legal Minimum Age of Marriage महिलाओं के विवाह की न्यूनतम आयु अब होगी 21 वर्ष -प्रतिकात्मक फोटो |
महिला न्युनतम विवाह आयु में 3 साल की बढ़ौतरी एक सामाजिक एवं व्यक्तित्व मुद्दा
ताजा सुर्खियों में आज बात करते एक ऐसे मुद्दे की जो आज बहस योग्य है बता दें कि हाल ही में मोदी सरकार ने एक बड़े बदलाव का फैसला किया है वैसे तो वर्तमान सरकार करिश्माई फैसले लेने में पोपुलर है ऐसे कई फैसले मोदी सरकार ले चुकी है जिसमें कुछ विवादित भी रहे हैं। हाल ही में सरकार ने महिलाओं के लिए शादी की न्यूनतम उम्र (legal Minimum Age of Marriage) को लेकर बड़ा फैसला लेने की तैयारी में है।
केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने हाल ही लोकसभा में "बाल विवाह निषेध (संशोधन) विधेयक, 2021" पेश किया, जो सभी धर्मों में महिलाओं के लिए विवाह की आयु 18 साल से बढ़ाकर 21 साल करने के प्रावधान का प्रस्ताव करता है।
इस प्रकार यह विधेयक भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम 1872, पारसी विवाह और तलाक अधिनियम 1936, मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) आवेदन अधिनियम 1937, विशेष विवाह अधिनियम 1954, हिंदू विवाह अधिनियम 1955, विदेशी विवाह अधिनियम 1969 में विवाह के पक्षकारों की आयु के संबंध में दिए गए प्रावधानों में संशोधन करेगा।
बता दें कि महिलाओं की शादी न्युनतम उम्र 18 वर्ष से बढ़ाकर 21 साल करने के प्रस्ताव को केंद्रीय कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने 15 अगस्त 2020 को इस प्रस्ताव की घोषणा करते हुए इसकी जानकारी भी दी थी।
हम जानते हैं कि वर्तमान में देश में पुरुषों के लिए शादी marriage की न्यूनतम उम्र 21 वर्ष है, जबकि महिलाओं के लिए 18 वर्ष है। उसी तरह भारत में व्यस्क होने तथा मताधिकार की न्यूनतम आयु या कानुनी आयु 18 वर्ष है।
आज इस मुद्दे को विस्तार से समझने की कोशिश करते हैं कि क्या भारत में विवाह की आयु संबंधी यह बदलाव क्यों किया जा रहा है? इससे महिलाओं को का फायदे हैं? महिलाओं के विवाह की न्यूनतम आयु कितनी होनी चाहिए? आइए जानते हैं कि भारत में विवाह आयु को लेकर ऐसे बदलाव कब कब हुए हैं? तथा यह बदलाव किन किन मायनों में सही है? यह भी जानेंगे कि विवाह आयु बढ़ाने से कोई समस्याएं उत्पन्न तो नहीं होगी? हालांकि
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महिलाओं की शादी की उम्र बढ़ाने के फैसले के पीछे उन्हें स्वस्थ्य और कुपोषण से बचाने का तर्क दिया है।
क्यों बढ़ाई जा रही है विवाह की न्यूनतम आयु सीमा क्या है फायदे और तर्क?
