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Mahatma Jotirao Govindrao Phule Life introduction and his social thoughts |
भारत के महान समाज सुधारक एवं विचारक: महात्मा ज्योतिबा फुले
भारत के समाज सुधारकों तथा समाजसेवियों में ज्योतिबा फुले को कौन नहीं जानता जिन्होंने समाज में व्याप्त कूरीतियों तथा अंधविश्वासों को मिटाने तथा महिलाओं की दयनीय स्थिति को सुधारने में अपना पूरा जीवन समर्पित कर अनेक कष्टों को झेला जिनके असीम प्रयासों से आज दलित वर्ग एवं सर्व जाती की महिलाओं की स्थति आज कुछ हद तक मुख्य धारा में आई है। हालांकि भारत में जातिगत मानसिकता के चलते सभी जाती की महिलाओं द्वारा महात्मा ज्योतिबा तथा अम्बेडकर को श्रेय देने में झिझक रहती है लेकिन यह बहुत कम लोग जानते हैं कि उनके प्रयासों से आज समाज में महिलाओं की स्थति काफी हद तक सुधरी है। दलितों को शिक्षा एवं अंधविश्वास एवं आडम्बरो से मुक्त कर आधुनिक युग की चेतना का प्रचार-प्रसार करने में ज्योतिबा फुले और इनकी धर्म पत्नी सावित्री बाई फुले का नाम हमेशा अमर रहेगा।
महात्मा जोतिराव गोविंदराव फुले का जीवन परिचय एवं शिक्षा
महात्मा जोतिराव गोविंदराव फुले एक भारतीय समाजसुधारक, समाज प्रबोधक, विचारक, समाजसेवी, लेखक, दार्शनिक तथा क्रान्तिकारी कार्यकर्ता थे। इन्हें महात्मा फुले एवं ''जोतिबा फुले के नाम से भी जाना जाता है। जब इनकी माताजी का निधन हुआ तो बाद मे इनका पालन पोषण एक सगुनाबाई नामक महिला ने किया जिनका परिवार सतारा से जाकर पुणे में फूल बेचने का काम करता था जहां माली परिवार का उपनाम फुले होता है। महात्मा ज्योतिबा की रचना नाम गुलामीगिरी है। उनकी पहली शिष्य उनकी पत्नी ही थी जो बाद में भारत की पहली महिला शिक्षिका बनी।
भारत के महान समाज सुधारक महात्मा ज्योतिबा फूले का जन्म 11 अप्रैल 1827 को सतारा,महाराष्ट्र में हुआ था। फूले के परिवार ने बहुत अभावों का सामना किया इसलिए ज्योतिबा फुले का बचपन गरीबी और अभावों में गुजरा।
उनका परिवार जीवन-यापन के लिए बाग़-बगीचों में माली का काम करता था। ज्योतिबा जब मात्र एक वर्ष के थे तभी उनकी माता का निधन हो गया था। छोटी उम्र में ही मां का साथ छोड़ने के बाद ज्योतिबा का लालन-पालन सगुनाबाई नामक एक दाई ने किया। सगुनाबाई ने ही उन्हें माँ की ममता और दुलार दिया। 7 वर्ष की आयु में ज्योतिबा को गांव के स्कूल में पढ़ने भेजा गया। उस समय भारत में दलितों की स्थति बहुत बदतर हुआ करती थी जिसके दौरान शिक्षण संस्थानों में जातिगत भेदभाव तथा अस्पृश्यता का बोलबाला था इसलिए महात्मा ज्योतिबा को इन सभी समस्याओं से गुजरना पड़ा यहां जातिगत भेद-भाव के कारण उन्हें विद्यालय भी छोड़ना पड़ा। स्कूल छोड़ने के बाद भी उनमे शिक्षा ग्रहण करने का जूनून बन रहा। सगुनाबाई ने बालक ज्योतिबा को घर में ही पढ़ने में मदद की। घरेलु कार्यो के बाद जो समय बचता उसमे वह किताबें पढ़ते थे। ज्योतिबा पास-पड़ोस के बुजुर्गो से विभिन्न विषयों में चर्चा करते थे। लोग उनकी सूक्ष्म और तर्क संगत बातों से बहुत प्रभावित होते थे। ज्योतिबा बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि और समाज में अन्याय और भेदभावपूर्ण व्यवहार के खिलाफ क्रांति की सोच रखते थे। ज्योतिबा फुले केक्ष पिता का नाम गोविन्द राव तथा माता का नाम चिमना बाई था। उनकी पत्नी का नाम सावित्री बाई फुले था। महात्मा ज्योतिबा फुले की मृत्यु 28 नवम्बर 1890 पुणे में हुई थी। विपरित परिस्थितियों में जहां दलितों की स्थिति बहुत चिंताजनक थी ऐसे में ज्योतिबा फुले ने जो इनके उद्धार एवं कल्याण के लिए जो कार्य किए और विरोध और अत्याचारों का सामना करने के वावजूद अपने मिशन में लगे रहे ऐसे महापुरुष को युगों युगों तक याद रखा जाएगा। आज के ही दिन पूरा देश उनको उनकी जयंती पर याद करते हुए उनके असाधारण व्यक्तित्व को कोटि कोटि प्रणाम करता है।
