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Sunday, August 22, 2021

सदियों बाद अद्भुत महासंयोग भाई बहिन का पवित्र पर्व रक्षाबंधन 2021 शुभ मुहूर्त, नक्षत्र और पौराणिक महत्व

Rakshabandhan rakhi parv
Rakshabandhan Parv Rakhi tyohar Sanskrit Diwas


रक्षाबंधन राखी पर्व 2021


भाई बहिन के असीम प्रेम और विश्वास के पवित्र रिश्ते को अटूट और मजबूत धागों में बंधने का दिन रक्षाबंधन है जो कच्चे धागे में बंद कर जीवन भर रक्षा और प्रेम की भावना उत्पन्न करता है। भाई बहिन के लिए रक्षाबंधन किसी महोत्सव से कम नहीं है । रक्षाबंधन के दिन बहिनें खुशियों से झूम उठती है। इस दिन बहिनें अपने भाई की कलाई पर राखी बांध कर भाई के स्वास्थ्य और लम्बी उम्र की कामना करते हुए अपने भाई से स्वयं की रक्षा और रिश्तों को मजबूत करने का संकल्प दिलवाती है। भारतीय संस्कृति और सभ्यता में रक्षाबंधन का त्योहार पौराणिक कथाओं में भी मिलता है। भगवान विष्णु , भगवान श्री कृष्ण आदि के काल में रक्षा सूत्र बांधने का वर्णन मिलता है। रक्षाबंधन का संबंध संस्कृत से भी है इस दिन गुरुकुलों में प्रवेश लेने वाले छात्र अपने गुरुओं की कलाई पर रक्षासूत्र बांधते थे। मुगल काल में भी रक्षासूत्र बांधने का वर्णन मिलता है जब गुजरात के बादशाह बहादुर शाह ने चितौड़ पर हमला कर दिया था तो चितौड़ के शासक संग्राम सिंह या राणा सांगा की विधवा रानी कर्णवती ने मुगल बादशाह हुमायूं को राखी भेजकर मदद की गुहार लगाई थी। महाभारत काल में जब श्रीकृष्ण शिशुपाल का वध करते हैं, तब भगवान कृष्ण की अंगुली पर आदि चक्र की चोट लगने के दौरान द्रोपदी ने तुरंत अपनी साड़ी का एक सिरा फाड़कर कृष्ण जी की चोट पर बांध देती है भगवान श्री कृष्ण ने द्रोपदी को उनकी रक्षा का वजन दिया। इस प्रकार वो धागा भी एक रक्षा संकल्प के रूप में था। जिसका वचन भगवान श्री कृष्ण ने चीरहरण के समय पूरा किया था।
इस प्रकार रक्षाबंधन बहिन की रक्षा के संकल्प के साथ साथ प्रेम और मधुर रिश्ते का पवित्र त्योहार है।


रक्षाबंधन 2021 पर बन रहा है यह महा संयोग



वर्ष 2021 का रक्षाबंधन (Rakshabandhan) बहुत महत्वपूर्ण और रोचक है क्योंकि इस बार खास संयोग के साथ रक्षाबंधन का त्यौहार आया है जो अपने आप में दुर्लभ है इस बार रक्षाबंधन में 474 साल बाद महासंयोग बन रहा है। रक्षाबंधन का त्योहार श्रवण नक्षत्र में मनाया जाता है, लेकिन इस बार धनिष्ठा नक्षत्र में मनाया जाएगा। गुरु और चंद्रमा के एक राशि में होने से गज केसरी योग भी बन रहा है। सूर्य मंगल और बुध के साथ सिंह राशि में विराजमान रहेंगे। इस दिन शुक्र ग्रह कन्या राशि में होंगे। ग्रहों का ऐसा योग शुभ और फलदायी माना जा रहा है।
ज्योतिषविदों का कहना है कि ग्रहों की ऐसी स्थिति 474 साल बाद बन रही है। इससे पहले 11 अगस्त 1547 को ऐसा समय आया था जब धनिष्ठा नक्षत्र में रक्षाबंधन मनाया
इस बार भाई बहिन के पवित्र रिश्तों का त्योहार 
चार विशिष्ट योगों से परिपूर्ण है। यह महा योग पूरे 50 साल बाद बन रहा है। 50 साल बाद रक्षा बंधन के पर्व पर सर्वार्थसिद्धि, कल्याणक, महामंगल और प्रीति योग एक साथ बन रहें हैं। इसके पहले यह संयोग 1981 में एक साथ बने थे। इन चारों महा योगों से इस साल के रक्षाबंधन का महात्म्य बहुत अधिक बढ़ गया है। इस अद्भुत योग के मध्य भाई और बहन के लिए रक्षा बंधन की रस्म अति विशेष कल्याणकारी होगी।

नहीं रहेगा भद्रा का साया पूरे दिन मनाएं रक्षाबंधन


इस बार सभी बहिनों के लिए एक खुशखबरी है कि इस बार रक्षाबंधन विशेष संयोग के साथ बहुत शुभ नक्षत्र और समय के साथ आया है जिसमें नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव नहीं रहेगा। साल 2021 रक्षाबंधन के दिन भद्रा का साया नहीं रहेगा। बहनें सूर्योदय के बाद कभी भी अपने भाइयों को राखी बांध सकती हैं। लेकिन इससे पहले बहनों को चहिये कि वे राखी को भगवान तथा अपने इष्ट देवताओं को अर्पित करें तत्पश्चात भाइयों को राखी बांधें। धार्मिक मान्यता है कि ऐसा करने से भगवान एवं देवता प्रसन्न होते हैं और बहनों को मनवांछित वरदान देते हैं तथा भाइयों को अच्छा स्वास्थ्य और धन-दौलत प्रदान करते हैं।

