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World Water Day, held on 22 March every year since 1993, focuses on the importance of freshwater and awareness for future water crisis. Photo edited by Jagritipath |
जल है तो कल है!
World Water Day 2021 Date History and Theme : जल ही जीवन है! यह ध्यय वाक्य बहुत सार्थक और सत्य है। जल के बिना हम जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं।जब जल जीवन के अस्तित्व के लिए पहली आवश्यकता है तो मानव को जल संकट की समस्या को प्राथमिकता देना बहुत जरूरी है। इसलिए हर वर्ष 22 मार्च को विश्व जल दिवस मनाया जाता है। जिससे मानव को जल संरक्षण के प्रति जागरूक किया जा सके। आज मानव भौतिकवादी युग में पूंजीवाद , उद्योग तथा तकनीकी के अंधाधुंध दौर में जल संकट की समस्या को भूल रहा है। आने वाले समय में जल संकट की समस्या बहुत गंभीर होने वाली है। इसलिए किसी विद्वान ने कहा था कि "तीसरा महायुद्ध जल के लिए होगा" । आज धरती पर पीने योग्य जल की समस्या को साफ देखा जा सकता है। जलवायु परिवर्तन के चलते अनियमित वर्षा तथा जल संग्रहण की कमी के चलते यह संकट और भी गहरा रहा है।
विश्व जल दिवस का इतिहास
विश्व जल दिवस मनाने का इतिहास ज्यादा पूराना नहीं है। मानव सभ्यता का जल संकट के प्रति ध्यान बड़े विलम्ब से गया इसलिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर इसकी पहल बीसवीं शताब्दी के अंतिम दशक में ही हुई है।
विश्व जल दिवस मनाने की अंतरराष्ट्रीय पहल ब्राजील में रियो डि जेनेरियो में 22 मार्च 1992 में आयोजित पर्यावरण तथा विकास का संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में की गई। साल 1993 में संयुक्त राष्ट्र ने अपने सामान्य सभा में निर्णय लेकर इस दिन को वार्षिक कार्यक्रम के रूप में मनाने का निर्णय लिया।
क्या है जल दिवस मनाने का उद्देश्य
दुनिया को पानी बचाना कितना जरूरी है, ये हमारा मूलभूत संसाधन है, इससे कई काम संचालित होते हैं और इसकी कमी से ज्यातार क्रिया कलाप ठप हो सकते हैं जोसी महत्वपूर्ण बातों को समझाना ही इसकी उद्देश्य है. लोगों को बताना कि पानी के बिना उनके अस्तित्व पर संकट गहरा सकता है- यही इसका मूल उद्देश्य है
हर साल विश्व जल दिवस के मौके पर कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन होता है. भाषण, कविताओं और कहानियों के माध्यम से लोगों को जल संरक्षण और इसका महत्व समझाने की कोशिश की जाती है. तमाम तरह की तस्वीरें और पोस्टर साझा किए जाते हैं जिनका लक्ष्य लोगों को पानी की महत्वता समझाना होता है.
धरती का सिर्फ एक फीसदी पानी पीने योग्य
बता दें कि धरती का करीब तीन चौथाई हिस्सा पानी पानी से भरा हुआ है। जिसमें बड़े बड़े महासागर है जिसका पानी खारा है पीने योग्य नहीं है। धरती पर मोजूद कुल जल का मात्र तीन फीसदी हिस्सा ही पीने योग्य है।ज्ञतीन फीसदी में भी दो प्रतिशत बर्फ और ग्लेशियर के रूप में जमा हुआ है। ऐसे में सिर्फ एक फीसदी पानी ही प्राणी के लिए पीने के योग्य है जो भूगर्भ , नदियों और तालाबों में मौजूद हैं । लेकिन विडंबना है कि तेजी से बढ़ रही आबादी के लिए यह एक प्रतिशत जल बहुत कम है। इसलिए मानव को जीवित रहने के लिए पीने योग्य शुद्ध जल की आवश्यकता है अगर मौजूदा पीने योग्य जल का संरक्षण एवं उचित प्रबंधन नहीं किया गया तो यह भविष्य में गहरे संकट का सबब बनेगा।
विश्व जल दिवस की थीम
हर वर्ष जल दिवस मनाने के साथ साथ इस विशेष दिवस के लिए थीम बनाई जाती है जो एक ध्यय वाक्य होता है।
साल 2021की थीम" वेल्यूइंग वाटर" है। तो साल 2020 की थीम "जल और जलवायु परिवर्तन" साल 2019 में "किसी को पीछे नहीं छोड़ना" तथा साल 2018 मे "जल के लिए प्रकृति के आधार पर समाधान" इस प्रकार यह थीम हर वर्ष लोगों में जल संरक्षण के प्रति जागरूक करती है।
जल संकट से कैसे निपटें
भारत सहित दुनिया के कई देशों में जल संकट की समस्या है लेकिन यह भविष्य में और भी भयावह होती जा रही है। इसलिए भारत में पानी बचाओ अभियान चल रहें। पानी बचाओ, बिजली बचाओ, जैसे नारे दिए जा रहे हैं। लेकिन इस कार्य में सबसे अहम भूमिका आम लोगों की है लोगों को जल का उचित उपयोग , संरक्षण करना चाहिए। लोगों को जल का अपव्यय करना बंद करके । रेन वाटर हार्वेस्टिंग प्रणाली से वर्षा जल का भंडारण करना चाहिए।
वर्षाजल संरक्षण (रेन वाटर हार्वेस्टिंग) का इतिहास काफी पुराना है। विश्व विरासत में सम्मिलित जार्डन के पेट्रा में की गई पुरातात्विक खुदाई में ईसा पूर्व सातवीं सदी में बनाए गए ऐसे हौज निकले जिनका इस्तेमाल वर्षाजल को एकत्र करने में किया जाता था। इसी प्रकार श्रीलंका स्थित सिजिरिया में बारिश के पानी को एकत्र करने के लिये राॅक कैचमेंट सिस्टम बना हुआ था। यह सिस्टम ईसा पूर्व 425 में बनाया गया था। इसे भी विश्व विरासत में सम्मिलित किया गया है। भारत में राजस्थान प्रदेश के थार क्षेत्र में 4500 वर्ष पूर्व बारिश के पानी को एकत्र करने के प्रमाण हड़प्पा में की गई खुदाई के दौरान पाए गए। इसलिए वर्तमान में वे सभी कोशिशें करनी चाहिए जिससे जल के कम उपयोग से अधिक से अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकें। जल के प्रयोग को घटाकर सफाई, निर्माण एवं कृषि आदि के लिए अवशिष्ट जल का पुनःचक्रण (रिसाइक्लिंग) करना। खेतों में या कृषि में जल बचत के लिए आधुनिक तकनीक का उपयोग किया जाए । जिसमें बूंद बूंद सिंचाई अच्छा विकल्प है।
इसलिए संत रहीम ने प्रसिद्ध दोहे में कहा था ।
रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून।।
इसलिए दुनिया के सभी देशों को मिलकर जल संरक्षण तथा जल के अपव्यय को रोकने के लिए विश्वव्यापी अभियान चलाकर भविष्य में जल संकट से बचाने के प्रयास करने चाहिए। औद्योगिक प्रदुषित जल को पुनः स्स्ती और आसान पद्धति से फ़िल्टर करने की प्रक्रिया में तेजी लानी होगी। किसानों को जल की मितव्ययता से उपयोग की तकनीक देकर क़ृषि में जल क्रांति की आवश्यकता है।
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