अक्षय तृतीया आखातीज : शुभ शगुन व किसानों की समृद्धि का त्योहार घी गुड़ व खीच राजस्थान में मनाने का निराला अंदाजJagriti PathJagriti Path

JUST NOW

Jagritipath जागृतिपथ News,Education,Business,Cricket,Politics,Health,Sports,Science,Tech,WildLife,Art,living,India,World,NewsAnalysis

Thursday, May 13, 2021

अक्षय तृतीया आखातीज : शुभ शगुन व किसानों की समृद्धि का त्योहार घी गुड़ व खीच राजस्थान में मनाने का निराला अंदाज

Akshay Tritiya
अक्षय तृतीया एवं हाली अमावस्या भारतवर्ष में धूमधाम से मनाया जाता है आखातीज का त्योहार किसानों के लिए पूरे वर्ष की समृद्धि और खुशहाली से जुड़ा है यह महत्वपूर्ण त्योंहार। पश्चिम राजस्थान में अक्षय तृतीया त्योहार से जुड़े अनोखे रिवाज एवं मान्यताएं।



भारत त्यौहारों का देश है यह सर्वविदित है यहां हिन्दूओं के प्रसिद्ध त्योंहार दीपावली और होली के बाद आखातीज (अक्षय तृतीया) भी मुख्य त्यौहार है।
‘'अक्षय’' शब्द का मतलब है जिसका क्षय या नाश न हो। इस दिन किया हुआ जप, तप, ज्ञान तथा दान अक्षय फल देने वाला होता है अतः इसे ‘अक्षय तृतीया’ कहते हैं। भविष्यपुराण, मत्स्यपुराण, पद्मपुराण, विष्णुधर्मोत्तर पुराण, स्कन्दपुराण में इस तिथि का विशेष उल्लेख है।
 हर वर्ष वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। यह त्योंहार भारत के हर राज्य में अलग अलग महत्व से मनाया जाता है।अक्षय तृतीया त्यौहार के इतिहास की बात करें तो इसके पीछे पौराणिक मान्यताएं भी है । जिसमें माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु जी के छठे अवतार भगवान परशुराम का जन्म हुआ था। उनका जन्मदिन हर वर्ष वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। जैन, बौद्ध,तथा अन्य धर्मों में इस त्योहार की अलग अलग मान्यता है। अक्षय तृतीया के त्योहार का संबंध महाभारत काल से भी जुड़ा माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि अक्षय तृतीया के दिन ही पांडव पुत्र युधिष्ठर को अक्षय पात्र की प्राप्ति भी हुई थी। इसकी विशेषता यह थी कि इसमें कभी भी भोजन समाप्त नहीं होता था। जैन धर्म की मान्यता के अनुसार इस दिन जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव भगवान ने एक वर्ष की पूर्ण तपस्या करने के पश्चात इक्षु (शोरडी-गन्ने) रस से पारायण किया था । इसी कारण इस तिथि को इक्षु तृतीया भी कहते हैं । इसप्रकार अक्षय तृतीया धन लक्ष्मी और समृद्धि से जुड़ा माना जाता है। यह दिन पुण्य कमाने के लिए खास दिन है। इस दिन कोई विशेष शुभ कार्य करने के लिए पंचांग में मूहूर्त देखने की जरूरत नहीं होती है। इसलिए अक्षय तृतीया के बहुत अधिक मात्रा में शादियां होती है। राजस्थान में अक्षय तृतीया के दिन अबूझ सावों (लगन) के कारण बाल विवाह की कुरीतियों को भी देखा गया है। लेकिन अक्षय तृतीया त्योहार का अपना महत्व है। इसलिए यह त्योंहार राजस्थान में तीन दिन तक मनाया जाता है। आइए जानते हैं राजस्थान में अक्षय तृतीया के अवसर पर विशेष खान-पान और मान्यताएं जो किसानों के लिए विशेष महत्व के साथ साथ स्वास्थ्य एवं समृद्धि से जुड़ाव भी रखती है।


अक्षय तृतीया से पहले हाळी अमावस्या बच्चों के हल (हळिया)


