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Wednesday, June 30, 2021

पूर्व संक्रियात्मक अवस्था 2-7 वर्ष Pre-operational Stage जीन पियाजे Piaget Theory

Pre-operational Stage
पूर्व संक्रियात्मक अवस्था 2-7 वर्ष Pre-operational Stage जीन पियाजे Piaget Theory



पूर्व संक्रियात्मक अवस्था 2-7 वर्ष Pre-operational Stage 


बालक के जन्म से या जन्म पूर्व गर्भावस्था में शुरू होने वाले विकास में वृद्धि सहित कई परिवर्तन होते हैं। जिसमें कुछ विशिष्ट प्रकार के विकास, संवेग Emotion, संज्ञानात्मक विकास , मानसिक विकास, समझ, बुद्धि, सृजनात्मक कौशल विकास सहित आदि परिवर्तन देखने को मिलते हैं। इसमें एक महत्वपूर्ण विकास है वह है संज्ञानात्मक विकास क्योंकि आगे चलकर संज्ञानात्मक विकास अधिगम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पियाजे सर ने संज्ञानात्मक थ्योरी में बालक की चार महत्वपूर्ण अवस्थाओं को बहुत शानदार ढंग से विश्लेषित किया है। तो आइए आज जानते हैं संज्ञानात्मक विकास की दूसरी अवस्था के बारे में विस्तृत जानकारी , क्योंकि रीट या अन्य शिक्षक भर्ती परीक्षा में संज्ञानात्मक विकास से जुड़े प्रश्न आते हैं जिनमें सिद्धान्त एवं कथनों में अभ्यर्थियों में बहुत कंन्फ्यूज्न रहता है। अगर शिक्षा मनोविज्ञान और बाल विकास शिक्षा शास्त्र के सभी टापिक्स को ध्यानपूर्वक समझकर दिमाग में सरल तरीके से इनपुट करेंगे तो परीक्षा में आउटपुट बहुत ही शानदार रहेगा।

पूर्व संक्रियात्मक अवस्था 2-7 वर्ष जीन पियाजे की संज्ञानात्मक विकास थ्योरी में यह दूसरी अवस्था मानी जाती है। अगर इसकी आयु सीमा की बात करें तो लगभग 2 से 7 वर्ष तक की आयु पूर्व संक्रियात्मक अवस्था मानी जाती है। पूर्व संक्रियात्मक अवस्था क्या होती है इस अवस्था में बालक किस प्रकार व्यवहार करके प्रतिक्रिया देने लगता है? इसके बारे में विस्तृत जानेंगे। ताकि संज्ञानात्मक विकास की इस दूसरी अवस्था से संबंधित सभी तथ्यों को स्थाई रूप से समझ सकें।

पूर्व संक्रियात्मक अवस्था की दो उप अवस्थाएं


जीन पियाजे के संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत में पूर्व संक्रियात्मक अवस्था को दो भागों में विभाजित किया है। इसमें पहली (2-4 वर्ष तथा दूसरी 4-7 वर्ष में विभक्त हैं।
2-4 वर्ष की अवस्था मे बच्चा अतार्किक चिंतन करता हैं अर्थात जो तर्क करने योग्य ही नहीं होते। उदाहरण के लिए जब कोई बच्चा एक साधारण रंग की बिल्ली को देखता है तो वह उसे पहली दफा में अपने दिमाग में बिल्ली का संप्रत्य बनाएगा और समझेगा कि यह बिल्ली है जब अचानक उसके सामने एक सफेद बिल्ली आ जाए तो उसे बिल्ली समझने में परेशानी महसूस करेगा क्योंकि वह अलग-अलग रंग की प्रजाति वाली बिल्लियों के तर्क़ को नहीं समझ पाएगा। इसलिए इस अवस्था में बच्चा (अहमकेंदित) होता हैं। ज्यादा जिज्ञासु होता है क्योंकि भिन्न प्रकार की चीजों को व्यवस्थित करने की कोशिश करता है।
इसलिए इस अवस्था में बालक बच्चा ज्यादा प्रश्न पूछता रहता हैं।
4-7 वर्ष की अवस्था में बच्चों को विकेन्द्रीकरण , समुह संबंध और संरक्षण का कोई ज्ञान नहीं होता हैं। उदाहरण के लिए जब बच्चे को बताएं कि यह व्यक्ति इस महिला का पति है तो बच्चा यह नहीं बताएगा कि यह महिला इसकी पत्नी है। इस अवस्था में बालक वस्तुओं की स्थिति परिवर्तन करने पर उसके मूल गुण या माप को परिवर्तित कर देते हैं। विकेन्द्रीकरण जैसे आप बच्चे को 2 छड़ी पास रख कर दिखाओगे तो वह बराबर कहेगा अगर आप उस छड़ियों को आगे पीछे करने दुबारा पूछेंगे तो वह एक को लम्बी कहेगा। मतलब वह स्थानान्तरणों और प्रक्रियाओं की अपेक्षा स्थिर स्थितियों एवं वस्तुओं की मानसिक प्रतिमा बनाता है।
दूसरे उदाहरण में अगर अलग-अलग कप जिसमें एक पतला ओर एक चोडा दिखाया जाए तो बच्चा यह नहीं बता पाएगा कि किसमे ज्यादा दूध आएगा। संरक्षण मतलब बच्चा सभी बातों और संबंधित तथ्यों को अपने दिमाग मे एकत्रित नही कर पाता हैं

पूर्व संक्रियात्मक अवस्था की विशेषताएं एवं व्यवहार


1, भाषा का उपयोग पूर्व संक्रियात्मक विचारों पर आधारित होता है।
2.इस अवस्था में केन्द्रवाद हावी होता है। 
3, केन्द्रण मतलब सामने या सम्पर्कगत वस्तुओं या उसके भाग पर ध्यान देना।
4, पूर्ण और भाग का विश्लेषण इस सक्रियता के द्वारा प्रत्यक्षण (Preception)एवं विचार का चरित्र निरूपण (Characterization) करता है।
5, स्थानान्तरणों और प्रक्रियाओं की अपेक्षा स्थिर स्थितियों एवं वस्तुओं की मानसिक प्रतिमा बनाता है।
6. एक ही ढंग या रूप से सौच सकता है उसके विपरीत नहीं।
7. प्रत्यक्षण में समान वस्तुओं को समान वर्ग में विभाजित करता है।
8. शब्दों (नामों) को वस्तुओं एवं वस्तुओं के वर्गों के साथ संयोजित करता है।

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