Manipur Violence Nagas-Kukis Meiteis: मणिपुर का भौगोलिक एवं ऐतिहासिक परिदृश्य तथा हिंसा का इतिहास Jagriti PathJagriti Path

JUST NOW

Jagritipath जागृतिपथ News,Education,Business,Cricket,Politics,Health,Sports,Science,Tech,WildLife,Art,living,India,World,NewsAnalysis

Sunday, May 28, 2023

Manipur Violence Nagas-Kukis Meiteis: मणिपुर का भौगोलिक एवं ऐतिहासिक परिदृश्य तथा हिंसा का इतिहास

Manipur Violence Nagas-Kukis Meiteis
Manipur Violence history and facts Nagas-Kukis Meiteis Struggle of Scheduled Tribes

क्यों जल रहा है मणिपुर?


भारत देश के सबसे खूबसूरत राज्यों में मणिपुर को भी गिना जाता है यह इलाका पांच देशों चीन, भूटान, म्यांमार, नेपाल और बांग्लादेश की सीमा से जुड़ा हुआ है। राजनैतिक एवं भौगोलिक महत्व वाले इस क्षेत्र की हिंसा का लम्बा इतिहास रहा है। लेकिन पिछले कई दिनों से मणिपुर में हिंसा और आगजनी से यह खूबसूरत राज्य दहल उठा है। बीजेपी शासित इस प्रदेश में पिछले कई दिनों से मीडिया का ध्यान भी बहुत कम ही गया है। भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य मणिपुर में पिछले दिनों हुए जातीय दंगे के कारण माहौल अब भी तनावपूर्ण बना हुआ है। आदिवासी और गैर आदिवासी समुदाय के बीच हुए टकराव ने आधे मणिपुर को हिंसा की आग में झोंक दिया। हिंसा की शुरूआत चूराचांदपुर जिले से हुई, जो देखते ही देखते अन्य जिलों में भी फैल गई। आइए जानते हैं मणिपुर का एतिहासिक, राजनैतिक और भौगोलिक परिदृश्य तथा क्या कारण है कि मणिपुर में हिंसा की आग भड़कती रहती है?भारत के एक संवैधानिक राज्य में तनाव और असंतोष के क्या कारण है? तथा सरकार को इसके स्थाई समाधान कैसे करना होगा?

मणिपुर की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि


मणिपुर का प्राचीन नाम कंलैपाक था। इतिहास से यह भी पता चलता है की मणिपुर को मैत्रबक, कंलैपुं व पोंथोकल्म के नाम से भी जाना जाता है. ईस्वी युग के आरंभ होने से पहले ही मणिपुर का विस्तृत इतिहास उपलब्ध है।
इतिहासकारों के मतानुसार सन् 33 ई. में पारवंगा ने यहां एक बड़े राजवंश की शुरुआत की, जिसने 1891 तक मणिपुर पर शासन किया। इसके बाद मणिपुर ब्रिटिश शासन के अधीन आ गया। 15 अक्टूबर, 1949 को भारतीय संघ में भाग 'ग' के राज्य के रूप में शामिल हुआ। 1957 में एक प्रादेशिक परिषद् गठित की गई। इसमें तीस चयनित एवं दो मनोनीत सदस्य थे। इसके बाद 1963 में केंद्र शासित प्रदेश अधिनियम के तहत तीस चयनित एवं तीन मनोनीत सदस्यों की विधानसभा कायम की गई। 21 जनवरी, 1972 को मणिपुर को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया। गया। हालांकि मणिपुर की स्वतंत्रता व संप्रभुता 19वीं सदी के आरंभ तक बनी रही थी। लेकिन इसके बाद बर्मा के शासकों ने यहाँ कब्ज़ा करके सात वर्षों तक शासन किया था। 1891 ई. में मणिपुर ब्रिटिश सरकार के अधीन गया
1947 में जब अंग्रेजों ने मणिपुर छोड़ा तब से मणिपुर का शासन महाराज बोधचन्द्र के हाथों में आ गया। 21 सितम्बर 1949 को हुई विलय संधि के बाद 15 अक्टूबर 1949 से मणिपुर भारत का अंग बना। 26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान लागू होने पर यह एक मुख्य आयुक्त के अधीन भारतीय संघ में भाग 'सी' के राज्य के रूप में शामिल हुआ।

