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Friday, May 13, 2022

Tajmahal जानें दुनिया के अजूबे ताजमहल का इतिहास और रहस्य आखिर विवादों में क्यों है प्रेम निशानी

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ताजमहल और चारमिनार का विहंगम दृश्य फोटो साभार सोशल मीडिया

आगरा का ताजमहल tajmahal 

दुनिया का अनोखा मकबरा


दुनिया के सात अजूबों में शामिल दुनिया की सबसे खूबसूरत इमारत ताजमहल को भला कौन नहीं जानता विश्व भर में प्रसिद्ध इस इमारत को देखते के लिए हर वर्ष लाखों पर्यटक विभिन्न देशों से आते हैं। ताजमहल भारत की पर्यटन आय के दृष्टि से सबसे ऊपर है। विभिन्न स्मारकों में ताजमहल सबसे ज्यादा कमाऊ पर्यटन स्थल है। ताजमहल के इतिहास से जुड़े कई दिलचस्प किस्से हैं जिसकी बात हम आगे करेंगे। लेकिन दुर्भाग्यवश हजारों सालों से अटल खड़ी इस मन मोहक इमारत के लिए चुनौतियों की कमी नहीं है सबसे पहली प्रदुषण और अम्लीय वर्षा से हो रहे संगमरमर ह्रास है तो दुसरी तरफ इसके निर्माण और इतिहास के बारे में विवाद खड़े किए जा रहे हैं। ताजमहल के निर्माण से पहले यहां तेजोमहालय मंदिर तथा कभी किसी हिन्दू धर्म के मन्दिर होने का दावा किया जा रहा है तो दूसरी तरफ ताजमहल के नाम परिवर्तन की भी बहस होती आई है। उस समय ताजमहल के निर्माण में लगी मजदुरो , कारीगरों और इंजिनियरों में उस्ताद अहमद लाहौरी उस दल का हिस्सा थे, जिन्होंने ताजमहल जैसी भव्य इमारत का निर्माण किया था और उस्ताद अहमद की देखरेख में ही लाल किले के निर्माण का कार्य शुरू हुआ था। ताजमहल की खूबसूरती तो जगजाहिर है सुन्दर सफेद संगमरमर के पत्थरों सहित सोलह प्रकार के अन्य पत्थरों का इस्तेमाल कर यमुना नदी के तट पर यह खूबसूरत इमारत मनमोहक और हैरतअंगेज है। संगमरमर के पत्थरों पर बारिक मीनाकारी और कलात्मक बनावट अपने आप में यह दर्शाती है कि इस इमारत का निर्माण विशाल धनराशि, लम्बे समय तथा कारीगरों की बड़ी संख्या के मध्य हुआ है। इसलिए इस खुबसूरत मकबरे को बनने में 22 साल लगे और अंत में 1653 में पूरा हुआ।

