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Tuesday, May 2, 2023

Wrestlers Protest पहलवानों का प्रोटेस्ट तथा WFI अध्यक्ष पर आरोपों का जातीय और राजनीतिक संदर्भ

 
Gold Medalist  Wrestlers Protest
Wrestlers Protest Picture credit Social media 

पहलवानों का विरोध प्रदर्शन आंदोलन की ओर


ओलंपिक, कॉमनवेल्थ, एशियाई चैम्पियनशिप और देश-दुनिया की कई दूसरी प्रतियोगिताओं में देश के लिए मेडल जीतने वाले पहलवान एक बार फिर बीते 23 अप्रैल से दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरने पर बैठे हैं।
बजरंग पूनिया, साक्षी मलिक और विनेश फोगाट ने बाकी पहलवानों के साथ की प्रेस कॉन्फ्रेंस में दावा किया था कि वो बीते ढाई तीन महीने से इंसाफ़ के इंतज़ार में हैं, लेकिन अब तक उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई है। हालांकि धरने के बाद बृजभूषण पर आईपीसी की धारा 354, 354(ए), 354(डी) और 34 के तहत एक प्राथमिकी दर्ज की है।
सूत्रों के मुताबिक, WFI प्रमुख बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ पहलवानों द्वारा लगाए गए आरोपों की जांच के लिए गठित निगरानी समिति किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंची है और समिति की रिपोर्ट दिल्ली पुलिस को सौंप दी गई है। 18 जनवरी से शुरू हुआ धरना अब धीरे-धीरे एक आंदोलन का रूप ले रहा है। सुबह-सुबह खिलाड़ी यहां वार्म अप करते हैं और रोड पर ही ट्रेनिंग करते हैं। धरने के बीच उन्होंने खेल को नहीं छोड़ा है अनुशासन और शान्ति के साथ आगे बढ़ रहें हैं। इस प्रदर्शन में बड़े खिलाड़ी भी शामिल हैं जिन्होने स्वर्ण पदक जीते हैं। अब ऐसा लगता है कि उनकी यह लड़ाई अभी लंबी चलेगी।

पहलवानों के आरोपों एवं विरोध प्रदर्शन से देश की आबोहवा का रूख 


पहलवानों के धरने में जिस तरह महिला पहलवानों ने जो बृजभूषण तथा संस्थागत प्रणाली पर आरोप प्रत्यारोप लगाएं है इससे देश में राजनीतिक माहौल भी गर्म हुआ है तथा दूसरी तरफ सोशल मीडिया पर लोग भी दो धड़ों में बंटे हुए नजर आए हैं जिसमें जातिगत मानसिकता से पक्षपात नजर आया है अधिकांश भारत में हिन्दू धर्म की हिमाकत करने वाले सक्रिय युवा पहलवानों पर झुठ और साजिश रचने का आरोप लगा रहे हैं तो एक धड़ा बृजभूषण के बचाव में खड़ा नज़र आ रहा है। वहीं बृजभूषण इस विरोध को टुकड़े-टुकड़े गैंग की ताकत और शाहीन बाग की तरहां बता रहे हैं। भारतीय कुश्ती संघ (WFI) के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह पर लगे आरोपों पर लोगों की मानसिकता में कहीं न कहीं राजनैतिक, धार्मिक और जातिगत सोच को साफ देखा गया है लेकिन यह विडंबना है कि अब अन्याय और न्याय का पता करना आम व्यक्ति के लिए बहुत मुश्किल होता जा रहा है क्योंकि हर मामले में विरोधी और समर्थकों का हूजूम उमड़ कर सोशल मीडिया पर मामले को गहमागहमी में डाल देता है वहीं मीडिया भी वो ही दिखाती जो बाहुबली के पक्ष में होता है ऐसे मामलों में आम जनता कभी भी स्पष्टता नहीं करती कि आखिर देश में कौन शोषणकारी और कौन शोषित है। हर मुद्दे में वो ही धार्मिक और जातिगत जत्थेबंदी होती हैं। किसान आन्दोलन हो या अन्य कोई मामला हो देश उसी मानसिकता और विचारधारा पर विभक्त होगा जो लम्बे समय से सता और बंटवारे के लिए काम में लाई जाती है। इन दिनों भारत में धार्मिक कट्टरवाद ने जिस तरहां वोटिंग सिस्टम को प्रभावित किया है उससे लगता है कि भारत में चुनावी माहौल में धार्मिक कट्टरवाद वोट बैंक के लिए सबसे अच्छा हथियार सिद्ध हो रहा है तो दूसरी तरफ जातिगत तथा धार्मिक विचारधारा पर देश में जो बंटवारा हो रहा है उससे दो स्थाई गुट बने हैं जिसमें एक तरफ हिन्दू समर्थक और दूसरी तरफ सेक्युलर लोग है इस गुटबाजी में सोशल मीडिया और मुख्य मिडिया भी एक पक्ष की आड़ में जानकारी प्रचारित करता है जिससे कोई भी घटना एक अपने असली मायने से दूर एक अंतर्द्वंद्व बन कर रह जाती है। लेकिन हमें न्यायिक व्यवस्था में विश्वास करना चाहिए तथा मजबूत एवं निष्पक्ष न्यायिक व्यवस्था की बात करनी चाहिए जिससे लोगों के बहकाऊ और भड़काऊ प्रचारों के बीच सत्य और न्याय सामने आना चाहिए।