मणिपुर का प्राकृतिक एवं आर्थिक परिदृश्य 



भारत के सबसे खूबसूरत राज्यों में शामिल मणिपुर भी किसी स्वर्ग से कम नहीं है जैविक विविधता तथा पहाड़ों के बीच बचा यह राज्य इतिहास एवं प्रकृति की अनुपम छटा बिखेरे हुए हैं। मणिपुर को साउथ एशिया का प्रवेश द्वार भी माना जाता है। यह राज्य दो भागों में विभक्त है। इसके पर्वतीय भाग में पांच एवं मैदानी भाग में चार जिले हैं। मणिपुर के "पूर्व में म्यांमार, उत्तर में नागालैंड, पश्चिम में असम और मिजोरम, दक्षिण में म्यांमार और मिजोरम है। यहां सारामती [3,926 मी.] पर्वत शिखर है। मणिपुर पर्वत श्रेणी है। यहां इम्फाल, इरिल, नाम्बूल नदियां हैं। राज्य में चावल, गेहूं, मक्का, दलहन प्रमुख फसलें तथा संतरे आम नाशपाती केले सहित अन्य फलों की खेती बहुतायत होती है। व्यापारिक द्रष्टि से भी मणिपुर का एक अलग ही स्थान है। मणिपुर में सुन्दर आभूषण बनाये जाते है जोकि अपनी हस्तकला का शानदार उदहारण हैं। मणिपुर स्टेट और मणिपुर के शहर पर्यटन की दृष्टि से बहुत ही आकर्षक है। यहाँ की शांत जलवायु, हरे भरे लहलहाते घने वन और यहाँ की सुन्दर झीलें इस पर्वतीय क्षेत्र की सुन्दरता में चार चाँद लगा देते है।

मणिपुर का भोगौलिक एवं राजनीतिक परिदृश्य 


मणिपुर (Manipur) भारत का एक पूर्वोत्तर राज्य है। इसकी राजधानी इम्फाल है। इसके उत्तर में नागालैंड, दक्षिण में मिजोरम, पश्चिम में असम व पूर्व में म्यांमार है। इसका क्षेत्रफल 22,327 वर्ग कि.मी है. यहाँ के मूल निवासी लोग मितई जनजाति के लोग है, जो यहाँ की घाटी के क्षेत्र में रहते है। मणिपुर का राज्य दिवस 21 जनवरी को मनाया जाता है। यहां के प्रमुख धर्म हिन्दू एवं ईसाई है।
मणिपुर का शाब्दिक अर्थ है ,मणि यानी आभूषण अर्थात् मणिपुर मतलब“आभूषणों की भूमि” है। यहां पाया जाने वाला शिराय या सिरोई लिलि बहुत खूबसूरत एवं प्रसिद्ध है।जिसे स्वर्ग पुष्प भी कहा जाता है जो पूरे विश्व में केवल मणिपुर में पाया जाता है।
भारत की स्वतंत्रता से पहले यह एक रियासत थी। आजादी के बाद इसे भारत का एक केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया था। यह सम्पूर्ण पहाड़ी भाग है। यहाँ नागा तथा कुकी जाति की लगभग 60 जनजातियाँ निवास करती है।
मणिपुर की प्रमुख भाषा मेइतिलोन है, जिसे मणिपुरी भाषा के नाम से भी जाना जाता है। मणिपुर को एक संवेदनशील सीमावर्ती राज्य माना जाता है। मणिपुर की राजभाषा मणिपुरी है। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु जी द्वारा मणिपुर को “भारत का गहना” नाम दिया गया था। मणिपुर ही वह स्थान हैं जहां से ही पोलो नामक खेल की शुरुआत हुई थी। मणिपुर के लोग पोलो को “सगोल कांजेई” कहते है।

