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Friday, April 14, 2023

Ambedkar Jayanti: दलित और पिछड़े भीम जयन्ती पर मनन एवं चिन्तन करें समस्याओं से जागरूक होकर लें संकल्प

Baba saheb bheem Rao Ambedkar
Dr Baba saheb bheem Rao Ambedkar- Dreams for india and dalit community 

बाबासाहेब आंबेडकर के रास्तों पर चलना ही उनका सम्मान 

एक लेख युवा पीढ़ी जरूर पढ़ें

आज पूरा देश बाबासाहेब आंबेडकर जी की जयंती मना रहा है दलितों को छोड़कर बहुत कम लोग अम्बेडकर जयंती पर प्रतिक्रिया या खुशी जाहिर कर रहे हैं दलितों के अलावा एक वर्ग अम्बेडकर जयंती पर जरूर सम्मान प्रकट कर रहा है वह है उच्च शिक्षित वर्ग जिसने अम्बेडकर को पढ़ा है उनके तर्कों को विश्लेषण कर निष्पक्ष रूप से आत्मसात किया है तथा दूसरे वे लोग जो सरकारी और राजनीति ओहदे पर होने के कारण औपचारिक रूप से जयन्ती मना रहे हैं तो कुछ गैरदलित चुनावी मानसिकता के चलते दलितों के वोटों को ठगने के लिए इस दिन मंचों पर दलितों के सामने अम्बेडकर के विचारों को जोड़तोड़ कर जोश भरने का काम करते हैं। हालांकि अम्बेडकर जैसे महापुरुष वर्तमान और भविष्य में लोगों की मानसिकता जानते के बाबजूद निस्वार्थ भाव से उन लोगों और सर्व धर्म की महिलाओं के अधिकारों के लिए प्रयास किए। उनके दिमाग में यह निराशा कभी नहीं आई कि भविष्य में गैर दलित महिलाएं जातिवाद की मानसिकता के चलते मेरा नाम लेने या मेरे बारे में बोलने से परहेज़ रखेगी। बाबासाहेब जानते थे कि मेरी व्यक्तिगत पहचान से ज्यादा महिलाओं की स्थिति को सुदृढ़ बनाना है। बाबासाहेब का सपना यह कभी नहीं रहा कि सभी लोग मेरी जय जयकार करें बल्कि वो एक ऐसा भारत चाहते थे जिसमें शोषित पिछड़े और महिलाओं को समानता मिलें तथा भारत की सबसे बड़ी कमजोरी अंधविश्वास और जातिगत भेदभाव से देश मुक्त होकर तरक्की करें। बाबासाहेब को उस समय भी यह परवाह नहीं थी कि मेरे प्रयासों से उन लोगों का जीवन स्तर सुधरेगा जो मेरे विचारों से सहमत नहीं हैं वो मुझे याद करेंगे या नहीं।


बाबासाहेब आंबेडकर एक प्रबुद्ध,ज्ञानी और तर्कशील बुद्धिजीवी थे वो जानते थे कि भारत में आजादी के बाद क्या समस्याएं रहेंगी जिससे देश के अधिकतर लोगों को न्याय समानता और जीवन निर्माण के महत्वपूर्ण अधिकार नहीं मिलेंगे। उन्होंने हमेशा देश को बेहतर बनाने वाले तथ्यों और विचारों पर जोर दिया तथा कानून मे शामिल करने के लिए तर्कसंगत हठ करके शामिल करवाया। वो केवल संवैधानिक व्यवस्था को बनाने में नहीं बल्कि देश को आर्थिक, राजनैतिक तथा सामाजिक रूप से मजबूत बनाने के लिए अनेक प्रयास करते रहे इसलिए आज अम्बेडकर पूरे भारतवर्ष के लिए सम्मान के प्रबल दावेदार हैं हालांकि उनके प्रयासों से जिस वर्ग को तथाकथित निराशा हुई है वो इन पूर्वाग्रहों से अम्बेडकर को श्रेय देने से जरूर बच रहा होगा। लेकिन असली मायनों में अम्बेडकर ने दलितों के लिए नहीं बल्कि देश के लिए समग्र दृष्टिकोण से अच्छा सोच कर अपने जीवन को समर्पित किया है।