शाहजहां और मुमताज की बेइंतहा मोहब्बत


मुमताज महल मुगल बादशाह शाहजहां की तीसरी और सबसे पसंदीदा बेगम थीं। अपने 14वें बच्चे बेटी गौहर आरा को जन्म के वक्त उनकी मौत हो गई। शाहजहां ने उनकी याद में आगरा में ताजमहल का निर्माण कराया।
मुमताज महल का वास्तविक नाम अर्जुमंद बानो था। वह 27 अप्रैल 1593 को आगरा में एक मुगल दरबारी के घर पैदा हुई थीं। इस प्रकार शाहजहां की प्रियसी मुमताज महल का जन्म आगरा में अर्जुमंद बानू बेगम के घर फारसी कुलीनता के परिवार में हुआ था। मुमताज अबू-हसन आसफ़ खान की बेटी थी, जो एक अमीर फ़ारसी रईस था। कहा जाता है कि शाहजहां और मुमताज महल की मुलाकात आगरा के बाजार में हुई थी। बचपन में ही खुबसूरत इस युवती के नसीब में भारत के बादशाह शाहजहां की रानी बनने का संयोग था। इसलिए मात्र 14 वर्ष की आयु में ही शाहजहां ने मुमताज को अपनी बेगम बना दिया था। कहा जाता है कि 14 साल की उम्र में ही दोनों की सगाई हो गई। इसके पांच साल बाद 10 मई 1612 को शाहजहां और मुमताज महल का निकाह हुआ। शादी के बाद शाहजहां ने अर्जुमंद बानो को मुमताज महल की उपाधि प्रदान की। मुमताज महल शाहजहां की तीसरी बेगम और सबसे पसंदीदा बेगम थीं। मुमताज महल की शादी 19 साल तक चली। शाहजहां के मुमताज महल से 14 बच्चे (8 लड़कियां और 6 लड़के) हुए जिनमें से सात बच्चे कम उम्र में ही चल बसे। शाहजहां मुमताज महल से दूर नहीं रह सकते थे। वह बेगम मुमताज महल को युद्व पर भी अपने साथ ले जाते थे। शाहजहां और मुमताज के बीच बेइंतहा मोहब्बत थी इसलिए वह सभी बेगमों से मुमताज को प्रिय मानते थे। शाहजहां और मुमताज के अगाढ प्रेम का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब मुमताज महल का निधन हुआ था तब शाहजहां बेहाल हो गये थे इतिहासकारों के मुताबिक मुमताज की मौत के बाद शाहजहां का मन हरम में नहीं लगा । वे हमेशा मुमताज की कब्र पर जाया करते थे। बादशाह जब तक बुरहानपुर में रहे नदी में उतरकर बेगम की कब्र पर हर जुमेरात को वहां जाते रहे। जिस जगह मुमताज की लाश रखी गई थी उसकी चारदीवारी में दीये जलाने के लिए आले बनाए गए। यहां 40 दिन तक दीये जलाए गए। कब्र के पास एक इबादतगाह भी बनाई गई शाहजहां के अटूट प्रेम ने मुमताज के लिए एक शपथ दिलाई कि जिसमें बादशाह ने मुमताज की कब्र पर हाथ रखकर कसम खाई कि मै तेरी याद में एक ऐसी इमारत बनवाऊंगा, जिसके बराबर की दुनिया में दूसरी नहीं होगी। इसके बाद शाहजहां मुमताज की याद तथा प्रेम निशानी के रूप में खुबसूरत इमारत का निर्माण करवाया।

ताजमहल का निर्माण 


वर्तमान में मशीनीकरण के बावजूद बड़ी इमारतों में सालों लग जाते हैं शाहजहां के समय मशीनों और आधुनिक औजारों का अभाव था लेकिन ऐसे समय में पत्थरों पर इतनी सुन्दर नक्काशी करना अपने आप में ताजुब वाली बात है। माना उस समय मजदूरों की कमी नहीं थी लेकिन पत्थरों की ढुलाई तथा इमारत के स्ट्रक्चर को खड़ा करना अपने आप में चुनौतीपूर्ण कार्य था । ताजमहल ही नहीं भारत में पुराने समय में बने दुर्ग,महल और मन्दिर स्थापत्य कला के बेजोड़ नमूने हैं। उस समय के कारीगरों के हाथों की कला और सफाई को आधुनिक मशीने और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण भी नहीं पहुंच सकते। ताज महल के निर्माण और वास्तुकला की बात करें तो यह तात्कालिक स्थापत्य कला की भांति अष्टकोणीय आकार में व्यापक रूप से मुगल वास्तुकला से निर्मित फारसी, भारतीय और इस्लामी शैलियों का मिश्रण है। ताजमहल में ईंटों के साथ साथ 16 प्रकार के पत्थरों का प्रयोग किया गया है।
सफेद संगमरमर ताजमहल की सबसे आकर्षक और प्रमुख विशेषताओं में से एक है। ताजमहल में इस्तेमाल किया गया संगमरमर 200 मील दूर मकराना में उत्खनन किया गया था। कथित तौर पर, बेहद भारी संगमरमर को निर्माण स्थल तक खींचने में 1,000 हाथियों और विशाल संख्या में बैल लगे। विशाल संगमरमर के टुकड़ों को ताजमहल के ऊंचे स्थानों तक पहुंचाने के लिए, एक विशाल, 10 मील लंबा मिट्टी का रैंप बनाया गया था। ताजमहल एक विशाल डबल-शेल गुंबद के साथ सबसे ऊपर है जो 240 फीट तक फैला है और सफेद संगमरमर से भी ढका हुआ है। चार पतली, सफेद संगमरमर की मीनारें दूसरी कुर्सी के कोनों पर ऊँची खड़ी हैं और मकबरे के चारों ओर हैं। ताजमहल के प्रांगण में खूबसूरत फव्वारे तथा बगीचे बनाएं गये। जो दूर से मनमोहक प्रस्तुति देते हैं। भारत के अंतिम गर्वनर जनरल लार्ड माउंटबेटन ने भारत छोड़ते समय अपनी उस समय की विशेष वायुयान से ताजमहल को आसमान से निहारा था तथा फ़ोटो भी खींचें थे। आसमां से यमुना नदी के तट पर सफेद फूल की तरहां दमकता ताजमहल किसी जन्नत की वस्तु से कम नहीं लगता।


