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कजली तीज, बूढ़ी तीज या सातूड़ी तीज झुलों लोकगीतों और सुहागिन स्त्रियों का सबसे पवित्र तथा हर्षोल्लास का त्योहार |
Kajali Teej, Budhi Teej or Saturi Teej
भारत त्यौहारों मेलों और उत्सवों का देश है यहां हर एक त्योहार अपने आप में अनौखा है । सांस्कृतिक विविधता के यह रंग बिरंगे त्यौहार भारतीय सनातन सभ्यता मे चार चांद लगा देते हैं। आज बात करते हैं कजरी तीज , कजली तीज, बूढ़ी तीज या सातूड़ी तीज के बारे में जो भारत का एक महत्वपूर्ण त्योहार है । जो भाद्रपद में कृष्ण पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है।
यह त्यौहार उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और बिहार में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए निर्जला व्रत रखती है । मनचाहे वर की कामना के लिए अविवाहित लड़कियां भी इस दिन व्रत रखती हैं। कजरी तीज पर चंद्रमा को अर्घ्य देने की भी परंपरा है। इस त्यौहार के अनेक उद्देश्य और रिति-रिवाजों में मनाया जाता है। यह दिन सुहागिन स्त्रियों के लिए किसी उत्सव से कम नहीं है। इस दिन सुहागिन स्त्रियां तथा हाल ही में विवाह के बंधन में बंधने वाली नव विवाहिताए अपने पीहर या मायके जा कर यह त्योहार मनाती है। बात करें राजस्थान या राजस्थान के पश्चिमी अंचल की तो यहां तीज त्योहार का बड़ा महत्व है। यहां नवविवाहिए सावन लगते ही अपने मायके आ जाती है। इस तीज को सातुड़ी तीज भी कहते हैं क्योंकि इस दिन नव विवाहित दुल्हे अपने ससुराल जाते हैं तथा दुल्हे की सास अपने हाथों से स्वादिष्ट सातु बनाकर अपने जंवाई को खिलाती है इसलिए इस त्योहार को मारवाड़ में सातुड़ी तीज भी कहा जाता है। इस दिन सुहागिन तथा कन्याएं भी व्रत रखती है। सुहागिन स्त्रियां जहां संतान और पति की लंबी उम्र की कामना करती है वहीं अविवाहित लड़कियां अपने लिए सुयोग्य वर का वरदान भी मांगती है। इस दिन तीज माता की संवारी निकाली जाती है। गांवों में तालाबों के पास पेड़ों पर झुले डाले जाते हैं। पहले श्रावण में माता-पिता के घर लौटी नवविवाहित बेटियां खुशी से झूम उठती है तथा उनके भाई उन्हें झुला झुलाते है। हालांकि भारत में तीज के दिन का महत्व है जिसमें वैशाख शुक्ल तृतीया अक्षय तृतीया या आखातीज,तथा श्रावण मास में शुक्ल पक्ष तृतीया को हरियाली के रूप में मनाया जाता है। यह उत्सव महिलाओं का उत्सव है। सावन में जब सम्पूर्ण प्रकृति हरी भरी मनमोहक हो जाती है तो यह त्योहार झुलो और सावन के गीतों से बहुत मधुर रूप से मनाया जाता है।
कजरी तीज को नीमड़ी माता का होता है पूजन
भारत में हर एक त्योहार धर्म और देवी देवताओं से जुड़ा है तो भला तीज त्योहार किसी लोकदेवता के पूजन के बिना कैसे मनाया जाता हो इसलिए तीज को नीमडी माता,तीज माता तथा राधा कृष्ण,शिव पार्वती को याद किया जाता है। हिंदी पंचांग के अनुसार, भादों मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को कजरी तीज का व्रत रखा जाता है। विधिवत पूजा अर्चना तथा व्रत रख कर सभी स्त्रियों द्वारा यह त्योहार बड़े धूमधाम और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। साथ ही इस दिन सुहागिन महिलाएं अखंड सौभाग्यवती होने, संतान प्राप्ति और पति की लंबी आयु के लिए निर्जला व्रत रखती है और माता पार्वती की विधि विधान से पूजा करती है। इस त्योहार का इतिहास बहुत पुराना है ऐसा माना जाता है कि इसी दिन माता पार्वती ने भगवान शिव को अपनी 108 जन्म की कठोर तपस्या से प्राप्त किया था।
कजरी तीज की व्रत कथा
कजरी तीज की एक पौराणिक व्रत कथा है जो स्त्रियां व्रत छोड़ते समय या पूजा करते समय सुनाती और सुनती है। इस कथा में एक बार एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था। भाद्रपद महीने की करली तीज पर उसकी पत्नी ने तीज माता का व्रत रखा। उसने ब्राह्मण से कहा कि आज मेरा तीज माता का व्रत है और आप कहीं से चने का सातु लेकर आइए। ब्राह्मण ने कहा कि मैं सातु कहां से लाऊं। ब्राह्मणी ने कहा कि भले कैसे भी लाओ लेकिन मेरे लिए सातु कहीं ले भी लेकर आओ,रात का समय था और ब्राह्मण घर से सातु लेने के लिए निकला। वो साहूकार की दुकान में घुस गया। उसने चने की दाल, घी, शक्कर लेकर सवा किलो तोलकर सातु बना लिया और चुपके से निकलने लगा। उसकी आवाज सुनकर दुकान के नौकर जाग गए और चोर-चोर चिल्लाने लगे।
आवाज सुनकर साहूकार आया और उस ब्राह्मण को पकड़ लिया। फिर ब्राह्मण ने सफाई देते हुए कहा कि मैं चोर बल्कि एक गरीब ब्राह्मण हूं। मेरी पत्नी का आज तीज माता का व्रत है इसलिए मैं सिर्फ यह सवा किलो का सातु बना कर ले जा रहा था। जब साहूकार ने उसकी तलाशी ली तो उसे वाकई ब्राह्मण के पास से सातु के अलावा कुछ नहीं मिला। साहूकार ने कहा कि आज से तुम्हारी पत्नी को मैं अपनी धर्म बहन मानूंगा। साहूकार ने ब्राह्मण को सातु, गहने, रुपए, मेहंदी, लच्छा और बहुत सारा धन देकर ठाठ से विदा किया। सबने मिलकर कजरी माता की पूजा की।
इस प्रकार इस दिन से जुड़ी अनेक व्रत कथाएं प्रचलित हैं जो तीज का उपवास रखने वाली तीजनियां अक्सर पेड़ के नीचे बैठकर सुनती है तथा सुनाती है।
कजरी तीज की पूजा विधि
इस दिन सुहागन महिलाएं पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं जबकि कुंवारी कन्याएं अच्छा वर पाने के लिए यह व्रत करती हैं। सबसे पहले नीमड़ी माता को जल, रोली और चावल चढ़ाएं. नीमड़ी माता को मेंहदी और रोली लगाएं।नीमड़ी माता को मोली चढ़ाने के बाद मेहंदी, काजल और वस्त्र चढ़ाएं।इसके बाद फल और दक्षिणा चढ़ाएं और पूजा के कलश पर रोली से टीका लगाकर लच्छा बांधें। पूजा स्थल पर घी का बड़ा दीपक जलाएं और मां पार्वती और भगवान शिव के मंत्रों का जाप करें। पूजा खत्म होने के बाद किसी सौभाग्यवती स्त्री को सुहाग की वस्तुएं दान करनी चाहिए और उनका आशीर्वाद लेना चाहिए।
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