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What is surrrogacy: Surrogacy is a form of third-party reproduction in which a woman consents to carry a pregnancy for intended parent |
सरोगेसी Surrogacy किराये की कोख प्रकिया एवं इतिहास एवं विभिन्न पहलु
Priyanka chopra baby
•क्या होती है सरोगेसी जिससे Priyanka Chopra बनीं मां?
•भारत में क्या हैं इसके नियम?
•सरोगेसी की प्रकिया एवं प्रकार
•सरगेसी का इतिहास?
•आईवीएफ क्या है?
• सिरोगेसी में शिशु स्तनपान एवं परवरिश
• कौन लेता है सरोगेसी का सहारा
• सरोगेट मदर
• What is surrogacy by which Priyanka Chopra became a mother?
•What are its rules in India?
•Process and Types of Surrogacy
•History of Surgesi?
•What is IVF?
• Infant Breastfeeding and Parenting in Surrogacy
• Who takes the support of surrogacy
• Surrogate Mother
मां बनना हर किसी महिला का सौभाग्य होता है तो दूसरी तरफ उसका पुनर्जन्म भी इसलिए किसी भी कपल के लिए संतान उत्पन्न करना एक सुखद अहसास है तो जिम्मेदारी भी है। हम यह ही जानते है कि पति-पत्नी में सहवास के बाद पत्नी का गर्भ ठहरता है तथा वो नौ महीने बाद लड़की या लड़के को जन्म देती है प्रकृति और सामाजिक व्यवस्था का यह प्रोसेस तो आम है लेकिन आज बात करेंगे जैविक प्रणाली में विज्ञान के उस चमत्कार की जिससे कपल्स अपनी संतान भी उत्पन्न करते हैं लेकिन वो भ्रुण नौ महिने असली मां से दूर कहीं दूर विकसित होकर जन्म लेता है। आइए जानते हैं हाल ही में चर्चित सरगोसी प्रकिया क्या है? सरोगेसी में मां कैसे बनती है? सरोगेसी में निषेचन और ओवुलेशन प्रक्रिया कैसी होती है? तथा सरोगेसी से माता-पिता बनने के कानुन क्या है?
What is surrogacy सरोगेसी क्या है?
सरोगेसी प्रकिया में कपल्स फैसला करते हैं कि उसका होने वाला बेबी किसी थर्ड पार्टी मतलब अन्य महिला के गर्भ में विकसित होगा। सरल भाषा में समझें तो
संतान पैदा करने के लिए जब कोई कपल किसी दूसरी महिला की कोख किराए पर लेता है तो इस प्रक्रिया को सरोगेसी कहा जाता है। When a couple rents another woman's womb to have a child, this process is called surrogacy.
इस प्रकिया में में कोई महिला अपने या फिर डोनर के एग्स के जरिए किसी दूसरे कपल के लिए प्रेग्नेंट होती है। इस प्रकार से गर्भधारण करना कानुनी तथा आर्थिक मापदंडों के आधार पर होता है। यह प्रक्रिया चिकित्सा तकनीक तथा कानुनी महत्व रखती है। अब सवाल उठता है कि सरोगेसी से सहारे से संतान कौन तथा क्यों चाहता है? सरोगेसी से बच्चा पैदा करने के पीछे कई कारण होते हैं। जैसे कि कपल को कोई मेडिकल से जुड़ी समस्या जिसमें गर्भधारण से महिला की जान को खतरा या कोई ऐसी समस्या हो जिससे कोई महिला अपने गर्भ में भूर्ण विकसित करने में अक्षम हो या कोई जटिलता होने की संभावना हो । दूसरी तरफ वे महिलाएं जो अपने पैसे के कारण व्यस्त रहती है तथा शारीरिक फिटनेस रखना चाहती है वे महिलाएं अपने गर्भ में या अपनी कोख में नौ महिने तक का गर्भकाल नहीं रखना चाहती है या उसका पति यह नहीं चाहता है कि उसकी पत्नी के गर्भ से बच्चा उत्पन्न हो इसलिए कोई पति-पत्नी दोनों मिलकर ऐसा फैसला लेते हैं।