ताजमहल के रहस्य


विश्व की खूबसूरत इमारत ताजमहल के बहुत रहस्य है जिससे जानकर हमें ताजुब होता है। हालांकि ताजमहल के इतिहास और निमार्ण के बारे में विभिन्न रहस्यों का प्रचलन है जिसमें कुछ पर विश्वास नहीं किया जा सकता है। आइए जानते हैं कुछ दिलचस्प किस्से जो हम अक्सर सुनते हैं।


निर्माण पूरा होने पर कारीगर के काटे थे हाथ 


ताजमहल के निर्माण के बाद जब मुग़ल बादशाह शाहजहां ने इसे निहारा तो उसे यह बहुत खूबसूरत लगा कहां जाता है कि शाहज़हां नहीं चाहते थे कि दुनिया में ऐसी इमारत ओर हो इसलिए ताजमहल का मुख्य कारीगर को बुलाया और उसे इनाम देने की बजाय उसके हाथ काटे जिससे वह वैसी दुसरी इमारत ना बना सके। हालांकि यह किंवदंती ऐसी ही प्रचलन में आ गई। बता दें कि यह एक अफवाह फैलाई गई है इतिहास में ऐसी किसी घटना के पुख्ता सबूत नहीं मिलते हैं। कहा जाता है कि शाहजहां ने ताजमहल बनाने वाले मजदूरों के हाथ नहीं कटवाए थे। इतिहासकारों के मुताबिक, शाहजहां ने मजदूरों को जिंदगीभर की पगार देकर उन्हें आजीवन काम ना करने का वादा करवाया था।

टपकते हैं मुमताज के आंसु


ताजमहल के बारे में एक रहस्यमय अफवाह का प्रचलन है कि ताजमहल के गुंबद की महीन मीनाकारी में एक छोटा-सा छेद है जहां पानी की बूंदें टपकती है कहा जाता है कि महीन कलात्मक नक्काशी में इस छेद का पता आज तक कोई नहीं लगा पाया है। किंवदंतियों के हिसाब से कहां जाता है कि जब उस कारीगर को हाथ काटने का पत्ता चला तब उसने बादशाह से कहा कि " जहांपनाह ताजमहल के गुंबद में थोड़ा काम अधुरा है मैं पहले इसे पूरा कर दूं बाद में मेरे हाथ काट लेना" तभी वहीं कारीगर मुख्य गुंबद में एक छेद कर देता है आज भी उसी छेद का पता दुनिया का कोई इंजिनियर नहीं ज्ञ लगा सका है। दूसरी तरफ ताजमहल को तेजोमहालय मंदिर मानने वाले लोगों का मत है कि गुंम्बद से यह बूँद वह टपकती है जहा भगवान् शिव के विग्रह विराजमान था। भारतीय कामगारों ने इसे इस रूप में बनाया था कि भगवान् का जलाभिषेक होता रहे।गर्भगृह में टपकने वाली पानी की बूँद के बारे में किसी इतिहासकार के पास कोई तर्क नहीं है। ना ही कोई स्पष्ट जानकारी उपलब्ध है इसलिए इसे भी रहस्यमय अफवाह ही माना जाता है।

एक साथ शुरू होते बिना पाइप के फव्वारे


ताजमहल खुद तो अजूबा है ही साथ ही इसके आसपास बने फव्वारे भी हमें आश्चर्य में डालते हैं दरअसल ताजमहल मकबरे के प्रांगण में लगे सभी फव्वारे एक ही समय पर काम करते हैं, और सबसे हैरत में डाल देने वाली बात ये है, कि ताजमहल में लगा हुआ कोई भी फव्वारा किसी पाईप से जुड़ा हुआ नहीं है, बल्कि हर फव्वारे के नीचे तांबे का टैंक बना हुआ है, जो एक ही समय पर भरता है और दबाव बनने पर एकसाथ काम करता है।


रंग बदलता ताजमहल


चांदनी रात में ताजमहल और भी हसीन हो जाता है ताजमहल पर लगा चमकदार संगमरमर सूर्योदय,सुर्यास्त तथा चांद की चांदनी में अपना रंग बदलते हुए प्रतीत होता है। दरअसल ताजमहल का रंग नहीं बदलता है। ताजमहल अलग-अलग पहर में अलग अलग रंगों में दिखाई देता है ताजमहल का संगमरमरीय सफेद रंग प्रकृति के किसी भी रंग को समा लेता है इसलिए सफेद रंग हर रंग में मिल कर उसी का रंग को ले लेता है। सुबह देखने पर ताजमह गुलाबी दिखता है, शाम को दूधिया सफेद, शाम होते-होते तक नारंगी और रात की चांदनी में सुनहरा दिखता है। यही इसके रंग बदलते का सच है।