ज्योतिबा को महात्मा की उपाधि
उच्च कोटि के विचारक और समाज सुधारक ज्योतिबा फुले के कार्य सर्वविदित थे उनका संघर्ष और आधुनिक युग की सकारात्मक सोच एवं तर्कक्षमता के कारण उनका कद बहुत बड़ा बन चुका था। इसलिए समाज को दिशा देने के लिए किये गए ज्योतिबा के इन निश्वार्थ कार्यों के कारण मई 1888 में उस समय के एक और महान समाज सुधारक “राव बहादुर विट्ठलराव कृष्णाजी वान्देकर” ने बम्बई की विशाल जनसभा में उन्हें “महात्मा” की उपाधी प्रदान की। इसके बाद ज्योतिबा फुले महात्मा ज्योतिबा फुले के नाम से विख्यात हुए।
ज्योतिबा फुले द्वारा सत्यशोधक समाज की स्थापना
ज्योतिबा फुले द्वारा सत्यशोधक समाज की स्थापना की गई थी। इस संस्था को स्थापित करने के पीछे इनका उद्देश्य यह था कि ऐसे लोगों को न्याय प्राप्त हो सके, जो निर्बल और दलित वर्ग से संबंध रखते हैं। इनकी समाज सेवा को देखते हुए इन्हें “महात्मा” की उपाधि मुंबई की एक सभा में 1888 में प्राप्त हुई। आज ज्योतिबा फुले को महात्मा जोतिराव गोविंदराव फुले के नाम से जाना जाता है। ज्योतिबा ने ही बिना पंडित और पुरोहित के विवाह संस्कार को चालू करवाया था और इनकी इस बात को मुंबई हाईकोर्ट से भी सर्टिफिकेट प्राप्त हो गया था। यह बच्चों के बाल विवाह के प्रबल विरोधी थे और यह विधवा हो चुकी स्त्रियों के पुनर्विवाह के प्रबल समर्थक थे। तथा महिलाओं के शोषण के घोर विरोधी थे। यह प्रत्येक महिला को शिक्षा देने एवं समानता लाने के प्रबल समर्थक थे।
महात्मा ज्योतिबा फुले के सामाजिक-धार्मिक विचार
महात्मा जोतिराव फुले ने कहा " वर्ण और जाति व्यवस्था शोषण की व्यवस्था है और जब तक इनका पूरी तरह से खात्मा नहीं होता तब तक एक समाज का निर्माण असंभव है।" ऐसी भूमिका लेनेवाले वो पहले भारतीय थे।
महात्मा फुले ने गंगाधर तिलक , आगरकर, रानाडे, दयानंद सरस्वती के साथ देश की राजनीती और समाज को आगे ले जाने की कोशिश की।जब उन्हें लगा कि इन लोगों की भूमिका अछूत को न्याय देने वाली नहीं है,तब उन्होंने इन लोगों की आलोचना भी की। महात्मा फुले अंग्रेजी राज के बारे में एक सकारात्मक दृष्टिकोण रखते थे क्युकी अंग्रेजी राज की वजह से भारत में न्याय और सामाजिक समानता के नए बिज बोए जा रहे थे। महात्मा फुले ने अपने जीवन में हमेशा बड़ी ही प्रबलता तथा तीव्रता से विधवा विवाह की वकालत की। उन्होंने उच्च जाती की विधवाओ के लिए 1854 ईसवी में एक घर भी बनवाया था दूसरों के सामने आदर्श रखने के लिए उन्होंने अपने खुद के घर के दरवाजे सभी जाती तथा वर्गों के लोगो के लिए हमेशा खुले रखे। ऐसे विचार रखने वाले महान समाझ सुधारक ज्योतिबा को केवल आज दलितों के उद्धारक मानकर उनसे उच्च जाति के लोगों द्वारा उनके कार्यों को सराहा नहीं गया है लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि ज्योतिबा ने जिस तरह सभी महिलाओं की दुर्दशा को एक ही नजर से देखा तथा इन कूरीतियों को मिटाने के लिए संघर्ष किया। महात्मा ज्योतिबा उच्च कोटि के विचारक और दार्शनिक थे उन्होंने किसानो की हालत सुधारने और उनके कल्याण के भी काफी प्रयास किये थे। ज्योतिबा कहा करते थे कि आर्थिक असमानता ने किसानों का जीवन अस्त-व्यस्त कर दिया है व ऊपर से महाजनों के मोटे सूद ने। इसप्रकार किसानों की दुर्दशा के खिलाफ भी उन्होंने अनेक प्रयास किए।
ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई फुले के कोई संतान नहीं थी इसलिए उन्होंने एक विधवा के बच्चे को गोद लिया था।
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