वर्तमान में दलितों ने आम्बेडकरवाद की जगह अम्बेडकर के होने एवं उनके नाम का प्रचार करने में कोई कमी नहीं छोड़ी है यह एक सुखद अहसास है कि पिछले कुछ सालों में अम्बेडकर का नाम एवं उनका परिचय जिसतरह दलितों में चिंगारी के रूप में फैला है वो काबिले तारीफ है कम से कम भारत में दलितों के घर बाबासाहेब की एक तस्वीर जरूर पहुंची है तो यह कोई क्रांति से कम नहीं है। लेकिन अब बारी असली अम्बेडकरवाद की है जिस दिन इस सिलसिले में अम्बेडकर की शिक्षाएं और उनके बताए रास्तों का परिचय होगा उस दिन दलित वर्ग के लिए एक नव युग की शुरुआत होगी।

अम्बेडकर चाहते थे कि मेरे लोगों को वो समान अधिकार और सुरक्षा मिले लेकिन उसके लिए अनेक रास्ते बहुत कठिन थे इसलिए उन्होंने कानून और संवैधानिक व्यवस्था में दलितों के भले की आशा देखी इसलिए उन्होंने इसी पर जोर दिया तथा दूसरी तरफ थी शिक्षा जागरूकता और संगठित रहने की प्रवृत्ति। इसलिए उन्होंने संवैधानिक अधिकारों के उपभोग से पहले शिक्षा ग्रहण करने पर जोर दिया। क्योंकि शिक्षा और जागरूकता नहीं होगी तो भारत का संविधान दलितों के लिए बहरों वाला संगीत ही साबित होगा।

भारत में दलितों की स्थति कभी अच्छी नहीं रही वैदिक काल से लेकर अंग्रेजी शासन में सामंतवादी व्यवस्था तक दलित हमेशा शोषित रहा इतने लंबे समय से पिछड़े किसी वर्ग की स्थति को सुधारना बहुत मुश्किल होता है। लेकिन अम्बेडकर ने अपनी उच्च शिक्षा तथा दूरदर्शिता के चलते जो किया वो वाकई हैरतअंगेज था बहुत कम समय में आजादी से वर्तमान तक जिस प्रकार दलितों का उत्थान हुआ है वो किसी बड़ी सफलता से कम नहीं है।

दलितों की वर्तमान स्थिति एवं भविष्य


भारत में अंग्रेजी हुकूमत के दौरान सामंती व्यवस्था में जिस तरह दलित दबे हुए थे उसके बाद आजादी के बाद दलितों ने जब अपने सुधार के लिए कदम बढ़ाए तो मुश्किलें कम नहीं थी। किसी वर्ग का उत्थान उनके पास संसाधनों और आय के साधनों तथा औद्योगिक एवं सेवा क्षेत्र में भागीदारी के प्रतिशत से देखा जाता है इसी में सबसे महत्वपूर्ण थी जमीन और राजनीतिक-प्रशासनिक भागीदारी। लेकिन दुर्भाग्यवश दलित इन सब मामलों में पिछड़ा हुआ था ऐसी स्थति में कोई अच्छी स्थिति और बेहतर भविष्य की कल्पना कौन और कैसे कर सकता है । लेकिन बाबासाहेब ने यह कल्पना की इसलिए उनका नाम आज हर जुबान पर है।

