अभी तक ब्रह्माण्ड में प्राप्त अध्ययनों में हमारी पृथ्वी ही एक मात्र ग्रह है जहां जीवन है। पृथ्वी हमारे और सम्पूर्ण जैवमंडल की जीवनदायिनी है। इसलिए पृथ्वी पर बढ़ती मानव जाति की संख्या तथा मानव के महत्वाकांक्षी स्वभाव और बुद्धि के कारण मानव इस पृथ्वी पर अपने जीवन को सरल एवं सुगम बनाने के लिए तकनीकी का उपयोग कर पृथ्वी पर विभिन्न प्रकार की संरचनाओं को अपनी सहुलियत के हिसाब से निर्मित कर रहा है ऐसे में धरती पर मौजूद हर आवश्यक वस्तु का दोहन तेजी से कर रहा है जिससे पृथ्वी के संसाधनों की कमी के साथ साथ अपशिष्ट एवं उत्सर्जन से पृथ्वी को ख़तरे में डालता जा रहा है इसलिए हमें कल्पना करते हुए यह स्वीकार करना चाहिए कि जिस दिन पृथ्वी अपने ऊपर जीवन की योग्य परिस्थितियों को कम देगी या खो देगी तो मानव सभ्यता तथा जैवमंडल का क्या हश्र होगा। इसलिए हमें हमारे जीवन को बेहतर बनाने के साथ साथ पृथ्वी की सेहत और सन्तुलन के प्रति जागरूक और संवेदनशील होना बहुत जरूरी है जिससे पृथ्वी लम्बे समय तक जन जीवन को अपनी गोद में सुरक्षित रख सकें। इसलिए विश्व प्रतिवर्ष 22 अप्रैल को अर्थ डे यानी पृथ्वी दिवस Word Earth Day मनाता है। पृथ्वी दिवस Prithvi Diwas मनाने का उद्देश्य पृथ्वी के वातावरण को संरक्षित करने के लिए लोगों को जागरूक करना है। विश्व धरती दिवस को मनाने की शुरुआत अमेरिकी सीनेटर जेराल्ड नेल्सन ने 1970 में की थी। पर्यावरणीय खतरे को कम करने के लिए लोग पृथ्वी द्वारा प्रदत्त संसाधनों के लिए पृथ्वी का सम्मान और सरंक्षण किया जाना चाहिए और पृथ्वी दिवस पर प्रकृति के संरक्षण का संकल्प लेना चाहिए।
पृथ्वी के वातावरण की दशा एवं बिगड़ता संतुलन तथा जलवायु परिवर्तन
हमारी पृथ्वी एक आवरण से घिरी है जो हमारे जीवन को अनुकूल बनाती है जिसे हम वायुमंडल कहते हैं। इसी वायुमंडल में प्रतिदिन तथा लम्बे समय में होने वाले परिवर्तनों को मौसम और जलवायु कहते हैं। जिसमें तापमान, वर्षा,दाब, प्रकाश,वायु आदि तत्व शामिल हैं।
किसी भी स्थान की जलवायु उसकी समुद्र तल से ऊंचाई, अक्षांश, समुद्र से दूरी तथा अन्य स्थानीय भौगोलिक कारणों (geographical factors) से प्रभावित होती है । सभी परिवर्तन वायुमंडल की क्षोभमंडल (troposphere) स्तर में होते हैं जो कि समतापमंडल (stratosphere) से घिरी होती है। किसी भी स्थान के मौसम के लिए तापमान तथा अवक्षेपण (precipitation) बहुत महत्वपूर्ण होते है। बहुत दिनों से यही समझा जाता रहा है कि वायु प्रदूषण, स्थानीय जलवायु विशेषकर वर्षा को ही प्रमादित कर सकते हैं। पर अब वैज्ञानिकों ने यह अध्ययन किया कि, विश्व जलवायु पर भी वायु प्रदूषण के संभावित प्रभाव हैं । वर्तमान में मानव की बढ़ती पिपासा व प्रकृति के अंधाधुंध दोहन से प्रदूषण उत्पन्न हो रहा है। जिससे बहुत विनाशकारी बदलाव हो रहे हैं वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, ताप प्रदूषण एवं नाभिकीय प्रदूषण आदि के कारण वातावरण दूषित होता जा रहा है। जिसका एक सबसे बड़ा दुष्प्रभाव जलवायु परिवर्तन के रूप में सामने आया है। आज जलवायु चक्र पूरी तरह से गड़बड़ा गया हैं। प्रकृति अपना नियमित चक्र बनाए रखने में असमर्थ सिद्ध हो रही है। जल चक्र में परिवर्तन होने से सर्वाधिक गर्मी वाले प्रदेशों में, वर्षा या बाढ़ का प्रकोप देखने को मिल रहा है एवं अधिक वर्षा वाले स्थानों पर सूखा पड़ रहा है । जलवायु में परिवर्तन से अतिवृष्टि, अनावृष्टि, चक्रवात, तूफान आदि आकस्मिक घटनाओं में वृद्धि होती है जिसका प्रभाव मानव के आवास, परिवहन, ऊर्जा