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International Nurses day,अन्तर्राष्ट्रीय नर्स दिवस वर्ल्ड नर्सिंग डे |
प्रत्येक वर्ष के भी महीने की 12 तारीख को अन्तर्राष्ट्रीय नर्स दिवस मनाया जाता है। किसी व्यक्ति के जीवन में स्वास्थ्य से बड़ी कोई वस्तु नहीं हो सकती है। इसलिए जब हम बिमार पडते है तब अस्पताल की ओर भागते हैं। साधारण हो या गंभीर बिमारी अस्पताल में डाक्टर द्वारा जांच करने और दवाई लिखने के बाद अस्पताल में बेड पर अगर कोई हर दम मरीज की सेवा करने वाला नर्सिंग स्टाफ ही होता है। जो हरदम हर सवाल का जवाब और हर परेशानी को दूर करता है। इंजेक्शन लगाना हो या ड्रीप चढानी हो या अस्पताल में भर्ती होने के बाद सभी दिक्कतें हल करने के लिए सबसे पहले हमें नर्स ही मरीजों की सेवा में तत्पर रहते हैं। अनेक मरीजों के हजारों सवालों का जवाब देते हैं और मेडिकल इक्युप्मेंट , दवाईयां आदि का प्रबंधन करते हैं। इन भगवान रूपी फरिश्तों की लगातार ड्युटी ,धेर्य,लगन सहज व्यवहार से मरीजों को बीमारी में भावात्मक संबल मिलता है। नर्सिंग स्टाफ ही विशेषज्ञ डाक्टरों का दाहिना हाथ होते हैं। सर्जरी हो या विशेष गहन चिकित्सा कक्ष की क्रिया विधि यह नर्सिंग स्टाफ डाक्टर से कन्धे से कन्धा मिलाकर सहयोग देता है।
स्वास्थ्य सेवाओं और टीकाकरण अभियान में अग्रणी
भारत सहित दुनिया के हर देश में नर्सिंग स्टाफ में कार्यरत हैं जिसमें पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की संख्या अधिक है। हालांकि मरीजों की तुलना में भारत सहित कुछ देशों में नर्सिंग स्टाफ की संख्या कम है। जीवन के कठीन समय में साथ देने वाले यह देवदूत अस्पताल में नहीं बल्कि स्वास्थ्य से जुड़े विभिन्न कार्यक्रमों में अपनी अहम भूमिका निभाते हैं। जिसमें पल्स पोलियों अभियान, गर्भवती महिलाओं की देखभाल, शिशुओं के लिए टीकाकरण, ग्रामीण क्षेत्रों में घर-घर मरीजों को उपचार और स्वास्थ्य के लिए जागरूकता अभियान चलाते हैं। मातृ-शिशु पौषण तथा स्वास्थ्य केंद्रो में इनकी सेवा से मानव जीवन गुणवत्ता में सुधार हुआ है।
1965 से मनाया जा रहा है नर्सिंग डे
अन्तर्राष्ट्रीय नर्सिंग डे के इतिहास और शुरुआत की बात करें तो इसका इतिहास फ्लोरेंस नाइटइंगेल के जन्म से जुड़ा हुआ है। नर्सिंग के संस्थापक फ्लोरेंस नाइटइंगेल का जन्म 12 मई, 1820 को हुआ था। इसलिए इसी दिन को नर्सिंग डे के रूप में मनाकर उनको याद किया जाता है।
सबसे पहले इस दिवस की शुरुआत साल 1965 में की गई थी। तब से लेकर आज तक यह दिवस इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ नर्सेज द्वारा अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत में इसकी शुरुआत 1973 में परिवार एंव कल्याण विभाग ने की थी। तब से इस दिन को देश में कार्यरत संपूर्ण नर्सिंग स्टाफ के लिए समर्पित किया जाता है। तथा नर्सिंग कर्मचारियों का हौसला अफजाई किया जाता है। इस दिन पुरस्कार देकर नर्सों की सराहनीय सेवा को सम्मान दिया जाता है। यह पुरस्कार हर साल देश के राष्ट्रपति द्वारा दिया जाता है। फ्लोरेंस नाइटिंगल पुरस्कार में 50 हज़ार रुपए नकद, एक प्रशस्ति पत्र और मेडल दिया जाता है।
कोविड में देवदूत (वॉरियर्स) की भूमिका में नर्सिंग स्टाफ
नर्सिंग को पूरी दुनिया के सबसे बड़े स्वास्थ्य पेशे के रूप में माना जाता है। जब पेशेवर चिकित्सक दूसरे रोगियों को देखने में व्यस्त होते है, तब रोगियों की 24 घंटे देखभाल करने के लिए नर्सेस की सुलभता और उपलब्धता होती हैं।
कोरोनावायरस जैसे संकट से नर्सिंग स्टाफ जान जोखिम में डालकर कर लगातार 6-12 घंटे पीपीटी किट पहनकर मरीजों की जान बचा रहे हैं। कोविड 19 जैसी महामारी में लोगों का जीवन बचाने और उनकी देखभाल करने में नर्सिंग स्टाफ ने पूरे विश्व में अपना नाम कमाया है। इस दौरान डाक्टरों के साथ साथ हजारों नर्सिंगकर्मी कोविड 19 से संक्रमित होकर इस दुनिया से विदा हो गये लेकिन इनका हौसला और जज्बा बहुत मजबूत है जिससे महामारी के विकराल संकट में यह कोरोना वॉरियर्स बन कर करोड़ों कोरोना संक्रमितों को नवीन जिंदगी देकर सकुशल घर भेज रहे हैं।
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