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What is Panchsheel theory? |
भारत की विदेश नीति हमेशा उदारवादी और वसुदेव कुटुम्बकम् की रही है इसलिए भारत वर्ष को विश्व गुरु की संज्ञा दी जाती है। भारत ने हमेशा वैश्विक शांति का समर्थन किया है। भारत की विदेश नीति की बात करें या इसकी शुरुआत की आधारभूत संरचना की बात करें तो हमें पंडित जवाहरलाल नेहरू का पंचशील सिद्धांत याद आता है। तो आइए जानते हैं कि पंचशील सिद्धांत या अवधारणा क्या है।
पंडित नेहरू की “पंचशील" की धारणा के पाँच आधारभूत तत्व हैं, जिनके आधार पर राज्यों के पारस्परिक संबंधों का संचालन किया जाये।
1.राज्यों द्वारा एक दूसरे की प्रादेशिक अखण्डता एवं सर्वोच्च सत्ता के लिये पारस्परिक सम्मान की भावना रखना;
2.अनाक्रमण
3. एक-दूसरे के आन्तरिक मामलों में अहस्तक्षेप
4. समानता तथा पारस्परिक लाभ
5. "शांतिपूर्ण सह अस्तित्व (peaceful-co-existence)
पंचशील सिद्धांत के व्यावहारिक प्रयोग से प्राप्त होने वाले संभावित लाभों की विवेचना करने से स्पष्ट होता है कि इस व्यवस्था से युद्ध, हिंसा, शोषण, बल प्रयोग, प्रजातीयता की भावनाओं का अन्त होगा तथा शक्तिशाली राष्ट्रों द्वारा निर्बल राष्ट्रों में सैनिक हस्तक्षेप कम होंगे। सकारात्मक रूप से ये सिद्धांत आदर्श अन्तर्राष्ट्रीय विरोधी राजनीतिक आर्थिक व्यवस्थाओं को शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की प्ररेणा देते हैं तथा युद्ध के स्थान पर पारस्परिक सहयोग एवं शांतिपूर्ण वार्ताओं का मार्ग बताते हैं। गहराई से ध्यान देने से स्पष्ट होता है कि पंडित नेहरू का पंचशील का सिद्धांत उनके अन्तर्राष्ट्रीय आदर्शों का एक प्रतिरूप (model) है जिसका अनुसरण करने से विश्व शांति का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।
नेहरू द्वारा पंचशील सिद्धांत के प्रतिपादन करने के पीछे उनका मन्तव्य था कि यदि विश्व के राज्य इन नियमों का ईमानदारी से पालन करें तो इससे सैनिकवाद, साम्राज्यवाद तथा उपनिवेशवाद जैसी अन्तर्राष्ट्रीय बुराईयों का अन्त संभव हैं। किन्तु अन्तर्राष्ट्रीय संबंधों एवं "शक्तिपरक राजनीति के विद्वान जानते हैं कि "राजनीतिक आदर्शों' का अन्तर्राष्ट्रीय जगत में अधिक महत्व नहीं है। तिब्बत के मामले में भारत तथा साम्राज्यवादी चीन के संबंधों से शायद नेहरू ने यह सबक लिया हो।
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