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वीर तेजाजी |
वीर योद्धा गौरक्षक कुंवर तेजा जी महाराज
वीर तेजा जी राजस्थान के इतिहास के प्रसिद्ध महापुरुष, लोकदेवता, सूरवीर तथा गौ रक्षक माने जाते हैं। धोलिया जाट नाम से प्रसिद्ध वीर तेजाजी जाटों सहित सभी जातियों के लिए श्रद्धा तथा आराध्य देव है। लीलण इनकी घोड़ी का नाम था। खरनाल नागौर जिले में तेजाजी का भव्य मंदिर है। यहां विशाल मेला भरता है। वीर तेजाजी लोक देवता के रूप में मारवाड़ , शेखावाटी तथा राजस्थान के प्रत्येक अंचल में प्रसिद्ध है।
वीर तेजाजी का जीवन परिचय Veer teja ji ka Parichay
इनका जन्म 1074 ई. में, माघ शुक्ल 14 को खड़नाल (Kharnal) (Nagour नागौर) में हुआ। इनके पिता ताहड़जी/बक्साराम जी थे जो धौल्या गौत्र के नागवंशीय जाट थे। राजकंवरी इनकी माता थीं। पेमलदे Pamalde इनकी पत्नी थीं जो पन्हेर Panher (अजमेर) के रामचन्द्र की पुत्री थीं। तेजाजी के घोड़ी का नाम लीलण सिणगारी था। तेजाजी के पुजारी को घोड़ला कहते हैं जो सांप काटे व्यक्ति का जहर मुंह से चूसकर निकालता है। हल जोतते समय किसान तेजाजी के गीत गाता है जिन्हें तेजाटेर कहते हैं। तेजाजी ने जड़ीबूटियों के माध्यम से लोगों का इलाज किया। तेजाजी ने गौमूत्र व गोबर की राख से साँप के जहर का उपचार किया था।
तेजाजी का परिवार
भाई-बहन: राजल (बहन) Rajal
माता-पिता: ताहड़ देव Tahar de (पिता); रामकंवरी Rajkanwary (माता)
सवारी: लीलण (घोड़ी) Lilan /leelan
संबंध: देवता भगवान शिव के ग्यारहवें अवतार
वीर तेजाजी के अन्य नाम
तेजाजी को गौरक्षक, नागों के देवता, काला-बाला के देवता, कृषि कार्यो उपकारक देवता, धौलियावीरा के नाम से जाना जाता है। तेजाजी ने लांछा गूजरी/हीरा गूजरी की गायों को मेर/मीणा जाति से छुड़ाया था। लाछा गुजरी की भी छतरी है जो नागौर में स्थित है।
वीर तेजाजी का मंदिर तथा मेला खरनाल
भाद्रपद शुक्ल दशमी को तेजा दशमी आती है जिस दिन तेजाजी का मेला भरता है। राजस्थान सुप्रसिद्ध पशु मेला भी खरनाल में भरता है। यह मेला लोक देवता वीर तेजाजी की याद में भाद्र शुक्ल दशमी (तेजा दशमी) को भरता है।
तलवार व जीभ पर सर्पदंश करते अश्वारोही तेजाजी का प्रतीक हैं। तेजाजी अजमेर व नागौर के प्रसिद्ध देवता हैं। तेजाजी के मंदिर को थान/चबूतरा कहते हैं। तेजाजी के जन्म स्थान खड़नाल पर 5 रु. की डाक टिकट जारी की गई है। तेजाजी के निधन का समाचार उसकी घोड़ी लीलण द्वारा पहुंचाया गया।
वीर तेजा जी की कथा Veer teja ji ki katha
तेजा जी जब युवा हो गये तब साथियों के साथ खेलने में व्यस्त थे । ज्येष्ठ आषाढ़ के महीनों में खूब बारिश होती है, सभी किसान अपने अपने खेतों में हल जोतने में लग जाते हैं । इसलिए कथा में कहा जाता है कि वीर तेजाजी की माता जी तेजा जी को कहती हैं;
"गाज्यो गाज्यो ज्येष्ठ आषाढ़ कंवर तेजा ओ।
लगतोड़ो तो गाज्यो सावण भादवो।
सूतो कांई सुखभर नींद कंवर तेजा रे।
थांरा तो सांइणा बीजे बाजरो।।