इस प्रकिया में जन्म देने तथा भूर्ण से शिशु के विकास के सारी जिम्मेदारी और बच्चा उत्पन्न करने के सारे कष्ट सरोगेट मां उठाती है।
सरोगेट मदर surrogate mother
सरोगेसी में सरोगेट मदर उसे कहा जाता है जिसमें संतान चाहने वाले पिता के स्पर्म और माता के अंडाणु का मेल टेस्ट ट्यूब कराने के बाद इसे सरोगेट मदर के यूट्रस में प्रत्यारोपित किया जाता है इसप्रकार यह तीसरी महिला सिरोगेट मदर कहलाती है। हालांकि कई बार सरोगेट मदर से उस शिशु के भावात्मक रिश्ते एक असली मां की तरह जुड़ जाते हैं। इस प्रकिया से सरोगेसी के लिए एक बच्चे की चाह रखने वाले कपल और सरोगेट मदर के बीच एक एग्रीमेंट किया जाता है। इसके तहत, प्रेग्नेंसी से पैदा होने वाले बच्चे के कानूनन माता-पिता सरोगेसी कराने वाले कपल ही होते हैं। सरोगेट मां को प्रेग्नेंसी के दौरान अपना ध्यान रखने और मेडिकल जरूरतों के लिए पैसे दिए जाते हैं ताकि वो गर्भावस्था में अपना ध्यान रख सके।
सरोगेसी की चिकित्सा प्रकिया तथा स्पर्म-अंडाणु डोनेट two types of surrogacy
सरोगेसी के दो प्रकार सरोगेसी दो तरह की होती है एक ट्रेडिशनल सरोगेसी तथा दूसरी होती है जेस्टेशनल सरोगेसी।
सरोगेसी के प्रकार
आइए समझते हैं कि इन दोनों प्रकिया में क्या अंतर है।
1.ट्रेडिशनल सरोगेसी traditional surrogacy
इस प्रकार की सरोगेसी में होने वाले पिता या डोनर का स्पर्म सरोगेट मदर के अंडाणु या एग्स से मैच कराया जाता है। पिता के शुक्राणुओं को सरोगेट मदर के नेचुरल ओव्यूलेशन के समय डाला जाता है। इसमें जेनेटिक संबंध सिर्फ पिता से होता है।
मतलब एक 'पारंपरिक सरोगेट' एक ऐसी व्यवस्था है जहां एक महिला द्वारा गर्भावस्था की जाती है जो अंडा दाता भी है। वह जैविक पिता के शुक्राणु का उपयोग करके आईयूआई या आईवीएफ के परिणामस्वरूप गर्भ धारण करती है। बच्चे का पालन-पोषण उसके जैविक पिता और उसके साथी द्वारा किया जाना है। लेकिन इस सरोगेसी में सरोगेट मदर ही बॉयोलॉजिकल मदर (जैविक मां) होती है। जिसमें उस मां के आनुवांशिक लक्षण उस संतान में हस्तांतरित होते हैं।
2.जेस्टेशनल या गेस्टेशनल सरोगेसी gestational surrogacy
इस प्रकिया में संतान चाहने वाले पिता के स्पर्म और माता के अंडाणु का मेल टेस्ट ट्यूब कराने के बाद इसे सरोगेट मदर के यूट्रस में प्रत्यारोपित किया जाता है।इस प्रकार में माता पिता दोनों स्वस्थ और संतान उत्पन्न करने में सक्षम होते हैं लेकिन वे साधारण कारणों से यह फैसला करते हैं। इस जेस्टेशनल सरोगेसी में सरोगेट मदर का बच्चे से संबंध जेनेटिकली नहीं होता है। यानी प्रेग्नेंसी में सरोगेट मदर के एग का इस्तेमाल नहीं होता है। इसमें सरोगेट मदर बच्चे की बायोलॉजिकल मां नहीं होती है। वो सिर्फ बच्चे को जन्म देती है। इस पद्धति में सरोगेट मदर को ओरल पिल्स खिलाकर अंडाणु विहीन चक्र में रखना पड़ता है जिससे बच्चा होने तक उसके अपने अंडाणु न बन सकें।
कौन होती है योग्य सरोगेट
कोई महिला जो सरोगेसी के लिए तैयार होती है जिसकी उम्र कम से कम 21 साल की हो ।
वह पहले से ही कम से कम एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दे चुके हैं ताकि वे गर्भावस्था और प्रसव के चिकित्सीय जोखिमों और नवजात शिशु के साथ संबंध के भावनात्मक मुद्दों को पहले से समझ सकें।