भारत में पहले भी आयु सीमा संबंधी महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं जनस्वास्थ्य विभाग तथा विभिन्न आयोगों की सिफारिशों को मध्यनजर रखतें हुए तथा मानव स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की योजनाओं में समाज सुधार मानकों के अनुरूप यह बदलाव किए जाते हैं। जिसके लिए प्रस्ताव लाया जाता हैं।
हाल ही में महिलाओं के विवाह की आयु में बदलाव का मामले के एक समिति को कार्य सौंपा था। यह समिति
समता पार्टी की पूर्व अध्यक्ष जया जेटली की अध्यक्षता में बनाई गई, हाल ही में एक टास्क फोर्स का गठन किया गया नीति आयोग के सदस्य डॉक्टर वीके पॉल जो भी इस टास्क फोर्स के सदस्य थे। इनके अलावा स्वास्थ्य और परिवार कल्याण, महिला तथा बाल विकास, उच्च शिक्षा, स्कूल शिक्षा तथा साक्षरता मिशन और न्याय तथा कानून मंत्रालय के विधेयक विभाग के सचिव टास्क फोर्स के सदस्य थे। गत साल दिसंबर में ही इस इस टास्क फोर्स ने अपनी रिपोर्ट दी और बताया कि पहले बच्चे को जन्म देते समय बेटियों की उम्र 21 साल होनी चाहिए। विवाह में देरी का परिवारों, महिलाओं, बच्चों और समाज के आर्थिक, सामाजिक और स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। जया जेटली की अध्यक्षता में बनाई गई समिति को यह कार्य सौंपा गया कि एक रिपोर्ट तैयार की जाए जिसमें महिलाओं में कुपोषण, शिशु मृत्यु दर, मातृ मृत्यु दर, एनीमिया और अन्य सामाजिक मानकों तथा विवाह की न्यूनतम आयु सीमा आदि का अध्ययन किया जा सके। इस समिति ने देश के 16 विश्वविद्यालयों में वयस्क युवाओं से इस मामले में राय ली तथा दूरदराज व ग्रामीण क्षेत्रों के युवाओं की सलाह लेने के लिए 15 गैरसरकारी संगठनों की सहायता ली गई। सभी धर्मो के युवाओं से सलाह लेने के बाद समिति ने एक रिपोर्ट तैयार कर सौंपी जिसमें उन्होंने सुझाव दिया कि महिलाओं के लिए विवाह की न्यूनतम आयु को 18 से बढ़ाकर 21 वर्ष करना चाहिए जिससे उनके स्वास्थ्य और पोषण को बेहतर बनाया जा सके।
आजादी के बाद भारत ने विवाह की न्यूनतम आयु और बदलाव
भारत में लड़कियों की शादी की उम्र को लेकर काफी लंबे समय से बहस होती रही है। बाल विवाह जैसी प्रथा पर रोक के लिए आजादी के पहले भी कई बार लड़कियों की शादी की उम्र को लेकर बदलाव किया गय थे।
1927 में ब्रिटिश सरकार ने कानून के माध्यम से 12 वर्ष से कम आयु की लड़कियों के साथ विवाह को अमान्य घोषित कर दिया, हालाँकि राष्ट्रवादी आंदोलन के रूढ़िवादी नेताओं द्वारा ब्रिटिश सरकार के इस कानून का काफी विरोध किया गया, क्योंकि वे इस प्रकार के कानूनों को हिंदू रीति-रिवाज़ों में ब्रिटिश हस्तक्षेप के रूप में देखा रहे थे।
हालांकि आजादी से पहले लड़कियों की शादी की उम्र को लेकर अलग-अलग न्यूनतम आयु तय की गई थी लेकिन कोई ठोस कानून न होने से 1927 में शिक्षाविद्, न्यायाधीश, राजनेता और समाज सुधारक हरबिलास शारदा ने बाल विवाह रोकथाम के लिए एक विधेयक पेश किया। विधेयक में शादी के लिए लड़कों की उम्र 18 और लड़कियों के लिए 14 साल करने का प्रस्ताव था।