तेजाजी अपनी मां से हल और हाल तथा बैलों के बारे में पुछकर खेत जोतने चले जाते हैं। तेजाजी भरी दोपहरी तथा तेज गर्मी में बाजरा,मूंग,मोठ आदि बीजों की बुआई करते हैं। तेजाजी को जोर की भूख लगती है तथा बैल भी भूखे हों जातें हैं। ऐसे में तेजाजी अपनी भाभस या भाभी से भाता (पश्चिमी राजस्थान में खेत में लाया जाने वाला भोजन तथा पानी)लाने की राह देखते हैं।
घर का काम-काज करते करते तेजाजी की भाभीजी को देरी हो जाती है ऐसे में तेजाजी को गुस्सा आ जाता है।
तेजाजी भोजन नहीं करते हैं । तो तेजाजी की भाभीजी जी तेजा जी को मौसा या ताना मारकर कहने लगती है।
"मण पिस्यो मण पोयो कँवर तेजा रे।
मण को रान्ध्यो खाटो खीचड़ो।
लीलण खातर दल्यो दाणों कँवर तेजा रे।
साथै तो ल्याई भातो निरणी।
दौड़ी दौड़ी भातो ल्याई कंवर तेजा रे।
म्हारा गीगा न छोड्यो झूलै रोवतो।
म्हारे पे इतरी रीच क्यों करो लोड़या देवर ओ।
थारी तो परण्योड़ी बैठी बाप के।
लावे क्यू नही जाय!
थारी तो परण्योड़ी बैठी बाप के।"
भाभी का जवाब तेजाजी के कलेजे में चुभ गया। तेजाजी नें रास और पुराणी फैंकदी और अगली सुबह ससुराल जाने की कसम खा बैठे। तेजा को सगाई का पता नहीं था। इसलिए वे अपनी मां को पुछते है कि है , किसने मेरी सगाई की तथा किसने मुझे परणायो पीला पोतडा। तब मां कहती हैं कि बेटा काको सा बाबो सा करी सगाई तथा मामा जी ने परणाया पीला पोतडा गांव पनेर में रायमल जी की बेटी पेमल से तेरा ब्याह किया गया।
तभी तेजा अपनी घोड़ी लीलण को सजाने का आदेश देते हैं तथा ससुराल जाने की पूरी तैयारी करते हैं।
तभी तेजा जी की भाभी जी पहले बहिन राजल को लाने को कहते हैं। इसलिए वीर तेजाजी पहले अपनी बहिन राजल को लाने के लिए जाते हैं। राजल को पीहर लाने के बाद तेजा जी ससुराल जाने के लिए हठ करते हैं तथा जोशी को मुहूर्त देखने के लिए बुलाते हैं। सगुन देखने के लिए जोशी को बुलाते हैं। जोशी बार बार टीपणा देखते हैं लेकिन अपसगुन दिखाई देते हैं। जोशी जी कहते हैं कि मुहूर्त नहीं है। काल चौघड़िया दिख रहा है। तभी तेजा जी को गुस्सा आता है। वे जोशी को धमकी देते हुए कहते हैं "
कड़वा बोल ना बोलो जोशी ओ।
पाछा आया सू पटकूं जाजडी नखल्या पढ़ाऊं थारी खाल ।
डोड्या में टंगाऊ थारी खालडी"
जोशी कहते हैं कि अबकी तीज को ससुराल चले जाना लेकिन तेजाजी नहीं मानते हैं।
और कहते हैं कि"सूर न पूछे टीपणौ, सुकन न देखै सूर। मरणां नू मंगळ गिणे, समर चढे मुख नूर"
"तेजो तो हुमायो जासी सासरे"
अंधेरी रात में तेजाजी अपनी घोड़ी लीलण की सवारी करके ससुराल पनेर की और रवाना होते हैं। भगवान पर भरोसा रखते हुए मेह अंधेरी रात में लीलण के साथ रवाना हो जाते हैं।
बरसात और अंधेरी रात में वीर तेजाजी ससुराल की और जाते हैं। ससुराल पहुंच कर वन माली को पुकारते हैं।
" कि खिड़की खोलो वन माली ओ , बाहर भीगे बेटों जाट को"
तभी पेमल को पता चलता है तथा वह अपनी भाभी के साथ तेजा को देखने के लिए आतुर होती है। पेमल तभी अपनी सहेलियों को पता करने के लिए बगीचे में भेजती है फिर पेमल खुद तेजा जी को मिलने पहुंचती हैं। पेमल बहुत खुश होकर बगीचे की ओर चलती है।