वह महिला जो जन्म के बाद बच्चे को छोड़ने के साथ किसी भी मुद्दे को उजागर करने के लिए मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर द्वारा एक मनोवैज्ञानिक जांच पास की हो।
गर्भावस्था में उनकी भूमिका और जिम्मेदारियों के बारे में एक अनुबंध पर हस्ताक्षर करें, जैसे कि प्रसव पूर्व देखभाल और जन्म के बाद आपको बच्चा देने के लिए सहमत हो।
सरोगेसी प्रकिया के नुकसान जोखिम तथा समस्याएं
सरोगेसी प्रकिया कुछ मामलों में संतान सुख पाने वाले दम्पत्ति के लिए अच्छी व्यवस्था है जो किसी शारिरिक कारण जैसे बिमारी या hysterectomy या डिम्बग्रंथि में किसी समस्या के कारण बच्चा उत्पन्न करने में सक्षम नहीं होते हैं। लेकिन कुछ धनी लोग इस व्यवस्था को धन के बल पर करवाते हैं जिसमें कुछ गरीब महिलाएं धन के लालस में इस फैसले को स्वीकार करती है जिससे उसके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। हांलांकि यह जैविक सिस्टम के खिलाफ चिकित्सा प्रोद्योगिकी का मामला है जो प्राकृतिक एवं शारीरिक प्रकिया के विपरित है।
इसमें कुछ समस्याएं भी हैं जैसे
•सरोगेट मदर का बाद में व्यवहार
•बच्चे की गर्भावस्था में देखभाल
•शिशु का मनौवैज्ञानिक लगाव तथा सरोगेट मदर का भावात्मक व्यवहार
•सरोगेट मदर का शोषण
सरोगेसी या किराए की एक कोख की कीमत cost of Surrogacy
सरोगेट मां का सारा खर्च वही लोग उठाते हैं जिन्हें बच्चा चाहिए या जो दम्पत्ति सरोगेसी के लिए अपना स्पर्म और अंडाणु डोनेट करते हैं एक सरोगेसी की कीमत या किराए की बात करें तो विभिन्न देशों में अलग-अलग हैं हांलांकि कुछ देशों में इस प्रक्रिया पर कानुनी पाबंदी रहती है तो कुछ देशों में यह बहुत मंहगे दामों पर होती है। भारत की बात करें तो यहां तीन-चार लाख तक सिरोगेसी की प्रक्रिया होती है इस पूरे प्रोसेस में वकील की फीस सरोगेट मदर के स्वास्थ्य एवं देखभाल का खर्चा आदि रहता है जो संतान चाहने वाले दम्पत्ति उठाते हैं। अमेरिका तथा दूसरे देशों में यह प्रक्रिया कम से कम 30-40 लाख रुपए तक के खर्च में होती है। दुर्भाग्यवश गरीबी तथा विदेशों में खर्च ज्यादा होने के कारण भारत में यह कारोबार का रूप लेकर बड़े पैमाने पर होने लगा है जिसमें विदेशी लोग भी भारत की महिलाओं से सरोगेसी का करार करते हैं। दक्षिण भारत में सरोगेसी के मामले बढ़ रहे हैं।
सरोगेसी का इतिहास प्रकिया तथा IVF तकनीक History of Surrogacy
सरोगेसी के इतिहास की बात करें तो यह कोई ज्यादा पूरानी बात नहीं हाल ही में 80 के दशक के करीब चिकित्सा प्रोद्योगिकी तथा आर्टिफिशियल तकनीक के आने के बाद ही इसकी शुरुआत हुई है। भारत से पहले यह तकनीक विदेश में आयी । सरोगेसी के इतिहास और आगमन के लिए हमें आईवीएफ तकनीक को समझना जरूरी है क्योंकि इस प्रकार की नवीन चिकित्सा खोजें ही सरोगेसी के उद्भव के लिए जिम्मेदार हैं। आईवीएफ तकनीक क्या है? IVF का पूरा नाम इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (In Vitro Fertilization) है जिसे हम टेस्ट ट्यूब बेबी test tube baby के नाम से भी जानते हैं।
