे। हजरत इब्राहिम के लिए अपने प्रिय पुत्र की कुर्बानी देना अपने आप में बड़ी परीक्षा थी। लेकिन इब्राहिम ने अल्लाह का हुक्म मानते हुए अपने बेटे की कुर्बानी देने के लिए तैयार हो गये। इस्लाम धर्म की मान्यता के अनुसार ऐसा माना जाता है कि जब हजरत इब्राहिम छुरे को हाथ में लेकर कुर्बानी दे ही रहे थे, तभी छुरे के नीचे एक बकरा आ गया और कुर्बान हो गया। इसके बाद से ही बकरे की कुर्बानी देने का दौर शुरू हुआ। बकरे ककी कुर्बानी के बाद फरिश्तों के सरदार जिब्रली अमीन ने इब्राहिम को खुशखबरी सुनाई की अल्लाह ने आपकी कुर्बानी को कबूल कर लिया है। इस तरह से यह पर्व कुर्बानी पर आधारित इस्लामिक पर्व है इस दिन इस्लाम धर्म के अनुयाई बकरे की कुर्बानी देते हैं तथा नमाज़ अदा करते हैं। इस दिन इस्लाम धर्म के लोग अपनों को बधाई देते हुए खुशियां बांटते हुए अमन चैन की दुआ देते हैं। मुसलमान इस दिन परिवार के साथ धूम-धाम से यह पर्व मनाते हुए एक दूसरे को मुबारकबाद देते हैं। अपने घरों और मस्जिदों को सजाते हैं।
हर ख़्वाहिश हो मंज़ूर-ए-खुदामिले हर कदम पर रज़ा-ए-खुदाफना हो लब्ज-ए-गम यही है दुआबरसती रहे सदा रहमत-ए-खुदाबकरीद मुबारक
बकरीद पर कुर्बानी के नियम Rules of Eid-ul-Adha kurbani
1.ईद के दिन कुर्बानी अल्लाह को समर्पित है अल्लाह को बकरे की कुर्बानी के अलावा अन्य अपनी प्रिय वस्तु को उपहार स्वरूप कुर्बान किया जा सकता है।
2.जो व्यक्ति बहुत गरीब है या पहले से कर्ज में डूबा है, वो कुर्बानी नहीं दे सकता। कुर्बानी देने वाले के पास किसी भी तरह कोई कर्ज नहीं होना चाहिए।
3.कुर्बानी के लिए बकरे के अलावा ऊंट या भेड़ की भी कुर्बानी दी जा सकती है। लेकिन भारत सहित कुछ देशों में में इनका चलन काफी कम है।
4.बीमार बकरे की कुर्बानी नहीं दी जाती तथा किसी बकरे का कोई अंग कटा हुआ हो या शारीरिक रूप से कोई समस्या हो तो ऐसे बकरे की कुर्बानी नहीं जाती है।
5.बहुत छोटे मेमने की बलि नहीं दी जाती है। यह कम-से-कम साल या डेढ़ साल का होना चाहिए।
6.कुर्बानी हमेशा ईद की नमाज के बाद की जाती है।
7.कुर्बानी के बाद मांस के तीन हिस्से किए जाते हैं एक परिवार के लिए, एक गरीबों के लिए और तीसरा मेहमान संबंधियों के लिए होता है।
8.बकरीद के दिन कुर्बानी देने के बाद अपनी सामर्थ्य के अनुसार गरीबों को दान देने एवं उनकी मदद करने का भी नियम है।
9.कुर्बानी देने से पहले स्नान करना और उसके बाद साफ-सुथरे कपड़े पहनकर नमाज अता करने को जरूरी माना गया है।
10.बकरे की कुर्बानी से पहले उसे भरपेट खिलाया पिलाया जाना चाहिए।
अस्वीकरण- इस पोस्ट में दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है जो केवल जानकारी के लिए है। इस सामग्री की सटीकता और किसी विवाद के लिए यह वेवसाईट उत्तरदाई नहीं है।
No comments:
Post a Comment