पेमल अपनी भाभी जी को कहती हैं कि
"घणा दिना री आस बांटा जोवू परणा री आज तो सोने रो सूरज ऊगयो। "
पेमल बहुत सुंदर थी उसकी सुन्दरता का बखान कथा में इस प्रकार है ।
" कर सोलह सिंगार चाली बागां में पेमल गोरी ओ।
मन में हुमायो गावे मोरियो।
पायो ताई सोवे चुड़लो हाथा में हथफूल ओ।
पतलोड़े पुणचा सोवे कांकण डोरड़ा।
चाले मुदरी चाल
माथे बेवङलेरो भार ओ ।
ठोकर सूं ठुकरावे गजबण गागरो।
जब तेजाजी अपने ससुराल पहुंचते हैं उस समय उनकी सांस गाय से दूध निकाल रही थी। तेजाजी की घोड़ी जब घर में प्रवेश करती है तब गाय उछल जाती है तथा दूध गिरा देती है जिससे तेजाजी को देखे बिना ही सांस कड़वा शब्द बोल देती है। जिसमें वह कहती हैं कि "नाग रा खायोडा कुण हो ? सुंगता बिचकाया बालक बाछड़ा"
इस बात से नाराज होकर तेजाजी वापस चले जाते हैं। लेकिन पेमल के समझाने पर वे रात वहां ठहरते हैं। पेमल और पेमल की सहेलियां तेजा जी के हाथों में मेंहदी लगाती है। वीर तेजाजी और गौरी पेमल थोड़ी देर बातें करते हैं। तभी लांसा गुजरी रोती हुई पुकार करती है।
रात्रि के समय लाछा गुजरी की गायो को मेर जाति के चोर चुरा लेते है। तभी लांसा गुजरी की गायों के लिए वीर तेजाजी युद्ध करने के लिए रवाना होते हैं। तभी बीच रास्ते में नाग देवता अग्नि में दिखाई दिए तेजाजी ने उस नाग को अपने भाले से अग्नि से दूर किया तभी नाग देवता ने तेजा को डसने का वचन दिया लेकिन वीर योद्धा तेजा ने वादा किया कि यह युद्ध जीतने के बाद में वापस आऊंगा तभी डस लेना । वीर तेजाजी युद्ध जीतकर वापिस आते हैं तभी लहुलुहान होकर नाग देवता के पास पहुंचते हैं। तभी नाग देवता कहते हैं कि शरीर लहुलुहान होने के कारण पवित्र स्थान पर ही डसूंगा इसलिए तेजा जी ने अपनी जीभ पर डसने का आग्रह किया। अपनी सास के दिए हुए श्राप से यह वचन पूरा हुआ। तेजाजी को सांप डस लेता है। तेजाजी शहीद हो जाते हैं। लीलण घोड़ी घर जाकर यह खबर खरनाल गांव जाकर देती है। गांयो को छुड़ाते हुए तेजाजी शहीद हो जाते हैं। इसलिए तेजाजी को गाय का मुक्ति दाता कहते है।
वीर तेजाजी के आराध्य स्थल
माडवालिया (अजमेर) - यहाँ पर तेजाजी की मेर जाति से लड़ाई हुई।
सैंदरिया (ब्यावर, अजमेर ) - यहाँ पर तेजाजी को साँप ने डसा था।
सुरसूरा (किशनगढ़, अजमेर)- यहां पर 1103 ई. में तेजाजी का निधन हुआ। यहां स्थित तेजाजी की मूर्ति को जागीर्ण/जागती जोत कहते हैं।
भांवता ( नागौर ) - यहां पर साँप काटे व्यक्ति का गौमूत्र से इलाज होता है।
ब्यावर (अजमेर) - यहां पर तेजाजी का चौक स्थित है।
परबतसर (नागौर)- यहां भाद्रपद शुक्ल दशमी को तेजाजी का पशुमेला भरता है जो राजस्थान में आय की दृष्टि से सबसे बड़ा मेला है। यहां स्थित मन्दिर की मूर्ति को जोधपुर शासक अभयसिंह के समय सुरसूरा से लाया गया था। बांसी दुगारी (बूंदी)- यहां तेजाजी की कर्मस्थली है। खड़नाल (नागौर)- यहां तेजाजी का सबसे बड़ा पूजा स्थल है।
पनेर (अजमेर)- यहां स्थित मन्दिर में पुजारी माली जाति का होता है।
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