इन सबके बावजूद वर्तमान दौर में इस दौड़ में पिछड़ने वालों तथा प्रगतिशील दलितों पर अत्याचार और उन्हें रोकने के प्रयास बढे हैं वर्तमान की सबसे बड़ी समस्या दलितों के लिए आर्थिक आत्मनिर्भरता और राजनैतिक और प्रशासनिक भागीदारी है जिसमें दलित एक बार फिर पिछड़ते नजर आ रहे हैं वर्तमान दौर में शक्ति और सुरक्षा का मापदंड शिक्षा जागरूकता और राजनैतिक और आर्थिक भागीदारी है जिसमें दलितों और पिछड़ों का वर्ग अम्बेडकर का प्रचार तो कर रहा है लेकिन अम्बेडकर वाद के रास्तों पर चल नहीं रहा जिसके चलते आए दिन दलित उच्च वर्ग से जातिगत मानसिकता तथा श्रेष्ठता एवं स्वाभिमान के लिए पिटता हुआ मारा जाता है। हालांकि इससे पहले हत्याएं कम होती थी क्योंकि बाबा साहेब अम्बेडकर के प्रयास दलितों में स्वाभिमान तो जगाकर गये लिए वर्तमान में दलितों के सामने उस स्वाभिमान और सम्मान को बचाने की मनोवृत्ति उनपर अत्याचारों का एक छोटा कारण भी बन रही है लेकिन इसका समाधान आमने सामने की लड़ाई और मारकाट तो नहीं हो सकती इसके लिए वही आर्थिक राजनैतिक शैक्षिक एवं सेवा क्षेत्र की भागीदारी का पेश फंस जाता है और हर बार दलित इस मामले में पिछड़ जाता है बहुत दुर्भाग्यपूर्ण और अफसोस की बात है कि हर बार एक पुलिस थाने रिपोर्ट लिखने के लिए आसपास के थानों और कोर्ट कचहरियों में कोई पुलिस अधिकारी और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी नहीं मिलता जो एक शोषित या पीड़ित की पहली इतला सुनें। भाई भतीजावाद और स्वजातीय झुकाव तो एक भ्रष्टाचार की तरह स्वाभाविक प्रक्रिया है इसलिए दलित हर बार निराश होकर लौटना है यहीं से शोषणकारी वर्ग का हौसला इतना बढ़ता है कि वे अगली बार हत्या को बड़ी सहजता से सोच सकते हैं। 

दलितों और पिछड़े वर्गों को अपना भविष्य सुरक्षित करना है तो असली अंबेडकरवाद को स्वीकार करना होगा । क्या हम किसी नेताओं,मंत्रियों, छिटपुट सेवानिवृत्त अधिकारियों तथा चाय भोजन की व्यवस्था करने वाले कुछ सक्षम लोगों को मंच पर बिठाकर माल्यार्पण करके दलितों के लिए कोई घोषणा सुनकर तालियां बजाकर ही अम्बेडकर जयंती मनाते रहेंगे? जहां उसी मंच पर अम्बेडकर के दो तीन रटे रटाए नारे सुनकर या सुनकर उन्हीं लोगों के बहकावे में आ जायेंगे जो बाबासाहेब के सपनों के भारत के खिलाफ सोच रखते हैं। हालांकि मुख्यालयों पर बाबासाहेब की जयंती मनाना और रंगमंच का आयोजन होना हमारे देश की नैतिक औपचारिकता है उत्सव के रूप में मनाया जाना चाहिए इसमें कोई दोराय नहीं है। लेकिन बाबासाहेब ने जिन शोषित वर्ग की बात की थी क्या वो वर्ग अम्बेडकर के नाम पर बने विभिन्न संगठनों की झंडियां लेकर दौड़ते रहेंगे फिर ऐसे संगठन वोटबैंक बन कर किसी राजनैतिक दल में शामिल होकर अपने उद्देश्यों और बाबासाहेब के लक्ष्यों से मुखर जाएंगे। ऐसा कई बार हुआ है बाबासाहेब और दलितों के कल्याण पर बने संगठनों के नेता राजनीति में जाकर अपना व्यक्तिगत विकास ही कर सके। इसलिए बाबासाहेब आंबेडकर की हर जयन्ती पर हमें एक प्रकार से चिन्तन और मनन करके उनके सपनों और दलितों की वास्तविक समस्याओं को समाप्त करने का संकल्प लेना चाहिए।

आज दलितों और पिछड़े वर्गों को पूंजीवादी दौर में बहुत कुछ व्यक्तिगत स्तर पर करना होगा। आज जहां कानून से लेकर सरकारी निर्णय पूंजीवाद की तर्ज से प्रभावित हो रहें हैं। ऐसी स्थति में दलितों को आधुनिक जीवन स्तर सुधार और आर्थिक एवं सामाजिक उन्नति की दौड़ में शामिल होना जरूरी है। वर्तमान में पिछड़े और दलित निम्न वर्ग में बहुत पीछे सफर कर रहे हैं । शिक्षा के अभाव से अधिकांश गरीब और पिछड़े आज भी राजनैतिक षड्यंत्र, धार्मिक उन्माद तथा तार्किक भय के साये में अनभिज्ञ हैं। स्वर्ण एवं कुछ चतुर लोग दलितों पर अप्रत्यक्ष और वंचित रखने के विभिन्न षड्यंत्र रचते हैं शिक्षा और जागरूकता के अभाव से दलित हर बार अपनी बर्बादी में भी तालियां बजाता नजर आया है तो इस प्रकार बाबा साहेब ने जो बहुत कम समय में एक असम्भव बदलाव को आजादी के बाद तेजी से किया है उसे आगे ले जाने में दलित वर्ग कमजोर साबित हुआ।

