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Anjana Om Kashyap in USA |
अंजना ओम कश्यप क्यों हुई ट्रोल?
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अमेरिका दौरे के दौरान उनके साथ अमेरिका पहुची आजतक की पत्रकार अंजना ओम कश्यप Anjana Om Kashyap को ट्रोल होना पड़ा । आइए जानते हैं कि अंजना ने ऐसी क्या गलती की जिससे लोग ट्रोल करते हुए कह रहे हैं कि गंदी पत्रकारिता करते हुए अंजना की बेइज्जती हुई है।
क्या अंजना अमेरिका के लोगों के बीच पीएम मोदी का प्रचार प्रसार करने की कोशिश कर रही थी? क्या वैश्विक पत्रकारिता की गरिमा और मर्यादा के विपरित पत्रकारिता करने में उन्हें ट्रोल होना पड़ा? आइए जानते हैं कि क्या घटित हुआ जिससे अंजना को वो सम्मान नहीं मिला जो अक्सर भारतीय राजनीति में मिलता है।
दरअसल एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। जिसमें वह अमेरिका की अखबारों में पीएम मोदी के अमेरिका दौरे पर छपी खबरें ढूंढ रही थी। लेकिन उन्हें अखबारों में कुछ नहीं मिला। एक वीडियो में अंजना ओम कश्यप एक अमेरिकी शख्स से यह पूछ रही हैं कि क्या वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जानते हैं। जिसके जवाब में वह अमेरिकन शख्स कह रहा है कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नहीं जानता। इसी विडियो को सोशल मीडिया पर शेयर करते हुए यूज़र्स भी अंजना ओम कश्यप की आलोचना कर रहे हैं।
अंजना ओम कश्यप को सबसे अधिक बेइज्जती का सामना तब करना पड़ा जब स्नेहा दुबे से बातचीत करने पहुंच गई। दरअसल दुबे 2012 बैच की इंडियन फॉरेन सर्विस ऑफिसर स्नैहा दुबे ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में पाकिस्तान को कश्मीर मुद्दा उठाने पर मुंह तोड़ जवाब दिया था। वे भारत की प्रथम सचिव है। अंजना ओम कश्यप भारत में ओवेशी , सबीत पात्रा तथा अन्य नेताओं को धड़ाधड़ प्रश्न पूछने के मिजाज से स्नेहा दुबे के पास चली जाती है लेकिन इस दौरान स्नेहा ने ऑन कैमरा ही कुछ ऐसा किया, जिसकी वजह से अंजना सोशल मीडिया पर बुरी तरह से ट्रोल हो गईं। विडियो में साफ नजर आ रहा है कि स्नेहा दुबे से उन्हें साफतौर पर कुछ भी कहने से इनकार कर दिया और साथ ही अंजना को बाहर का रास्ता भी दिखाया। उन्होंने हाथ जोड़कर कहा कि प्लीज जो कहना है वो मैं पहले कह चुकी हूं। अंजना स्नेहा से UN के संबोधन पर रिएक्शन मांगती हैं।
अमेरिका तथा विदेशों में पत्रकारिता और बुद्धिजीवी लोग
अब हमारे सामने यह प्रश्न आता है कि आखिर अमेरिका में अंजना को भारत की तरह सम्मान और लोगों में उत्सुकता क्यों नहीं मिलीं? क्या भारत में पत्रकारिता तथा लोगों के रिएक्शन है वैसे ही अमेरिका में हैं?