राखी बांधने का सबसे शुभ मुहूर्त ( Shubh muhurt)


राखी बांधने का सबसे उत्तम मुहूर्त : 22 अगस्त 2021 को दोपहर 01 बजकर 42 मिनट दोपहर से शाम 04 बजकर 18 मिनट तक, राखी बांधना सबसे शुभ रहेगा।

रक्षा सूत्र बांधने समय उच्चारित करें यह मंत्र (Rakshabandhan Mantra)


येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।

तेन त्वां अभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।

अर्थ - जिस तरह महालक्ष्मी ने एक धागे से असुरराज बलि को बांध दिया था, उसी तरह का धागा मैं मेरे भाई को बांधती हूं। भगवान मेरे भाई की रक्षा करें। यह धागा कभी टूटे नहीं और आप हमेशा सुरक्षित रहें।

रक्षाबंधन की पौराणिक कथा भगवान विष्णु और राजा बलि


एक पौराणिक कथा है कि जब भगवान विष्णु (Bhagwan Vishnu)ने अपने वामन अवतार में दैत्यों के राजा बलि (Raha Bali)से तीन कदम भूमि मांगी थी उस मापते समय भगवान ने सारी सृष्टि अपने दो पैरों से नाप दी थी। तब तीसरा पैर रखने के लिए जगह नहीं थी तब बलि ने अपना सिर भगवान के आगे कर दिया। भगवान विष्णु ने बलि के इस दानी भाव से खुश होकर उसे पाताल लोक का राजा बना दिया और वरदान मांगने को कहा। तब राजा बलि ने वरदान मांगा कि खुद भगवान विष्णु ही उस पाताल लोक के पहरेदार बनकर उसकी रक्षा करेंगे। वरदान के कारण भगवान विष्णु को पाताल लोक का पहरेदार बनना पड़ा जिससे वे लम्बे समय तक वापिस नहीं आ पाए।
जब काफी दिनों तक भगवान विष्णु अपने वैकुंठ लोक नहीं पहुंचे तो देवी लक्ष्मी (Devi Laxmi);उन्हें छुड़ाने के लिए पाताल लोक चली गईं। वहां उन्होंने भेष बदलकर बलि से मुलाकात की और कहा कि मेरा कोई भाई नहीं है, मैं आपको रक्षासूत्र बांधकर अपना भाई बनाना चाहती हूं। राजा बलि मान गए। लक्ष्मीजी ने उन्हें रक्षासूत्र बांधा और भाई बना लिया। राजा बलि ने उनसे खुश होकर कुछ उपहार मांगने को कहा, तब देवी लक्ष्मी ने कहा कि वो भगवान विष्णु को अपने वरदान से मुक्त कर उन्हें अपने लोक जाने दें। राजा बलि ने अपना वचन पूरा करते हुए भगवान विष्णु को उनके वरदान से मुक्त कर दिया। इस प्रकार पौराणिक कथा में रक्षाबंधन का इतिहास बहुत पुराना है। 

विश्व संस्कृत दिवस Sanskrit Diwas

भारत मे हर त्योहार के साथ कोई ना कोई खास दिन होता हैं इस प्रकार रक्षाबंधन के साथ साथ संस्कृत दिवस भी मनाया जाता हैं आज भारत की सांस्कृतिक भाषा एवं सभी भाषाओं की जननी देव भाषा संस्कृत अपनी पहचान खो रही हैं इसलिए संस्कृत दिवस को भी विशेष रूप से मनाया जाना चाहिए जिससे लोगों को संस्कृत के प्रति प्रेम ओर सम्मान बढ़ें । हिंदू कैलेंडर के अनुसार हर साल सावन की पूर्णिमा को संस्कृत दिवस  मनाया जाता है। यह दिन 22 अगस्त को मनाया जाता है। इस साल भी यह पूर्णिमा के दिन 22 अगस्त यानी रविवार के दिन मनाया जाएगा। विश्व संस्कृत दिवस को विश्वसंस्कृतदिनम के नाम से भी जाना जाता है। विश्व संस्कृत दिवस सब पहले 1969 में मनाया गया था। यह दिन भारत के सबसे प्राचीन भाषा यानि संस्कृत को बढ़ावा देने के लिए इसके महत्व के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए यह दिन मनाया जाता है।देव भाषा का दर्जा रखने वाली संस्कृत भाषा अब अपना वजूद खोती जा रही है। भारत में भी अब इसको पढ़ने, लिखने और समझने वालों की संख्या बहुत कम है। समाज को संस्कृत की महत्ता और आवश्यकता याद दिलाने के लिए संस्कृत दिवस मनाया जाता है। ताकि समय के आगे बढ़ने के साथ लोग यह भूल न जाएं कि संस्कृत भी एक भाषा है।

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