पात्रे निषेचन या इन विट्रो फर्टिलाइज़ेशन IVF निषेचन की एक कृत्रिम प्रक्रिया है जिसमें किसी महिला के अंडाशय से अंडे निकालकर उसका संपर्क द्रव माध्यम में शुक्राणुओं से शरीर के बाहर किसी अन्य पात्र या परखनली में कराया जाता है। इसके बाद निषेचित अंडे को महिला के गर्भाशय में रख दिया जाता है। वो अंडाणु उस महिला के गर्भ में रहकर शिशु के रूप में विकसित होता है। कृत्रिम निषेचन के इतिहास की बात करें तो विश्व में पहली बार इस प्रक्रिया का प्रयोग यूनाइटेड किंगडम UK में पैट्रिक स्टेपो और रॉबर्ट एडवर्डस ने किया था। इस प्रकार दुनिया में पहली बार परखनली शिशु का जन्म हुआ था। इस प्रक्रिया से जन्मे बच्चे का नाम लुईस ब्राउन Louise Brown था जिसका जन्म 25 जुलाई, 1978 को मैनचेस्टर में हुआ था। हिन्दुस्तान में पहली बार डॉक्टर सुभाष मुखोपाध्याय ने इस प्रक्रिया का इस्तेमाल किया था। इसी तकनीक के आने के बाद सरोगेसी जैसी अद्भुत प्रकिया का जन्म हुआ जो देखते ही देखते तेजी से आज अरबों का व्यवसाय बन गया।
भारत में सरोगेसी की शुरुआत साल 2002 से हुई। लेकिन आज बढ़ी मात्रा में महिलाएं धन की लालसा में यह कृत्रिम और प्राकृतिक रूप से मिले जुले एक प्रयोग को संतान प्राप्ति के लिए उपयोग करते हैं।
भारत में सरोगेसी के कानून Surrogacy law in india
भारत देश में सरोगेसी को विनियमित करने वाला कोई कानून नहीं है, हालांकि सरोगेसी अवैध नहीं है। लेकिन भारत में सरोगेसी हमेशा विवादास्पद मुदा रहा है। भारतीय संस्कृति जहां पश्चिमी संस्कृति से अलग उदारवादी तथा नैतिकता पर ज्यादा जोर देती है ऐसे में भारत में सरोगेसी का विरोध होता है। क्योंकि भारत के लोग बच्चे को गोद लेने में ज्यादा विश्वास करते हैं। भारत में सरोगेसी (रेगुलेशन) बिल को संसद में पेश भी हो चुका है जिसमें सरोगेट मदर का शोषण होने की बात सामने रखी थी। तथा कमर्शियल सरोगेसी पर रोक लागाने की बात कही थी, हालांकि लेकिन परोपकारी सरोगेसी की अनुमति देने की बात कही थी भारत में टेस्ट ट्यूब से जन्मे पहले बच्चे का नाम कनुप्रिया था जिसका जन्म 3 अक्टूबर 1978 को हुआ था। इस प्रकार भारत सरकार द्वारा प्रस्तावित और पार्लियामेंट के दोनों सदनों द्वारा पारित सरोगेसी (रेगुलेशन) बिल, 2021 पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद मंजूरी दे चुके हैं जिसमें सरोगेट मदर के शोषण तथा विभिन्न आर्थिक मुद्दों पर चर्चा की गई है। हालांकि इससे समस्या हल होने की बजाए अधिक जटिल और विवादित हो गई है।
भारत में सरोगेसी को पहली बार सुप्रीम कोर्ट ने बेबी मांजी के मामले में मान्यता दी थी। 2002 में IMCR ने भारत में सरोगेसी की प्रक्रिया को कारगर बनाने के लिए दिशानिर्देश जारी किए थे। हालांकि फिलहाल भारत में सरोगेसी पर कोई रोक तो नहीं है। लेकिन कानुनी प्रकिया में इस प्रकिया के की मापदंड बनाएं गये है जो सरोगेसी के एग्रीमेंट के समय से लागू किए जाते हैं।
अनेक बॉलीवुड सितारों तथा एक्ट्रेस प्रियंका चोपड़ा मां बनने से सरगेसी हुई चर्चित