वर्ष 1929 में बाल विवाह निरोधक अधिनियम के माध्यम से महिलाओं और पुरुषों के विवाह की न्यूनतम आयु क्रमशः 14 और 18 निर्धारित कर दी गई थी। वर्ष 1949 में संशोधन के माध्यम से महिलाओं के लिये विवाह की न्यूनतम आयु बढ़ाकर 15 वर्ष कर दी गई।
1929 में यह कानून बना जिसे शारदा एक्ट के नाम से जाना जाता है। 1978 में इस कानून में संसोधन हुआ और लड़कों की शादी की न्यूनतम उम्र 21 और लड़कियों के लिए 18 साल कर दी गई। आजादी के बाद हुए इस महत्वपूर्ण बदलाव के बाद भारत ने महिला और पुरुष के विवाह संबंधी आयु से लम्बे समय तक बदलाव नहीं किया गया। लेकिन बाल-विवाह जैसी समस्याओं को मध्यनजर रखतें हुए 2006 में बाल विवाह रोकथाम कानून लाया गया जिससे तय न्युनतम आयु से पहले विवाह नहीं किया जा सके।
भारत की भौगोलिक स्थिति के अनुसार प्राकृतिक रूप से परिपक्वता और प्रजनन क्षमता
प्रजनन एक सर्वोत्कृष्ट जैविक प्रक्रिया है, इसलिए सभी और प्रजनन विश्लेषणों को जीव विज्ञान के प्रभावों पर विचार करते हुए भारतीय जलवायु एवं यहां के लोगों में परिपक्वता तथा जनन क्षमता का विकास ध्रुवीय एवं ठंडे प्रदेशों से तेजी गति से होता है इसलिए हमें विवाह जैसे सामाजिक व्यवस्थापक रिश्तों को हमारे देश की भौगोलिक स्थिति के अनुसार तय करना चाहिए। विशेषकर भारत और भू-मध्य रेखा के आस पास उष्ण तथा शीतोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में परिपक्वता और प्रजनन क्षमता जल्दी विकसित हो जाती है दूसरी तरफ बेहतर खान-पान तथा उच्च स्तर की जीवनशैली से युवक और युवतियां औसत उम्र से पहले यौवन हासिल कर लेते हैं। जिससे वे एक औसत उम्र के आसपास शारीरिक संबंध स्थापित करना शुरू कर देते हैं। मानव विकास तथा चिकित्सा संबंधी अध्ययनों के अनुसार आमतौर पर 20 से 29 साल की उम्र में महिलाएं सर्वाधिक जननक्षम (फर्टाइल) होती हैं, महिलाओं में 30 की उम्र के आसपास प्रजनन क्षमता कम होने लगती है। 35 साल की उम्र के बाद तो यह और अधिक तेजी से घटने लगती है। जैसे-जैसे महिला की उम्र बढ़ती जाती है, उसके गर्भवती होने की संभावना घटती जाती है और प्रजनन अक्षमता (इनफर्टिलिटी) उत्पन्न होने की संभावना बढ़ती जाती है। इसलिए कुछ युवा जल्दी शादी करते हैं तथा अपने पहले बच्चे के लिए लम्बा वक्त लगाकर वैवाहिक जीवन का आनन्द लेते हैं इन लोगों के लिए शादी की उम्र महिला 18 तथा पुरूष 21 ठीक है दूसरी तरफ ग्रामीण इलाकों में लड़कियों की शादी जल्दी की जाती है तथा उन्हें उचित तथा बुनियादी शिक्षा नहीं मिलती है। अशिक्षा और सेक्सुअल जानकारी के अभाव से वे जल्दी संतान उत्पन्न कर देते हैं जिससे परिवार नियोजन करने में समस्या आने लगती है।
हालांकि 88% देशों ने शादी के लिए न्यूनतम उम्र 18 वर्ष रखी है लेकिन आधे से ज्यादा देश माता-पिता की इजाजत पर लड़कियों की शादी की छूट इससे पहले ही दे देेते हैं।
