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मूर्त संक्रियात्मक अवस्था 7 से 11 वर्ष Concrete Operation Stage |
मूर्त संक्रियात्मक अवस्था 7 – 11 वर्ष Concrete Operation Stage
पियाजे सर ने संज्ञानात्मक थ्योरी में बालक की चार महत्वपूर्ण अवस्थाओं को बहुत शानदार ढंग से विश्लेषित किया है। दो अवस्थाओं के बारे पिछली पोस्ट में विस्तृत अध्ययन कर चुके हैं। तो आइए आज जानते हैं तीसरी अवस्था के बारे में विस्तृत जानकारी जो मूर्त संप्रत्य पर आधारित है। इसलिए संज्ञानात्मक विकास की तीसरी अवस्था को मूर्त संक्रियात्मक अवस्था कहा जाता है।
पियाजे की संज्ञानात्मक विकास की थ्योरी में सभी चार अवस्थाओं की विशेषताओं को पूर्ण तरीके से समझ लिया जाए तो बेहतर होगा। क्योंकि रीट या अन्य शिक्षक भर्ती परीक्षा में संज्ञानात्मक विकास से जुड़े प्रश्न आते हैं जिनमें सिद्धान्त एवं कथनों में अभ्यर्थियों में बहुत कंन्फ्यूज्न रहता है। अगर शिक्षा मनोविज्ञान और बाल विकास शिक्षा शास्त्र के सभी टापिक्स को ध्यानपूर्वक समझकर दिमाग में सरल तरीके से इनपुट करेंगे तो परीक्षा में आउटपुट बहुत ही शानदार रहेगा।
मूर्त संक्रियात्मक अवस्था की आयु सीमा की बात करें तो जीन पियाजे ने अपने सिद्धांत में इसकी आयु 7से 11 वर्ष मानी है।
मूर्त यानी जिसका कोई रूप हो, आकर हो, और रंग हो अर्थात जिसको हम देख सकते हैं, छू सकते हैं। इस अवस्था मे बच्चा मूर्त चिंतन करता हैं। जैसे – जब बच्चा कोई नया खिलौना देखता हैं तो उसके बारे में मूर्त चिंतन करता हैं। उसकी बनावट , उसका आकार और उसका रंग आदि।
मूर्त संक्रियात्मक अवस्था की विशेषताएं एवं व्यवहार
1. स्थूल वस्तुओं के उपयोग से तार्किक चिंतन करता है।
2. कम अहंकेन्द्रित और अधिक समाजीकृत बात करता है। 3. विकेन्द्रियता (Decentering) और प्रतिवर्गता (Reversibility) घटित होने लगती है।
4. परिवर्तनों एवं प्रक्रियाओं और अधिक जटिल स्थिर घटनाओं एवं सम्बन्धों का अवबोध करता है।
5. समान वस्तुओं को दो या अधिक वर्गों में शुद्ध रूप में समूहन करता है।
6. वास्तविक वस्तुओं या वस्तुओं के वर्गों में सम्बन्ध को समझता है। उन शब्दों के बीच जो अनुभूत वस्तुओं अथवा वस्तुओं के वर्ग का प्रतिनिधित्व करते है, सम्बंधों को समझता है।
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