वर्तमान हिंसा के तात्कालिक कारण 


मणिपुर हिंसा के तात्कालिक कारण की बात करें तो मणिपुर हाईकोर्ट ने पिछले दिनों राज्य सरकार को मैतेई समुदाय को एसटी में शामिल करने पर विचार करने के आदेश जारी किया था। इस आदेश के बाद नागा और कुकी जैसी जनजातियां भड़क उठीं। 
अप्रैल के अंतिम सप्ताह की हिंसा में पुलिस और कुकी आदिवासी आपस में भिड़ रहें थे लेकिन मई के पहले सप्ताह को परिस्थितियां नाजुक हो गई इसप्रकार यह हिंसा जातीय संघर्ष के रूप में उभर कर सामने आ गई। एक तरफ मेइती समुदाय के लोग तो दूसरी तरफ कुकी और नागा समुदाय के लोग आपस में भिड़ गए। हालात बेकाबू हो गये। इस बार हिंसा का मुख्य कारण मेइती समुदाय को एसटी (ST) का दर्जा दिए जाने का फैसला था। इसके खिलाफ कुकी और नागा आदिवासियों ने 3 मई को राज्य के सभी 10 पहाड़ी जिलों में 'ट्राइबल सॉलिडैरिटी मार्च' यानी 'आदिवासी एकता यात्रा' निकालने का फैसला किया। मार्च का आयोजन ऑल ट्राइबल स्टूडेंट यूनियन मणिपुर (ATSUM) ने किया। इस दौरान हिंसा भड़क गई जिसने आखिर जातीय संघर्ष का रूप ले लिया। स्थिति इतनी बिगड़ गई कि 8 जिलों में मोबाइल इंटरनेट सर्विस सस्पेंड कर दी गई। कर्फ्यू लगा दिया गया। उपद्रवियों को देखते ही गोली मारने के आदेश दे दिए गए हैं।