प्रजनन क्षमता की बात करें तो सबसे आगे गर्म पट्टी के देश है जिसमे अफ्रीका अव्वल है यहां प्रति महिला 4.7 बच्चों में उच्चतम प्रजनन क्षमता वाला क्षेत्र बना हुआ है। यूरोप में प्रति महिला 1.6 बच्चों की प्रजनन क्षमता सबसे कम है। एशिया और लैटिन अमेरिका और कैरिबियन दोनों में प्रति महिला 2.2 बच्चे की कुल प्रजनन क्षमता है, इस प्रकार हम कह सकते हैं कि प्रत्येक देश के भीतर सामाजिक संरचना, धार्मिक विश्वास, आर्थिक समृद्धि और शहरीकरण के जन्म दर के साथ-साथ गर्भपात दर को प्रभावित करने की संभावना है, विकसित देशों में आर्थिक संपन्नता से जुड़े जीवनशैली विकल्पों के कारण कम प्रजनन दर होती है जहां मृत्यु दर कम होती है, जन्म दर नियंत्रण में होती है।
हालांकि भारत में महिलाओं की शादी की न्यूनतम आयु सीमा बढ़ाने के फैसले के सही या ग़लत की बात करें तो हमें समझना चाहिए कि इस विषय पर अध्ययन करने के लिए भारत सरकार द्वारा पूर्व सांसद जया जेटली की अध्यक्षता में एक टास्क फोर्स का गठन किया गया था। इस टीम ने महिलाओं की मां बनने की क्षमता। वर्तमान परिवेश और महिलाओं से जुड़े सभी मुद्दों पर विचार करने के बाद। लड़कियों की शादी की उम्र में वृद्धि करने का प्रस्ताव दिया था। इसलिए औसतन कोई समस्या सामने नहीं आएगी लेकिन परिपक्वता और प्रजनन क्षमता की असमानता के चलते तथा ग़रीबी के कारण कुछ लोग कम उम्र में विवाह करने को मजबूर होंगे तो ऐसे मामलों में फर्जीवाड़ा और भ्रष्टाचार का बोलबाला शुरू हो जाएगा। तो दूसरी तरफ शारीरिक और लैंगिक रूप से व्यस्क हो चुके युवा लीव एंड रिलेशनशिप के शिकार हो जाएंगे।
महिलाओं के विवाह की न्यूनतम आयु 21 वर्ष होने के फायदे
भारत में अब महिलाओं की न्यूनतम विवाह उम्र को 18 से 21 करने जा रही है तो आइए हम जानते हैं कि इससे क्या क्या फायदे है?
विशेषकर भारत के ग्रामीण क्षेत्रों की बात करें तो यहां बाल-विवाह जैसी कूप्रथा आज भी प्रचलित है विभिन्न पौराणिक मान्यताओं और रूढ़ियों के चलते लाखों बाल-विवाह या 18 वर्ष से पहले शादियां होती है जिससे यहां कि लड़कियां कम उम्र में गर्भधारण कर लेती है जिससे उनके स्वास्थ्य को विभिन्न तरह के ख़तरे उत्पन्न हो जाते हैं। दूसरी तरफ इससे शिशु मृत्यु दर में भी बढ़ोतरी होती है। हालांकि 18 वर्ष की आयु में लड़कियों का विवाह होने के बाद भी अगर वे अपने स्वास्थ्य और केरियर के प्रति जागरूक रहते हुए पहली संतान 25-26 वर्ष में उत्पन्न करें तो कोई समस्या नहीं है।
लेकिन भारत कुछ राज्य जहां आदिवासी बहुल जनसंख्या शिक्षा ,स्वास्थ्य और रोजगार में पिछड़ी हुई है वहां लड़कियों कि शादी 18 वर्ष में या इससे कुछ वर्ष पहले शादी कर दी जाती है जिससे लड़कियां उच्च शिक्षा से वंचित रह जाती है। 18 वर्ष की आयु में अधिकतर लड़कियां हायर सेकेण्डरी स्कूल ही पास कर पाती है फिर उनका विवाह होने से उनकी आगे की पढ़ाई छूट जाती है। स्वास्थ्य एवं शारीरिक ज्ञान के अभाव से 19-20 की उम्र में मां बन जाती है जिससे वह नौकरी के लिए आज के कठिन प्रतियोगिता वाली परीक्षाओं की तैयारी नहीं कर पाती है जिससे नौकरशाही तथा अन्य सेवाओं में महिलाओं का अनुपात कम और असमान हो जाता है। अगर महिलाओ की न्यूनतम वैवाहिक आयु 21 वर्ष होती है तो उनको हायर सेकंडरी के बाद उच्च शिक्षा प्राप्त करने के अवसर मिल जायेंगे तथा वे किसी प्रतियोगी परीक्षा को पास कर अपने जीवन को आत्मनिर्भर बना सकती है। आज महिलाएं पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही है तो क्यों नहीं महिलाओं को भी पुरूषों की तरह उच्च शिक्षा प्राप्त कर अपने मनचाहे केरियर का निर्माण कर सकती हैं।