धरने में शामिल नेता एवं दल प्रमुख 


जंतर मंतर पर पहलवानों के धरने में राजनीतिक दलों के प्रमुख भी शामिल होकर उन्हें सपोर्ट कर रहे हैं। इस कड़ी में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी पहलवानों के धरने में शामिल हुए हैं। उन्होंने सभी पहलवानों से मुलाकात की। इससे पहले प्रियंका गांधी भी इस धरने का हिस्सा बनी थीं। केजरीवाल ने धरने में कहा कि देश की पहलवान बहनों के साथ गलत हुआ है। उन्हें न्याय मिलना चाहिए। पूरा तंत्र आरोपी को बचाने में लगा हुआ है। गलत काम करने वाले को सख्त सजा मिलनी चाहिए। पहलवानों को राजनीतिक दलों का लगातार समर्थन मिल रहा है। भीम आर्मी के मुखिया चंद्रशेखर आजाद जंतर मंतर पहुंचे और खिलाड़ियों के समर्थन में बयान दिया। दूसरी तरफ बुद्धजीवी लोग इस विरोध को ऐतिहासिक और खेल व्यवस्था को बदलने वाला आन्दोलन बता रहे हैं क्योंकि भारत मे खेल व्यवस्था को लेकर बहुत कम बार कोई बड़े खिलाड़ी कभी धरने में बैठे हैं इसलिए यह अपने आप में महत्वपूर्ण है कि भविष्य में खेल व्यवस्था में बहुत नवाचार देखे जा सकते हैं।

सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा मामला 


भारतीय कुश्ती संघ (WFI) के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह पर लगे आरोपों और लम्बे प्रदर्शन के बाद मामले की सुनवाई भी हुई तथा कुश्ती संघ प्रमुख पर प्राथमिकी दर्ज हुई। अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद दिल्ली पुलिस ने सभी 7 महिला शिकायतकर्ताओं को सुरक्षा दी है। दिल्ली पुलिस ने सभी 7 महिला शिकायतकर्ताओं के बयान दर्ज करने के लिए संपर्क किया है और जल्द ही बयान दर्ज कर आगे की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। बता दें कि इस प्रदर्शन में विनेश फोगाट, बजरंग पूनिया और साक्षी मलिक जैसे पहलवान इस धरने की अगुवाई कर रहे हैं। कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृजभूषण सिंह पर पहलवानों द्वारा लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोपों के बाद उनके खिलाफ दो एफआईआर दर्ज हो चुकी हैं, लेकिन पहलवान बृजभूषण सिंह की गिरफ्तारी पर अड़े हुए हैं। इस बीच खिलाड़ियों के धरने प्रदर्शन को लेकर ओलंपिक पदक विजेता योगेश्वर दत्त का बयान सामने आया है।

खेल क्षेत्र के संगठनों में नेताओं की भूमिका पर सवाल


देश में कोई भी प्रमुख विभाग नेता और मंत्रियों के हस्तक्षेप से अछूता नहीं है इसलिए खेल जैसे कुछ क्षेत्रों में राजनेताओं का नेतृत्व फिजुल साबित हो रहा है क्योंकि नहीं कुछ क्षेत्रों को राजनीति और सियासी प्रभाव से मुक्त कर इन्हीं क्षेत्र से जुड़े लोगों को सौंपना चाहिए।
इस पूरे मामले में खिलाड़ियों के यौन शोषण के अलावा एक मुख्य पहलू खेल संगठनों का नेतृत्व का भी है राजनेता और नौकरशाह लंबे समय से अहम खेल संगठनों का नेतृत्व करते आ रहे हैं जो अपने आप में एक गंभीर बात है क्यों नहीं खेल और शिक्षा को सफेदपोशों से दूर रखा जाएं। क्रिकेट हो या ओलम्पिक खेल संघ हर जगह इनका नेतृत्व राजनैतिक नौकरशाह तथा पूंजीवाद की तर्ज पर होता आया है कोई ना कोई पार्टी का नेता ही करता आया है जिससे इन संस्थाओं की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता तथा सुधारों की गुंजाइश नहीं रही।

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