बॉलीवुड एक्ट्रेस प्रियंका चोपड़ा मां बन गई हैं. प्रियंका ने अपने एक इंस्टाग्राम पोस्ट में खुद इस बात की पुष्टि की है. प्रियंका और निक जोनस को माता-पिता बनने का यह सौभाग्य सरोगेसी के जरिए मिला है। दोनों ने साल 2018 में ही शादी रचाई थी। सरोगेसी तकनीक के सहारे मां बननी वाली प्रियंका अकेली नहीं हैं। इससे पहले बॉलीवुड एक्ट्रेस प्रीति जिंटा, शिल्पा शेट्टी, शाहरुख खान, आमिर खान, करण जौहर, एकता कपूर और तुषार कपूर जैसे कई सितारे सरोगेसी की मदद से पैरेंट्स बन चुके है।
सरोगेसी में शिशु का लालन-पालन, मनोवैज्ञानिक विकास एवं स्तनपान
सरोगेसी से उत्पन्न हुए बच्चे का लालन-पालन तथा स्तन पान करवाने के चिकित्सा संबंधी मापदंडों का उल्लेख नहीं मिलता तो कुछ सवाल खड़े होते हैं कि सरोगेसी के बाद वह बच्चा अपनी जैविक मां से कैसा व्यवहार करेगा? सिगरेट मदर से कितना भावात्मक लगाव रखना शुरू करता है? सरोगेसी के बाद स्तनपान कौनसी मां करवाएगी? हालांकि यह भी बड़ा सवाल है कि अगर स्तन पान जैविक मदर करवाएं तो बिना गर्भधारण स्तनों की ग्रंथियों से दूध कैसे बनेगा? हालांकि चिकित्सा तकनीक में कुछ असभंव नहीं है। इन सब के बावजूद एक संदेह तो बना रहता है कि सामान्य बालक तथा सिरोगेसी से जन्में बालक की शारीरिक संरचना , समझ ,संवेगात्मक और बहुमुखी विकास में अन्तर तो नहीं रह जाएं। इन सब बातों में बहुत से पहलु जिम्मेदार होते हैं जिसमें सरोगेट मदर का स्वास्थ्य खान-पान, डोनेट किए गए शुक्राणु और अंडाणु का जिनेटिक्स सिस्टम, कृत्रिम निषेचन की प्रक्रिया तथा सावधानियां आदि आदि। अगर स्तन पान और परवरिश की बात करें तो कुछ विशेषज्ञ बताते हैं कि बच्चे को स्तन पान दो माताओं में से कोइ भी करवा सकती है जिसमें जैविक मां चाहे तो कुछ दवाईयों जिससे दूध बनाने वाली ग्रंथियों को सक्रिय किया जाता है। ऐसा बताया जाता है कि इसप्रकार से प्राप्त दोनों माताओं के दूध में पौष्टिक विषमता नहीं रहती है। इसके अलावा स्तन पान के विभिन्न तरीके है जो दम्पत्ति को योग्य लगे वो स्तेमाल कर सकते हैं। इसके बाद जब शिशुकाल के आरंभ तथा बाल्यावस्था के प्रवेश में बच्चे धीरे-धीरे सिरोगेट मदर का साथ छोड़ देते हैं। उसके बाद दम्पत्ति अपने बच्चे के विकास और लालन-पालन के लिए उचित वातावरण का निर्माण करते हैं। हम मानव जो प्रकृति के साये में पलकर अचानक वैज्ञानिक दौर में आर्टिफिशियल युग निर्माण कर रहे हैं जिसमें कुछ बातें समझना और बताना बहुत विस्मय और कठिन है कि आखिर बिना शारिरिक संबंधो से जन्में बच्चे के शारीरिक लक्षणों तथा जीनोम सिस्टम में क्या बदलाव होगा। वह शिशु जन्म लेते समय अपने दिमाग़ या संवेदी सिस्टम में सिरोगेट मदर के स्पर्श को किस रूप में स्वीकारेगा। इस प्रकिया के बाद वह बच्चा अपनी जैविक मां से कैसे वात्सल्य और ममतत्व को महसूस करेगा यह सब बातें अपने आप में दिलचस्प और गंभीर चिंतन के विषय है। मनोविज्ञान तथा मानव एनाटॉमी का वृहद विषय है। लेकिन सरोगेसी के बाद वह सब कुछ सामान्य हो जाता है। बच्चों के विकास तथा विभिन्न प्रकार के क्षेत्र में वो सभी मानदंड अन्य बच्चों की तरह समान हो जातें हैं। लेकिन चिकित्सा जगत और विज्ञान के करिश्माई युग में हम मानव इस प्रकृति के नियमों में के विपरित हैरत करने वाले प्रयोग कर रहे हैं। जो अपने आप में बहुत बड़ा विषय है जिसके परिणाम और भविष्य के स्वरूप का किसी को बहुत कम अनुमान है।
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