स्त्रोत, स्वास्थ्य आदि सभी पर पड़ता है। कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी यदि आने वालों वर्षों में गर्मी 8 महीने हो या वर्षा, वर्षा के मौसम में न होकर सर्दियों के समय हो । वर्तमान में विश्व के कई भागों में ग्रीष्म ऋतु की अवधि और अधिकतम तापमान में वृद्धि हो रही है । बढ़ती आबादी तथा मानव के स्वार्थी और भौतिकवादी क्रियाकलापों और औद्योगिकरण के कारण उत्पन्न, ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा में वृद्धि रो पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है क्योंकि ये ताप के लिए अवरोधक का कार्य करती हैं, इसके प्रभाव पृथ्वी के अलग अलग भागों में भिन्न–भिन्न हैं किन्तु सभी हानिकारक हैं। जलवायु में अप्राकृतिक परिवर्तनों से, जैसे CO, गैस की मात्रा में वृद्धि से कृषि उत्पादनों में 10 से 30 प्रतिशत की कमी हो सकती है । वनों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है ।
जलवायु परिवर्तन की घटनाओं से पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystems) पर भी विपरीत प्रभाव पड़ेगा जो वनस्पति व जीव इस परिवर्तन को नहीं सह पायेंगे समाप्त हो जाएंगे इससे जैव विविधता को खतरा पैदा होगा । जल चक्र भी इससे प्रभावित होगा । तापमान परिवर्तन से ध्रुवों पर स्थित बर्फ के पिघलने का खतरा बढ़ जायेगा जिससे समुद्रतल की ऊंचाई बढ़ेगी और आस-पास के तटीय क्षेत्रों के डूबने, ढहने या खारेपन आदि का खतरा बढ़ेगा । इस कारण विश्व राष्ट्र संघ (U.N.O.) ने यह पाया है कि विश्व का तापमान धीरे धीरे बढ़ रहा है। यदि मानव जनित प्रदूषण नियंत्रित नहीं किया गया तो सन् 2100 तक यह 3.5° सेल्सियस बढ जायेगा ।
क्या है हरित गृह प्रभाव (what is Green House Effect)
हरित गृह प्रभाव एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जिसमें कुछ गैसे जिन्हें हरित गृह गैसें कहते हैं, पृथ्वी से परावर्तित होने वाली ऊष्मा को अवशोषित कर लेती हैं। यह ऊष्मा पृथ्वी के तापमान में जीवित रहने लायक गर्मी बनाये रखती है। अब यह प्रश्न है कि "हरित गृह गैसें क्या हैं?" इसे समझने के लिये हरित गृह के बारे में समझना होगा।
हरित गृह प्रभाव क्या होता है
हरित गृह कांच की बनी सरंचना होती हैं। ठण्डे प्रदेशों में बहुत कम अवधि के लिये सूर्य का प्रकाश उपलब्ध होता है, इस अवधि में. सौर ऊर्जा प्रकाश के रूप में हरित गृह के काँच से होकर प्रवेश करती है तथा पेड़-पौधों के द्वारा होने वाले खाद्य संश्लेषण में सहायक होती है।
प्रकृति के नियमानुसार प्रकाश ऊर्जा, ताप ऊर्जा में परिवर्तित होकर अवरक्त किरणों (Infrared) के रूप में हरित गृह के काँच से बाहर निकलने का प्रयास करती हैं लेकिन हरित ग्रह में उपस्थित कार्बनडाईआक्साइड के कारण इस तरह से बाहर निकलने में असमर्थ रहती हैं । यह ताप ऊर्जा, हरित गृह में गर्मी बनाये रखती है जो पेड़-पौधों के लिये ठण्डे मौसम में आवश्यक है इससे सर्दी होने के फलस्वरूप भी वनस्पति वृद्धि करती है ।
इसी प्रकार सौर ऊर्जा वायुमण्डल को भेदकर पृथ्वी पर आकर उसे गर्म करती है और सायंकाल में अवरक्त किरणों (IR) के रूप में वापस लौटती हैं। सामान्य परिस्थितियों में सूर्य के चारों ओर से घेरे हुये क्षोभमण्डल, हरित गृह में स्थित काँच की तरह से कार्य करता हैं एवं क्षोभमण्डल में एकत्रित इन अवरक्त किरणों को वापस नहीं जाने देता है तथा, पृथ्वी पर तापीय ऊर्जा के सन्तुलन को बनाये रखता है
एलनीनो