यमुना के दूसरे तट पर शाहज़हां बनाना चाहते थे एक और ताजमहल


कहा जाता है कि मनुष्य की इच्छाएं कभी पूरी नहीं होती है बड़े बड़े लोगों की कुछ इच्छाएं अधुरी रह जाती है। कहां जाता है कि मुग़ल बादशाह शाहजहां की एक इच्छा अधुरी रह गई जिसमें वो यमुना के तट पर ताजमहल के सामने एक काले पत्थरों का एक ओर ताजमहल बनाना चाहते थे।
काले ताजमहल का सपना मुग़ल बादशाह पूरा नहीं कर सकें। शाहजहां चाहते थे, कि मुमताज के लिए बने सफेद तामहल के बाद वे अपने लिए काला ताजमहल बनवायें। लेकिन इसी बीच उन्हें उनके बेटे औरंगज़ेब ने कैद कर लिया तो ये सपना हमेशा-हमेशा के लिए सपना बनकर ही रह गया। कहां जाता है कि शाहज़हां की इच्छा थी कि वह दिन में एक बार ताजमहल को देखें इसलिए शाहजहां ने अपने बेटे को यह इच्छा बताई तभी कहा जाता है कि औरंगज़ेब ने लालकिले में कैद शाहजहां के सामने एक शीशे को विशेष कोणों में स्थापित करवाया गया जिसमें यमुना नदी पड़ रही परछाईं को उस शीशे में इस तरहां से सेट किया गया जिसमें शाहजहां ताजमहल की झलक मिलती थी।

ताजमहल के निर्माण से जुड़ा विवाद



हाल ही में ताजमहल का बंद तहखाना सुर्खियों में है। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में याचिका दायर करने वाले अयोध्या निवासी डा. रजनीश सिंह ने तहखाना में कमरे होने का हवाला देते हुए उन्हें खुलवाने को याचिका दायर की है। इस मामले में नया मोड़ सामने आया है। एएसआइ से सेवानिवृत्त अधिकारी का दावा है कि उन्होंने कमरों जैसा कोई निर्माण नहीं देखा। वहां गलियारा और फाउंडेशन पिलर हैं। वह पर्यटकों के लिए 1972 में ही बंद किए जा चुके हैं। आखिरी क्या वजह रही कि इन्हें पर्यटकों के लिए बंद किया गया, ये एक बड़ा सवाल जहन में घूम रहा है। एएसआई के रिटायर्ड इंजीनियर डॉ. एमसी शर्मा के अनुसार ताज की मीनारों से आत्महत्या करने और चमेली फर्श के नीचे जाने के दौरान हुई घटनाओं के कारण सुरक्षा कारणों से इन्हें बंद कर दिया गया था। इसके बाद 16 साल पहले यानि वर्ष 2006 में तत्कालीन संरक्षण सहायक मुनज्जर अली ने तहखाने के कमरों का संरक्षण सीबीआरआई (सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट) की सिफारिश पर किया था। तब यहां दीवारों में सीलन, दरारें भरने के लिए प्वाइंटिंग और प्लास्टर का काम कराया गया। इन्हीं कमरों में यमुना किनारे की ओर से पहुंचा जा सकता था, जो उत्तर पश्चिमी और उत्तर पूर्वी बुर्ज के पास बने हुए थे। लकड़ी के दरवाजे हटाकर ईंटों की दीवार लगा दी गई है। हाल ही में इन तहखानों को खुलवाने की मांग की जा रही है तथा यह दावा किया जा रहा है कि इन कमरों में कोई हिन्दू इमारत होने के सबूत मिल सके।


