राजस्थान की स्थापत्य कला और संस्कृति अनुपम है राजस्थान में प्राचीन काल के दुर्ग महल तथा मन्दिर आज भी देशी व विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। राजस्थान के मरुस्थल या पहाड़ी क्षेत्रों में कहीं न कहीं स्थापत्य कला का उदाहरण देखने को मिल ही जाता है। राजस्थान में प्राचीन काल के मंदिर स्तूप दूर्ग तालाब बावड़ियां आदि दर्शनीय है तथा वे कला व संस्कृति के उत्कृष्ट नमुने है। राजस्थान के अकेले मेवाड़ में 84 दुर्ग है जिसमें 32 दुर्गो का निर्माण अकेले महाराणा कुम्भा ने करवाया था। राजस्थान में लगभग 250 दुर्ग है इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि राजस्थान में प्राचीनकाल की स्थापत्य कला कितनी शानदार रही होगी। राजस्थान में जलमहलों, कुआं बावड़ियों आदि का निर्माण भी बड़ी संख्या में। करवाया गया जो कला एवं स्थापत्य के साथ साथ मानव संसाधन के लिए भी महत्वपूर्ण थे। आज बात करते हैं राजस्थान के रेगिस्तान में बसे बाड़मेर जिले के बाटाडू गांव के एक कुएं की जो अपनी खास मूर्तिकला और खुबसूरत कलाकृति के लिए पूरे राजस्थान में प्रसिद्ध है।
यह कुआं बाड़मेर जिले के बायतु तहसील की ग्राम पंचायत बाटाडू में स्थित है यह ऐतिहासिक कुआँ एक समय क्षेत्र के आमजन के लिए जलापूर्ति के साथ ही गौवंश की प्यास बुझाने का मुख्य स्त्रोत रहा है।
रावल गुलाबसिंह ने करवाया था निर्माण
बाड़मेर के सिणधरी के तत्कालीन शासक रावल गुलाबसिंह जी ने इस खुबसूरत कुएं का निर्माण करवाया था बाटाडू के इस ऐतिहासिक कुएं की लम्बाई 60 फिट, चौड़ाई 35 फिट, ऊँचाई 6 फिट और गहराई 80 फिट है। कुएँ की उत्तर दिशा में 5 फिट गहरे एक कुण्ड में संगमरमर निर्मित पत्थर के स्टैंड पर बड़े आकार में गुरुड़ प्रतिमा बनी है, इस पर भगवान विष्णु अपनी सहधर्मिणी लक्ष्मी जी के साथ विराजित है, जो इस धरोहर का मुख्य आकर्षण है।
थार के जलमहल के रूप में है प्रसिद्ध
राजस्थान में इस कुएं को "थार का जलमहल" कहा जाता है। इस कुएँ पर प्रवेश के लिए मुख्य द्वार तथा एक निकासी द्वार बना हुआ है। दोनों द्वारों पर दो सिंह प्रतिमाएं लगी हुई है। इसके चारों ओर श्लोकों के साथ ही कई राजा-महाराजाओं और देवी-देवताओं की कलाकृतियां उकेरी हुई है। साथ ही यहां पर संस्कृत में उत्कीर्ण श्लोकों में गाय की महिमा का वर्णन किया हुआ है। स्थापत्य कला से परिपूर्ण यह जलतीर्थ स्थानीय आमजन के लिए दर्शनीय स्थल ही नहीं अपितु आस्था का स्थल भी है। यहां प्रत्येक सोमवार को पूजा-अर्चना के साथ मेला लगता है। इस कुएं पर बनी गुरुड़ की प्रतिमा दूर से इस कुएं की खूबसूरती का वर्णन करती है। इस गुरुड़ की प्रतिमा के ठीक नीचे एक श्लोक उकेरा गया है। जो इस प्रकार है।
गरुड़ चढेनें गोविंद आया , आया अंतरजामीभक्त उद्धरण पधारो म्हारी गऊवो नो स्वामी
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