शिक्षा जागरूकता और गहन अध्ययन ही न्याय और अन्याय तथा सत्य असत्य में फर्क करवा सकता है जिसने बाबा साहेब को जितना गहराई से पड़ा है उसने विरोध और स्वत्व की भावना को दरकिनार कर बाबा साहेब के विचारों को आगे बढ़ाने की कोशिश की है।
एक सुखद और ताजुब्ब लगने वाली बात है कि बाबा साहेब के वास्तविक विचारों को गैरदलित वर्ग ने आत्मसात किया तथा जातिवाद और ब्राह्मणवाद के खिलाफ आवाज उठाकर शोषण और डिस्क्रिमिनेशन को तर्क संगत गलत साबित किया। भारत में जातिवाद को कम करने तथा दलितों के अधिकारों को दिलाने में उन गैरदलित बुद्धिजीवियों और रिचर्स करने वाले प्रबुद्ध लोगों का योगदान भी बखुबी रहा जिन्होंने अपनी जाति के लोगों को अम्बेडकर के विचारों का आदान प्रदान कर उनकी आलोचनाओं का सामना किया।

इससे यह साबित होता है कि जिसने शिक्षा प्राप्त की अम्बेडकर सहित अन्य समाज सुधारकों को पढ़ा वह उतना ही न्यायसंगत, निष्पक्ष और निस्वार्थ होता गया। इसलिए आज दलितों और पिछड़े वर्गों को अपने मौलिक विकास पर ध्यान देना बहुत जरूरी है पहले व्यक्तिगत सक्षम होकर फिर परिवार और समाज को उस दौड़ में शामिल करना बहुत जरूरी है जहां एक व्यक्ति सुरक्षा और चेतना से आधुनिक भौतिकवाद के दौर में रोटी कपड़ा मकान और शिक्षा स्वास्थ्य पर ध्यान देकर अपनी संतान का भविष्य सुरक्षित और बेहतर बना सकें। अगर दलित अपनी जमीन और आय के साधनों को खोता रहा तो भविष्य बदतर होता चला जायेगा। इसलिए बाबासाहेब की हर जयन्ती पर संकल्प लेकर व्यक्तिगत सक्षमता की ओर ध्यान देकर अन्य समाज के लोगों को शिक्षा और जागरूकता के साथ साथ एक आदर्श जीवन शैली बनाने की बातें जरूर बताएं जिससे पिछड़ा शोषण वर्ग नशा अपराध और बुरी आदतों से मुक्त होकर बाबासाहेब के बताए रास्ते पर चल कर हर परिवार से कम से कम एक सक्षम व्यक्ति तैयार करें जिससे स्वास्थ्य विभाग प्रशासन राजनीति अर्थव्यवस्था और न्याय में अधिक से अधिक भागीदारी सुनिश्चित करें जिससे कम कम शोषित एवं पिछड़े वर्ग के लिए एक सामान्य और सुरक्षित जीवन यापन के अधिकारों की रक्षा कर सकें तथा शोषणकारी व्यवस्था के षड्यंत्रों का पर्दाफाश कर सकें।

"अम्बेडकर तो स्कूल के बाहर बैठकर पढ लिखकर महान बन गये।
तुम स्कूल की क्लास में बैठकर नहीं पढ़ रहे हो। " यही समस्या की जड़ है।

शिक्षा ग्रहण करो।
तर्कशील बनो जिससे अंधविश्वास भय और षड्यंत्र से मुक्ति मिल सके। जागरूक होकर जागृत करो।
नशा छोड़ो बच्चों की शिक्षा हरगिज पूरी करो।
स्वस्थ रहो अधिक कमाओं अच्छा खाओ हष्ट पुष्ट रहो,अन्याय से संगठित होकर लड़ो। आधुनिक युग में आय के साधनों पर अधिक से अधिक कब्ज़ा करो । संस्थागत व्यवस्था में अधिक भागीदारी सुनिश्चित करो ।
यही दलितों के अच्छे भविष्य का मूलमंत्र है ‌। तथा अम्बेडकर का समान है।
                               
                            © ✍️ लेखक RK जोगचन्द 


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