वाकई यह महिला सशक्तिकरण की ओर एक और अच्छा कदम है जिससे महिलाओं को स्वतंत्र रूप से अपने भविष्य पर सोचने के लिए तीन वर्ष अतिरिक्त समय मिलेगा, बाल विवाह पर भी पूर्ण रूप से विराम लग सकेगा।
महिलाओं के विवाह की न्यूनतम आयु 18 से 21 वर्ष होने के नुकसान
भारत सहित विश्व के लगभग 88 फीसदी देशों में महिलाओं के विवाह की आयु 18 वर्ष है फिर कुछ देश है जहां महिलाओं की शादी 18 वर्ष से पहले कर दी जाती है जिसके की कारण हो सकते हैं। हालांकि विश्व में जलवायु के अनुसार अलग-अलग क्षेत्रों में परिपक्वता और यौवनारंभ-यौवनांत का गणित अलग अलग भू-मध्य रेखा के दोनों कटिबंधीय क्षेत्रों में जहां गर्म क्षेत्र है वहां प्रजनन क्षमता अधिक होती है तो कुछ विकसित शहरों में जहां अच्छे खान पान व उच्च जीवन शैली के कारण लड़कियां कम समय में शारीरिक विकास पूर्ण कर लेती है तो उनके लिए 18 वर्ष में शादी शारीरिक रूप से सही हो सकती है। ऐसा नहीं होने पर युवा अपने यौवन की चरम सीमा पर
प्रि मेटर्नल सेक्स तथा अवैध शादियों के शिकार होने लग जायेंगे । मनोविज्ञान कहता है कि सेक्स एक प्राथमिक शारिरिक आवश्यकता है इसलिए प्राचीन कहावतों में माना गया है कि युवा जब अपने यौवनकाल के चरम पर ह़ोता है तो वो समय विवाह योग्य माना जाता है। आज सूचना प्रौद्योगिकी का युग है तो स्वाभाविक तौर पर हर प्रकार की समझ जल्दी विकसित होगी तो दूसरी और सोशल मीडिया और इंटरनेट का युग युवाओं को समय से पहले ही सेक्सुअल से जुड़े मानसिक व्यवहार से परिचित करवाने का काम कर रहा है। दूसरी तरफ युवा पीढ़ी शादी से पहले सेक्स व लिव इन रिलेशनशिप को सही मानने लगी है आज का युवा स्वच्छंद होकर रहना चाहता है। इसलिए अगर शादी के समय को जबरन कानुनी तौर पर बढ़ाया जाएगा तो अवैध विवाह,लिव एंड रिलेशनशिप तथा अवैध संतान उत्पन्न करने के जटिल मामले सामने आ सकते हैं जिससे विवाह जैसे पवित्र संस्कार का औचित्य ख़त्म हो जाएगा।
दूसरी तरफ गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले लोगों में बेटियों का पालन पोषण तथा उनके लम्बे समय का शिक्षा का खर्च गरीब पिता वहन नहीं कर सकते इसलिए पिता चाहेगा कि वह 18 वर्ष के आस पास अपने बेटियों की शादी कर दें। भारतीय संस्कृति तथा कुछ पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सामाजिक व्यवस्था में कुछ मापदंड बनाएं गये है उन मापदंडों में शादी की आयु अधिक होना की सामाजिक जीवन के लिए उचित नहीं माना जाता है। हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि 18 वर्ष में शादी होने के बाद भी पढाई में अड़चन कोई उचित कारण नहीं है। बहुत