एलनीनो भी जलवायु सम्बन्धी परिवर्तनों का ही प्रभाव है जिसमें शीतोष्ण प्रशांत समुद्र क्षेत्र के वायुमंडल में हलचल होती है। 1997–98 में होने वाले एलनीनो से विश्व में लगभग 24000 लोगों की मौत हुई व 340 लाख अमेरिकी डालर की क्षति हुई । 2000–2001 में एलनीनो की घटना हुई जिसमें प्रशांत महासागर के पूर्वी भागों के तापमान में कमी आई
मानवीय गतिविधियों एवं अति औद्योगिकरण के कारण कुछ गैसे जैसे कार्बनडाई ऑक्साइड (CO2), मीथेन (CH4), नाइट्रस ऑक्साइड (NO), क्लोरोफ्लोरो क कार्बन (CFC-12,11,22) का उत्सर्जन अधिक मात्रा में होने लगा है जिससे वायुमण्डल में इनका जमाव बढ़ता जा रहा है । यह जमाव एक ऐसे काँच के परदे की तरह कार्य कर रहा है जिससे होकर सौर ऊर्जा विकिरण पृथ्वी पर आ तो सकती है लेकिन परावर्तित होकर वापस नहीं जा सकती हैं। इस कारण पृथ्वी का तापमान धीरे-2 बढ़ रहा है। इसे ही हरित गृह प्रभाव कहते हैं । इस प्रभाव का नामकरण सर्वप्रथम 1827 में जे. फुरियर ने किया था ।
हरित गृह प्रभाव का महत्व
यदि पृथ्वी पर हरित गृह गैसो का आवरण नहीं होता पृथ्वी के वातावरण से विकिरणें वापस लौट जाती जिससे पृथ्वी का तापमान जमाव बिन्दु से भी काफी नीचे (−18°C or –4° F) हो सकता था तथा जीवन असंभव हो जाता । अतः यही पर हरित गृह गैसे पृथ्वी पर एक कम्बल की भांति कार्य करती है एवं इस कारण पृथ्वी का तापमान लगभग 15°C बना रहता है।
हरित गृह प्रभाव के लिये उत्तरदायी कारण
वैज्ञानिकों ने अब तक लगभग 30 हरित गैसों की पहचान की है उनमें से पांच प्रमुख है कार्बन डाईऑक्साइड (CO2,) मीथेन (CH4), नाइट्रस ऑक्साइड (NO), क्लोरोफ्लोरो कार्बन (CFC) तथा जलवाष्प हैं। इसके अतिरिक्त ओजोन को भी हरित गृह गैस माना गया है। इनमें से कार्बनडाईऑक्साइड सर्वाधिक हानिकारक साबित हुई है क्योंकि मानवीय क्रियाकलापों एवं जीवाश्म ईधनों (पेट्रोलियम पदार्थ एवं कोयला ) के दहन से निरन्तर इनकी मात्रा में वृद्धि हो रही है।
कार्बन डाइऑक्साइड,कलोरो फ्लोरो कार्बन,मीथेन, ओजोन परत का क्षरण, नाइट्स आक्साइड आदि हमारी पृथ्वी के लिए संकट पैदा कर ग्रीन हाउस प्रभाव और वायुमंडलीय परिवर्तनों के लिए उतरदायी बन रहें हैं।
ग्रीन हाउस प्रभाव से हमारी पृथ्वी पर मौजूद जीवन को खतरा
ग्रीन हाउस प्रभाव के कारण निचले वातावरण में 2050 तक 1.5 से 4°C तक ताप में वृद्धि हो जायेगी । जिससे हिमनदों (ग्लेशियर) का पिघल कर समाप्त होना प्रारम्भ हो चुका है। वनस्पतियों की प्रकाश संश्लेषण क्रिया, जल ग्रहण करने की क्षमता एवं उत्पादन में कमी होगी । जलीय घटकों (Phyto plankton) में इसका असर प्रभावी है। मनुष्यों पर भी इसका असर देखा जा सकता है । इनकी स्वास्थ्य सम्बन्धित समस्याओं की शुरूआत चिन्ताजनक है । इस प्रभाव से मौसम चक्र गड़बड़ा गया है जिसका प्रभाव साइक्लोन प्राकृतिक आपदा, सुनामी आदि हैं। फसलों का उत्पादन कम होने पर उनको भण्डार करने की समस्या भी बनी हुई है।
पृथ्वी दिवस पर लेना होगा एक संकल्प
पृथ्वी दिवस पर अब जरूरत है एक ऐसे संकल्प की जिससे सम्पूर्ण विश्व सम्मिलित रूप से प्रयास कर प्रदूषण को नियंत्रित करें जिससे जलवायु में अवांछित परिवर्तन न हो । बहुत समय से यही समझा जाता रहा है कि विभिन्न प्रकार के प्रदूषण खासतौर से वायु प्रदूषण स्थानीय जलवायु, विशेषकर वर्षा को ही प्रभावित कर सकते हैं। हाल के वर्षा में विश्व जलवायु पर वायु प्रदूषण के संभावित प्रभाव के बारे में काफी विचार विमर्श किया जाता रहा है। आइए हम विश्व पर जलवायु संबंधी परिवर्तनों एवं उनके प्रभावों के विषय में जानकारी प्राप्त करें ।
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