अक्षय तृतीया त्योहार की शुरुआत हाली अमावस्या से होती है। राजस्थान में किसान एवं बच्चे सुबह जल्दी उठकर लकड़ी के बने छोटे हल से हल जोतते है। यह हलिया करना आगामी फसल सीजन के लिए शुगून देखने के लिए ज़ोते जातें हैं। जिसमें किसानों के बच्चे पीतल धातु की बनी टोकरी (घंटी) बजाते हुए लकड़ी के छोटे हर से प्रतिकात्मक जुताई (खड़ाई) करते हैं। बच्चों एवं किसानों की इस रस्म को हळिया खड़ना कहलाता है। इस जुताई में बच्चे चौकोर जुताई करते हैं जिसको बिगोड़ी (बिघोड़ी) कहा जाता है। यह प्रतिकात्मक हल अक्षय तृतीया से सात दिन पहले शुरू होते हैं। अमावस्या, द्वितीया और तृतीया को गोल जुलाई की जाती है जिसे खळा करना कहलाता है। जिसके मध्य में बाजरा, गुड़ धान डालकर शगुन देखें जाते हैं।


वर्ष भर के शगुन देखना अकाल या सुकाल


अक्षय तृतीया के दिन तथा अमावस्या के दिन राजस्थान के किसानों द्वारा वर्ष भर के शगुन देखें जाते हैं। जिसमें बड़े बुजुर्ग पक्षियों की आवाज तथा दिशा से शगुन देखते हैं। आसमान में बादलों और हवा के रूख से आगामी वर्षा ऋतु में क़ृषि उपज से जुड़ी भविष्य वाणी करते हैं। विशेष पक्षियों के आगमन तथा सवेरे सवेरे पहली बार होने वाले मनोभावों को शगुन के रुप में देखते हैं। इस दिन डोड कौआ दिखाई देना शुभ माना जाता है। अक्षय तृतीया के दिन मिट्टी के मंडले (गीली मिट्टी के कच्चे कुल्हड़) बनाकर उसके फूटने तक इंतजार किया जाता है। फूटने पर पानी के बहाव से भी शगुन देखते के अजीब रिवाज है।
यह सभी रीति रिवाज विशेष पश्चिम राजस्थान के कुछ जिलों में ख़ास है जिसमें बाड़मेर जैसलमेर , जोधपुर तथा बीकानेर आदि आते हैं।


गुड़ और घी युक्त बाजरे का खीच तथा सामुहिक भोजन


आखातीज अक्षय तृतीया के दिन राजस्थान के पश्चिमी अंचल में बाजरे के स्वादिष्ट और पौष्टिक खीच (खीचड़) का विशेष महत्व है। अमावस्या ,द्वितीया , और अक्षय तृतीया के दिन गांवों में महिलाएं जल्दी जाग कर बाजरे को कूटकर तथा इसको विशेष तरीके से साफ करती है जिसे देशी भाषा में "बालड" निकालना कहा जाता है। फिर बाजरे के चूर्ण से को पानी में पकाकर खीचड़ तैयार किया जाता है। फिर इसे घी गुड़ के साथ बड़े चाव से परिवार तथा अपने संबंधियों के साथ मिलकर खाया जाता है। किसानों सहित बच्चे घर घर जाकर खीचड़ खाते हैं। तथा एक दूसरे को बधाई देते हैं तथा समृद्धि और स्वास्थ्य की कुशलक्षेम पूछते हैं और कामना करते हैं। यह विशेषता विशेष रूप से राजस्थान के कुछ जिलों की है जिसमें मारवाड़ विशेष है। बाकी भारत के अन्य राज्यों में अक्षय तृतीया को मनाने और मानने के अलग-अलग मान्यताएं और रीति रिवाज है।


अक्षय तृतीया के दिन छिपकली दिखाई देना


आखातीज या अक्षय तृतीया के दिन छिपकली का दिखना शुभ माना गया है व इससे पूरे साल का भविष्य ज्ञात होता है। इस तरह कुछ त्योहार में  पशु पक्षियों से संबंधित कुछ किंवदंती प्रचलित है उसमें से एक अक्षय तृतीया भी है इस दिन डोड कौआ और छिपकली के दर्शन शुभ माने जाते हैं।

No comments:

Post a Comment


Post Top Ad