मणिपुर में हिंसा और तनाव के कारण एवं इतिहास



पूर्वोत्तर के इस राज्य मणिपुर में तीन प्रमुख समुदाय हैं जो पिछले समय की हिंसात्मक गतिविधियों के मुख्य किरदार रहें हैं। यहां बहुसंख्यक मेइती और दो आदिवासी समुदाय कुकी और नागा रहते हैं। इन तीनों समुदायों के बीच आपसी तनाव और असंतोष का माहोल रहा है। राज्य की कुल आबादी में मेइती की हिस्सेदारी 53 प्रतिशत आधे से अधिक है मेइती समुदाय राजनैतिक तथा आर्थिक रूप से समृद्ध एवं प्रभावशाली समुदाय रहा है। राज्य की 40 प्रतिशत आबादी कुकी और नागा की है। मेइती समुदाय का निवास अधिकतर मैदानी इलाकों तथा इम्फाल घाटी में हैं। कुकी और नागा आदिवासी इम्फाल घाटी से सटे पहाड़ी इलाकों में रहते हैं। इनके बसाव का इतिहास भी पूराना है जो हिंसा और युद्धों के बाद तय हुआ था इसलिए 
ये इलाके लंबे समय से उग्रवादी गतिविधियों के केंद्र रहे हैं। एक वक्त तो ऐसा भी था कि तकरीबन 60 हथियारबंद उग्रवादी समूह इस इलाके में सक्रिय थे। मेइती समुदाय जो राजनैतिक एवं आर्थिक भागीदारी में जागरूक समुदाय है जो अधिक से अधिक जमीन एवं संसाधनों पर अधिपत्य चाहता है लेकिन कूकी और नागा इसे स्वीकार नहीं करते हैं 
मणिपुर की आदिवासी समुदायों की आबादी करीबन 40 फीसदी है लेकिन उनका जमीन के एक बड़े हिस्से पर कब्जा है। आदिवासी समुदाय के लोग अधिकतर राज्य के पहाड़ी इलाकों में रहते हैं। कुल 16 जिलों में से 8 जिलों में इनकी संख्या ज्यादा है। मैतेई समुदाय के लोग जमीन पर हक पाने के लिए खुद को ट्रायबल (एसटी)घोषित करने की मांग लंबे समय से कर रहे हैं। इसलिए इसका विरोध जनजातीय समुदायों ने हमेशा किया है। दूसरी तरफ मेइती समुदाय के लोगों आ आरोप है कि यहां 1970 के बाद पर यहां कितने रिफ्यूजी आए हैं, इसकी गणना की जाए और यहां पर एनआरसी लागू किया जाए जिससे इनकी गणना हो सके। मेइती समुदाय यह भी आरोप लगा रहे हैं कि पहाड़ी इलाकों में हमें जमीन खरीदने की अनुमति नहीं है जिसकी कूकी समुदाय यह जमीन पर कब्जा कर रहा है। दूसरी तरफ जनजातीय समुदाय के आरोप भी है कि मेइती समुदाय को आरक्षण देकर हमारी जमीन पर सरकार कब्जा करवाना चाहती है। तथा कुकी-जोमी जनजातियों को बाहरी शरणार्थी बताए जाने के भी आरोप है। वहीं कुकी समुदाय में सरकार के रवैए से आपत्ति है कि सरकार मेइती समुदाय के पक्ष में रहकर उनकी मददगार बन रही है। कुकी एवं नागा समुदाय अधिकतर ईसाई है तो मैती समुदाय हिन्दू तथा मुस्लिम धर्म से ताल्लुक रखता है। 


कुकी-मैतेई संघर्ष का इतिहास


पहाड़ी समुदायों (नगा और कुकी) और मैतेई लोगों के बीच राजवंश शासन के समय से ही जातीय तनाव रहा है। 1950 के दशक में स्वतंत्रता के लिये चले नगा आंदोलन ने मैतेई और कुकी-ज़ोमी समुदायों में विद्रोह को जन्म दिया। कुकी-ज़ोमी समूहों ने 1990 के दशक में‘कुकीलैंड’ (भारत के भीतर एक अलग राज्य) की माँग करने के लिये अपन सैन्यीकरण किया। इसने उन्हें मैतेई से अलग कर दिया जिनकी पहले उन्होंने रक्षा की थी। वर्ष 1993 में हिंदू मैतेई लोगों का मुसलमान पंगलों (Pangals) से संघर्ष हुआ। उस दौरान जनजातीय नगाओं और कुकियों के बीच भी हिंसक संघर्ष हुआ जहाँ नगाओं द्वारा एक ही दिन में सौ से अधिक कुकियों के नरसंहार की घटना भी हुई और हज़ारों कुकियों को उनके घरों से खदेड़ दिया गया। इसप्रकार यहां नागा और कूकी आपस में भिड़ चुके हैं तो कई दफा मेइती और कुकी समुदाय भी आमने सामने हुए हैं। बता दें कि 1949 में मणिपुर का भारत में विलय हुआ था और उससे पहले मैतेई को यहाँ जनजाति का दर्जा मिला हुआ था। इसलिए मैती समुदाय फिर से जनजाति का दर्जा प्राप्त कर आर्थिक राजनैतिक और प्रशासनिक लाभ लेना चाहता है।
लेकिन वर्तमान परिदृश्य की बात करें तो मेइती समुदाय जहां राजनैतिक और आर्थिक भागीदारी में अग्रसर है तो वह अपने अधिक जनसंख्या के हिसाब से जमीन और संसाधनों पर कब्जा चाहता है तो दूसरी तरफ कुकी-नागा सहित अन्य जनजातियों को डर है कि कहीं मैती समुदाय हमारे पहाड़ी इलाकों में कब्जा ना कर लें मैती समुदाय का अधिकतर बसाव इंफाल घाटी में मैदानी इलाकों में है यह भौगोलिक स्थिति उन्हें आर्थिक भागीदारी में बहुत मदद करती है। मणिपुर के राजनैतिक दबदबे में भी मैती समुदाय का वर्चस्व अधिक रहा है इसलिए यहां के प्रमुख दलों में मैती समुदाय जिसमें हिन्दू और कुछ मुस्लिम शामिल हैं उनके प्रति ज्यादा रहता है। लेकिन मणिपुर की हिंसा भारत के अन्य क्षेत्रों की धार्मिक हिंसा से मेल नहीं खाती क्योंकि यहां आदिवासी जनजातियों के अलावा मैती जनजाति जो गैर जनजाति में आता है वो भी जनजाति का दर्जा चाहती है इसलिए समझ सकते हैं कि यहां कि हिंसा ज़मीन और संसाधनों के साथ साथ वर्चस्व से जुड़ी है।

