अमूर्त औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था formal operational stage 11–15 वर्ष
बाल विकास मनोविज्ञान में जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।
डॉ० जीन पियाजे (1896-1980) यह एक स्विस मनोवैज्ञानिक थे, जिन्होंने मानव विकास के समस्त पहलुओं को क्रमबद्ध तरीके से उजागर किया जिसे हम Piaget theory एवं जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास के नाम से भी जानते हैं।
पियाजे सर ने संज्ञानात्मक थ्योरी में बालक की चार महत्वपूर्ण अवस्थाओं को बहुत शानदार ढंग से विश्लेषित किया है। तीन अवस्थाओं के बारे पिछली पोस्ट में विस्तृत अध्ययन कर चुके हैं। तो आइए आज जानते हैं चौथी अवस्था के बारे में विस्तृत जानकारी जो अमूर्त संप्रत्य पर आधारित है। इसलिए संज्ञानात्मक विकास की चौथी अवस्था को अमूर्त या औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था कहा जाता है।
पियाजे की संज्ञानात्मक विकास की थ्योरी में सभी चार अवस्थाओं की विशेषताओं को पूर्ण तरीके से समझ लिया जाए तो बेहतर होगा। क्योंकि रीट या अन्य शिक्षक भर्ती परीक्षा में संज्ञानात्मक विकास से जुड़े प्रश्न आते हैं जिनमें सिद्धान्त एवं कथनों में अभ्यर्थियों में बहुत कंन्फ्यूज्न रहता है। अगर शिक्षा मनोविज्ञान और बाल विकास शिक्षा शास्त्र के सभी टापिक्स को ध्यानपूर्वक समझकर दिमाग में सरल तरीके से इनपुट करेंगे तो परीक्षा में आउटपुट बहुत ही शानदार और बेहतर आएगा।
औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था की आयु सीमा की बात करें तो जीन पियाजे ने अपने सिद्धांत में इसकी आयु 11से 15 वर्ष या इससे ऊपर मानी है।
बात करें संज्ञानात्मक विकास की चौथी अवस्था की तो
इसे अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था या औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था भी कहा जाता हैं। इसमे बच्चे मूर्त चिंतन के साथ-साथ अमूर्त चिंतन भी करने लगते हैं। अमूर्त का अर्थ हैं- प्रेम,सहानुभूति, न्याय,स्वतंत्रता आदि।अर्थात कोई बालक किसी की मृत्यु की खबर सुनता है तो दुःखी होता है या वेदना महसूस करता है। यहां किसी घटना या कहानी को पढ़कर उसकी विषय वस्तु या वर्णनात्मक घटना को मन में सोचता है। कहानी में सुखद अनुभूति होती है तो वह खुशी महसूस करता है दुःखद अनुभूति होती है तो वह दुखी महसूस करेगा। प्रत्यक्ष वस्तु या तथ्यों को अमूर्त चिन्तन कर अप्रत्यक्ष रूप से अनुबंध करता है।
औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था की विशेषताएं एवं व्यवहार
1. सांकेतिक रूप (Symbolic form) में मानसिक व्यवहार या संकार्य (Formal Operation)होने लगते हैं। वस्तुओं की तरह प्रत्ययों (Ideas) पर व्यवहार निष्पादित होते है।
2. स्थूल वस्तुओं एवं घटनाओं की अपेक्षा प्रत्ययात्मक अन्तर्वस्तु से तुलना, परस्पर विरोध, खोज एवं अनुभव करने लगता है।
3. उन सम्प्रदायों के लिए उपयुक्त संकेतों के बीच सम्बन्धों का अवबोध करने लगता है जिनका प्रत्यक्ष रूप में अनुभव किया गया है।
4. इस अवस्था में बालक अमूर्त तथ्यों या दिखाई नहीं देने वाले तथ्यों को जोड़कर ज्ञान को व्यवस्थित करता है।
5. इस अवस्था में बालक या व्यक्ति किसी नवीन तथ्यों या जानकारी को अपने पूर्व ज्ञान से जोड़कर व्यवस्थित करता है।
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