क्या भारत की तरह विदेशों में राजनेताओं का अंध अनुसरण और प्रचार किया जाता है? इन प्रश्नों का उत्तर लगभग ना में ही मिलेगा। इसलिए अब समझने वाली यह बात है कि भारत में अधिकतर राष्ट्रीय चैनलों की पत्रकारिता सरकार की तरफ अधिक झुकी रहती है। तो दुसरी तरफ भारत में नेताओं के दौरे तथा भाषण आम अशिक्षित लोगों के लिए किसी उत्सव से कम नहीं होते हैं। इसलिए भारत में लोगों को राजनीतिक नेताओं की तरफदारी करना तथा उनके कार्यक्रमों में शामिल होना बहुत रौचक और उत्साह जैसा लगता है। दूसरी तरफ मिडिया भी लोगों की तरह नेताओं की कवरेज और अच्छा दिखाने की होड़ में रहती हैं। इसलिए आज भारत सहित काफी देशों में मिडिया और सरकार के खास रिश्ते बनते जा रहे हैं। क्योंकि मीडिया में वह शक्ति है कि वह अपनी हेडलाइन,डिबेट तथा चर्चाओं में लोगों के नजरिए को बदल सकती है। इसलिए आज कल सता में बनी सरकारों की चाटुकारिता करना लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ का रवैया बन गया है। अमेरिका जैसे देशों में अधिकतर लोग शिक्षित तथा अपने काम धन्धो में स्वय को व्यस्त रखते हैं। अधिकतर विकसित और सफल लोकतंत्र वाले देशों में लोग मिडिया की चकाचौंध और लुभावनी ऐंकरिंग को पसन्द नहीं करते हैं । वे सरल तथा अपने लिए उपयोगी बातों को ही ग्रहण करते हैं। कुछ विकासशील देशों में शासन द्वारा प्रायोजित मिडिया लोगों की मानसिकता को भड़काऊ बनाकर वोट बैंक का काम करती हैं।
लोकतंत्र में मिडिया और पत्रकारिता का काम केवल सूचना प्रसारण और निष्पक्ष मुद्दों को इंगित करना होता है। लेकिन जब मिडिया की भूमिका सियासी दांव-पेंच में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने लगी तो विभिन्न पार्टियों ने सता प्राप्त करने की लालचा में मिडिया कर्मियों को संरक्षण प्रदान करना शुरू कर दिया। इसका परिणाम यह कि आजकल शोषितों द्वारा होने वाले आंदलनों तथा विरोध में मिडिया सरकारों के लिए मोर्चा खोलती हुई दिखाई दी है।
इसलिए अंजना ओम कश्यप को करना पड़ा इस समस्या का सामना
अंजना ओम कश्यप के ट्रोल होने के पीछे कोई बड़ा कारण नहीं रहा ना ही उन्होंने कोई पत्रकारिता की गरिमा को तोड़ा। दरअसल बात वो ही थी कि स्नेहा दुबे ने उनके सवालों का जवाब देना उचित नहीं समझा। क्योंकि स्नेहा दुबे भारत की प्रतिष्ठित अफ़सर है। ऐसे प्रतिष्ठित एवं उच्च पदों पर आसीन वे विभिन्न अफसर मिडिया कर्मियों के अनर्गल सवालों का जवाब देना या तारीफ जैसे चर्चाओं में भाग लेना उचित नहीं समझते है। हालांकि उनके पास इतना वक्त भी नहीं होता है। किसी भी नेता की प्रतिष्ठा उसके कार्यों से बढ़ती है ना कि मिडिया द्वारा प्रमोट करने से इसलिए मिडिया का का काम सूचनाओं को आमजन तक पहुंचाना ही होता है। जिसका उद्देश्य केवल निष्पक्ष मिडिया तंत्र को बनाया होता है। ना कि किसी नेता के बारे में तथा उसकी प्रतिष्ठा की फीडबैक लेना। अंजना ओम कश्यप ने भी वैसा ही किया कि वह प्रधानमंत्री मोदी के बारे में आम नागरिकों को पूछने लग गई। तथा अखबारों की सुर्खियों में मोदी जी की खबरें ढूंढने लग गई। ऐसा संभव नहीं है कि हर अमेरिकी नागरिक माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पहचानें। हालांकि ऐसा कुछ नहीं हुआ जितना लोग ट्रोल करें। लेकिन अंजना ओम कश्यप जिस तरह अपने स्टुडियो में एंकरिंग करती है उसी अंदाज तथा विभिन्न एजेंडों पर आधारित पत्रकारिता का नमुना अमेरिका के लोगों के बीच पेश करना चा रही थी इससे यह साबित होता है कि पत्रकारिता का भी स्टेंडर्ड और उनकी अपनी गुणवत्ता होती है। ऐसा नहीं है कि मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय मिडिया किसी भी हद सवाल जवाब कर सकें। पत्रकारिता और एंकर की साख होती है उनकी गुणवत्ता होती है। उसी के अनुरूप उनकी एंकरिंग और रिपोर्टिंग होती है। आप अगर निम्न स्तर के मुद्दों तथा किसी आधारहीन चर्चा को बढ़ावा देंगे या किसी मुद्दे को ज्वलंत और आकृषित बनाने की कोशिश करते हैं तो वह पत्रकारिता निम्न दर्जे की होगी जिसमें बुद्धिजीवी तथा समझदार लोग भाग लेने में रुचि नहीं दिखायेंगे। कुछ ऐसे मिडिया मंच है जो गौण मुद्दों की बजाय निष्पक्ष और राष्ट्र हित के मुद्दों पर ही बात करते हैं। ऐसे पत्रकारों के सामने के लिए अच्छे नेताओं का सपना रहता है। इसलिए पत्रकारिता की गुणवत्ता , उद्देश्य, तथा लक्ष्य निष्पक्ष तथा लघु स्तर के होने चाहिए।
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