सी महिलाएं शादी के बाद भी उच्च शिक्षा प्राप्त करती है। भारत के कुछ क्षेत्रों में लोगों का मानना है कि परिपक्व आयु में शादी करने पर भी बाल विवाह कहलाना उचित नहीं है। जबकि ऐसा ना करने पर पिता पाप का भागीदार कहलाता है। दूसरी तरफ गरीबी, अशिक्षा आदि अभावों में जीने वाली ग्रामीण आबादी 18 वर्ष के कानुनी मानदंड के समय में भी बड़ी मात्रा में बाल विवाह करती रही है तो इसे 21 वर्ष करने के बाद यह सिलसिला तो जारी रहेगा लेकिन भष्टाचार और राजनैतिक एप्रोच से अवैध शादियों का सिलसिला शुरू होगा जिससे भ्रष्टाचार आदि को बढ़ावा मिलेगा। तो दूसरी तरफ व्यस्क हो चुकी बेटियों का पिता चोरी चुपके शादियां करेगा। क्योंकि रूढ़िवादी समाज में व्यस्क बेटियों के पिता को मजबूर किया जाता है। ऐसी स्थिति में जन्म के आंकड़ों का फेरबदल होने लगेगा। जिससे कुछ कानूनी अड़चनें भी आयेंगी। जैसे विवाह पंजीयन, आधार अपडेशन, राशन कार्ड आदि आदि। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में वैसे भी बहुत बाल विवाह पहले से हो रहें हैं लोग विभिन्न मान्यताओं तथा पूर्वाग्रह में आकर बाल विवाह कर देते हैं। दूसरी तरफ ग़रीबी भी बाल-विवाह का मुख्य कारण रहा है एक मजदूर पिता अगर अपनी तीन चार बेटियों की शादी करनी चाहे तब अगर बड़ी बेटी 21 वर्ष की हो तथा अन्य बेटियां 19 व 18 वर्ष के आसपास हो तो वह ख़र्चे से बचने के लिए तीन बेटियों का विवाह एकसाथ करना चाहेगा इसी बीच राजस्थान जैसे राज्यों में शादी के बाद मुकलावा की प्रथा है इसलिए ऐसे रीति रिवाज तथा ग्रामीण क्षेत्रों के गरीब मजदूरों आदि के लिए यह बड़ी हुई आयु अच्छी साबित नहीं हो सकती है।
औवेसी ने किया विरोध बताया मुस्लिम पर्सनल लॉ पर अतिक्रमण
सरकार ने अब बाल विवाह निषेध कानून, 2006 में संशोधन करने का फैसला किया है। इस फैसले पर विपक्ष तथा आलोचक विभिन्न तर्क वितर्क से मौजूद सरकार पर विभिन्न आरोप लगा रहे हैं। एक मिडिया रिपोर्ट के मुताबिक मौजूदा भाजपा सरकार तीन तलाक के बाद, बाल विवाह निषेध (संशोधन) विधेयक, 2021, भारत को समान नागरिक संहिता की ओर ले जाने की रणनीति में एक और कदम हो सकता है। वहीं एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने महिलाओं के लिए शादी की न्यूनतम उम्र 18 से बढ़ाकर 21 करने के केंद्र सरकार के फैसले को 'हास्यास्पद' और 'विशिष्ट पितृत्ववाद' बताया है। उन्होंने इस बिल को मुस्लिम पर्सनल लॉ पर अतिक्रमण बताते हुए विऱोध जाहिर किया है। औवेसी कहते हैं कि महिलाओं की शादी की उम्र बढ़ाकर 21 करने का फ़ैसला मोदी सरकार ने लिया है। यह एक ख़ास पितृत्ववाद है, जिसकी हम सरकार से उम्मीद करते आए हैं। 18 साल के पुरुष और महिला समझौते पर हस्ताक्षर कर सकते हैं, व्यापार शुरू कर सकते हैं, प्रधानमंत्री, विधायक, सांसद चुन सकते हैं लेकिन विवाह नहीं कर सकते?" उनका मानना है कि जब 18 वर्ष में व्यस्क होने पर सभी अधिकार मिलते हैं तो जीवन साथी चुनने में सरकार दखल क्यों दें।
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