मणिपुर हिंसा पर सरकार का रवैया तथा हिंसा के परिणाम और समाधान 


मणिपुर में वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है तथा मेइती समुदाय राजनैतिक वर्चस्व वाला रहा है तथा धार्मिक विचारधारा में हिन्दू धर्म से सम्बन्धित रहा है इसलिए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आरोप लगाया कि भारतीय जनता पार्टी (BJP) जातीय दंगों की साजिश रचकर मणिपुर में हिंसा को तूल दिया है। हालांकि कांग्रेस ने भी यही आरोप लगाएं है। राजनैतिक पार्टी चुनावी माहौल के लिए हिंसा को किस रूप में देखती है यह तो स्वाभाविक है लेकिन मणिपुर की चिंता हमें राजनैतिक चश्मे को उतार कर करनी चाहिए क्योंकि एक राज्य जो भारत का अभिन्न हिस्सा है वहां की अशांति पड़ोसी राज्यों और देश के लिए बुरे संकेत है। हालांकि सरकार ने हिंसक लोगों तथा घुसपैठियों को देखते ही गोली मारने के आदेश दिए हैं लेकिन यह भी एक ऐसा कदम है जो हिंसा को दबा सकता है लेकिन स्थाई समाधान नहीं कर सकता है। इसलिए सुप्रीम न्यायपालिका को चाहिए कि वह वहां की सरकार से अनुशंसा कर विवाद को जड़ से खत्म करें। जिससे ना तो जनजातियों को नुक़सान हो ना मैती समुदाय में असंतोष व्याप्त रहें। वर्तमान हिंसा का मुख्य कारण मैती समुदाय को आरक्षण देने की बात था लेकिन सरकार द्वारा वहां भारी पुलिस बल तथा अर्धसैनिक बलों की तैनाती से मणिपुर में धीरे धीरे स्थितियां सामान्य होने के आसार हैं। विद्रोहियों तथा हिंसक दलों पर आसू गैस तथा गोली मारने के आदेशों से स्थित को कब्जे में जरूर लिया है लेकिन हजारों की संख्या में जले घरों, सरकारी संपत्ति तथा विभिन्न प्रकार के नुकसान के लिए कौन जिम्मेदार है? यह बहुत बड़ा सवाल है , 50 से अधिक मारे गए लोग तथा हजारों की संख्या में घायल हुए लोगों के लिए कौन जिम्मेदार है? इस हिंसा का मणिपुर को कितना बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ा? क्या इस हिंसा को काबू करने में सरकार पहले सचेत क्यों नहीं हुई यह अपने आप में बड़ा सवाल है।

 

No comments:

Post a Comment


Post Top Ad