एक व्यक्ति की दो कब्र कैसे


ताज महल को पुराने समय में हिन्दू मंदिर होने का दावा करने वाले लोगों का कहना है कि एक व्यक्ति की दो कब्र होना संदेह के दायरे में है। मुमताज महल की दो कब्र है यह बहुत कम लोग जानते हैं बता दें कि मध्यप्रदेश के बुरहानपुर जिले में ही शाहजहां की बेगम मुमताज की असली कब्र है। बुरहानपुर में अपनी चौदहवीं संतान को जन्म देने के दौरान मुमताज की मृत्यु हो गई थी। इसके बाद उन्हें छह महीने तक यहीं दफनाया गया। जिसके बाद उनकी कब्र को आगरा ले जाया गया।
सम्राट शाहजहां की बेगम मुमताज की मौत न तो आगरा में हुई और न ही उसे वहां दफनाया गया। असल में मुमताज की मौत मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले की जैनाबाद तहसील में हुई थी। मुमताज की कब्र ताप्ती नदी के पूर्व में आज भी स्थित है। इतिहासकारों के अनुसार लोधी ने जब 1631 में विद्रोह का झंडा उठाया था तब शाहजहां अपनी पत्नी मुमताज महल को लेकर बुरहानपुर आ गया था। उन दिनों मुमताज गर्भवती थी। सात जून 1631 में बच्चे को जन्म देते समय उसकी मौत हो गई। उसे वहीँ आहुखाना के बाग में दफना दिया गया। हालांकि यह विवाह कैसा भी हो वो अलग सोच धार्मिक वैमनस्य तथा राजनैतिक मुद्दा है क्योंकि ताजमहल कोई आजकल नहीं बना है सैकड़ों साल इस पुरानी इमारत पर अब कोई सवाल मायने नहीं रखते क्योंकि भारत में बहुत सारी इमारतों को विदेशी आक्रांताओं ने ध्वस्त किया था। तथा मुगल काल में स्थापत्य कला का भी बड़े स्तर पर निर्माण हुआ था ऐसे में ऐतिहासिक धरोहरों के निर्माण और तात्कालिक विवादों को अब धार्मिक सोच से देखना कोई समाधान निकालने वाले मुद्दों में शामिल नहीं किया जा सकता । खैर विवादों से कहीं अधिक ताजमहल अपना नाम कमा चुका है दुनिया मुमताज और शाहजहां की मोहब्बत की निशानी के रूप में मानती है। दूसरी तरफ ताजमहल भारतीय पर्यटन आय तथा आगंतुकों के आकृषण में मुख्य भूमिका निभा रहा है ऐसे में विश्व के अजूबों तथा धरोहर में शामिल इस खुबसूरत इमारत पर विवाद नहीं तो यह अपने आप में अच्छी बात है।

राजकुमारी दीया कुमारी ने जताया ताजमहल पर मालिकाना हक


राजकुमारी दीया कुमारी (Diya Kumari) एक बार फिर चर्चा में हैं। उन्होंने ताजमहल की मिल्कियत का दावा किया है। दीया कुमारी का परिवार खुद को भगवान राम का वंशज भी बताता है। बाबरी मस्जिद मामले में भी दीया कुमारी ने स्वयं को राम का वंशज माना था। दीया कुमारी का संबंध जयपुर राजघराने से हैं।  
दीया कुमारी 24 जून 1970 से 28 दिसम्बर 1971 तक जयपुर के महाराजा रहे सवाई भवानी सिंह व पद्मिनी देवी की ही इकलौती संतान हैं।
राजकुमारी दीया कुमारी ने बड़ा दावा किया है कि ताजमहल जयपुर के पूर्व राजपरिवार का एक महल था, जिसपर शहाजहां ने कब्जा कर लिया था। उस वक्त मुगलों की ही सरकार थी इसलिए राजपरिवार ज्यादा विरोध नहीं कर सका। राजकुमारी ने आगे यहां तक रहा कि उनके ट्रस्ट में पोतीखाना है, जहां इससे संबंधित दस्तावेज रखे हैं। अगर जरूरत पड़ेगी तो वह ये दिखाने को भी तैयार हैं।

कोर्ट की याचिकाकर्ता को फटकार


उत्तर प्रदेश स्थित आगरा में दुनिया के अजूबे में शामिल ताजमहल के 22 कमरों को खोले जाने की याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में सुनवाई हुई। इस याचिका में याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट से मांग की गई थी कि सालों से बंद पड़े ताजमहल के 22 कमरों को खुलवाया जाए और आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया (ASI) से उसकी जांच कराई जाए। इस मामले में कोर्ट ने सख्त लहजे में कहा कि याचिकाकर्ता अपनी याचिका तक ही सीमित रहें। कोर्ट ने कहा कि आप आज ताजमहल के कमरे देखने की मांग कर रहे हैं कल को आप कहेंगे कि हमें जज के चेंबर में को भी देखने जाना है। इसीलिए पहले जाकर ताजमहल के बारे में पढ़ें फिर आएं।


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